Updated: Feb, 11 2021

अध्याय 3

लिखतों की परिशुद्धि

26. कब लिखत परिशुद्ध किये जा सकेंगेे -

(1) जबकि पक्षकारों के कपट या पारस्परिक भूल के कारण कोई लिखित संविदा या अन्य लिखत [जो किसी ऐसी कम्पनी के संगम-अनुच्छेद न हों, जिसे कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) लागू होता हो] उनके वास्तविक आशय को अभिव्यक्त नहीं करती, तब -

(क) दोनों में से कोई पक्षकार या उसका हित प्रतिनिधि लिखत को परिशोधित कराने का वाद संस्थित कर सकेगा ; अथवा

(ख) वादी किसी ऐसे वाद में, जिसमें लिखत के अधीन उद्भूत कोई अधिकार विवाद्य हो, अपने अभिवचन में दावा कर सकेगा कि लिखत परिशोधित की जाए ; अथवा

(ग) ऐसे किसी वाद में जैसा खण्ड (ख) में निर्दिष्ट है, प्रतिवादी किसी अन्य प्रतिरक्षा के साथ-साथ जो उसको उपलब्ध हो, लिखत की परिशुद्धि की मांग कर सकेगा ।

(2) यदि किसी बाद में, जिसमें संविदा या अन्य लिखत का उपधारा (1) के अधीन परिशोधित कराना ईप्सित हो, न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि कपट या भूल के कारण, वह लिखत, पक्षकारों का वास्तविक आशय अभिव्यक्त नहीं करती, तो जहां तक परव्यक्तियों द्वारा सदभावपूर्वक और मूल्यार्थ अर्जित अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसा किया जा सके, न्यायालय स्वविवेक में लिखत को ऐसे परिशोधित करने का निदेश दे सकेगा जिससे वह आशय अभिव्यक्त हो जाए।

(3) लिखित संविदा पहले परिशोधित की जा सकेगी और तब, यदि परिशुद्धि का दावा करने वाले पक्षकार ने अपने अभिवचन में ऐसी प्रार्थना की हो और न्यायालय ठीक समझे तो वह विनिर्दिष्टत: प्रवर्तित की जा सकेगी ।

(4) किसी लिखत की परिशुद्धि के लिए इस धारा के अधीन किसी भी पक्षकार को अनुतोष अनुदत्त न किया जाएगा जब तक कि उसका विनिर्दिष्टत: दावा न किया गया हो :

परन्तु जहां कि किसी पक्षकार ने अपने अभिवचन में किसी ऐसे अनुतोष का दावा न किया हो, वहां न्यायालय कार्यवाही के किसी भी प्रक्रम में ऐसे दावे को अन्तर्गत करने के लिए अभिवचन को संशोधित करने की अनुज्ञा ऐसे निबन्धनों पर देगा, जो न्यायसंगत हों ।

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CHAPTER 3

RECTIFICATION OF INSTRUMENTS

26. When instrument may be rectified.-

(1) When, through fraud or a mutual mistake of the parties, a contract or other instrument in writing (not being the articles of association of a company to which the Companies Act, 1956 (1 of 1956), applies) does not express their real intention, then -

(a) either party or his representative in interest may institute a suit to have the instrument rectified; or

(b) the plaintiff may, in any suit in which any right arising under the instrument is in issue, claim in his pleading that the instrument be rectified; or

(c) a defendant in any such suit as is referred to in clause (b), may, in addition to any other defence open to him, ask for rectification of the instrument.

(2) If, in any suit in which a contract or other instrument is sought to be rectified under sub-section (1), the court finds that the instrument, through fraud or mistake, does not express the real intention of the parties, the court may, in its discretion, direct rectification of the instrument so as to express that intention, so far as this can be done without prejudice to rights acquired by third persons in good faith and for value.

(3) A contract in writing may first be rectified, and then if the party claiming rectification has so prayed in his pleading and the court thinks fit, may be specifically enforced.

(4) No relief for the rectification of an instrument shall be granted to any party under this section unless it has been specifically claimed:

Provided that where a party has not claimed any such relief in his pleading, the court shall, at any stage of the proceeding, allow him to amend the pleading on such terms as may be just for including such claim.

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