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- Protection of Children from Sexual Offences Rules, 2020 [Hindi & English]
- मुआवजा (Compensation) - POCSO RULES 2020
9. मुआवजा-
(1) प्राथमिकी (प्रथम सूचना रिपोर्ट) रजिस्ट्रीकृत होने के बाद किसी भी स्तर पर बालकों के राहत और पुनर्वास के लिए, विशेष न्यायालय, उचित मामलों में, स्वयं या बालकों द्वारा या उसके लिए फाईल किए गए आवेदन पर अंतरिम मुआवजे के लिए आदेश पारित कर सकता है। बालकों को भुगतान किए गए इस अंतरिम मुआवजे को अंतिम मुआवजा, यदि कोई हो तो, के साथ समंजित किया जाएगा।
(2) दोषी ठहराया जाता है, या जब मामले में अभुिक्त निर्दोष करार दिया जाता है या रिहा कर दिया जाता है, या अभियुक्त का पता नहीं चल पाता या उसकी पहचान नहीं हो पाती, और विशेष न्यायालय के विचार में अपराध के कारण बालक को हानि या चोट पहुंचा हो, तो विशेष न्यायालय, स्वयं या बालक द्वारा या उसके लिए दायर आवेदन पर मुआवजा देने की सिफारिश कर सकता है।
(3) जहां विशेष न्यायालय दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (1974 का 2) की धारा 357क की उपधारा (2) और उपधारा(3) के साथ पठित, अधिनियम की धारा 33 की उपधारा (8) के अधीन निम्नलिखित सहित पीड़ित पहुंचे नुकसान या चोट से संबंधित सभी प्रासंगिक कारकों को ध्यान में रखकर पीड़ित के लिए मुआवजा देने का निदेश देगा:
(i) दुर्व्यवहार का प्रकार, अपराध की गंभीरता और बालक को हुई मानसिक या शारीरिक हानि या चोट की गंभीरता;
(ii) बालक के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य या दोनों पर हुए खर्च या होने वाले संभावित चिकित्सा उपचार पर व्यय;
(iii) अपराध के परिणाम स्वरूप मानसिक आघात के कारण स्कूल से अनुपस्थिति, शारीरिक चोट, चिकित्सा उपचार, अपराध की जांच और परीक्षण, या किसी अन्य कारण सहित शैक्षिक अवसर की हानि;
(iv) अपराध के परिणाम स्वरूप रोजगार का नुकसान, मानसिक आघात, शारीरिक चोट, चिकित्सा उपचार, अपराध की जांच और परीक्षण, या किसी अन्य कारण सहित रोजगार की हानि;
(v) अपराधी का बालक से संबंध, यदि कोई हो;
(vi) क्या दुर्व्यवहार एक अलग-थलग घटना थी या क्या समय के साथ दुर्व्यवहार हुआ था;
(vii) क्या अपराध के परिणाम स्वरूप बच्ची गर्भवती हो गई;
(viii) क्या अपराध के परिणाम स्वरूप बालक यौन संचारित बीमारी (एसटीडी) के संपर्क में आया;
(ix) क्या अपराध के परिणाम स्वरूप बालक मानव इम्यूनोडिफीसिएन्सीवायरस (एचआईवी) से संपर्क में आया;
(x) अपराध के परिणाम स्वरूप बालक में आई कोई दिव्यांगता;
(xi) पुनर्वास की आवश्यकता अवधारित करने के लिए बालक की वित्तीय दशा जिसके विरूद्ध अपराध किया गया हो;
(xii) अन्य कोई भी कारक जिसे विशेष न्यायालय प्रांसगिक समझ सकता है।
(4) विशेष न्यायालय द्वारा दिए गए मुआवजा का भुगतान राज्य सरकार द्वारा पीड़ितों के लिए क्षतिपूर्ति निधि, या अन्य स्कीम या उसके द्वारा पीड़ितों को मुआवजा देने और पुनर्वास करने हेतु दंड प्रक्रिया संहिता,1973 की धारा 357क या जहां इस तरह की स्कीम और निधि नहीं है, वहां तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन इस प्रयोजन के लिए स्थापित राज्य सरकार की निधि या स्कीम से किया जाएगा।
(5) विशेष न्यायालय द्वारा दिए गए आदेश की प्राप्ति के 30 दिन के भीतर राज्य सरकार मुआवजे का भुगतान करेगी।
(6) इन नियमों की कोई बात बालक या बालक के माता-पिता या ऐसा बालक जो किसी अन्य व्यक्ति पर भरोसा करता हो और उसे उस पर आत्म विश्वास है, को केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार के किसी अन्य नियमों या स्कीम के अधीन राहत की मांग के लिए आवेदन करने से नहीं रोकेगा
9. Compensation.–
(1) The Special Court may, in appropriate cases, on its own or on an application filed by or on behalf of the child, pass an order for interim compensation to meet the needs of the child for relief or rehabilitation at any stage after registration of the First Information Report. Such interim compensation paid to the child shall be adjusted against the final compensation, if any
(2) The Special Court may, on its own or on an application filed by or on behalf of the victim, recommend the award of compensation where the accused is convicted, or where the case ends in acquittal or discharge, or the accused is not traced or identified, and in the opinion of the Special Court the child has suffered loss or injury as a result of that offence.
(3) Where the Special Court, under sub-section (8) of section 33 of the Act read with sub-sections (2) and (3) of section 357A of the Code of Criminal Procedure, 1973 (2 of 1974) makes a direction for the award of compensation to the victim, it shall take into account all relevant factors relating to the loss or injury caused to the victim, including the following:-
(i) type of abuse, gravity of the offence and the severity of the mental or physical harm or injury suffered by the child;
(ii) the expenditure incurred or likely to be incurred on child’s medical treatment for physical or mental health or on both;
(iii) loss of educational opportunity as a consequence of the offence, including absence from school due to mental trauma, bodily injury, medical treatment, investigation and trial of the offence, or any other reason;
(iv) loss of employment as a result of the offence, including absence from place of employment due to mental trauma, bodily injury, medical treatment, investigation and trial of the offence, or any other reason;
(v) the relationship of the child to the offender, if any;
(vi) whether the abuse was a single isolated incidence or whether the abuse took place over a period of time
(vii) whether the child became pregnant as a result of the offence;
(viii) whether the child contracted a sexually transmitted disease (STD) as a result of the offence;
(ix) whether the child contracted human immunodeficiency virus (HIV) as a result of the offence;
(x) any disability suffered by the child as a result of the offence;
(xi) financial condition of the child against whom the offence has been committed so as to determine such child’s need for rehabilitation;
(xii) any other factor that the Special Court may consider to be relevant.
(4) The compensation awarded by the Special Court is to be paid by the State Government from the Victims Compensation Fund or other scheme or fund established by it for the purposes of compensating and rehabilitating victims under section 357A of the Code of Criminal Procedure, 1973 or any other law for the time being in force, or, where such fund or scheme does not exist, by the State Government.
(5) The State Government shall pay the compensation ordered by the Special Court within 30 days of receipt of such order.
(6) Nothing in these rules shall prevent a child or child’s parent or guardian or any other person in whom the child has trust and confidence from submitting an application for seeking relief under any other rules or scheme of the Central Government or State Government.