13. क्रेता या पट्टेदार के उस व्यक्ति के विरुद्ध अधिकार जिसका कोई हक नहीं या अपूर्ण हक है -
(1) जहाँ कोई व्यक्ति, जिसका कोई हक नहीं या केवल कोई अपूर्ण हक है, कतिपय स्थावर सम्पत्ति के विक्रय या पट्टे पर देने की संविदा करता है, तो क्रेता या पट्टेदार के (इस अध्याय के अन्य उपबंधों के अध्यधीन) निम्नलिखित अधिकार हैं, अर्थात् :-
(क) यदि विक्रेता या पट्टाकर्ता ने संविदा के बाद सम्पत्ति में कोई हित अर्जित किया है, तो क्रेता या पट्टेदार ऐसे हित में से संविदा की पूर्ति करने के लिए उसे बाध्य कर सकेगा;
(ख) जहाँ हक की विधिमान्यता के लिये अन्य व्यक्तियों की सहमति आवश्यक है, और वे विक्रेता या पट्टाकर्ता के निवेदन पर सहमत होने के लिये बाध्य हैं, तो क्रेता या पट्टेदार ऐसी सहमति उपाप्त करने के लिये उसे बाध्य कर सकेगा, और जब हक को विधिमान्य करने के लिये अन्य व्यक्ति द्वारा कोई हस्तांतरण आवश्यक हो और वे विक्रेता या पट्टाकर्ता के निवेदन पर हस्तांतरण करने के लिये बाध्य हैं, तो क्रेता या पट्टेदार ऐसा हस्तांतरण उपाप्त करने के लिये उसे बाध्य कर सकेगा;
(ग) जहाँ विक्रेता विल्लंगमरहित सम्पत्ति के विक्रय की प्रव्यंजना करे, किन्तु सम्पत्ति क्रय धन से अनधिक किसी राशि के लिये बंधकित है और विक्रेता को वस्तुतः केवल उसके मोचन का अधिकार है, तो क्रेता उसे बंधक के मोचन के लिये और विधिमान्य उन्मोचन और, जहाँ आवश्यक हो, बंधकदार से कोई हस्तांतरण भी अभिप्राप्त करने के लिये, बाध्य कर सकेगा।
(घ) जहाँ विक्रेता या पट्टाकर्ता संविदा के विनिर्दिष्ट पालन के लिये वाद लाए और हक के अभाव में या अपूर्ण हक के आधार पर वाद खारिज हो जाए, तो प्रतिवादी को उसका निक्षेप, यदि कोई हो, उस पर ब्याज सहित, वापसी का, वाद के उसके खर्चे पाने का अधिकार है, और सम्पत्ति में विक्रेता या पट्टाकर्ता के ऐसे निक्षेप, ब्याज और ब्याज पर व्यय, यदि कोई हों, पर धारणाधिकार है जो संविदा की विषय-वस्तु है ।
(2) उपधारा (1) के उपबंध, जहाँ तक हो सके, जंगम सम्पत्ति के विक्रय या भाड़े की संविदाओं पर भी लागू होंगे।
13. Rights of purchaser or lessee against person with no title or imperfect title --
(1) Where a person contracts to sell or let certain immovable property having no title or only an imperfect title, the purchaser or lessee (subject to the other provisions of this Chapter), has the following rights, namely:-
(a) if the vendor or lessor has subsequently to the contract acquired any interest in the property, the purchaser or lessee may compel him to make good the contract out of such interest;
(b) where the concurrence of other persons is necessary for validating the title, and they are bound to concur at the request of the vendor or lessor, the purchaser or lessee may compel him to procure such concurrence, and when a conveyance by other persons is necessary to validate the title and they are bound to convey at the request of the vendor or lessor, the purchaser or lessee may compel him to procure such conveyance; where the vendor professes to sell unencumbered property, but the property is mortgaged for an amount not exceeding the purchase money and the vendor has in fact only a right to redeem it, the purchaser may compel him to redeem the mortgage and to obtain a valid discharge, and, where necessary, also a conveyance from the mortgagee;
(d) where the vendor or lessor sues for specific performance of the contract and the suit is dismissed on the ground of his want of title or imperfect title, the defendant has a right to a return of his deposit, if any, with interest thereon, to his costs of the suit, and to a lien for such deposit, interest and costs on the interest, if any, of the vendor or lessor in the property which is the subject matter of the contract.
(2) The provisions of sub-section (1) shall also apply, as far as may be, to contracts for the sale or hire of movable property.
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