465. निष्कर्ष या दण्डादेश कब गलती, लोप या अनियमितता के कारण उलटने योग्य होगा --
(1) इसमें इसके पूर्व अन्तर्विष्ट उपबंधों के अधीन यह है कि सक्षम अधिकारिता वाले न्यायालय द्वारा पारित कोई निष्कर्ष, दण्डादेश या आदेश विचारण के पूर्व या दौरान, परिवाद, समन, वारण्ट, उद्घोषणा, आदेश, निर्णय या अन्य कार्यवाही में हुई या इस संहिता के अधीन किसी जांच या अन्य कार्यवाही में हुई किसी गलती, लोप या अनियमितता या अभियोजन के लिए मंजूरी में हुई किसी गलती या अनियमितता के कारण अपील, पुष्टीकरण या पुनरीक्षण न्यायालय द्वारा तब तक न तो उलटा जाएगा और न परिवर्तित किया जाएगा जब तक न्यायालय की यह राय नहीं है कि उसके कारण वस्तुतः न्याय नहीं हो पाया है।
(2) यह अवधारित करने में कि क्या इस संहिता के अधीन किसी कार्यवाही में किसी गलती, लोप या अनियमितता या अभियोजन के लिए मंजूरी में हुई किसी गलती या अनियमितता के कारण न्याय नहीं हो पाया है न्यायालय इस बात को ध्यान में रखेगा कि क्या वह आपत्ति कार्यवाही के किसी पूर्वतर प्रक्रम में उठायी जा सकती थी और उठायी जानी चाहिए थी।
465. Finding or sentence when reversible by reason of error, omission or irregularity —
(1) Subject to the provisions hereinbefore contained, no finding, sentence or order passed by a Court of competent jurisdiction shall be reversed or altered by a Court of appeal, confirmation or revision on account of any error, omission or irregularity in the complaint, summons, warrant, proclamation, order, judgment or other proceedings before or during trial or in any inquiry or other proceedings under this Code, or any error or irregularity in any sanction for the prosecution, unless in the opinion of that Court, a failure of justice has in fact been occasioned thereby.
(2) In determining whether any error, omission or irregularity in any proceeding under this Code or any error or irregularity in any sanction for the prosecution has occasioned a failure of justice, the Court shall have regard to the fact whether the objection could and should have been raised at an earlier stage in the proceedings.