गिरफ्तारी की आशंका करने वाले व्यक्ति की जमानत मंजूर करने के लिए निर्देश (Direction for grant of bail to person apprehending arrest)
Updated: Aug, 20 2019
438. गिरफ्तारी की आशंका करने वाले व्यक्ति की जमानत मंजूर करने के लिए निर्देश --
(1) जब किसी व्यक्ति को यह विश्वास करने का कारण है कि उसको किसी अजमानतीय अपराध के किए जाने के अभियोग में गिरफ्तार किया जा सकता है तो वह इस धारा के अधीन निदेश के लिए उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय को आवेदन कर सकता है, और यदि वह न्यायालय ठीक समझे तो वह निदेश दे सकता है कि ऐसी गिरफ्तारी की स्थिति में उसको जमानत पर छोड़ दिया जाए।
उपरोक्त उपधारा (1) के स्थान पर निम्नलिखित उपधाराएँ प्रतिस्थापित किन्तु अब तक प्रवृत्त नहीं :(1) जहाँ किसी व्यक्ति के पास यह विश्वास करने का कारण है कि उसको किसी अजमानतीय अपराध के किए जाने के अभियोग में गिरफ्तार किया जा सकता है, तो वह इस धारा के अधीन निदेश के लिए उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय को आवेदन कर सकेगा कि ऐसी गिरफ्तारी की स्थिति में उसको जमानत पर छोड़ दिया जाए, और वह न्यायालय, अन्य बातों के साथ, निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखते हुए, अर्थात्--(i) अभियोग की प्रकृति और गंभीरता;(ii) आवेदक का पूर्ववृत्त जिसमें यह तथ्य भी सम्मिलित है कि क्या उसने पूर्व में किसी संज्ञेय अपराध के संबंध में किसी न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर कारावास भोगा है;(iii) न्याय से भागने की आवेदक की संभाव्यता; और(iv) जहाँ अभियोग आवेदक को इस प्रकार गिरफ्तार कराकर उसे क्षति पहुँचाने या उसका अपमान करने के उद्देश्य से लगाया गया है, वहाँ या तो तत्काल आवेदन अस्वीकार करेगा या अग्रिम जमानत मंजूर करने के लिए अंतरिम आदेश देगा :परन्तु यह कि जहाँ, यथास्थिति, उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय ने इस उपधारा के अधीन कोई अंतरिम आदेश पारित नहीं किया है या अग्रिम जमानत मंजूर करने के लिए आवेदन को अस्वीकार कर दिया है, वहाँ किसी पुलिस थाने का भारसाधक अधिकारी इस बात के लिए स्वतंत्र होगा कि ऐसे आवेदन में आशंकित अभियोग के आधार पर आवेदक को वारंट के बिना गिरफ्तार कर ले।(1-क) जहाँ न्यायालय उपधारा (1) के अधीन अंतरिम आदेश मंजूर करता है, वहाँ वह तत्काल एक सूचना, जो सात दिवस से अन्यून की सूचना न होगी, के साथ ऐसे आदेश की एक प्रति न्यायालय द्वारा आवेदन की अंतिम रूप से सुनवाई के समय लोक अभियोजक को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देने की दृष्टि से, लोक अभियोजक और पुलिस अधीक्षक को भिजवाएगा।(1-ख) यदि लोक अभियोजक द्वारा न्यायालय को आवेदन किये जाने पर न्यायालय यह विचार करता है कि न्याय के हित में ऐसी उपस्थिति आवश्यक है तो न्यायालय द्वारा आवेदन की अंतिम सुनवाई और अंतिम आदेश पारित करते समय अग्रिम जमानत चाहने वाले आवेदक की उपस्थिति बाध्यकर होगी। |
(2) जब उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय उपधारा (1) के अधीन निदेश देता है तब वह उस विशिष्ट मामले के तथ्यों को ध्यान में रखते हुए उन निदेशों में ऐसी शर्ते, जो वह ठीक समझे, सम्मिलित कर सकता है जिनके अन्तर्गत निम्नलिखित भी हैं--
(i) यह शर्त कि वह व्यक्ति पुलिस अधिकारी द्वारा पूछे जाने वाले परिप्रश्नों का उत्तर देने के लिए जैसे और जब अपेक्षित हो, उपलब्ध होगा;
(ii) यह शर्त कि वह व्यक्ति उस मामले के तथ्यों से अवगत किसी व्यक्ति को न्यायालय या किसी पुलिस अधिकारी के समक्ष ऐसे तथ्यों को प्रकट न करने के लिए मनाने के वास्ते प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः उसे कोई उत्प्रेरणा, धमकी या वचन नहीं देगा;
(iii) यह शर्त कि वह व्यक्ति न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा के बिना भारत नहीं छोड़ेगा;
(iv) ऐसी अन्य शर्ते जो धारा 437 की उपधारा (3) के अधीन ऐसे अधिरोपित की जा सकती हैं, मानो उस धारा के अधीन जमानत मंजूर की गई है।
(3) यदि तत्पश्चात् ऐसे व्यक्ति को ऐसे अभियोग पर पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी द्वारा वारण्ट के बिना गिरफ्तार किया जाता है और वह या तो गिरफ्तारी के समय या जब वह ऐसे अधिकारी की अभिरक्षा में है तब किसी समय जमानत देने के लिए तैयार है, तो उसे जमानत पर छोड़ दिया जाएगा तथा यदि ऐसे अपराध का संज्ञान करने वाला मजिस्ट्रेट यह विनिश्चय करता है कि उस व्यक्ति के विरुद्ध प्रथम बार ही वारण्ट जारी किया जाना चाहिए, तो वह उपधारा (1) के अधीन न्यायालय के निदेश के अनुरूप जमानतीय वारण्ट जारी करेगा।
(4) इस धारा की कोई बात, भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376 की उपधारा (3) या धारा 376कख या धारा 376घक और धारा 376घख के अधीन किसी अपराध के किए जाने के अभियोग में किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी अन्तर्वलित करने वाले किसी मामले पर लागू नहीं होगी ।
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राज्य संशोधन
उत्तरप्रदेश : धारा 438 विलोपित की जाएगी।
[देखें उत्तरप्रदेश एक्ट संख्या 16 सन् 1976, धारा 9 (दिनांक 28-11-1976 से प्रभावशील)]
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438. Direction for grant of bail to person apprehending arrest --
(1) When any person has reason to believe that he may be arrested on an accusation of having committed a non-bailable offence, he may apply to the High Court or the Court of Session for a direction under this section; and that Court may, if it thinks fit, direct that in the event of such arrest, he shall be released on bail.
Following Sub-sections substituted for above Sub-section (1) but not yet enforced :(1) Where any person has reason to believe that he may be arrested on accusation of having committed a non-bailable offence, he may apply to the High Court or the Court of Session for a direction under this section that in the event of such arrest he shall be released on bail; and that Court may, after taking into consideration, inter alia, the following factors, namely :-(i) the nature and gravity of the accusation; the antecedents of the applicant including the fact as to whether he has previously undergone imprisonment on conviction by a Court in respect of any cognizable offence;(iii) the possibility of the applicant to flee from justice; and (iv) where the accusation has been made with the object of injuring or humiliating the applicant by having him so arrested, either reject the application forthwith or issue an interim order for the grant of anticipatory bail :Provided that, where the High Court or, as the case may be, the Court of Session, has not passed any interim order under this sub-section or has rejected the application for grant of anticipatory bail, it shall be open to an officer-in-charge of a police station to arrest, without warrant, the applicant on the basis of the accusation apprehended in such application.(1-A) Where the Court grants an interim order under sub-section (1), it shall forthwith cause a notice being not less than seven days notice, together with a copy of such order to be served on the Public Prosecutor and the Superintendent of Police, with a view to give the Public Prosecutor a reasonable opportunity of being heard when the application shall be finally heard by the Court.(1-B) The presence of the applicant seeking anticipatory bail shall be obligatory at the time of final hearing of the application and passing of final order by the Court, if on an application made to it by the Public Prosecutor, the Court considers such presence necessary in the interest of justice. |