401. उच्च न्यायालय की पुनरीक्षण की शक्तियाँ --
(1) ऐसी किसी कार्यवाही के मामले में, जिसका अभिलेख उच्च न्यायालय ने स्वयं मंगवाया है या जिसकी उसे अन्यथा जानकारी हुई है, वह धाराएँ 386, 389, 390 और 391 द्वारा अपील न्यायालय को या धारा 307 द्वारा सेशन न्यायालय को प्रदत्त शक्तियों में से किसी का स्वविवेकानुसार प्रयोग कर सकता है और जब वे न्यायाधीश, जो पुनरीक्षण न्यायालय में पीठासीन हैं, राय में समान रूप से विभाजित हैं तब मामले का निपटारा धारा 392 द्वारा उपबंधित रीति से किया जाएगा।
(2) इस धारा के अधीन कोई आदेश, जो अभियुक्त या अन्य व्यक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, तब तक न किया जाएगा जब तक उसे अपनी प्रतिरक्षा में या तो स्वयं या प्लीडर द्वारा सुने जाने का अवसर न मिल चुका हो।
(3) इस धारा की कोई बात उच्च न्यायालय को दोषमुक्ति के निष्कर्ष को दोषसिद्धि के निष्कर्ष में संपरिवर्तित करने के लिए प्राधिकृत करने वाली न समझी जाएगी।
(4) जहाँ इस संहिता के अधीन अपील हो सकती है, किन्तु कोई अपील की नहीं जाती है वहाँ उस पक्षकार की प्रेरणा पर, जो अपील कर सकता था, पुनरीक्षण की कोई कार्यवाही ग्रहण न की जाएगी।
(5) जहाँ इस संहिता के अधीन अपील होती है किन्तु उच्च न्यायालय को किसी व्यक्ति द्वारा पुनरीक्षण के लिए आवेदन किया गया है और उच्च न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि ऐसा आवेदन इस गलत विश्वास के आधार पर किया गया था कि उससे कोई अपील नहीं होती है और न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक है तो उच्च न्यायालय पुनरीक्षण के लिए आवेदन को अपील की अर्जी मान सकता है और उस पर तद्नुसार कार्यवाही कर सकता है।
401. High Court's powers of revision —
(1) In the case of any proceeding the record of which has been called for by itself or which otherwise comes to its knowledge, the High Court may, in its discretion, exercise any of the powers conferred on a Court of Appeal by sections 386, 389, 390 and 391 or on a Court of Session by section 307 and, when the Judges composing the Court of revision are equally divided in opinion, the case shall be disposed of in the manner provided by section 392.
(2) No order under this section shall be made to the prejudice of the accused or other person unless he has had an opportunity of being heard either personally or by pleader in his own defence.
(3) Nothing in this section shall be deemed to authorise a High Court to convert a finding of acquittal into one of conviction.
(4) Where under this Code an appeal lies and no appeal is brought, no proceeding by way of revision shall be entertained at the instance of the party who could have appealed.
(5) Where under this Code an appeal lies but an application for revision has been made to the High Court by any person and the High Court is satisfied that such application was made under the erroneous belief that no appeal lies thereto and that it is necessary in the interests of justice so to do, the High Court may treat the application for revision as a petition of appeal and deal with the same accordingly.