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- Criminal Procedure Code 1973 [CrPC] With State Amendments [Hindi & English]
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345. अवमान के कुछ मामलों में प्रक्रिया --
(1) जब कोई ऐसा अपराध, जैसा भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 175, धारा 178, धारा 179, धारा 180 या धारा 228 में वर्णित है, किसी सिविल, दण्ड या राजस्व न्यायालय की दृष्टिगोचरता या उपस्थिति में किया जाता है तब न्यायालय अभियुक्त को अभिरक्षा में निरुद्ध करा सकता है और उसी दिन न्यायालय के उठने के पूर्व किसी समय, अपराध का संज्ञान कर सकता है और अपराधी को ऐसा कारण दर्शित करने का, कि क्यों न उसे इस धारा के अधीन दण्डित किया जाए, उचित अवसर देने के पश्चात् अपराधी को दो सौ रुपए से अनधिक जुर्माने का और जुर्माना देने में व्यतिक्रम होने पर एक मास तक की अवधि के लिए, जब तक कि ऐसा जुर्माना उससे पूर्वतर न दे दिया जाए, सादा कारावास का दण्डादेश दे सकता है।
(2) ऐसे प्रत्येक मामले में न्यायालय वे तथ्य जिनसे अपराध बनता है, अपराधी द्वारा किए गए कथन के (यदि कोई हो) सहित, तथा निष्कर्ष और दण्डादेश भी अभिलिखित करेगा।
(3) यदि अपराध भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 228 के अधीन है तो अभिलेख में यह दर्शित होगा कि जिस न्यायालय के कार्य में विघ्न डाला गया था या जिसका अपमान किया गया था, उसकी बैठक किस प्रकार की न्यायिक कार्यवाही के संबंध में और उसके किस प्रक्रम पर हो रही थी और किस प्रकार का विघ्न डाला गया या अपमान किया गया था।
345. Procedure in certain cases of contempt -
(1) When any such offence as is described in section 175, section 178, section 179, section 180 or section 228 of the Indian Penal Code (45 of 1860) is committed in the view or presence of any Civil, Criminal or Revenue Court, the Court may cause the offender to be detained in custody and may, at any time before the rising of the Court on the same day, take cognizance of the offence and, after giving the offender a reasonable opportunity of showing cause why he should not be punished under this section, sentence the offender to fine not exceeding two hundred rupees and, in default of payment of fine, to simple imprisonment for a term which may extend to one month, unless such fine be sooner paid.
(2) In every such case the Court shall record the facts constituting the offence, with the statement (if any) made by the offender, as well as the finding and sentence.
(3) If the offence is under section 228 of the Indian Penal Code (45 of 1860), the record shall show the nature and stage of the judicial proceeding in which the Court interrupted or insulted was sitting and the nature of the interruption or insult.