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- Criminal Procedure Code 1973 [CrPC] With State Amendments [Hindi & English]
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322. जिन मामलों का निपटारा मजिस्ट्रेट नहीं कर सकता, उनमें प्रक्रिया --
(1) यदि किसी जिले में किसी मजिस्ट्रेट के समक्ष अपराध की किसी जांच या विचारण के दौरान उसे साक्ष्य ऐसा प्रतीत होता है कि उसके आधार पर यह उपधारणा की जा सकती है कि --
(क) उसे मामले का विचारण करने या विचारणार्थ सुपुर्द करने की अधिकारिता नहीं है, अथवा
(ख) मामला ऐसा है जो जिले के किसी अन्य मजिस्ट्रेट द्वारा विचारित या विचारणार्थ सुपुर्द किया जाना चाहिए, अथवा
(ग) मामले का विचारण मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाना चाहिए, तो वह कार्यवाही को रोक देगा और मामले की ऐसी संक्षिप्त रिपोर्ट सहित, जिसमें मामले का स्वरूप स्पष्ट किया गया है, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को या अधिकारिता वाले अन्य ऐसे मजिस्ट्रेट को, जिसे मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट निर्दिष्ट करे, भेज देगा।
(2) यदि वह मजिस्ट्रेट, जिसे मामला भेजा गया है, ऐसा करने के लिए सशक्त है, तो वह उस मामले का विचरण स्वयं कर सकता है या उसे अपने अधीनस्थ अधिकारिता वाले मजिस्ट्रेट को निर्देशित कर सकता है या अभियुक्त को विचारणार्थ सुपुर्द कर सकता है।
322. Procedure in cases which Magistrate cannot dispose of —
(1) If, in the course of any inquiry into an offence or a trial before a Magistrate in any district, the evidence appears to him to warrant a presumption
(a) that he has no jurisdiction to try the case or commit it for trial, or
(b) that the case is one which should be tried or committed for trial by some other Magistrate in the district, or
(c) that the case should be tried by the Chief Judicial Magistrate, he shall stay the proceedings and submit the case, with a brief report explaining its nature, to the Chief Judicial Magistrate or to such other Magistrate, having jurisdiction, as the Chief Judicial: Magistrate directs.
(2) The Magistrate to whom the case is submitted may, if so empowered, either try the case himself, or refer it to any Magistrate subordinate to him having jurisdiction, or commit the accused for trial.
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