Updated: Jul, 17 2019

अध्याय 21: संक्षिप्त विचारण

260. संक्षिप्त विचारण करने की शक्ति -- (1) इस संहिता में किसी बात के होते हुए भी यदि :

(क) कोई मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट; 

(ख) कोई महानगर मजिस्ट्रेट;

(ग) कोई प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट जो उच्च न्यायालय द्वारा इस निमित्त विशेषतया सशक्त किया गया है, ठीक समझता है तो वह निम्नलिखित सब अपराधों का या उनमें से किसी का संक्षेपतः विचारण कर सकता है :

(i) वे अपराध जो मृत्यु, आजीवन कारावास या दो वर्ष से अधिक की अवधि के लिए कारावास से दण्डनीय नहीं है;

(ii) भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 379, धारा 380 या धारा 381 के अधीन चोरी, जहाँ चुराई हुई संपत्ति का मूल्य दो हजार रुपए से अधिक नहीं है; 

(iii) भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 411 के अधीन चोरी की संपत्ति को प्राप्त करना या रखे रखना, जहाँ ऐसी संपत्ति का मूल्य दो हजार रुपए से अधिक नहीं है;

(iv) भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 414 के अधीन चुराई हुई संपत्ति को छिपाने या उसका व्ययन करने में सहायता करना, जहाँ ऐसी संपत्ति का मूल्य दो हजार रुपए से अधिक नहीं है;

(v) भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 454 और 456 के अधीन अपराध;

(vi) भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 504 के अधीन लोकशांति भंग कराने को प्रकोपित करने के आशय से अपमान और धारा 506 के अधीन आपराधिक अभित्रास, जो ऐसे कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से दण्डनीय होगा;

(vii) पूर्ववर्ती अपराधों में से किसी का दुष्प्रेरण;

(viii) पूर्ववर्ती अपराधों में से किसी को करने का प्रयत्न, जब ऐसा प्रयत्न अपराध है;

(ix) ऐसे कार्य से होने वाला कोई अपराध, जिसकी बाबत पशु अतिचार अधिनियम, 1871 (1871 का 1) की धारा 20 के अधीन परिवाद किया जा सकता है।

(2) जब संक्षिप्त विचारण के दौरान मजिस्ट्रेट को प्रतीत होता है कि मामला इस प्रकार का है कि उसका विचारण संक्षेपतः किया जाना अवांछनीय है तो वह मजिस्ट्रेट किन्हीं साक्षियों को, जिनकी परीक्षा की जा चुकी है, पुनः बुलाएगा और मामले को इस संहिता द्वारा उपबंधित रीति से पुनः सुनने के लिए अग्रसर होगा।

 

CHAPTER XXI: SUMMARY TRIALS

260. Power to try summarily -- (1) Notwithstanding anything contained in this Code :

(a) any Chief Judicial Magistrate;

(b) any Metropolitan Magistrate;

(c) any Magistrate of the first class specially empowered in this behalf by the High Court, may, if he thinks fit, try in a summary way all or any of the following offences :

(i) offences not punishable with death, imprisonment for life or imprisonment for a term exceeding two years;

(ii) theft, under section 379, section 380 or section 381 of the Indian Penal Code (45 of 1860), where the value of the property stolen does not exceed two thousand rupees;

(iii) receiving or retaining stolen property, under section 411 of the Indian Penal Code (45 of 1860), where the value of the property does not exceed two thousand rupees;

(iv) assisting in the concealment or disposal of stolen property, under section 414 of the Indian Penal Code (45 of 1860), where the value of such property does not exceed two thousand rupees;

(v) offences under sections 454 and 456 of the Indian Penal Code (45 of 1860);

(vi) insult with intent to provoke a breach of the peace, under section 504, and criminal intimidation punishable with imprisonment for a term which may extend to two years, or with fine, or with both), under section 506 of the Indian Penal Code (45 of 1860);

(vii) abetment of any of the foregoing offences;

(viii) an attempt to commit any of the foregoing offences, when such attempt is an offence;

(ix) any offence constituted by an act in respect of which a complaint may be made under section 20 of the Cattle-trespass Act, 1871 (1 of 1871).

(2) When, in the course of a summary trial it appears to the Magistrate that the nature of the case is such that it is undesirable to try it summarily, the Magistrate shall recall any witnesses who may have been examined and proceed to re-hear the case in the manner provided by this Code.