Updated: Jul, 01 2019

 

228. आरोप विरचित करना --

(1) यदि पूर्वोक्त रूप से विचार, और सुनवाई के पश्चात् न्यायाधीश की यह राय है कि ऐसी उपधारणा करने का आधार है कि अभियुक्त ने ऐसा अपराध किया है जो--

(क) अनन्यतः सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय नहीं है तो वह अभियुक्त के विरुद्ध आरोप विरचित कर सकता है और आदेश द्वारा, मामले को विचारण के लिए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को अन्तरित कर सकता है या कोई अन्य प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट, ऐसी तारीख को जो वह ठीक समझे, अभियुक्त को, यथास्थिति, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष हाजिर होने का निदेश दे सकेगा, और तब ऐसा मजिस्ट्रेट]उस मामले का विचारण पुलिस रिपोर्ट पर संस्थित वारण्ट मामलों के विचारण के लिए प्रक्रिया के अनुसार करेगा;

(ख) अनन्यतः उस न्यायालय द्वारा विचारणीय है तो वह अभियुक्त के विरुद्ध आरोप लिखित रूप में विरचित करेगा।

(2) जहाँ न्यायाधीश उपधारा (1) के खण्ड (ख) के अधीन कोई आरोप विरचित करता है वहाँ वह आरोप अंभियुक्त को पढ़कर सुनाया और समझाया जाएगा और अभियुक्त से यह पूछा जाएगा कि क्या वह उस अपराध का, जिसका आरोप लगाया गया है, दोषी होने का अभिवचन करता है या विचारण किए जाने का दावा करता है।

 

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राज्य संशोधन

 

छत्तीसगढ़ -- मूल अधिनियम की धारा 228 की उपधारा (2) में शब्द “अभियुक्त को” के पश्चात् निम्नलिखित शब्द जोड़ा जाए, अर्थात् :-

                  “व्यक्तिगत रूप से या इलेक्ट्रानिक विडियो लिंकेज के माध्यम से उपस्थित होने एवं उसके अधिवक्ता द्वारा न्यायालय में प्रतिनिधित्व किए जाने पर ।”

[छ.ग. राजपत्र (असाधारण) पृष्ठ 166-166(2) पर प्रकाशित। (दि. 13-3-2006 से प्रभावी)]

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228. Framing of charge --
 
(1) If, after such consideration and hearing as aforesaid, the Judge is of opinion that there is ground for presuming that the accused has committed an offence which

(a) is not exclusively triable by the Court of Session, he may, frame a charge against the accused and, by order, transfer the case for trial to the Chief Judicial Magistrate, '[or any other Judicial Magistrate of the first class and direct the accused to appear before the Chief Judicial Magistrate, or, as the case may be, the Judicial Magistrate of the first class, on such date as he deems fit, and thereupon such Magistrate] shall try the offence in accordance with the procedure for the trial of warrant-cases instituted on a police report;

(b) is exclusively triable by the Court, he shall frame in writing a charge against the accused.

(2) Where the Judge frames any charge under clause (b) of sub-section (1), the charge shall be read and explained to the accused and the accused shall be asked whether he pleads guilty of the offence charged or claims to be tried.

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STATE AMENDMENT

 

Chhattisgarh - In sub-section (2) of Section 228 of the Principal Act, after the word “to the accused” the following shall be added, namely:-

"present in person or through the medium of electronic video linkage and being represented by his pleader in the Court.” 

 [Published in C.G. Rajpatra (Asadharan) dt. 13-3-2006 (w.e.f. 13-3-2006)].

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