Updated: Jul, 01 2019

 

220. एक से अधिक अपराधों के लिए विचारण - 

(1) यदि परस्पर संबद्ध ऐसे कार्यों के, जिनसे एक ही संव्यवहार बनता है, एक क्रम में एक से अधिक अपराध एक ही व्यक्ति द्वारा किए गए हैं तो ऐसे प्रत्येक अपराध के लिए एक ही विचारण में उस पर आरोप लगाया जा सकता है और उसका विचारण किया जा सकता है।

(2) जब धारा 212 की उपधारा (2) में या धारा 219 की उपधारा (1) में उपबंधित रूप में, आपराधिक न्यासभंग या बेईमानी से संपत्ति के दुर्विनियोग के एक या अधिक अपराधों से आरोपित किसी व्यक्ति पर उस अपराध या अपराधों के किए जाने को सुकर बनाने या छिपाने के प्रयोजन से लेखाओं के मिथ्याकरण के एक या अधिक अपराधों का अभियोग है, तब उस पर ऐसे प्रत्येक अपराध के लिए एक ही विचारण में आरोप लगाया जा सकता है और विचारण किया जा सकता है ।

(3) यदि अभिकथित कार्यों से तत्समय प्रवृत्त किसी विधि की, जिससे अपराध परिभाषित या दण्डनीय हो, दो या अधिक पृथक् परिभाषाओं में आने वाले अपराध बनते हैं तो जिस व्यक्ति पर उन्हें करने का अभियोग है उस पर ऐसे अपराधों में से प्रत्येक के लिए एक ही विचारण में आरोप लगाया जा सकता है और विचारण किया जा सकता है।

(4) यदि कई कार्य, जिनमें से एक से या एक से अधिक से स्वयं अपराध बनते हैं, मिलकर भिन्न अपराध बनते हैं तो ऐसे कार्यों से मिलकर बने अपराध के लिए और ऐसे कार्यों में से किसी एक या अधिक द्वारा बने किसी अपराध के लिए अभियुक्त व्यक्ति पर एक ही विचारण में आरोप लगाया जा सकता है और विचारण किया जा सकता है।

(5) इस धारा की कोई बात भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 71 पर प्रभाव न डालेगी।  

 

उपधारा (1) के दृष्टांत - 

(क) क एक व्यक्ति ख को, जो विधिपूर्ण अभिरक्षा में है, छुड़ाता है और ऐसा करने में कांस्टेबल ग को, जिसकी अभिरक्षा में ख है, घोर उपहति कारित करता है। क पर भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 225 और 333 के अधीन अपराधों के लिए आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा।

(ख) ख दिन में गृहभेदन इस आशय से करता है कि जारकर्म करे और ऐसे प्रवेश किए गए गृह में ख की पत्नी से जारकर्म करता है । क पर भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 454 और 497 के अधीन आरोपों के लिए पृथक्तः आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा।

(ग) क इस आशय से ख को, जो ग की पत्नी है, फुसलाकर ग से अलग ले जाता है कि ख से जारकर्म करे और फिर वह उससे जारकर्म करता है। क पर भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 498 व 497 के अधीन अपराधों के लिए पृथक्त: आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा। 

(घ) क के कब्जे में कई मुद्राएँ हैं जिन्हें वह जानता है कि वे कूटकृत हैं और जिनके संबंध में वह यह आशय रखता है कि भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 466 के अधीन दण्डनीय कई कूट रचनाएँ करने के प्रयोजन से उन्हें उपयोग में लाए। क पर प्रत्येक मुद्रा पर कब्जे के लिए भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 473 के अधीन पृथक्त: आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा।

(ड.) ख को क्षति कारित करने के आशय से क उसके विरुद्ध दाण्डिक कार्यवाही यह जानते हुए संस्थित करता है कि ऐसी कार्यवाही के लिए कोई न्यायसंगत या विधिपूर्ण आधार नहीं है,और ख पर अपराध करने का मिथ्या अभियोग, यह जानते हुए लगाता है कि ऐसे आरोप के लिए कोई न्यायसंगत या विधिपूर्ण आधार नहीं है। क पर भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 211 के अधीन दण्डनीय दो अपराधों के लिए पृथक्तः आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा।

(च) ख को क्षति कारित करने के आशय से क उस पर एक अपराध करने का अभियोग यह जानते हुए लगाता है कि ऐसे आरोप के लिए कोई न्यायसंगत या विधिपूर्ण आधार नहीं है। विचारण में ख के विरुद्ध क इस आशय से मिथ्या साक्ष्य देता है कि उसके द्वारा ख को मृत्यु से दण्डनीय अपराध के लिए दोषसिद्ध करवाए। क पर भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 211 और 194 के अधीन अपराधों के लिए पृथक्त: आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा।

(छ) क छह अन्य व्यक्तियों के सहित बल्वा करने, घोर उपहति करने और ऐसे लोक-सेवक पर, जो ऐसे बल्वे को दबाने का प्रयास ऐसे लोक-सेवक के नाते अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में कर रहा है, हमला करने का अपराध करता है। क पर भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 147, 325 और 152 के अधीन अपराधों के लिए पृथक्तः आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा। ख, ग और घ के शरीर को क्षति की धमकी क इस आशय से एक ही समय देता है कि उन्हें संत्रास कारित किया जाए। क पर भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 506 के अधीन तीनों अपराधों में से प्रत्येक के लिए पृथक्तः आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा।

दृष्टांत (क) से लेकर (ज) तक में क्रमशः निर्दिष्ट पृथक् आरोपों का विचारण एक ही समय किया जा सकेगा।

 

उपधारा (3) के दृष्टांत

(झ) क बेत से ख पर सदोष आघात करता है। क पर भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 352 और 323 के अधीन अपराधों के लिए पृथक्तः आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा।

(ब) चुराए हुए धान्य के कई बोरे क और ख को, जो यह जानते हैं कि वे चुराई हुई संपत्ति है, इस प्रयोजन से दे दिए जाते हैं कि वे उन्हें छिपा दे। तब क और ख उन बोरों को अनाज की खेती के तले में छिपाने में स्वेच्छया एक दूसरे की मदद करते हैं। क और ख पर भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 411 और 414 के अधीन अपराधों के लिए पृथक्तः आरोप लगाया जा सकेगा और वे दोषसिद्ध किए जा सकेंगे

(ट) क अपने बालक को यह जानते हुए अरक्षित डाल देती है कि यह संभाव्य है कि उससे वह उसकी मृत्यु कारित कर दे। बालक ऐसे अरक्षित डाले जाने के परिणामस्वरूप मर जाता है। क पर भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 317 और 304 के अधीन अपराधों के लिए पृथकुतः आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध की जा सकेगी।

(ठ) क कूटरचित दस्तावेज को बेईमानी से असली साक्ष्य के रूप में इसलिए उपयोग में लाता है कि एक लोक-सेवक ख को भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 167 के अधीन अपराध के लिए दोषसिद्ध करे। क पर भारतीय दण्ड संहिता की (धारा 466 के साथ पठित) धारा 471 के और धारा 196 के अधीन अपराधों के लिए पृथक्तः आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा।

 

उपधारा (4) का दृष्टांत -

(ड) ख को क लूटता है और ऐसा करने में उसे स्वेच्छया उपहति कारित करता है क पर भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 323, 392 और 394 के अधीन अपराधों के लिए पृथक्तः आरोप लगाया जा सकेगा और वह दोषसिद्ध किया जा सकेगा।

 
220. Trial for more than one offence -
 
(1) If, in one series of acts so connected together as to form the same transaction, more offences than one are committed by the same person, he may be charged with and tried at one trial for, every such offence.

(2) When a person charged with one or more offences of criminal breach of trust or dishonest misappropriation of property as provided in sub-section (2) of section 212 or in sub-section (1) of section 219, is accused of committing, for the purpose of facilitating or concealing the commission of that offence or those offences, one or more offences of falsification of accounts, he may be charged with and tried at one trial for, every such offence.

(3) If the acts alleged constitute an offence falling within two or more separate definitions of any law in force for the time being by which offences are defined or punished, the person accused of them may be charged with and tried at one trial for, each of such offences.

(4) If several acts, of which one or more than one would by itself or themselves constitute an offence, constitute when combined a different offence, the person accused of them may be charged with and tried at one trial for the offence constituted by such acts when combined and for any offence constituted by anyone, or more of such acts.

(5) Nothing contained in this section shall affect section 71 of the Indian Penal Code (45 of 1860)

 

Illustrations to sub-section - (1)

(a) A rescues B a person in lawful custody and in so doing causes grievous hurt to C, a constable, in whose custody B was, A may be charged with and convicted of, offences under sections 225 and 333 of the Indian Penal Code (45 of 1860).

(b) A commits house-breaking by day with intent to commit adultery and commits in the house so entered, adultery with B's wife. A may be separately charged with and convicted of, offences under sections 454 and 497 of the Indian Penal Code (45 of 1860).

(c) A entices B, the wife of C, away from C, with intent to commit adultery with B and then commits adultery with her. A may be separately charged with and convicted of, offences under sections 498 and 497 of the Indian Penal Code (45 of 1860)

(d) A has in his possession several seals, knowing them to be counterfeit and intending to use them for the purpose of committing several forgeries punishable under section 466 of the Indian Penal Code (45 of 1860). A may be separately charged with and convicted of the possession of each seal under section 473 of the Indian Penal Code (45 of 1860).

(e) With intent to cause injury to B, A institutes a criminal proceeding against him, knowing that there is no just or lawful ground for such proceeding and also falsely accuses B of having committed an offence, knowing that there is no just or lawful ground for such charge. A may be separately charged with and convicted of, two offences under section 211 of the Indian Penal Code (45 of 1860).

(f) A with intent to cause injury to B, falsely accuses him of having committed an offence, knowing that there is no just or lawful ground for such charge. On the trial, A gives false evidence against B, intending thereby to cause B to be convicted of a capital offence. A may be separately charged with and convicted of, offences under sections 211 and 194 of the Indian Penal Code (45 of 1860).

(g) A with six others, commits the offences, of rioting, grievous hurt and assaulting a public servant endeavouring in the discharge of his duty as such to suppress the riot. A may be separately charged with and convicted of, offences under sections 147, 325 and 152 of the Indian Penal Code (45 of 1860).

(h) A threatens B, C and D at the same time with injury to their persons with intent to cause alarm to them. A may be separately charged with and convicted of, each of the three offences under section 506 of the Indian Penal Code (45 of 1860). The separate charges referred to in

illustrations (a) to (h) res may be tried at the same time.

 

Illustrations to sub-section (3)

(i) A wrongfully strikes B with a cane. A may be separately charged with and convicted of, offences under sections 352 and 323 of the Indian Penal Code (45 of 1860).

(j) Several stolen sacks of corn are made over to A and B, who knew they are stolen property, for the purpose of concealing them, A and B thereupon voluntarily assist each other to conceal the sacks at the bottom of a grain-pit. A and B may be separately charged with and convicted of, offences under sections 411 and 414 of the Indian Penal Code (45 of 1860).

(k) A exposes her child with the knowledge that she is thereby likely to cause its death. The child dies in consequence of such exposure. A may be separately charged with and convicted of, offences under sections 317 and 304 of the Indian Penal Code (45 of 1860).

(l) A dishonestly uses a forged document as genuine evidence, in order to convict B, a public servant, of an offence under section 167 of the Indian Penal Code (45 of 1860). A may be separately charged with and convicted of, offences under sections 471 (read with section 466) and 196 of that Code (45 of 1860).

 

Illustration to sub-section (4).

(m) A commits robbery on B and in doing so voluntarily causes hurt to him. A may be separately charged with, and convicted of offences under sections 323, 392 and 394 of the Indian Penal Code (45 of 1860).

Go To Index