आरोप की अन्तर्वस्तु (Contents of charge)
Updated: Jul, 01 2019
अध्याय 17: आरोप
क - आरोपों का प्ररूप
(2) यदि उस अपराध का सृजन करने वाली विधि द्वारा उसे कोई विनिर्दिष्ट नाम दिया गया है तो आरोप में उसी नाम से उस अपराध का वर्णन किया जाएगा।
(3) यदि उस अपराध का सृजन करने वाली विधि द्वारा उसे कोई विनिर्दिष्ट नाम नहीं दिया गया है तो अपराध की इतनी परिभाषा देनी होगी जितनी से अभियुक्त को उस बात की सूचना हो जाए जिसका उस पर आरोप है।
(4) वह विधि और विधि की वह धारा, जिसके विरुद्ध अपराध किया जाना कथित है, आरोप में उल्लिखित होगी।
(5) यह तथ्य कि आरोप लगा दिया गया है इस कथन के समतुल्य है कि विधि द्वारा अपेक्षित प्रत्येक शर्त जिससे आरोपित अपराध बनता है उस विशिष्ट मामले में पूरी हो गई है।
(6) आरोप न्यायालय की भाषा में लिखा जाएगा।
(7) यदि अभियुक्त किसी अपराध के लिए पहले दोषसिद्ध किये जाने पर किसी पश्चात्वर्ती अपराध के लिए ऐसी पूर्व दोषसिद्धि के कारण वर्धित दण्ड का या भिन्न प्रकार के दण्ड का भागी है और यह आशयित है कि ऐसी पूर्व दोषसिद्धि उस दण्ड को प्रभावित करने के प्रयोजन के लिए साबित की जाए जिसे न्यायालय पश्चात्वर्ती अपराध के लिए देना ठीक समझे तो पूर्व दोषसिद्धि का तथ्य, तारीख और स्थान आरोप में कथित होंगे और यदि ऐसा कथन रह गया है तो न्यायालय दण्डादेश देने के पूर्व किसी समय भी उसे जोड़ सकेगा।
दृष्टांत -
(क) क पर ख की हत्या का आरोप है। यह बात इस कथन के समतुल्य है कि क का कार्य भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 299 और 300 में दी गई हत्या की परिभाषा के अन्दर आता है और वह उसी संहिता के साधारण अपवादों में से किसी के अन्दर नहीं आता है और वह धारा 300 के पाँच अपवादों में से किसी के अन्दर भी नहीं आता, या यदि वह अपवाद 1 के अन्दर आता है तो उस अपवाद के तीन परन्तुकों में से कोई न कोई परन्तुक उसे लागू होता है।
(ख) क पर असन के उपकरण द्वारा ख को स्वेच्छया घोर उपहति कारित करने के लिए भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 326 के अधीन आरोप है। यह इस कथन के समतुल्य है कि उस मामले के लिए भारतीय दण्ड संहिता की धारा 335 द्वारा उपबंध नहीं किया गया है और साधारण अपवाद उसको लागू नहीं होते हैं।
(ग) क पर हत्या, छल, चोरी, उद्दापन, जारकर्म या आपराधिक अभित्रास या मिथ्या संपत्ति चिन्ह को उपयोग में लाने का अभियोग है। आरोप में उन अपराधों की भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) में दी गई परिभाषाओं के निर्देश के बिना यह कथन हो सकता है कि क ने हत्या या छल या चोरी या उद्दापन या जारकर्म या आपराधिक अभित्रास किया है या यह कि उसने मिथ्या संपत्ति चिन्ह का उपयोग किया है; किन्तु प्रत्येक दशा में वे धाराएँ, जिनके अधीन अपराध दण्डनीय है, आरोप में निर्दिष्ट करनी पड़ेगी।
(घ) क पर भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 184 के अधीन यह आरोप है कि उसने लोक सेवक के विधिपूर्ण प्राधिकार द्वारा विक्रय के लिए प्रतिस्थापित संपत्ति के विक्रय में साशय बाधा डाली है आरोप उन शब्दों में ही होना चाहिए।
CHAPTER XVII: THE CHARGE
A - Form of charges
211. Contents of charge -
(1) Every charge under this Code shall state the offence with which the accused is charged.
(2) If the law which creates the offence gives it any specific name, the offence may be described in the charge by that name only.
(3) If the law which creates the offence does not give it any specific name so much of the definition of the offence must be stated as to give the accused notice of the matter with which he is charged.
(4) The law and section of the law against which the offence is said to have been committed shall be mentioned in the charge.
(5) The fact that the charge is made is equivalent to a statement that every legal condition required by law to constitute the offence charged was fulfilled in the particular case.
(6) The charge shall be written in the language of the Court.
(7) If the accused, having been previously convicted of any offence, is liable, by reason of such previous conviction, to enhanced punishment, or to punishment of a different kind, for a subsequent offence and it is intended to prove such previous conviction for the purpose of affecting the punishment which the Court may think fit to award for the subsequent offence, the fact, date and place of the previous conviction shall be stated in the charge; and if such statement has been omitted, the Court may add it at any time before sentence is passed..
Illustrations -
(a) A is charged with the murder of B. This is equivalent to a statement that A's act fell within the definition of murder given in sections 299 and 300 of the Indian Penal Code (45 of 1860), that it did not fall within any of the general exceptions of the said Code; and that it did not fall within any of the five exceptions to section 300, or that, if it did fall within Exception 1, one or other of the three provisos to that exception applied to it. :
(b) A is charged under section 326 of the Indian Penal Code (45 of 1860) with voluntarily causing grievous hurt to B by means of an instrument for shooting. This is equivalent to a statement that the case was not provided for by section 335 of the said Code and that the general exceptions did not apply to it.
(c) A is accused of murder, cheating, theft, extortion, adultery or criminal intimidation, or using a false property mark. The charge may state that A committed murder, or cheating, or theft, or extortion, or adultery, or criminal intimidation, or that he used a false property-mark, without reference to the definition, of those crimes contained in the Indian Penal Code (45 of 1860); but the sections under which the offence is punishable must, in each instance, be referred to in the charge.
(d) A is charged under section 184 of the Indian Penal Code (45 of 1860) with intentionally obstructing a sale of property offered for sale by the lawful authority of a public servant. The charge should be in those words.