न्यूसेंस या आशंकित खतरे के अर्जेण्ट मामलों में आदेश जारी करने की शक्ति (Power to issue order in urgent cases of nuisance or apprehended danger)
Updated: Jul, 06 2019
ग - न्यूसेंस या आशंकित खतरे के अर्जेण्ट मामले
144. न्यूसेंस या आशंकित खतरे के अर्जेण्ट मामलों में आदेश जारी करने की शक्ति -- (1) उन मामलों में, जिनमें जिला मजिस्ट्रेट या उपखण्ड मजिस्ट्रेट अथवा राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त विशेषतया सशक्त किए गए किसी अन्य कार्यपालक मजिस्ट्रेट की राय में इस धारा के अधीन कार्यवाही करने के लिए पर्याप्त आधार हैं और तुरन्त निवारण या शीघ्र उपचार करना वांछनीय है, वह मजिस्ट्रेट ऐसे लिखित आदेश द्वारा जिसमें मामले के तात्विक तथ्यों का कथन होगा और जिसकी तामील धारा 134 द्वारा उपबंधित रीति से कराई जाएगी, किसी व्यक्ति को कार्य विशेष न करने या अपने कब्जे की या अपने प्रबंधाधीन किसी विशिष्ट संपत्ति की कोई विशिष्ट व्यवस्था करने का निदेश उस दशा में दे सकता है जिसमें ऐसा मजिस्ट्रेट समझता है कि ऐसे निदेश से यह संभाव्य है, या ऐसे निदेश की यह प्रवृत्ति है कि विधिपूर्वक नियोजित किसी व्यक्ति को बाधा, क्षोभ या क्षति का, या मानव जीवन, स्वास्थ्य या क्षेम को खतरे का, या लोक प्रशांति विक्षुब्ध होने का, या बलवे या दंगे का निवारण हो जाएगा।
(2) इस धारा के अधीन आदेश, आपात की दशाओं में या उन दशाओं में जब परिस्थितियाँ ऐसी हैं कि उस व्यक्ति पर, जिसके विरुद्ध यह आदेश निदिष्ट है, सूचना की तामील सम्यक् समय में करने की गुंजाइश न हो, एकपक्षीय रूप में पारित किया जा सकता है।
(3) इस धारा के अधीन आदेश किसी विशिष्ट व्यक्ति को, या किसी विशेष स्थान या क्षेत्र में निवास करने वाले व्यक्तियों को अथवा आम जनता को, जब वे किसी विशेष स्थान या क्षेत्र में जाते रहते हैं या जाएँ, निदिष्ट किया जा सकता है।
(4) इस धारा के अधीन कोई आदेश उस आदेश के दिए जाने की तारीख से दो मास से आगे प्रवृत्त न रहेगा:
परन्तु यदि राज्य सरकार मानव जीवन, स्वास्थ्य या क्षेम को खतरे का निवारण करने के लिए अथवा बलवे या किसी दंगे का निवारण करने के लिए ऐसा करना आवश्यक समझती है तो वह अधिसूचना द्वारा यह निदेश दे सकती है कि मजिस्ट्रेट द्वारा इस धारा के अधीन किया गया कोई आदेश उतनी अतिरिक्त अवधि के लिए, जितनी वह उक्त अधिसूचना में विनिर्दिष्ट करे, प्रवृत्त रहेगा, किन्तु वह अतिरिक्त अवधि उस तारीख से छह मास से अधिक की न होगी जिसको मजिस्ट्रेट द्वारा दिया गया आदेश ऐसे निदेश के अभाव में समाप्त हो गया होता ।
(5) कोई मजिस्ट्रेट या तो स्वप्रेरणा से या किसी व्यथित व्यक्ति के आवेदन पर किसी ऐसे आदेश को विखंडित या परिवर्तित कर सकता है जो स्वयं उसने या उसके अधीनस्थ किसी मजिस्ट्रेट ने या उसके पद-पूर्ववर्ती ने इस धारा के अधीन दिया है।
(6) राज्य सरकार उपधारा (4) के परन्तुक के अधीन अपने द्वारा दिए गए किसी आदेशं को या तो स्वप्रेरणा से या किसी व्यथित व्यक्ति के आवेदन पर विखंडित या परिवर्तित कर सकती है।
(7) जहाँ उपधारा (5) या उपधारा (6) के अधीन आवेदन प्राप्त होता है वहाँ, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार आवेदक को या तो स्वयं या प्लीडर द्वारा उसके समक्ष हाजिर होने और आदेश के विरुद्ध कारण दर्शित करने का शीघ्र अवसर देगी; और यदि, यथास्थिति, मजिस्ट्रेट या राज्य सरकार आवेदन को पूर्णतः या अंशतः नामंजूर कर दे तो वह ऐसा करने के अपने कारणों को लेखबद्ध करेगी।
C - Urgent Cases of Nuisance or Apprehended Danger
(2) An order under this section may, in cases of emergency or in cases where the circumstances do not admit of the serving in due time of a notice upon the person against whom the order is directed, be passed ex-parte.
(3) An order under this section may be directed to a particular individual, or to persons residing in a particular place or area, or to the public generally when frequenting or visiting a particular place or area.
(4) No order under this section shall remain in force for more than two months from the making thereof : Provided that, if the State Government considers it necessary so to do for preventing danger to human life, health or safety or for preventing a riot or any affray, it may, by notification, direct that an order made by a Magistrate under this section shall remain in force for such further period not exceeding six months from the date on which the order made by the Magistrate would have, but for such order, expired, as it may specify in the said notification.
(5) Any Magistrate may, either on his own motion or on the application of any person aggrieved, rescind or alter any order made under this section, by himself or any Magistrate subordinate to him or by his predecessor-in-office.
(6) The State Government may, either on its own motion or on the application of · any person aggrieved, rescind or alter any order made by it under the proviso to sub-section (4).
(7) Where an application under sub-section (5), or sub-section (6) is received, the Magistrate, or the State Government, as the case may be, shall afford to the applicant an early opportunity of appearing before him or it, either in person or by pleader and showing cause against the order and if the Magistrate or the State Government, as the case may be, rejects the application wholly or in part, he or it shall record in writing the reasons for so doing.