जबकि चैक सम्यक् रूप से उपस्थापित नहीं किया गया और लेखीवाल को तद्वारा नुकसान हुआ (When cheque not duly presented and drawer damaged thereby)
Updated: Mar, 29 2020
84. जबकि चैक सम्यक् रूप से उपस्थापित नहीं किया गया और लेखीवाल को तद्वारा नुकसान हुआ --- (1) जहाँ कि चैक, उसके काटे जाने से युक्तियुक्त समय के अंदर संदाय के लिए उपस्थापित न किया जाए और जहाँ तक लेखीवाल या जिस व्यक्ति लेखे वह लिखा गया है उस व्यक्ति और बैंकार के बीच का सम्बन्ध है, वहाँ तक लेखीवाल या ऐसे व्यक्ति को उस समय, जबकि वह उपस्थापित किया जाना चाहिए था, यह अधिकार प्राप्त था कि चैक का संदाय किया जाए और वह विलम्ब के कारण वास्तव में नुकसान उठाता है वहाँ वह ऐसे नुकसान की मात्रा तक उन्मोचित हो जाता है, अर्थात् उस मात्रा तक जिस तक ऐसा लेखीवाल या व्यक्ति उस रकम से अधिक के लिए बैंकार का लेनदार है, जिस रकम का लेनदार वह होता यदि चैक का संदाय कर दिया गया होता ।
(2) यह अवधारण करने के लिए कि युक्तियुक्त समय क्या है लिखत की प्रकृति को, व्यापार और बैंकारों की प्रथा को और उस विशिष्ट मामले के तथ्यों को ध्यान में रखा जाएगा ।
(3) उस चैक का धारक, जिसकी बाबत् ऐसा लेखीवाल या व्यक्ति ऐसे उन्मोचित हो गया है, ऐसे लेखीवाल या व्यक्ति के बदले में ऐसे बैंकार का ऐसे उन्मोचन की मात्रा तक लेनदार और उससे उस रकम को वसूल करने का हकदार होगा ।
दृष्टान्त
(क) क 1,000 रुपये के लिए चैक लिखता है, और जब उपस्थापित किया जाना चाहिए था उस समय बैंक में उसके संदाय के लिए उसका रुपया है । चैक उपस्थापित किए जाने से पूर्व बैंक फैल हो जाता है । लेखीवाल उन्मोचित हो जाता है किन्तु धारक चैक की रकम के लिए बैंक के विरुद्ध अपना दावा साबित कर सकता है ।
(ख) क अम्बाले में एक चैक कलकत्ते के एक बैंक पर लिखता है । चैक के सम्यक्-अनुक्रम में उपस्थापित किए जाने से पूर्व बैंक फैल हो जाता है । क उन्मोचित नहीं होता क्योंकि चैक के उपस्थापित करने में किसी विलम्ब से उसे वास्तविक नुकसान नहीं उठाना पड़ा ।
84. When cheque not duly presented and drawer damaged thereby - (1) Where a cheque is not presented for payment within a reasonable time of its issue, and the drawer or person on whose account it is drawn had the right, at the time when presentment ought to have been made, as between himself and the banker, to have the cheque paid and suffers actual damage through the delay; he is discharged to the extent of such damage, that is to say, to the extent to which such drawer or person is a creditor of the banker to a larger amount than he would have been if such cheque had been paid.
(2) In determining what is a reasonable time, regard shall be had to the nature of the instrument, the usage of trade and of bankers, and the facts of the particular case.
(3) The holder of the cheque as to which such drawer or person is so discharged shall be a creditor, in lieu of such drawer or person, of such banker to the extent of such discharge and entitled to recover the amount from him.
Illustrations
(a) A draws a cheque for Rs. 1,000, and, when the cheque ought to be presented, has funds at the bank to meet it. The bank fails before the cheque is presented. The drawer is discharged, but the holder can prove against the bank for the amount of the cheque.
(b) A draws a cheque at Ambala on a bank in Calcutta. The bank fails before the cheque could be presented in ordinary course. A is not discharged, for he has not suffered actual damage through any delay in presenting the cheque.