सरकारी सेवकों के विरुद्ध संचालित विभागीय कार्यवाही में संचालन पदाधिकारी से प्राप्त जाँच प्रतिवेदन पर नियमावली के नियम-18 के प्रावधानों के तहत की जाने वाली कार्रवाई के संबंध में
No: 3/एम०-09/2018 सा०प्र० Dated: Jan, 17 2020
बिहार सरकार
सामान्य प्रशासन विभाग
प्रेषक.
गुफरान अहमद
सरकार के उप सचिब
सेवा में,
पुलिस महानिदेशक
सभी विभाग
सभी विभागाभ्यास
सभी प्रमंडलीय आयुक्त
सभी जिला पदाधिकारी
विषय :- सरकारी सेवकों के विरुद्ध संचालित विभागीय कार्यवाही में संचालन पदाधिकारी से प्राप्त जाँच प्रतिवेदन पर नियमावली के नियम-18 के प्रावधानों के तहत की जाने वाली कार्रवाई के संबंध में ।
महाशय,
सामान्य प्रशासन विभाग के परिपत्र संख्या-15548 दिनांक-06.12.2017 द्वारा बिहार सरकारी सेवक (वर्गीकरण नियंत्रण एवं अपील) नियमावली. 2005 (समय-समय पर पथासंशोधित) के नियम-17 के प्रावधानों के तहत विभागीय कार्यवाही के संचालन के संदर्भ में स्पष्टीकरण निर्गत किया गया है। नियमावली के नियम-18 में विभागीय कार्यवाही में संचालन पदाधिकारी से प्राप्त जाँच प्रतिवेदन पर विचार कर अनुशासनिक प्राधिकार द्वारा निर्णय लिये जाने की प्रक्रिया प्रावधानित
2. उक्त परिप्रेक्ष्य में परिवाद संख्या-1/लोक (कवि)-12/2011 श्री नन झा बनाम कृषि पदाधिकारी, खानपुर. समस्तीपुर में माननीय सदस्य (न्यापिक), लोकायुक्त, बिहार द्वारा दिनांकःCCB.05.2019 को पारित आदेश में नियमावली के नियम-18 के प्रावधानों के संबंध में स्पष्टीकरण निर्गत किये जाने का निर्देश सामान्य प्रशासन विभाग को दिया गया है।
3. अतः उपर्युक्त परिप्रेक्ष्य में नियमाबली के नियम-18 के तहत कार्रवाई के संदर्भ में निम्नांकित स्पष्टीकरण / मार्गनिदेश दिया जाता है
(i) ( नियम-18(1) के तहत अनुशासनिक प्राधिकार द्वारा यह विचार किया जायेगा कि जाँध प्रतिवेदन में सभी आरोप अथवा आरोप के सभी अंश के लिए निष्कर्ष अंकित है या नहीं? यदि जाँच प्रतिवेदन में किसी आरोप अथवा आरोप के किसी अंश के संदर्भ में स्पष्ट निष्कर्ष अंकित नहीं किया गया हो तो इसे अभिलेखित करते हुए अनुशासनिक प्राधिकार द्वारा मामले को पुनः आगे जाँच (Further inquiry) कर प्रतिवेदन समर्पित करने के लिए संचालन पदाधिकारी को वापस किया जा सकेगा। स्पष्टतः अनुशासनिक प्राधिकार द्वारा पुनः आगे जांच का निर्णय तभी लिया जा सकेगा जब किसी आरोप या आरोप के किसी अशा के संदर्भ में जाँच प्रतिवेदन में स्पष्ट निष्कर्ष अंकित नहीं हो। किसी भी परिस्थिति में पुनः आगे जाँच का निर्णय अपने मनोनुकूल जाँच प्रतिवेदन प्राप्त करने के लिए नहीं लिया जायेगा। जपष्टतः नये सिरे से जाँच/पुनजाँच (Fresh/De-novo Inquiry) का निर्णय नहीं लिया जाना है।
(ii) नियम-18(2) के तहत अनुशासनिक प्राधिकार द्वारा उपलब्ध अभिलेखों के आधार पर जाँच प्रतिवेदन से सहमत अथवा पूर्णतः या आंशिक रूप से असहमत होने का निर्णय लिया जाना है। जाँच प्रतिवेदन से पूर्णतः या आंशिक रूप से असहमत होने की स्थिति में अनुशासनिक प्राधिकार द्वारा असहमति के बिन्दु अभिलेखित किया जाना है।
(iii) नियम-18(3) के प्रावधान के तहत, यदि जाँच प्रतिवेदन में आरोप अप्रमाणित प्रतिवेदित किया गया हो और अनुशासनिक प्राधिकार संचालन पदाधिकारी के जाँच प्रतिवेदन से सहमत हों, तो अनुशासनिक प्राधिकार द्वारा तदनुसार निर्णय लेते हुए संसूचित किया जाना है।
नियम-19(s) के प्रावधान के तहत, यदि जाँच प्रतिवेदन में आरोप अंशतः या पूर्णतः प्रमाणित प्रतिवेदित किया गया हो और अनुशासनिक प्राधिकार संचालन पदाधिकारी के जाँच प्रतिवेदन से सहमत हों, तो जाँच प्रतिवेदन की प्रति संलग्न कर आरोपी सरकारी सेवक को उस पर 15 दिनों के अन्दर अपना अभ्यावेदन समर्पित करने का निदेश अनुशासनिक प्राधिकार द्वारा दिया जाना है।
नियम-18(3) के प्रावधान के तहत, यदि जाँच प्रतिवेदन में आरोप अप्रमाणित अथवा अंशतः/ पूर्णतः प्रमाणित प्रतिवेदित किया गया हो और अनुशासनिक प्राधिकार संचालन पदाधिकारी के जाँच प्रतिवेदन से असहमत हों, तो जाँच प्रतिवेदन की प्रति एवं अनुशासनिक प्राधिकार द्वारा निर्धारित असहमति के बिन्दु- दोनों संलग्न कर आरोपी सरकारी सेवक को उस पर 15 दिनों के अन्दर अपना अभ्यावेदन समर्पित करने का निदेश अनुशासनिक प्राधिकार द्वारा दिया जाना है।
(iv) निर्धारित समय में आरोपी सरकारी सेवक द्वारा समर्पित अभ्यावेदन, यदि कोई हो, पर सम्यक विचारोपरान्त आरोपी सरकारी सेवक को आरोप मुक्त करने अथवा नियम-18(5) और (6) के प्रावधानों के तहत प्रमाणित आरोप के लिए समुचित दंड अधिरोपित करने का निर्णय अनुशासनिक प्राधिकार द्वारा लिया जाना है।
4. उपर्युक्त निर्देशों का दृढ़ता से अनुपालन करने हेतु सभी अधीनस्थों को निर्देशित करने की कृपा की जाय।
विश्वासभाजन
(गुफरान अहमद)
सरकार के उप सचिव ।