सरकार ने योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग (राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान) नामक नया संस्थान बनाया है। यह संस्थान सरकार के थिंक टैंक के रूप में सेवाएं प्रदान करेगा और उसे निर्देशात्मक एवं नीतिगत गतिशीलता प्रदान करेगा। नीति आयोग, केन्द्र और राज्य स्तरों पर सरकार को नीति के प्रमुख कारकों के संबंध में प्रासंगिक महत्वपूर्ण एवं तकनीकी परामर्श उपलब्ध कराएगा। इसमें आर्थिक मोर्चे पर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय आयात, देश के भीतर, साथ ही साथ अन्य देशों की बेहतरीन पद्धतियों का प्रसार नए नीतिगत विचारों का समावेश और विशिष्ट विषयों पर आधारित समर्थन से संबंधित मामले शामिल होंगे।
15 मार्च, 1950 को जिस प्रस्ताव के माध्यम से योजना आयोग की स्थापना की गई थी उसके स्थान पर नया प्रस्ताव लाया गया है। नए प्रस्ताव का मूल पाठ निम्नलिखित हैं:
प्रस्ताव
महात्मा गांधी ने कहा था : 'सतत् विकास जीवन का नियम है, और जो व्यक्ति हमेशा हठधर्मिता को बनाए रखने की कोशिश करता है, स्वयं को भटकाव की ओर ले जाता है।'
इस भावना को प्रदर्शित करते हुए और नये भारत के बदले माहौल में, शासन और नीति के संस्थानों को नई चुनौतियों को अपनाने की जरूरत है और यह अनिवार्य रूप से भारतीय संविधान के मूलभूत सिद्धांतों, हमारी सभ्यता के इतिहास से ज्ञान के भंडार और वर्तमान सामाजिक/सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्यों पर आधारित होना चाहिए। भारत के नागरिकों को शासन और गतिशील नीति बदलावों में संस्थागत सुधारों की जरूरत है, जिससे अभूतपूर्व बदलाव की रूपरेखा तैयार हो सके और उसका पोषण हो सके।
2. योजना आयोग का गठन एक मंत्रीमंडलीय प्रस्ताव के जरिए 15 मार्च, 1950 को किया गया था। लगभग 65 वर्षों के बाद देश ने खुद में एक अर्द्ध विकसित अर्थव्यवस्था से एक उभरते वैश्विक दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक के रूप में आमूल-चूल परिवर्तन किया है।
3. पहले हम केवल अपना अस्तित्व बनाए रखने की भावना से ग्रस्त थे, पर अब हमारी उम्मीदें आसमान छू रही हैं और हम गरीबी में कमी लाने का नहीं, बल्कि गरीबी को खत्म करने का प्रयास कर रहे हैं। भारत के लोगों की उनकी भागीदारी के जरिए शासन में प्रगति और बेहतरी लाने की काफी उम्मीदे हैं। वास्तव में, जिस समय से हमने आजादी हासिल की है, हमारे देश की 'किस्मत' अब विकास की तेज गति हासिल कर चुकी है।
4. पिछले कुछ दशकों के दौरान भारतीय राष्ट्रीयता की मजबूती भी प्रदर्शित हुई है। भारत विभिन्न भाषाओं, विश्वासों और सांस्कृतिक प्रणालियों वाला एक विविधतापूर्ण देश है। एक बाधा बनने की बजाय इस विविधता ने भारतीय अनुभव की संपूर्णता को समृद्ध बनाया है। राजनीतिक रूप से भी, भारत ने बहुवाद को व्यापक तरीके से अंगीकार किया है और सरकारी विनियंत्रण में संघीय सर्वसहमतियों को नया आकार दिया है। केन्द्र राज्य केन्द्र के केवल अनुबंध बन कर नहीं रहना चाहते। वे आर्थिक विकास और प्रगति के शिल्प के निर्धारण में अपना निर्णायक अधिकार चाहते हैं। एक ही सिद्धांत वाले दृष्टिकोण, जो केन्द्रीय योजना में अक्सर अंतर्निहित होता है, में गैर-जरूरी तनाव पैदा करने और राष्ट्रीय प्रयास की संपूर्णता को कमतर बनाने की क्षमता होती है। डॉ. अम्बेडकर ने दूरदर्शितापूर्वक कहा था कि 'वहां अधिकारों को केन्द्रीकृत करना अविवेकपूर्ण है, जहां केन्द्रीय नियंत्रण और एकरूपता स्पष्ट रूप से अनिवार्य नहीं है या इसका उपयोग नहीं हो सकता।'
5. भारत के बदलाव की गतिशीलता के हृदय में एक प्रौद्योगिकी क्रांति और सूचनाओं तक बेहतर पहुंच और उन्हें साझा करने की भावना अंतर्निहित है। इस बदलाव की प्रक्रिया में कुछ परिवर्तनों का, जहां अनुमान लगाया जाता है और योजना बनाई जाती है, इनमें से कई बाजार तत्वों और बड़े वैश्विक बदलावों के परिणामरूवरूप हैं। हमारे संस्थानों और राजनीति का उद्भव और परिपक्वता भी केन्द्रीकृत योजना की भूमिका को निम्न बना देती है, जिसे खुद में ही पुनपर्रिभाषित करने की जरूरत है।
5.
6. भारत में बदलाव लाने वाली ताकतों में निम्नलिखित शामिल हैं-
I. हमारे उद्योग और सेवा क्षेत्रों का विकास हुआ है और अब उनका वैश्विक स्तर पर संचालन हो रहा है। इस नींव पर निर्माण करने के लिए नये भारत को एक प्रशासनिक बदलाव की जरूरत है, जिसमें सरकार 'सक्षमकारी' हो न कि पहला और आखिरी सहारा। औद्योगिक एवं सेवा क्षेत्रों में एक 'कंपनी' के रूप में सरकार की भूमिका को कम किया जाना चाहिए। इसकी जगह सरकार को कानून बनाने, नीति निर्माण करने तथा विनियमन पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
II. कृषि में भारत की पारंपरिक ताकत प्रौद्योगिकी में बेहतरी की बदौलत बढ़ी है। हमें अपनी बेहतरी बनाए रखने की जरूरत है और शुद्ध खाद्य सुरक्षा से आगे बढ़कर कृषि उत्पादन के मिश्रण तथा किसानों को उनकी उपज से मिलने वाले वास्तविक लाभ पर अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए।
III. हम एक 'वैश्विक गांव' में रहते हैं, जो आधुनिक आवागमन, संचार और मीडिया तथा अंतर्राष्ट्रीय बाजारों और संस्थानों की आपसी नेटवर्किंग से जुड़ा है। जहां भारत वैश्विक घटनाओं में 'योगदान' देता है, इस पर हमारी सीमाओं से बहुत दूर घटने वाली घटनाओं का भी असर पड़ता है। वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं और भौगोलिक राजनीति लगातार एक-दूसरे से जुड़ रही हैं और निजी क्षेत्र का इसके भीतर के एक घटक के रूप में महत्व बढ़ रहा है। भारत को समान विचार वाले वैश्विक मुद्दों, खासकर जिन क्षेत्रों पर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया गया है, पर बहसों और विचार-विमर्शों में सक्रिय भूमिका अदा करनी चाहिए।
IV. हमारा मध्यवर्ग अपने आकार और क्रय शक्ति दोनों में ही अनूठा है। यह शक्तिशाली समूह नव-मध्य वर्ग के प्रवेश के साथ लगातार बढ़ रहा है। यह विकास का बेहद महत्वपूर्ण वाहक है। अपने उच्च शैक्षणिक स्तरों, गतिशीलता और देश में बदलाव लाने की इच्छा की वजह से इसमें बेशुमार संभावनाएं हैं। यह सुनिश्चित करना हमारे लिए लगातार चुनौती बनी रहेगी कि आर्थिक रूप से जीवंत इस मध्यवर्ग की भागीदारी बनी रहे और इसकी क्षमता का पूर्ण दोहन किया जा सके।
V. उद्यमशीलता, वैज्ञानिक और बौद्धिक मानव पूंजी का भारत का भंडार शक्ति का एक स्रोत है, जो सफलता की असीम ऊंचाइयों को प्राप्त करने में हमारी मदद करने के लिए उपयोग किये जाने के लिए प्रतीक्षा कर रहा है।वास्तव में ‘सामाजिक पूंजी’ जो हमारे लोगों में मौजूद है, अभी तक देश के विकास में बड़ा योगदान करता रहा है और इसलिए इसका उपयुक्त नीतिगत पहलों के माध्यम से लाभ उठाए जाने की जरूरत है।
VI. प्रवासी भारतीय समुदाय जो 200 से अधिक देशों में फैला है, विश्व के कई देशों की आबादी की तुलना में भी बड़ा है। यह एक उल्लेखनीय भौगोलिक-आर्थिक और भौगोलिक-राजनीतिक ताकत है। भविष्य की राष्ट्रीय नीतियों में इस ताकत को निश्चित रूप से समावेशित किया जाना चाहिए, जिससे कि उनसे वित्तीय समर्थन की अपेक्षा के अतिरिक्त नये भारत में उनकी भागीदारी को भी विस्तृत बनाया जा सके। प्रौद्योगिकी और प्रबंधन विशेषज्ञता ऐसे स्पष्ट क्षेत्र हैं, जहां प्रवासी समुदाय उल्लेखनीय रूप से योगदान दे सकता है।
VII. शहरीकरण एक अपरिवर्तनीय रूझान है। इसे गलत मानने की बजाय इसे विकास के लिए हमारी नीति का अंतरंग तत्व बनाना होगा। शहरीकरण को इससे प्राप्त होने वाले आर्थिक लाभों का फायदा उठाने के साथ-साथ एक संपूर्ण तथा सुरक्षित आवास स्थल का सृजन करने के लिए आधुनिक प्रौद्योगिक के इस्तेमाल करने के एक अवसर के रूप में लिया जाना चाहिए।
VIII. पारदर्शिता अब 'शासन के लाइसेंस' के लिए अपरिहार्य हो चुकी है। हम ऐसे डिजिटल युग में हैं, जहां सोशल मीडिया जैसे संचार के उपकरण और तरीके सरकार के विचारों और कदमों की व्याख्या करने तथा साझा करने के ताकतवर माध्यम हैं। यह रूझान समय के साथ और आगे ही बढ़ेगा।शासन में जटिलता और परेशानियों की संभावनाओं को कम करने के लिए प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हुए सरकार और शासन उच्च पारदर्शिता के वातावरण में चलाया जाना चाहिए।
07. प्रौद्योगिकी और सूचना की पहुंच ने विविधता में एकता पर जोर दिया है जो हमें परिभाषित करती है। इसने हमारी अंतर-मिश्रित राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए हमारे धर्म, राज्य और पारिस्थितिकीय प्रणालियों की विभिन्न क्षमताओं को एकीकृत करने में मदद की है। वास्तव में इन्होंने भारतीय राष्ट्रीयता को काफी मजबूती प्रदान की है। भारत के विविध रंगों से उत्पन्न होने वाली सृजनात्मक ऊर्जा का लाभ उठाने के लिए हमारा विकास मॉडल अधिक सहमति भरा और सहयोगी होना चाहिए। इसमें राज्यों, क्षेत्रों और स्थानीय लोगों की विशेष मांगों को समाविष्ट किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय विकास के हिस्सेदारी वाले दृष्टिकोण को मानव गरिमा, राष्ट्रीय आत्म-सम्मान और समावेशी टिकाऊ पथ पर आधारित होना चाहिए। हम अपनी जनसंख्या या क्षेत्रों के वंचित वर्गों को नजर अंदाज नहीं कर सकते।
08. एक देश के रूप में हम जिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं वे अधिक जटिल हो गई हैं:
· हमें अगले कुछ दशकों के दौरान विशाल आबादी का सार्थक रूप से लाभ उठाना होगा। हमारे युवाओं,पुरूषों और महिलाओं की क्षमता को अनुभव, शिक्षा, कौशल विकास, लिंग भेद समाप्ति और रोजगार के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी और ज्ञानपूर्ण अर्थव्यवस्था के मोर्चों पर कार्य करने के लिए हमें अपने युवाओं को उत्पादक अवसर उपलब्ध कराने के लिए कार्य करना है।
· गरीबी उन्मूलन सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बना हुआ है। अकेले इसी विषय के द्वारा हमें एक राष्ट्र के रूप में अपनी सफलता को मापना चाहिए। प्रत्येक भारतीय को इज्जत और आत्मसम्मान से जीवन जीने का अवसर दिया जाना चाहिए। साधु कवि तिरूवल्लूवर ने लिखा है कि गरीबी से अधिक भयानक और दु:खदायी कुछ भी नहीं है और गरीबी का दंश व्यक्ति की श्रेष्ठता में से उसकी उत्कृष्ट कुलीनता छीन लेता है। ये शब्द आज भी उतने ही सत्य हैं जितने तब थे जब वे 2500 वर्ष पहले लिखे गए थे।
· आर्थिक विकास तब तक अधूरा है जब तक वह प्रत्येक व्यक्ति को विकास के लाभ का आनंद उठाने के लिए अधिकार उपलब्ध नहीं कराता। पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने ऐसा अन्तोदय या पददलित सेवा की अपनी अवधारणा में उल्लेख किया है जहां यह सुनिश्चित करने का लक्ष्य है कि गरीब से गरीब व्यक्ति को भी विकास का लाभ प्राप्त हो। लिंग भेदभाव पर आधारित असमानता के साथ-साथ आर्थिक विषमता की और विशेष ध्यान देना है। हमें ऐसा वातावरण और सहायता प्रणाली स्थापित करने की जरूरत है जिसमें महिलाओं को राष्ट्र निर्माण में अपनी अधिकारपूर्ण भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहन मिले। अवसरों की समानता समावेशी एजेंडे के साथ हर व्यक्ति को उपलब्ध हो। पूर्व निर्धारित मार्ग पर हर व्यक्ति को धकेलने के बजाय हमें समाज के हर तत्व को, विशेष रूप से अनुसूचित जाति और जन जातियों जैसे कमजोर वर्गों को, राष्ट्रीय एजेंडा तैयार करने में देश और सरकार के विकल्पों को प्रभावित करने की योग्यता देनी है। वास्तव में योगदान के लिए समाज के हर सदस्य की योग्यता में मूलभूत विश्वास को समाविष्ट किया जाना है। शंकरदेव ने सदियों पहले कीर्तनघोष में लिखा है, ‘प्रत्येक प्राणी को अपनी आत्मा के बराबर देखना मोक्ष प्राप्ति का सबसे बड़ा साधन है’।
· गांव हमारे लोकाचार, संस्कृति और जीविका के सुदृढ़ आधार बने हुए हैं। इन्हें विकास प्रक्रिया में पूर्णरूप से संस्थागत बनाये जाने की जरूरत है ताकि हम उनके उत्साह और ऊर्जा का लाभ उठा सकें।
· भारत में 50 मिलियन से अधिक छोटे व्यापार हैं जो रोजगार जुटाने के मुख्य स्रोत है। ये व्यापार समाज के पिछड़े और वंचित वर्गों के लिए अवसर जुटाने के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं। नीति निर्धारण में कौशल, ज्ञान उन्नयन और वित्तीय पूंजी और संबंधित प्रौद्योगिकी तत्व तक पहुंच बनाने के रूप में इसे क्षेत्र को आवश्यक सहायता प्रदान करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
· विकास के अच्छे वातावरण में ही उत्तरदायी विकास होता है। भारत 18 बड़े विविध देशों में से एक है। हमारी पर्यावरण एवं पारिस्थिकीय परिसंपत्तियां शाश्वत हैं। इन्हें संरक्षित और रक्षित किया जाना चाहिए। भारत की पर्यावरण को आदर प्रदान करने की विरासत वृक्षों और पशुओं के प्रति हमारी श्रद्धा से परिलक्षित होती है। भावी पीढि़यों के लिए हमारी विरासत सतत प्रगति की होनी चाहिए। हमारे पर्यावरण और संसाधनों का प्रत्येक तत्व जैसे जल, जमीन और जंगल की सुरक्षा की जानी चाहिए और यह कार्य इस तरह किया जाना चाहिए जिसमें जलवायु और जन के साथ उनके अंर्तसंबंधों को शामिल किया जाए। हमारे विकास के एजेंडे में यह सुनिश्चित होना चाहिए कि विकास वर्तमान और भविष्य की पीढि़यों के जीवन की गुणवत्ता को दूषित न करे।
09. राष्ट्रीय उद्देश्यों को हासिल करने में सरकार की भूमिका समय के साथ बदल सकती है लेकिन वह हमेशा महत्वपूर्ण रहेगी। सरकार ऐसी नीतियां बनाना जारी रखेगी जो देश की आकांक्षाओं और जरूरतों को प्रकट करती हों। सरकार उन्हें इस ढंग से लागू करेगी कि वह नागरिकों के लिए फायदेमंद हो। दुनिया के साथ राजनीतिक और आर्थिक रूप से तालमेल बिठाने के लिए नीति बनाने के साथ-साथ सरकार के कामकाज को भी समाहित करना होगा।
भारत में प्रभावी शासन निम्नलिखित स्तंभों पर आधारित होगा।
· जनता पर अत्यधिक केंद्रित कार्यक्रम जो समाज के साथ-साथ व्यक्ति की भी आकांक्षा पूरी करता हो।
· जनता की जरूरतों का अनुमान लगाने और उन्हें पूरा करने में अत्यधिक सक्रियता।
· नागरिकों की भागीदारी
· सभी परिप्रेक्ष्यों में महिलाओं का सशक्तीकरण
· सभी समूहों के समावेश के साथ, विशेष रूप से आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों अर्थात् गरीबों, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति समुदायों और अन्य पिछड़ा वर्ग, ग्रामीण क्षेत्र और किसानों (गांव एवं किसान) और युवा एवं अल्पसंख्यक समुदाय के सभी वर्गों पर विशेष ध्यान।
· देश के युवाओं के लिए समान अवसर और
· पारदर्शिता जो सरकार को सक्रिय एवं प्रभावशाली तथा जिम्मेदार बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करती हो।
10. सरकारी और निजी क्षेत्रों में शासन समाज के साथ-साथ समग्र रूप से चिंता का विषय है। जनता की भलाई सुनिश्चित करने में प्रत्येक नागरिक की भागीदारी होनी चाहिए। जन पहल के लिए जनचेतना बहुत महत्वपूर्ण है। अतीत में हो सकता है कि सरकार जनता की शिकायतों के प्रति संकीर्ण रवैया अपनाती रही हो। आज के बदलते माहौल में जनसेवाएं निजी कंपनियां उपलब्ध करा रही हैं और प्रौद्योगिकी के जरिए नागरिकों की भागीदारी के लिए व्यापक गुंजाइश है इसलिए शासन हर किसी के इर्द-गिर्द केंद्रित है और प्रत्येक नागरिक को शामिल करता है।
11. बीतते वर्षों के साथ सरकार का संस्थागत ढांचा विकसित और परिपक्व हुआ है। इससे कार्यक्षेत्र में विशेषज्ञता विकसित हुई है जिसने संस्थाओं को सौंपे गए कार्यों की विशिष्टता बढ़ाई है। नियोजन की प्रक्रिया के संदर्भ में शासन की ‘प्रक्रिया’ को शासन की ‘कार्यनीति’ से अलग करने साथ ही साथ उसे ऊर्जावान बनाने की जरुरत है।
शासन संरचना के संदर्भ में हमारे देश की जरूरतें बदली हैं ऐसे में एक ऐसे संस्थान की स्थापना की आवश्यकता है जो दिशात्मक और नीति निर्धारक सरकार के थिंक टैंक के रुप में कार्य करे। प्रस्तावित हर स्तर पर नीति निर्धारण के प्रमुख तत्वों के बारे में रणनीतिक और तकनीकी सलाह दे। इसमें आर्थिक मोर्चे पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय आयात के मामले, देश के भीतर और अन्य देशों में उपलब्ध सर्वोत्तम उपायों के प्रसार, नए नीतिगत विचारों को अपनाने और विषय आधारित विशिष्ट सहायता शामिल है। यह संस्थान लगातार बदल रहे उस एकीकृत विश्व के अनुरूप कार्य करने में सक्षम हो, भारत जिसका एक भाग है।
केंद्र से राज्यों की तरफ चलने वाले एक पक्षीय नीतिगत क्रम को एक महत्वपूर्ण विकासवादी परिवर्तन के रुप में राज्यों की वास्तविक और सतत भागीदारी से बदल दिया जाएगा। त्वरित गति से कार्य करने के लिए सरकार को रणनीतिक नीति दृष्टिकोण उपलब्ध कराने के साथ साथ प्रासंगिक विषयों से निपटने के लिए इस संस्थान के पास आवश्यक संसाधनों, ज्ञान, कौशल और क्षमता होनी चाहिए।
सबसे महत्वपूर्ण यह है कि विश्व के सकारात्मक प्रभावों को अपनाते हुए संस्थान को इस नीति का पालन करना होगा कि भारत के परिप्रेक्ष्य में एक ही मॉडल प्रत्यारोपित नहीं किया जा सकता है। विकास के लिए हमें अपनी नीति स्वंय निर्धारित करनी होगी। देश में और देश के लिए क्या हितकारी है, संस्थान को इसपर ध्यान केंद्रित करना होगा जो विकास के लिए भारतीय दृष्टिकोण पर आधारित होगा।
12. इन आशाओं को जीवंत बनाने के लिए संस्थान है - नीति आयोग (राष्ट्रीय भारत परिवर्तन संस्थान )। इसे राज्य सरकारों, संसद सदस्यों, विषय विशेषज्ञ और संबंधित संस्थानों सहित तमाम हितधारकों के बीच गहन विचार विमर्श के बाद प्रस्तावित किया गया। नीति आयोग निम्नलिखित उद्देश्यों के लिए कार्य करेगा –
· राष्ट्रीय उद्देश्यों को दृष्टिगत रखते हुए राज्यों की सक्रिय भागीदारी के साथ राष्ट्रीय विकास प्राथमिकताओं, क्षेत्रों और रणनीतियों का एक साझा दृष्टिकोण विकसित करेगा। नीति आयोग का विजन बल प्रदान करने के लिए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों को ‘राष्ट्रीय एजेंडा’ का प्रारूप उपलब्ध कराना है।
·
· सशक्त राज्य ही सशक्त राष्ट्र का निर्माण कर सकता है इस तथ्य की महत्ता को स्वीकार करते हुए राज्यों के साथ सतत आधार पर संरचनात्मक सहयोग की पहल और तंत्र के माध्यम से सहयोगपूर्ण संघवाद को बढ़ावा देगा।
· ग्राम स्तर पर विश्वसनीय योजना तैयार करने के लिए तंत्र विकसित करेगा और इसे उत्तरोत्तर उच्च स्तर तक पहुंचाएगा।
· आयोग यह सुनिश्चित करेगा कि जो क्षेत्र विशेष रूप से उसे सौंपे गए हैं उनकी आर्थिक कार्य नीति और नीति में राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों को शामिल किया गया है।
· हमारे समाज के उन वर्गों पर विशेष रूप से ध्यान देगा जिन तक आर्थिक प्रगति से उचित प्रकार से लाभांवित ना हो पाने का जोखिम होगा।
· रणनीतिक और दीर्घावधि के लिए नीति तथा कार्यक्रम का ढ़ांचा तैयार करेगा और पहल करेगा। साथ ही उनकी प्रगति और क्षमता की निगरानी करेगा। निगरानी और प्रतिक्रिया के आधार पर मध्यावधि संशोधन सहित नवीन सुधार किए जाएंगे।
· महत्वपूर्ण हितधारकों तथा समान विचारधारा वाले राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय थिंक टैंक और साथ ही साथ शैक्षिक और नीति अनुसंधान संस्थानों के बीच भागीदारी को परामर्श और प्रोत्साहन देगा।
· राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों, प्रैक्टिशनरों तथा अन्य हितधारकों के सहयोगात्मक समुदाय के जरिए ज्ञान, नवाचार, उद्यमशीलता सहायक प्रणाली बनाएगा।
· विकास के एजेंडे के कार्यान्वयन में तेजी लाने के क्रम में अंतर-क्षेत्रीय और अंतर-विभागीय मुद्दों के समाधान के लिए एक मंच प्रदान करेगा।
·
· अत्याधुनिक कला संसाधन केंद्र बनाना जो सुशासन तथा सतत और न्यायसंगत विकास की सर्वश्रेष्ठ कार्यप्रणाली पर अनुसंधान करने के साथ-साथ हितधारकों तक जानकारी पहुंचाने में भी मदद करेगा।
· आवश्यक संसाधनों की पहचान करने सहित कार्यक्रमों और उपायों के कार्यान्वयन के सक्रिय मूल्यांकन और सक्रिय निगरानी की जाएगी। ताकि सेवाएं प्रदान करने में सफलता की संभावनाओं को प्रबल बनाया जा सके।
· कार्यक्रमों और नीतियों के क्रियान्वयन के लिए प्रौद्योगिकी उन्नयन और क्षमता निर्माण पर जोर।
· राष्ट्रीय विकास के एजेंडा और उपरोक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अन्य आवश्यक गतिविधियां संपादित करना।
13. नीति आयोग का गठन इस प्रकार होगा-
1. भारत के प्रधानमंत्री- अध्यक्ष ।
2. गवर्निंग काउंसिल में राज्यों के मुख्यमंत्री और केन्द्रशासित प्रदेशों के उपराज्यपाल शामिल होंगे।
3. विशिष्ट मुद्दों और ऐसे आकस्मिक मामले, जिनका संबंध एक से अधिक राज्य या क्षेत्र से हो, को देखने के लिए क्षेत्रीय परिषद गठित की जाएंगी। ये परिषदें विशिष्ट कार्यकाल के लिए बनाई जाएंगी। भारत के प्रधानमंत्री के निर्देश पर क्षेत्रीय परिषदों की बैठक होगी और इनमें संबंधित क्षेत्र के राज्यों के मुख्यमंत्री और केन्द्र शासित प्रदेशों के उपराज्यपाल शामिल होंगे (इनकी अध्यक्षता नीति आयोग के उपाध्यक्ष करेंगे)।
4. संबंधित कार्य क्षेत्र की जानकारी रखने वाले विशेषज्ञ और कार्यरत लोग, विशेष आमंत्रित के रुप में प्रधानमंत्री द्वारा नामित किए जाएंगे।
5. पूर्णकालिक संगठनात्मक ढांचे में (प्रधानमंत्री अध्यक्ष होने के अलावा) निम्न होंगे।
(i) उपाध्यक्षः प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त।
(ii) सदस्यः पूर्णकालिक
(iii) अंशकालिक सदस्यः अग्रणी विश्वविद्यालय शोध संस्थानों और संबंधित संस्थानों से अधिकतम दो पदेन सदस्य, अंशकालिक सदस्य बारी के आधार पर होंगे।
(iv) पदेन सदस्यः केन्द्रीय मंत्रिपरिषद से अधिकतम चार सदस्य प्रधानमंत्री द्वारा नामित होंगे। यदि बारी के आधार को प्राथमिकता दी जाती है तो यह नियुक्ति विशिष्ट कार्यकाल के लिए होंगी।
(v) मुख्य कार्यकारी अधिकारी: भारत सरकार के सचिव स्तर के अधिकारी को निश्चित कार्यकाल के लिए प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त किया जाएगा।
(vi) सचिवालय आवश्यकता के अनुसार
14. स्वामी विवेकानंद ने कहा है, ‘‘एक विचार लें। उस विचार को अपना जीवन बनाएं- उसी के बारे में सोचें, उसका सपना देखें और उसी विचार को जीएं, मस्तिष्क, मांसपेशी, स्नायुतंत्र, अपने शरीर के प्रत्येक भाग को उस विचार से ओतप्रोत कर दें और दूसरे विचारों को अलग रख दें। यही सफलता की राह है।’’ सहकारी संघवाद के प्रति अपनी प्रतिबद्धता, नागरिकों की भागीदारी को बढ़ावा देने, अवसरों तक समतावादी पहुंच, प्रतिभागी एवं अनुकूलनीय शासन और विकसित हो रही प्रौद्योगिकी के बढ़ते प्रयोग के जरिए नीति आयोग शासन प्रक्रिया को महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश और कार्यनीतिक योगदान देगा। सहकारी संघवाद, अवसरों के प्रति समतावादी एवं समावेशी पहुंच, प्रौद्योगिकी का समुचित उपयोग एवं सहभागी शासन पर आधारित आर्थिक विकास पर जोर देते हुए नीति आयोग महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश एवं सरकार तथा शासन प्रक्रिया को कार्यनीतिक योगदान प्रदान करेगा।