No: --- Dated: Feb, 19 2020

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सरकारी राजपत्र में गठन के आदेश के प्रकाशन की तिथि से 3 वर्ष की अवधि के लिए 22वें भारतीय विधि आयोग के गठन को मंजूरी दे दी है।

लाभः

सरकार को विचारणीय विषयों के अनुसार अध्ययन और सिफारिश के लिए आयोग को सौंपे गये कानून के विभिन्न पहलुओं के बारे में एक विशेषज्ञता प्राप्त निकाय से सिफारिशें मिलने का लाभ प्राप्त होगा।

विधि आयोग केंद्र सरकार द्वारा इसे सौंपे गये या स्वतः संज्ञान पर कानून में अनुसंधान करने और उसके बारे में सुधार करने के लिए भारत के मौजूदा कानूनों की समीक्षा करने तथा नए कानून बनाने का काम करेगा। यह प्रक्रियाओं में देरी को समाप्त करने, मामलों को तेजी से निपटाने, अभियोग की लागत कम करने के लिए न्याय आपूर्ति प्रणालियों में सुधार लाने के लिए अध्ययन और अनुसंधान भी करेगा।  

भारतीय विधि आयोग निम्न कार्य करेगा

(ए) यह ऐसे कानूनों की पहचान करेगा जिनकी अब कोई जरूरत नही है या वे अप्रासंगिक है और जिन्हें तुरन्त निरस्त किया जा सकता है।

(बी) राज्य नीति के आलोक में मौजूदा कानूनों की जांच करना तथा सुधार के तरीकों के सुझाव देना और नीति निर्देशक तत्वों को लागू करने के लिए आवश्यक कानूनों के बारे में सुझाव देना तथा संविधान की प्रस्तावना में निर्धारित उद्देश्यों को प्राप्त करना।

(सी) कानून और न्यायिक प्रशासन से संबंधित उस किसी भी विषय पर विचार करना और सरकार को अपने विचारों से अवगत कराना, जो इसे विधि और न्याय मंत्रालय (कानूनी मामलों के विभाग) के माध्यम से सरकार द्वारा विशेष रूप से अग्रेषित किया गया है।

(डी) विधि और न्याय मंत्रालय (कानूनी मामलों के विभाग) के माध्यम से सरकार द्वारा अग्रेषित किसी बाहरी देश को अनुसंधान उपलब्ध कराने के अनुरोध पर विचार करना।

(इ) गरीब लोगों की सेवा में कानून और कानूनी प्रक्रिया का उपयोग करने के लिए आवश्यक हो गये सभी उपाय करना।

(एफ) सामान्य महत्व के केंद्रीय अधिनियमों को संशोधित करना ताकि उन्हें सरल बनाया जा सके और विसंगतियों, संदिग्धताओं और असमानताओं को दूर किया जा सके।

अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देने से पहले आयोग नोडल मंत्रालय/विभागों तथा ऐसे अन्य हितधारकों के साथ परामर्श करेगा जिन्हें आयोग इस उद्देश्य के लिए आवश्यक समझे।

पृष्ठभूमिः

भारतीय विधि आयोग, भारत सरकार द्वारा समय-समय पर गठित एक गैर-सांविधिक निकाय है। आयोग का मूल रूप से 1955 में गठन किया गया था और इसका प्रत्येक 3 साल के लिए पुनर्गठन किया जाता है। 21वें भारतीय विधि आयोग का कार्यकाल 31 अगस्त, 2018 तक था।  

विभिन्न विधि आयोग प्रगतिशील विकास और देश के कानून के संहिताकरण के बारे में महत्वपूर्ण योगदान देने में समर्थ रहे हैं। विधि आयोग ने अभी तक 277 रिपोर्ट प्रस्तुत की हैं।

22वां विधि आयोग सरकारी राजपत्र में गठन के आदेश के प्रकाशन की तिथि से 3 वर्ष की अवधि के लिए गठित किया जायेगा। इसमें निम्मलिखित शामिल होंगे‑

ए) एक पूर्णकालिक अध्यक्ष,

बी) चार पूर्णकालिक सदस्य (सदस्य सचिव सहित),

सी) सचिव, कानूनी मामलों का विभाग, पदेन सदस्य के रूप में,   

डी) सचिव, विधायी विभाग पदेन सदस्य के रूप में, और   

इ) अधिक से अधिक पांच अंशकालिक सदस्य

The Union Cabinet, chaired by the Prime Minister, Shri Narendra Modi has approved Twenty-second Law Commission of India for a period of three years from the date of publication of the Order of Constitution in the Official Gazette.

Benefits

          The Government will have the benefit of recommendations from a specialised body on different aspects of law which are entrusted to the Commission for its study and recommendations, as per its terms of reference.

The Law Commission shall, on a reference made to it by the Central Government or suo-motu, undertake research in law and review of existing laws in India for making reforms therein and enacting new legislations. It shall also undertake studies and research for bringing reforms in the justice delivery systems for elimination of delay in procedures, speedy disposal of cases, reduction in the cost of litigation etc.

The Law Commission of India shall, inter-alia: -

  1. identify laws which are no longer needed or relevant and can be immediately repealed;

  2. examine the existing laws in the light of Directive Principles of State Policy and suggest ways of improvement and reform and also suggest such legislation as might be necessary to implement the Directive Principles and to attain the objectives set out in the Preamble of the Constitution;

  3. consider and convey to the Government its views on any subject relating to law and judicial administration that may be specifically referred to it by the Government through Ministry of Law and Justice (Department of Legal Affairs);

  4. Consider the requests for providing research to any foreign countries as may be referred to it by the Government through the Ministry of Law and Justice (Department of Legal Affairs);

  5. take all such measures as may be necessary to harness law and the legal process in the service of the poor;

  6. revise the Central Acts of general importance so as to simplify them and remove anomalies, ambiguities and inequities;

Before finalizing its recommendations, the Commission will consult the nodal Ministry/ Department (s) and such other stakeholders as the Commission may deem necessary for the purpose.

Background

The Law Commission of India is a non-statutory body constituted by the Government of India from time to time. The Commission was originally constituted in 1955 and is re-constituted every three years. The tenure of twenty-first Law Commission of India was up to 31st August, 2018.

The various Law Commission have been able to make an important contribution towards the progressive development and codification of Law of the country. The Law Commission has so far submitted 277 reports.

The 22nd Law Commission will be constituted for a period of three years from the date of publication of its Order in the Official Gazette. It will consist of:

  1. a full-time Chairperson;

  2. four full-time Members (including Member-Secretary)

  3. Secretary, Department of Legal Affairs as ex-officio Member;

  4. Secretary, Legislative Department as ex officio Member; and

  5. not more than five part-time Members.

Courtesy – Press Information Bureau, Government of India​​

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