मुस्लिम स्वयीय विधि ( शरीयत) अधिनियम 1937
No: 26 Dated: Oct, 07 1937
मुस्लिम स्वयीय विधि ( शरीयत) अधिनियम 1937
(1937 का अधिनियम सं. 26)
[7 अक्टूबर, 1937]
मुसलमानों को मुस्लिम स्वयीय विधि (शरीयत) लागू करने का उपबन्ध करने के लिये अधिनियम 2[***];
मुसलमानों को मुस्लिम स्वयीय विधि (शरीयत) लागू करने के लिए उपबन्ध करना समीचीन है, 2[***]; अत: एतदद्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित किया जाता है : -
1. संक्षिप्त नाम और विस्तार - (1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम मुस्लिम स्वयीय विधि (शरीयत) अधिनियम, 1937 है ।
3(2) इसका विस्तार जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय सम्पूर्ण भारत पर है |
2. मुसलमानों को स्वयीय विधि का लागू होना - निर्वसीयत उत्तराधिकार स्त्रियों की विशेष सम्पत्ति, जिसमें विरासत में मिली या संविदा या दान स्वयीय विधि के किसी अन्य उपबन्ध के अधीन प्राप्त हुई स्वयीय संपत्ति आती है, विवाह, विवाह-विघटन, जिसमें तलाक, इला, जिहार, लियान, खुला तथा मुबारात आते हैं, भरण-पोषण, मेहर, संरक्षता, दान, न्यास तथा न्याय-सम्पत्ति और वक्फ़ (जो पूर्त तथा पूर्त संस्थाओं तथा पूर्त धार्मिक विन्यासों से भिन्न हो) से संबंधित (कृषि भूमि से से संबद्ध प्रश्नों के सिवाय) सभी प्रश्नों में तत्प्रतिकूल किसी रूढ़ि या प्रथा के होते हुए भी, ऐसे मामलों में जहां पक्षकार मुसलमान है वहां विनिश्चय का नियम मुस्लिम स्वयीय विधि (शरीयत) होगा ।
3. घोषणा करने की शक्ति - (1) कोई व्यक्ति, जो विहित प्राधिकारी का यह समाधान कर देता है कि -
(क) वह मुसलमान है, और
(ख) यह भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (1872 का 9) की धारा 11 के अर्थ में संविदा करने के लिए सक्षम है और
(ग) वह उस राज्यक्षेत्र का निवासी है जिस पर इस अधिनियम का विस्तार है, विहित प्ररूप में तथा विहित प्राधिकारी के सक्षम घोषणा फाईल करके यह घोषित कर सकेगा कि वह इस धारा के उपबन्धों का फायदा उठाना चाहता है और उसके पश्चात् घोषणाकर्ता को तथा उसकी सभी अवयस्क संतान तथा उनके वंशजों को धारा 2 के उपबन्ध इस प्रकार लागू होंगे, मानों उसमें प्रगणित मामलों के अतिरिक्त दत्तक-ग्रहण, विल तथा वसीयतें भी विनिर्दिष्ट की गई हों।
(2) जहां विहित प्राधिकारी उपधारा (1) के अधीन की घोषणा स्वीकार करने से इंकार करता है, वहां वह व्यक्ति जो घोषणा करना चाहता है, ऐसे अधिकारी को, जिसे राज्य सरकार साधारण या विशेष आदेश द्वारा. इस निमित्त नियत करे, अपील कर सकेगा और ऐसे अधिकारी, यदि उसका समाधान हो जाता है कि अपीलार्थी घोषणा करने का हकदार है, विहित प्राधिकारी को यह आदेश दे सकेगा कि वह उस धोषणा को स्वीकार कर ले ।
4. नियम बनाने की शक्ति - (1) राज्य सरकार इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम बना सकेगी ।
(2) विशिष्टतया तथा पूर्वगामी शक्तियों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित सभी मामलों या उनमें से किसी के लिए उपबन्ध कर सकेंगे अर्थात् -
(क) वह प्राधिकारी जिसके समक्ष, तथा वह प्ररूप जिसमें, इस अधिनियम के अधीन घोषणाएं की जानी हैं, विहित करना;
(ख) इस अधिनियम के अधीन घोषणा करने के लिए तथा अपने कर्त्तव्यों के निर्वहन में किसी व्यक्ति के निजी निवास-स्थानों पर हाजिर होने के लिए दी जाने वाली फीस विहित करना तथा वह समय, जब ऐसी फीस संदेय होगी, तथा वह रीति, जिससे फीस उद्गृहीत की जाएगी, विहित करना ।
(3) इस धारा के उपबन्धों के अधीन बनाए गए नियम राजपत्र में प्रकाशित किए जाएंगे और प्रकाशन के पश्चात् इस प्रकार प्रभावी होंगे मानो इस अधिनियम में अधिनियमित किए गए हों ।
1[(4) इस अधिनियम के अधीन राज्य सरकार दारा बनाया गया प्रत्येक नियम बनाये जाने पर यथा शीघ्र राज्य विधान मण्डल के समक्ष रखा जायगा ।
5. कतिपय परिस्थितियों में न्यायालय द्वारा विवाह का विघटन - मुस्लिम विवाह-विघटन अधिनियम, 1939 (1939 का 8) की धारा 6 निरसित ।
6. निरसन - 2[नीचे दिए हुए अधिनियमों तथा विनियमों के निम्नलिखित उपबन्ध वहां तक निरसित हो जाएंगे जहां तक वे इस अधिनियम के उपबन्धों से असंगत हों अर्थात्-
(1) 1827 का बाम्बे रेग्युलेशन 4 की धारा 26;
(2) मद्रास सिविल कोर्टस एक्ट, 1873 ( 1873 का 3) की धारा 16;
3(3) *** *** ***
(4) अवध विधि अधिनियम, 1876 (1876 का 18) की धारा 3;
(5) पंजाब विधि अधिनियम, 1872 की धारा 3;
(6) मध्य प्रान्त विधि अधिनियम, 1873 (1878 का 20) की धारा 5; और
(7) अजमेर लॉज रेग्युलेशन, 1877 ( 1 877 का विनियम 3) की धारा 4 ।