मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम, 1983
No: 31 Dated: Aug, 16 1983
मध्य प्रदेश, अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़ा वर्ग
आयोग अधिनियम,1983
Madhya Pradesh Scheduled Castes, Scheduled Tribes and Backward Classes
Commission Act, 1983
[1983 का क्रमांक 31]
[दिनांक 25 अक्टूबर, 1983 को राज्यपाल की अनुमति प्राप्त हुई अनुमति मध्य प्रदेश राजपत्र, (असाधारण) में दिनांक 28 अक्टूबर,1983 को प्रथम बार प्रकाशित की गई।]
राज्य के लिये अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना के लिए
उपबन्ध करने तथा उसके कर्त्तव्यों और कृत्यों का विनियमन करने हेतु अधिनियम
भारत गणराज्य के चौतीसवें वर्ष में मध्य प्रदेश विधान मण्डल द्वारा निम्नलिखित रूप से यह अधिनियमित हो
1. संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ - (1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम, 1983 है।
(2) यह 16 अगस्त, 1983 को प्रवृत्त हुआ समझा जायेगा।
2. परिभाषाएँ - इस अधिनियम में, जब तक संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हों,-
(क) “पिछड़े वर्ग” से अभिप्रेत है वे समस्त वर्ग (अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजातियों को छोड़कर) जिन्हें राज्य सरकार के आदिम जाति हरिजन तथा पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग द्वारा जारी की गई अधिसूचना क्रमांक एक-12-34-82-2-25, दिनांक 6 दिसम्बर, 1982 तथा अधिसूचना क्रमांक एफ-12-34-82-2-25,दिनांक 4 फरवरी, 1983 में उस रूप में विनिर्दिष्ट किया गया है, और उसके अन्तर्गत वे वर्ग भी आयेगे जिन्हें राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, समय-समय पर उस रूप में विनिर्दिष्ट करें;
(ख) “अध्यक्ष” से आयोग का अध्यक्ष अभिप्रेत है;
(ग) “आयोग” से अभिप्रेत है इस अधिनियम के अधीन स्थापित मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति, अनूसचित जनजाति तथा पिछड़ा वर्ग आयोग:
(घ) “सदस्य” से अभिप्रेत है आयोग का सदस्य और उसके अन्तर्गत आयोग का अध्यक्ष आता है;
(ड.) “विनियम” से अभिप्रेत है आयोग द्वारा धारा 21 के अधीन बनाये गये विनियम;
(च) “अधिसूचित जातियों” से अभिप्रेत है ऐसी जातियाँ, मूलवंश या जनजातियाँ अथवा ऐसी जातियों, मूलवंशों या जनजतियों के भाग या उनमें के यूथ जिन्हें भारत के संविधान के अनुच्छेद 341 के अधीन मध्य प्रदेश राज्य के संबंध में अनुसूचित जातियों के रूप में विनिर्दिष्ट किया गया है;
(छ)” अनुसूचित जनजातियों” से अभिप्रेत है ऐसी जनजातियों या जनजाति समुदाय अथवा ऐसी जनजातियों या जनजाति समुदायों के भाग या उनमें के यूथ जिन्हें भारत के संविधान के अनुच्छेद 342 के अधीन मध्य राज्य के संबंध में अनुसूचित जनजतियों के रूप में विनिर्दिष्ट किया गया है।
3. आयोग की स्थापना - (1) इस अधिनियम के प्रायोजनों के लिये, राज्य सरकार मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा पिछड़ा वर्ग आयोग स्थापित करेगी जो पाँच सदस्यों से मिलकर बनेगा जिसमें अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा पिछड़े वर्गो में से प्रत्येक का कम से कम एक-एक सदस्य होगा। राज्य सरकार सदस्यों में से एक को आयोग के अध्यक्ष के रूप से नियुक्त करेगी ।
(2) उपधारा (1) के अधीन की प्रत्येक नियुक्ति उस तारीख से प्रभावी होगी जिसको कि वह राज्य सरकार द्वारा राजपत्र में अधिसूचित की जाये।
4. आयोग के सदस्यों की सेवा के निबन्धन और शर्ते - (1) आयोग का प्रत्येक सदस्य उस तारीख से, जिसको की उसकी नियुक्ति धारा 3 की उपधारा (2) के अधीन, राजपत्र में अधिसूचित की जाती है, तीन वर्ष की कालावधि के लिये पद धारण करेगा।
(2) आयोग के सदस्यों को ऐसे वेतन तथा भत्ते दिये जायेंगे जैसे कि राज्य सरकार द्वारा अवधारित किये जाएँ :
परन्तु ऐसे वेतनों और भत्तों में, किसी सदस्य की नियुक्ति हो जाने के पश्चात् कोई ऐसा परिवर्तन नहीं किया जायेगा जो उसके लिए अलाभकारी हो।
(3) कोई सदस्य भी मुख्य सचिव, मध्य प्रदेश शासन को सम्बोधित अपने हस्ताक्षरित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा और त्याग-पत्र मुख्य सचिव की उसके प्राप्त होने की तारीख से पन्द्रह दिन की कालावधि का अवसान हो जाने पर प्रभावशील होगा।
5. निरर्हताएँ - कोई भी व्यक्ति सदस्य के रूप में नियुक्ति के लिये पात्र नहीं होगा, यदि वह-
(क) भारत का नागरिक न हो, या
(ख) इक्कीस वर्ष की आयु पूरी न कर चुका हो, या
(ग) सक्षम न्यायालय द्वारा विकृत चित्त न्याय-निर्णीत कर दिया गया हो, या
(घ) नैतिक अक्षमता अन्तर्वलित करने वाले किसी अपराध के लिए किसी न्यायालय द्वारा कारावास से दण्डादिष्ट किया गया हो,या
(ड़) अवचार के कारण सरकार की सेवा से पदच्युत कर दिया गया हो और लोक सेवा में नियोजन के लिए निरहित घोषित कर दिया गया हो, या
(च) अनुमोचित दिवालिया हो।
6. आकस्मिक रिक्ति - नियुक्त किये गये किसी व्यक्ति द्वारा पद स्वीकार न करने की या अपनी पदावधि का अवसान होने के पूर्व किसी सदस्य की मृत्यु हो जाने, उसके पद त्याग कर देने या उसके निरहित हो जाने की दशा में या कार्य करने से उसके असमर्थ हो जाने की दशा में ऐसे पद में आकस्मिक रिक्ति हो गई समझी जाएगी और ऐसी रिक्ति उस पर किसी व्यक्ति की सदस्य के रूप में नियुक्ति करके यथा-संभव शीघ्र भरी जाएगी और वह उस तारीख से पद ग्रहण करेगा जिसको कि नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा राजपत्र में अधिसूचित की जाए, और ऐसा पद अपने पूर्ववर्ती की अनवसित पदावधि के लिए धारण करेगा।
7. विशिष्ट प्रयोजनों के लिए आयोग के साथ व्यक्तियों को अस्थायी रूप के सहयुक्त किया जाना -
(1) आयोग, जितनी भी बार आवश्यक हो, किसी ऐसे व्यक्ति को आमन्त्रित कर सकेगा जिसकी सहायता या सलाह वह इस अधिनियम के उपबन्धों में से किसी उपबन्ध को कार्यान्वित करने में लेना चाहता हो।
(2) किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसे उपधारा (1) के अधीन आयोग द्वारा किसी प्रयोजन के लिये आमन्त्रित किया गया हो,-
(क) उस प्रयोजन से सुसंगत चर्चाओं में भाग लेने का अधिकार होगा किन्तु उसे आयोग के सम्मिलन में मत देने का अधिकार नहीं होगा,
(ख) ऐसे भत्ते पाने का हक होगा जो कि विहित किये जाएँ।
8. आयोग की बैठक - (1) विनियमों के अध्यधीन रहते हुये, आयोग ऐसे समयों पर तथा राज्य के भीतर के ऐसे स्थानों में बैठकें करेगा जिन्हें कि वह अपना कामकाज या कार्यवाहियों करने के लिए सर्वाधिक सुविधाजनक समझें,और वह अपनी कार्यवाहियों के कार्यवृत्त ऐसे प्रारूप में रखेगा जैसा कि वह ठीक समझे।
(2) आयोग की बैठकें अध्यक्ष द्वारा बुलाई जाएगी जो उस समय जबकि वह उपस्थित हो, सभी बैठकों की अध्यक्षता करेगा, ऐसी किसी बैठक में अध्यक्ष के अनुपस्थित होने की दशा में उसमें उपस्थित सदस्य, सदस्यों में से किसी एक को अध्यक्ष के रूप में अध्यक्षता करने के लिए निर्वाचित करेंगे।
9. रिक्ति के कारण कार्यवाहियों का अविधिमान्य न होगा - आयोग का कोई कार्य या कार्यवाही केवल इस कारण अविधिमान्य नहीं समझी जाएगी कि आयोग में कोई रिक्ति है, या उसके गठन में कोई त्रुटि है।
10. अधिकारियों और अन्य कर्मचरियों की नियुक्ति - ऐसे नियमों के अध्यधीन रहते हुए जो कि इस निमित्त बनाये जायें, राज्य सरकार, आयोग को इस अधिनियम के अधीन के अपने कृत्यों का दक्षतापूर्वक निर्वहन करने में असमर्थ बनाने के प्रयोजन के लिये, उतने अधिकारियों तथा अन्य कर्मचारियों की व्यस्था कर सकेगी जितने कि आवश्यक समझे जाएँ।
11. आयोग के कृत्य - आयोग का यह कृत्य होगा कि वह-
(क) अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा पिछड़े वर्गो के सदस्यों को संविधान के अधीन तथा तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अधीन दिए गए संरक्षण के लिये हित-प्रहरी आयोग के रूप में कार्य करें।
(ख) (एक) ऊपर खण्ड (क) में निर्दिष्ट विधियों के समुचित तथा यथा समय कार्यन्वयन का अनुवर्तन करे और उन्हें अधिक प्रभावी बनाने के लिए राज्य सरकार के संबंधित विभागों की अथवा राज्य सरकार के स्वामित्व के या उसके द्वारा नियन्त्रित किसी निकाय या प्राधिकरण को, जो ऐसे कार्यन्वयन के लिये जिम्मेदार हो, उपचारात्मक उपाय प्रस्तावित करें,
(दो) अनुसूचित जातियों तथा जनजतियों के विकास के लिये उन कार्यक्रमों के, जो भारत के प्रधानमन्त्री द्वारा 14 जनवरी, 1982 को, आख्यापित बीस सूत्री कार्यक्रम में परिकल्पित है, कार्यक्रमों तथा योजनाओं में सुधार हेतु सुझाव दें।
(ग) अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा पिछड़े वर्गो के लिये उत्थान के लिये राज्य सरकार के अथवा किसी अन्य निकाय या प्राधिकरण के, जो ऐसे कार्यक्रमों या योजनाओं के लिये जिम्मेदार है, कार्यक्रमों तथा योजनाओं में सुधार हेतु सुझाव दें,
(घ) पूर्वोक्त अधिनियमितियों, कार्यक्रमों तथा योजनाओं के अनुचित कार्यान्यन के संबंध में और लोक सेवा में पदों के आरक्षण तथा शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के संबंध में शिकायतें ग्रहण करें,
(ड़) सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955 (1955 का सं. 22) के कार्यान्यन के संबंध में रिपोर्ट दें,
(च) वर्ष के दौरान के अपने क्रिया-कलापों का विस्तृत ब्यौरा देते हुये एक रिपोर्ट प्रत्येक वित्तीय वर्ष की समाप्ति पर या ऐसी पूर्वत्तर कालावधि पर राज्य सरकार को प्रस्तुत करे जैसी कि विहित की जाय,
(छ) राज्य सरकार को ऐसे नियमित अन्तरालों पर रिपोर्ट प्रस्तुत करे जैसा कि राज्य सरकार द्वारा निर्देशित किया जाए,
(ज) ऐसे अन्य कृत्य करे जो राज्य सरकार द्वारा उसे सौंपा जाए।
12. आयोग के कर्त्तव्य - आयोग का यह कर्त्तव्य होगा कि वह ऐसे अन्तरालों पर जैसे कि विहित किये जाएँ, उस रीति के संबंध में आयोग के कर्त्तव्य जिसमें अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा पिछडें वर्गो से संबंधित संरक्षणों को कार्यान्वित किया गया है तथा उन फायदों के संबंध में, तो ऐसी जातियों, जनजातियों या वर्गो के सदस्यों को उनसे हुये हैं अन्वेषण करे और उसकी रिपोर्ट राज्य सरकार को दे।
13. अभिलेख मँगाने की आयोग की शक्ति - इस अधिनियम के अधीन के कृत्यों का पालन तथा कर्त्तव्यों का निर्वहन करने के लिए स्वयं को समर्थ बनाने के लिए, आयोग राज्य सरकार के सम्बन्धित विभाग अथवा किसी निकाय या प्राधिकरण से जानकारी या रिपोर्ट मॅगा सकेगा , और वह विभाग या निकाय या प्रधिकरण आयोग की अध्यपेक्षा का अनुपालन यथासाध्य शीघ्रता से करेगा।
14. स्वप्रेरणा से जाँच करने की आयोग की शक्ति - आयोग जब वैसा करना अपेक्षित हो, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा पिछड़े वर्गो से सम्बन्धित किसी विषय पर ऐसी जाँच करेगा जैसी कि वह इस अधिनियम के अधीन के अपने कृत्यों का पालन करने के लिये वांछित समझे, और राज्य सरकार को रिपोर्ट देगा।
15. आयोग की रिपोर्ट पर कार्यवाई - (1) धारा 11 या धारा 14 के अधीन आयोग द्वारा दी गई रिपोर्ट प्राप्त होने पर, राज्य सरकार उसमें चर्चित विषयों में से किसी विषय के सम्बन्ध में ऐसी कार्यवाही कर सकेगा जैसी कि वह ठीक समझे।
(2) राज्य सरकार को दी गई रिपोर्ट की एक प्रति उस पर राज्य सरकार द्वारा उपधारा (1) के अधीन की गई कार्यवाही की रिपोर्ट के साथ, विधान सभा के पटल पर रखी जाएगी।
16. रिपोर्ट विवरणियाँ आदि मँगाने की राज्य सरकार की शक्ति - राज्य सरकार भी आयोग से ऐसी रिपोर्ट, विवरणियाँ या विवरण समय-समय पर मँगा सकेगी जो कि वह आवश्यक समझे।
17. राज्य सरकार द्वारा निर्देश - (1) आयोग, इस अधिनियम के अधीन के अपने कृत्यों का निवर्हन करने में, नीति संबंधी प्रश्नों पर ऐसे निर्देशों द्वारा मार्गदर्शित होगा जो कि राज्य सरकार द्वारा उसे दिये जाएँ।
(2) यदि राज्य सरकार और आयोग के बीच इस संबंध में कोई विवाद उद्भुत होता है कि क्या कोई प्रश्न नीति विषयक प्रश्न है या नहीं ,तो उस संबंध में राज्य सरकार का विनिश्चय अन्तिम होगा।
18. आयोग के सदस्य लोक सेवक होगे - आयोग के समस्त सदस्य तथा अधिकारी, जबकि वे इस अधिनियम के उपबन्धों में से किसी उपबन्ध के अनुसरण में कार्य कर रहे हों या उनका इस प्रकार कार्य करना तात्पर्यित हो, भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (1860 का सं. 45) की धारा 21 के अर्थ के अन्तर्गत लोक सेवक समझे जायेंगे।
19. सद्भावपूर्वक की गई कार्यवाई का संरक्षण - इस अधिनियम के अधीन सद्भवपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के लिए, कोई वाद अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही आयोग के किसी सदस्य, अधिकारी या सेवक के विरूद्व नहीं होगी।
20. नियम बनाने की शक्ति - (1) राज्य सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यन्वित करने के लिए नियम बना सकेगी।
(2) विशिष्टितया तथा पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे नियमों में निम्नलिखित समस्त विषयों या उनसे किसी विषय के लिये उपबन्ध हो सकेंगे, अर्थात्-
(क) आयोग के सदस्यों की सेवा के निबन्धन और शर्ते ;
(ख) वे भत्ते जिनका आयोग के साथ सहयुक्त्त किये गये व्यक्तियों को संदाय किया जायेगा;
(ग) यह प्रारूप तथा रीति जिसमें, तथा वह समय जिस पर, आयोग द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत की जायेगी;
(घ) वह कालावधि जिसके भीतर धारा 11 के खण्ड (च) के अधीन रिपोर्ट राज्य सरकार को प्रस्तुत की जाएगी;
(ड़) वे अन्तराल जिनके भीतर आयोग द्वारा धारा 12 के अधीन रिपोर्ट दी जाएगी;
(च) कोई अन्य विषय जो विहित किया जाना हो या विहित किया जाए;
(3) इस अधिनियम के अधीन बनाए गए समस्त नियम विधान सभा के पटल पर रखे जाएँगे।
21. विनियम बनाने की शक्ति - आयोग निम्नलिखित के लिए इस अधिनियम के तथा उसके अधीन बनाये गये नियमों से संगत विनियम बना सकेगा-
(क) आयोग के सम्मिलनों को तथा उनमें कामकाज का संचालन करने की प्रकिया को विनियमित करने के लिए ;
(ख) वह प्रारूप तथा रीति जिसमें कार्यक्रमों, योजनाओं तथा अधिनियमितियों के अनुचित कार्यान्वयन की शिकायतें आयोग को की जा सकेंगी।
(ग) कोई अन्य विषय जो उसके कृत्यों के सम्यक् निर्वहन के लिये आवश्यक हो।
22. निरसन - मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा पिछडा वर्ग आयोग अध्यादेश, 1983 (क्रमांक 5 सन् 1983) एतत्द्वारा निरस्त किया जाता है।