No: ---- Dated: Jun, 01 1976

Madhya Pradesh Civil Services Pension Rules 1976 in Hindi

Madhya Pradesh Civil Services Pension Rules 1976 [Book Format]

मध्य प्रदेश सिविल सर्विस (पेंशन) नियम 1976

अध्याय 1 - प्रारम्भिक

1.   संक्षिप्त नाम और प्रारम्भ

2.   प्रयुक्ति

3.  परिभाषाएँ

4.  ऐसी सेवाओं और पदों से स्थानान्तरित शासकीय सेवक जिन्हें ये नियम लागू नहीं होते हैं

 

अध्याय 2 - सामान्य शर्तें

 

5.    पेन्शन/उपदान अथवा परिवार पेन्शन के दावों का विनियमन

6.    विलोपित

7.    पेन्शनों की संख्या की सीमा

8.    भावी सदाचार के आधार पर पेन्शन

9.    पेन्शन को रोकने अथवा वापस लेने का राज्यपाल का अधिकार

10.  सेवानिवृत्ति के उपरान्त व्यावसायिक नियोजन

11.  भारत के बाहर किसी शासन के अधीन सेवानिवृत्ति के पश्चात् रोजगार

 

अध्याय 3 - अर्हतादायी सेवा

 

12.   अर्हतादायी सेवा का प्रारम्भ

13.   शर्तें जिनके अधीन सेवा अर्हता प्राप्त करती है

14.   परिवीक्षा सेवा की गणना

15.   शिशिक्षु की हैसियत में सेवा की गणना

15-क. तदर्थ सेवा की गणना

16.   संविदा सेवा की गणना

17.   पुनर्नियोजित शासकीय सेवक के प्रकरण में सेवानिवृत्ति-पूर्व सिविल सेवा की गणना

18.   सिविल रोजगार के पूर्व की गई सेना सेवा की गणना

19.   द्वितीय विश्वयुद्ध में की गई युद्ध सेवा की गणना

20.   मिलिटरी सेवा (अनियमित/बिल्कुल अस्थायी) और भारतीय राष्ट्रीय आर्मी में की गई सेवा की गणना

21.   अवकाश पर व्यतीत समयावधि की गणना

22.   प्रशिक्षण पर व्यतीत समयावधि की गणना

23.   निलम्बन काल की गणना

24.   पदच्युति अथवा पृथ्थक्करण पर सेवा का हरण

25.   बहाल होने पर पूर्व सेवा की गणना

26.   त्याग-पत्र पर सेवा का हरण

27.   सेवा में व्यवधान का प्रभाव

28.   सेवा में व्यवधान का दोषमार्जन

29.   पच्चीस वर्ष की सेवा के पश्चात् अथवा सेवानिवृत्ति के पाँच वर्ष पूर्व अर्हतादायी सेवा का सत्यापन

 

अध्याय 4 - उपलब्धियाँ और औसत उपलब्धियाँ

 

30.   उपलब्धियां

31.   औसत उपलब्धियाँ

अध्याय 5 - पेन्शनों के वर्ग और उनकी स्वीकृति विनियमित करने वाली शर्तें

32.   अधिवार्षिकी पेन्शन

33.   निवृत्तिमान पेन्शन

34.   निगम, कम्पनी अधवा निकाय में अथवा उसके अधीन संविलियन होने पर पेन्शन

35.   अशक्त पेन्शन

36.   क्षतिपूरक पेन्शन

37.   अनिवार्य सेवानिवृत्ति पेन्शन

38.   अनुकम्पा भत्ते

अध्याय 6 - 1933 के पूर्व प्रवेशार्थियों के पेन्शन की धनराशि का निनियमन

39.   विस्तार

40.   पेन्शन नियमों का लागू होना

अध्याय 7 - 1933 के बाद के प्रवेशार्थियों के पेन्शन की धनराशि का निनियमन

41.   क्षेत्र

42.   20/25 वर्ष की अर्हता सेवा के पूर्ण होने पर सेवानिवृत्ति

42-क. 20/25 वर्ष की अर्हता सेवा के पूर्ण होने पर सेवानिवृत्ति

43.   पेन्शन की धनराशि

44.   मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति उपदान

45.   व्यक्ति जिन्हें उपदान देय है

45-क. किसी व्यक्ति का उपदान प्राप्त करने का विवर्जन

46.   नामांकन

47.   अंशदायी परिवार पेन्शन

48.   गैर अंशदायी परिवार पेन्शन

अध्याय 8 - आवेदन पत्र तथा पेन्शन की स्वीकृति

49.   सेवानिवृत्त होने वाले शासकीय सेवकों की सूची का बनाया जाना

50.   स्थापना देयकों पर वेतन प्राप्त करने वाले राजपत्रित शासकीय सेवक और स्थानापन्न रूप से राजपत्रित पद पर पदस्थ अन्य शासकीय सेवक

51.   विलोपित

52.   स्वीकृति के पश्चात् पेन्शन का पुनरीक्षण

53.   विलोपित

54.   विलोपित

55.   विलोपित

56.   विलोपित

57.   पेन्शन के कागज पत्रों की तैयारी

58.   सेवा प्रमाणीकरण

59.   पेन्शन पत्रों की पूर्णता और उन्हें लेखा परीक्षा अधिकारी को अग्रेषित करना

60.   पेन्शन पर प्रभाव डालने वाली किसी घटना के सम्बन्ध में आडिट आफिसर को सूचना

61.   पूर्वानुमानित पेन्शन और उपदान की स्वीकृति, आहरण और संवितरण

62.   कोषालय अथवा कार्यालय प्रमुख के यहां से उपदान के अवशेष का आहरण

63.   आडिट आफिसर द्वारा अन्तिम पेंशन और उपदान का प्राधिकार

64.   अन्तरिम पेन्शन जहाँ विभागीय अथवा न्यायिक कार्यवाही लम्बित है

64-क. प्रतिनियुक्ति पर शासकीय सेवक

65.   शासकीय बकाया की वसूली और समायोजन

66.   निवृत्तमान शासकीय सेवक द्वारा जमानत देना

अध्याय 9 - उन शासकीय सेवकों के पक्ष में परिवार पेन्शन तथा मृत्यु-सह

67.   विलोपित

68.   विलोपित

69.   जब सेवा में रहते शासकीय सेवक की मृत्यु हो जाय तब पूर्वानुमानित परिवार-पेन्शन तथा मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति-उपदान का भुगतान

70.   नियम 69 में उल्लिखित मृतक शासकीय सेवक के सम्बन्ध में अन्तिम परिवार पेन्शन और उपदान के अवशेष का प्राधिकार

70-क. नियम 69 में उल्लिखित मृतक शासकीय सेवक के सम्बन्ध में अन्तिम परिवार पेन्शन और उपदान के अवशेष का प्राधिकार

 

अध्याय 10 - दिवंगत पेन्शनरों के सम्बन्ध में परिवार-पेन्शन और अवशिष्ट उपदान की स्वीकृति

 

71.   पेन्शनर की मृत्यु पर परिवार-पेन्शन और अवशिष्ट उपदान की स्वीकृति

72.   आडिट आफिसर द्वारा भुगतान का प्राधिकार

अध्याय 11 - पेन्शन का भुगतान

73.   तिथि जब से पेन्शन देय होगी

74.   कार्यालय प्रमुख द्वारा पूर्वानुमानित और अन्तरिम पेन्शन/उपदान की स्वीकृति और संवितरण

75.   मुद्रा जिसमें पेन्शन भुगतान योग्य है

76.   उपदान और पेन्शन भुगतान की विधि

77.   कोषालय नियमों का लागू होना

अध्याय 12 - विविध

78.   निर्वचन

79.   शिथिल करने की शक्ति

80.   निरसन और व्यावृत्ति

 

मध्यप्रदेश सिविल सेवा ( पेंशन ) नियम , 1976

अध्याय - 1
प्रारम्भिक

 

2. ये नियम 1 जून, 1976 से प्रभावशील होंगे।     

 

नियम 2. प्रयुक्ति - (1) इन नियमों में जहां अन्यथा उपबंधित है को छोड़कर, ये नियम उन शासकीय सेवकों, जो मध्यप्रदेश राज्य से संबंधित सिविल सेवाओं और पदों पर नियुक्त हैं और उन स्थापनाओं पर है जिन्हें पेंशन के लिए अयोग्य घोषित नहीं किया गया है, को लागू होंगे।

(2) किन्तु यह नियम निम्न को लागू नहीं होंगे-

(क) कार्यभारित स्थापना (वर्क चार्ज) में लगे हुये व्यक्ति को;

(ख) आकस्मिक और दैनिक दर पर रोजगार में लगे हुये व्यक्ति पर;

(ग) आकस्मिकता मद से भुगतान पाने वाले व्यक्ति पर;

(घ) अंशदायी भविष्य निधि का लाभ पाने के हकदार व्यक्ति पर;

(ङ) संविदा में जैसा अन्यथा उपबन्धित हैं के सिवाये, संविदा पर कार्य करने वाले व्यक्ति

पर;

(च) व्यक्ति, जिनकी सेवा की निबन्धन और शर्तें तत्समय प्रवृत्त किन्हीं अन्य नियमों द्वारा विनियमित होती है; तथा

(छ) राज्य के कार्यकलाप के संबंध में सेवाओं अथवा पदों पर, 1 जनवरी, 2005 को अथवा उसके पश्चात् या तो अस्थाई रूप से या स्थाई रूप से नियुक्त किये शासकीय सेवक।

 

टिप्प्णी 1.– 9 अगस्त, 1948 के पूर्व, जिस दिनांक से रीवा राज्य पेंशन नियम संयुक्त विन्ध्य प्रदेश राज्य को लागू किये गये थे, निम्नलिखित रियासतों में की गई सेवा पेंशन के लिये संगणित नहीं की जायेगी क्योंकि इन राज्यों में उनके अपने कोई संहिताबद्ध पेंशन नियम नहीं थे-

अलीपुरा बाओनी, बनका पेहडी, बरौंधा, बेरी-बीहट, भैसुन्दा, बिजाना धुरवई, गराउली, गौरिहार, जासो, जिगनी, कामता, रजवला, खनियाधाना, कोठी, लुगासी नएगवाँ, रेवाई, पहाड़ा, पालदेव-नयागावँ, सोहावल, टेंरांव, टेरी फतेहपुरा, मैहर। (भारत शासन गृह मंत्रालय क्र. एफ.15/69/55 स्थापना (सी), दिनांक 22 जून, 1956 के सन्दर्भानुसार) ।

 

टिप्प्णी - 2.- पेंशन के लिये मध्यप्रदेश राज्य के विभिन्न घटकों में सेवारत पटवारियों की सेवाओं की गणना निम्नानुसार की जाना है –

(1) मध्यप्रदेश क्षेत्र के आवंटित पटवारीगण – 1-11-48 से;

(2) मध्यभारत क्षेत्र के आवंटित पटवारीगण -1-4-52 से;

(3) भोपाल क्षेत्र आवंटित पटवारीगण -1-11-56 से ;

(4) विन्ध्य प्रदेश क्षेत्र आवंटित पटवारीगण -

( ए) जो रीवा और नागोद राज्यों की सेवा में थे- [ नियुक्ति की तिथी से];

(बी) रीवा और नागोद रियासतों को छोड़कर, विन्ध्य प्रदेश की अन्य संगठित रियासतों के पटवारीगण - 9-8-48 से;

(सी) 9-8-48 को या इसके बाद लेकिन 1-1-50 के पूर्व नियुक्त पटवारी, विन्ध्य प्रदेश राज्य की पार्ट सी का दर्जा मिलने का दिनांक - नियुक्ति की तिथि से;

(डी) 14-8-1950 को या इसके पश्चात् नियुक्त पटवारीगण - 1-11-1956 से।    GO TO TOP


नियम 3. परिभाषायें - 
(1) (क) “ आडिट आफीसर ” से अभिप्रेत है लेखा तथा लेखा परीक्षा अधिकारी चाहे उसका कार्यालयीन पद कुछ भी हो, जो शासकीय सेवक के वेतन और भत्तों अथवा सेवानिवृत्त शासकीय सेवक के पेंशन के भुगतान को प्राधिकृत करता है ।

(ख) “ औसत उपलब्धियाँ ” से अभिप्रेत है नियम 31 के अनुसार निर्धारित औसत उपलबधियाँ;

(ग) “ बच्चा ” से अभिप्रेत है शासकीय सेवक का पुत्र अथवा अविवाहित पुत्री जो [25 वर्ष] की आयु से कम है और अभिव्यक्ति बच्चों का अर्थ तदनुसार ही लगाया जायेगा;

(घ) “ उपलब्धियाँ ” से अभिप्रेत है नियम 30 में परिभाषित उपलब्धियाँ;

(ड.) “ परिवार पेंशन ” से अभिप्रेत है नियम 47 के अन्तर्गत अनुज्ञेय अंशदायी पारिवारिक पेंशन और इसमें नियम 48 के अन्तर्गत अनुज्ञेय गैर-अंशदायी पारिवारिक पेंशन भी शामिल है;

(च) “ बाहृा सेवा ” से अभिप्रेत उस सेवा से है जिसमें शासकीय सेवक अपना वेतन शासन की स्वीकृति से भारत की संचित निधि अथवा केन्द्र शासित राज्यों की संचित निधि के अतिरिक्त किसी अन्य स्त्रोत से प्राप्त करता है;

(छ) “ फार्म से अभिप्रेत है इन नियमों के संलग्न फार्म;

(ज) “ शासन ” से अभिप्रेत है राज्य शासन;

(झ) “ उपदान” में शामिल हैं -

(1) “ सेवा उपदान ” जो नियम 43 के उप नियम (1) के अन्तर्गत भुगतान योग्य है ;

(2) “ मृत्यु – सह सेवानिवृत्ति उपदान ” जो नियम 44 के उपनियम (1) के अन्तर्गत भुगतान योग्य है; और

(3)  अवशिष्ट उपदान ” जो नियम 44 के उपनियम (2) के अन्तर्गत भुगतान योग्य है;

(ञ) “ विभाग प्रमुख ” में शामिल हैं-

(1) वे अधिकारी जो राज्य शासन द्वारा विभाग प्रमुख घोषित किये गये है;

(2) अन्य कोई प्राधिकारी जिसे राज्य शासन विभाग प्रमुख की शक्तियां प्रत्यायोजित करे ;

[( ट ) “ कार्यालय प्रमुख ” से अभिप्रेत है किसी स्थानीय कार्यालय का राजपत्रित अधिकारी, जहां शासकीय सेवकों की सेवा पुस्तिकाएं सेवानिवृत्ति के समय संधारित हो रही हैं।]

( ठ ) “ शासन द्वारा नियंत्रित स्थानीय निधि से अभिप्रेत है विधि का प्रभाव रखने वाले विधि अथवा नियम के द्वारा शासन के नियंत्रणाधीन आने वाले और जिसके व्यय पर शासन का पूर्ण और सीधा नियंत्रण हो ऐसे किसी संकाय की स्थानीय निधि;

( ड ) “ अवयस्क ” से अभिप्रेत है, व्यक्ति जिसने अट्ठारह वर्ष की आयु पूर्ण नहीं की है;

(ढ) “पेंशन ” में सिवाय इसके कि जब उसका प्रयोग उपदान के खंडन में किया जाये, उपदान शामिल है;

(ण) पेंशन स्वीकृतकर्ता प्राधिकारी से अभिप्रेत है शासकीय सेवक के सेवा निवृत्ति के समय उसके द्वारा धारित पद पर नियुक्ति करने के लिये सक्षम प्राधिकारी;

(त) “ अर्हतादायी सेवा ” से अभिप्रेत है राज्य शासन के अधीन पेंशन योग्य सेवा में कार्यभार ग्रहण करने की तिथि और उसके सेवा निवृत्ति की तिथि के बीच की कालावधि जो इन नियमों के अधीन पेंशन और उपदान के उद्देश्यों के लिये संगणना में ली जाती है और उसमें तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य आदेश अथवा नियम के अधीन अर्हतादायी सेवा शामिल हैं;]

(थ) सेवानिवृत्ति लाभ में पेंशन अथवा सेवा-उपदान और मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति उपदान, जहां अनुज्ञेय है, शामिल है,

(द) “ कोषालय ” में उप कोषालय शामिल है ।

(2) इसमें जिन शब्दों और अभिव्यक्तियों का प्रयोग किया गया है और जो परिभाषित नहीं हैं, किन्तु मूलभूत नियमों में परिभाषित है, का अर्थ क्रमश: वही होगा जो कि नियमों में नियत है ।    GO TO TOP

 

नियम 4. ऐसी सेवाओं और पदों से स्थानान्तरित शासकीय सेवक जिन्हें ये नियम लागू नहीं होते हैं - (1) शासकीय सेवक किसी ऐसी सेवा अथवा पद से, जिस पर ये नियम लागू नहीं हैं, ऐसी सेवा अथवा पद पर स्थायी रूप से स्थानान्तरित हो जाता है, जिस पर ये नियम लागू होते हैं, को तथा समस्त शासकीय सेवक, जो इन नियमों के प्रभावशील होने की तिथि को सेवारत हैं, इन नियमों के अधीन होंगे:

परन्तु ऐसे प्रत्येक शासकीय सेवक को छूट होगी कि वह उसके स्थायी स्थानान्तरण के प्रसारित आदेश के दिनांक से तीन माह के भीतर अथवा राजपत्र में इन नियमों के प्रकाशन की तिथि से तीन माह के भीतर अथवा यदि वह उस दिन अवकाश पर है तो अपने अवकाश की वापसी से तीन माह के भीतर, जो भी बाद में हो, इन नियमों के लागू होने के दिनांक के तत्काल पूर्व अथवा उसके स्थानान्तर की तिथि पर, जैसा भी प्रकरण हो, जिन पेंशन नियमों के अधीन वह था, बने रहने का चयन कर सकता है ।

(2) उप नियम (1) के परन्तुक के अधीन किये गये विकल्प का प्रयोग उस अधिकारी को, जिसके अधीन वह पदस्थ है अथवा स्थानान्तर के पश्चात् पदस्थ किया गया है, को और राजपत्रित अधिकारी, जिसका वेतन स्थापना देयक पर आहरण नहीं किया जाता है, के प्रकरण में सम्बन्धित आडिट आफिसर को संसूचित किया जायेगा ।

(3) जहां विहित समयावधि के भीतर अथवा सेवानिवृत्ति की तिथि अथवा मृत्यु के पूर्व, जो भी पहले हो, विकल्प प्रयुक्त नहीं किया जाता है, तो वहां ये नियम स्वत: लागू होंगे।

(4) एक बार दिया गया विकल्प अंतिम होगा ।

नियम 4- क . नियम 4 में अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुये भी-

(i) वे समस्त शासकीय सेवक जो 15-9-1976 को शासकीय सेवा में हैं, उसी तिथि से इन नियमों के अधीन होंगे;

(ii) खण्ड (i) में विनिर्दिष्ट तिथि के पूर्व नियम 4 के उप नियम (1) के प्रावधानों के अन्तर्गत शासकीय सेवक द्वारा उपर्युक्त तिथि से दिया गया कोई भी विकल्प इन नियमों के लिये प्रभावशील नहीं होगा ।    GO TO TOP

 

अध्याय - 2

सामान्य शर्तें

 

नियम 5. पेंशन / उपदान अथवा परिवार पेंशन के दावों का विनियमन -

(1) शासकीय सेवक के सेवानिवृत्ति के समय अथवा सेवानिवृत्त कर दिये जाने अथवा त्याग पत्र स्वीकृत होने पर अथवा मृत्यु होने पर, जैसी भी स्थिति हो, के समय प्रभावशील नियमों के प्रावधानानुसार पेंशन/उपदान परिवार पेंशन के दावों का विनियमन होगा।

(2) यह प्रश्न कि क्या किसी विशिष्ट कार्यालय अथवा विभाग में की गई सेवा पेंशन के लिये अर्हतादायी होगी का निर्धारण उन प्रचलित नियमों से किया जायेगा, जो उस समय उसके द्वारा की गई सेवा पर लागू थे और तत्पश्चात् प्रसारित उन आदेशों द्वारा जिनसे सेवा को पेंशन हेतु अयोग्य घोषित किया गया है, भूतलक्षी प्रभाव से लागू नहीं होंगे ।

(3) वह दिन, जिसके पूर्वान्ह से कोई शासकीय सेवक सेवानिवृत्त होता है अथवा सेवानिवृत्त कर दिया जाता है अथवा सेवामुक्त कर दिया जाता है अथवा सेवा से त्यागपत्र देना स्वीकृत मान लिया जाता है, जैसी भी स्थिति हो, कार्यदिवस नहीं माना जायेगा, परन्तु मृत्यु की तिथि को कार्य दिवस माना जावेगा।     GO TO TOP

 

नियम 6. सेवा मान्य होने पर ही पूर्ण पेंशन - [विलोपित] वित्त विभाग क्र.एफ.बी. 6/3/81/नि-2/चार, दिनांक 20-3-1981]

 

नियम 7. पेंशनों की संख्या की सीमा - 

(1) कोई भी शासकीय सेवक एक ही समय में अथवा एक ही लगातार सेवा के द्वारा उसी सेवा अथवा पद के लिये दो पेंशनें अर्जित नहीं करेगा ।

(2) नियम 18 में यथा उपबन्धित के सिवाय, शासकीय सेवक जिसे अधिवार्षिकी पेंशन अथवा सेवानिवृत्ति पेंशन पर सेवानिवृत्त होने के पश्चात् पुनर्नियुक्त किया जाता है, को पुनर्नियुक्ति की कालावधि के लिये पृथक् से पेंशन अथवा उपदान की पात्रता नहीं होगी ।   GO TO TOP

 

नियम 8. भावी सदाचरण के आधार पर पेंशन - 

(1) (क) इन नियमों मे पेंशन की प्रत्येक स्वीकृति और उसे चालू रखने के लिये भावी सदाचरण की अन्तर्हित मान्य शर्त होगी ।

(ख) यदि कोई पेंशनर किसी गम्भीर अपराध में सिद्धदोष ठहराया जाय अथवा किसी गंभीर दुराचरण का दोषी पाया जाता है तो पेंशन स्वीकृतकर्त्ता प्राधिकारी, स्थायी रूप से अथवा किसी निश्चित अवधि के लिए, लिखित आदेश द्वारा पेंशन अथवा उसके किसी अंश को रोक सकता है अथवा वापस ले सकता है:

परन्तु पेंशनर के सेवानिवृत्ति के समय, उसके सेवा से सेवानिवृत्ति के तत्काल पूर्व उसके द्वारा धारित पद पर नियुक्ति करने के लिये सक्षम प्राधिकारी के किसी अधीनस्थ प्राधिकारी द्वारा ऐसा कोई आदेश पारित नहीं किया जायेगा :

परन्तु आगे यह और भी कि जहां पेंशन का कोई अंश रोका अथवा वापस लिया जाता है, तो पेंशन की ऐसी धनराशि न्यूनतम पेंशन जैसी कि समय –समय पर शासन द्वारा निर्धारित की जावे, से कम नहीं होगी।

(2) जहां पेंशनर किसी गम्भीर अपराध के कारण किसी न्यायालय द्वारा सिद्धदोष ठहराया जाता है तो इस प्रकार की दोषसिद्धि के सम्बन्ध में न्यायालय के निर्णय के प्रकाश में उप नियम (1) खण्ड (ख) के अधीन कार्यवाही की जायेगी।

(3) उप नियम (2) के अधीन नहीं आने वाले मामले में, उप नियम (1) में सन्दर्भित प्राधिकारी यदि यह समझता है कि पेंशन किसी गम्भीर दुराचरण का प्रथम दृष्टया दोषी है, तो उप नियम (1) अन्तर्गत कोई आदेश पारित करने के पूर्व वह—

(क) पेंशनर को उसके विरूद्ध प्रस्तावित कार्यवाही और जिस आधार पर वह कार्यवाही प्रस्तावित है का नोटिस देकर वह शासकीय सेवक से अपेक्षा करेगा कि प्रस्ताव के विरूद्ध वह जो भी अभ्यावेदन देना चाहे, सूचना-पत्र की प्राप्ति के पन्द्रह दिन के अन्दर अथवा पेंशन स्वीकृतकर्त्ता प्राधिकारी द्वारा अनुज्ञेय और आगामी पन्द्रह दिन से अनधिक समय के भीतर प्रस्तुत करे; और

(ख) खण्ड (क) के अन्तर्गत पेंशनर द्वारा कोई अभ्यावेदन प्रस्तुत किया जाता है तो वह उस पर विचार करेगा ।

(4) जहां उप नियम (1) के अन्तर्गत आदेश पारित करने वाला सक्षम प्राधिकारी राज्यपाल है, तो आदेश पारित करने के पूर्व राज्य लोक सेवा आयोग से परामर्श किया जावेगा ।

(5) राज्यपाल के अतिरिक्त किसी भी प्राधिकारी द्वारा उप नियम (1) के अन्तर्गत पारित आदेश के विरूद्ध अपील राज्यपाल को प्रस्तुत की जावेगी और अपील पर राज्य लोक सेवा आयेग के परामर्श से, राज्यपाल ऐसा आदेश पारित करेगा जैसा कि वह उचित समझे ।

स्पष्टीकरण - इस नियम में, –

(क) “ गम्भीर अपराध ” अभिव्यक्ति में कार्यालय गोपनीयता अधिनियम , 1923 (1923 का क्रमांक 19) के अधीन किये गये अपराध के अन्तर्गत आपराधिक कार्य सम्मिलित हैं;

(ख) “ गम्भीर दुराचरण ” अभिव्यक्ति में, शासन के अधीन रहते हुये, जैसा कि कार्यालयीन गोपनीय अधिनियम की धारा 5 में उल्लेखित, है किसी गोपनीय कार्यालयीन संकेत शब्द लिपि की संसूचना अथवा प्रकटीकरण अथवा शब्द अथवा नक्शा योजना (प्लान) मॉडल, वस्तु, टिप्पणी (नोट), दस्तावेज, सूचना हस्तान्तरित करना, जो कि सर्वसाधारण जनता के हितों अथवा देश की सुरक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डालता हो, सम्मिलित हैं ।

टिप्पणी- इस नियम के उपबन्ध, नियम 47 तथा 48 के अधीन देय कुटुम्ब पेंशन के लिये भी लागू होंगे। मृत सरकारी सेवक/पेंशनर द्वारा धारित पद पर, यथा स्थिति, उसकी मृत्यु या सेवानिवृत्ति के तत्काल पूर्व नियुक्ति करने के लिये सक्षम प्राधिकारी कुटुम्ब पेंशन का कोई भाग रोकने या प्रत्याहृत करने के लिये सक्षम प्राधिकारी होगा ।    GO TO TOP

 

नियम 9. पेन्शन को रोकने अथवा वापस लेने का राज्यपाल का अधिकार-

(1) पेन्शन द्वारा उसकी सेवा के दौरान जिसमें सेवानिवृत्ति के पश्चात् पुनर्नियुक्ति पर की गई सेवा भी शामिल है, विभागीय अथवा न्यायालयीन कार्यवाही में जिसमें यह पाया जाय कि पेन्शनर गम्भीर दुराचरण अथवा लापरवाही का दोषी है, शासन को पहुँचाई गई धन सम्बन्धी हानि, यदि कोई हो, के लिए स्थायी रूप से अथवा किसी विनिर्दिष्ट कालावधि के लिये, पेन्शन अथवा उसके किसी अंश को रोकने के लिये पेन्शन वापस लेने और पूर्ण आदेश पारित करने के लिये राज्यपाल स्वंय के अधिकार सुरक्षित रखते हैं :

परन्तु अन्तिम आदेश पारित करने के पूर्व राज्य लोक सेवा आयोग से परामर्श किया जायेगा:

[परन्तु आगे यह भी कि जहां पेंशन का कोई अंश रोका अथवा वापस लिया जाता है तो ऐसी धनराशि न्यूनतम पेंशन जैसा कि समय-समय पर शासन द्वारा निर्धारित की जावे, से कम नहीं होगी।]

(2) (क) विभागीय कार्यवाहियां, यदि शासकीय सेवक के सेवा में रहते हुए चाहे सेवानिवृत्ति के पूर्व अथवा उसकी पुनर्नियुक्ति के दौरान संस्थित की गई हों तो इस नियम के अधीन शासकीय सेवक के सेवानिवृत्ति के पश्चात् भी कार्यवाहियां चालू मानी जावेगी और वे जिस प्राधिकारी द्वारा प्रारम्भ की गई थीं उसी के द्वारा और उसी प्रकार से जैसा कि शासकीय सेवक सेवा में रहता; चालू रहेंगी और निर्णीत की जावेंगी:

परन्तु यह कि जहां विभागीय कार्यवाहियां राज्यपाल के अधीनस्थ किसी प्राधिकारी द्वारा संस्थित की गई हैं तो वह प्राधिकारी उसके निष्कर्षों को अंकित कर राज्यपाल को प्रतिवेदन प्रस्तुत करेगा ।

(ख) विभागीय कार्यवाहियां, जब शासकीय सेवक सेवा में था, चाहे उसकी सेवानिवृत्ति के पहले या उसकी पुनर्नियुक्ति के दौरान, संस्थित की गई तो-

(i) राज्यपाल की मंजूरी के बिना संस्थित नहीं की जाएंगी;

(ii) ऐसे संस्थापन के पूर्व चार वर्ष के पहिले घटित किसी घटना के बारे में नहीं होंगी; तथा

(iii) विभागीय कार्यवाहियों को लागू प्रक्रिया के अनुसार ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसे स्थान पर संचालित की जावेंगी जैसा शासन निदेशित करे –

(क) जिसमें शासकीय सेवक को उसकी सेवा के दौरान उसे सेवा से पदच्युत करने का आदेश दिया जा सकता है, उस मामले में जब पेंशन अथवा उसके भाग को चाहे स्थायी रूप से या निर्दिष्ट कालावधि के लिये रोकना अथवा वापस लेना प्रस्तावित था; अथवा

(ख) जिसमें यदि उसकी पेंशन से शासन को पहुंचाई गई आर्थिक हानि की पूर्ण अथवा भाग की वसूली का आदेश प्रस्तावित किया गया था शासकीय सेवक को उसकी सेवा के संबंध में उसकी लापरवाही अथवा आदेश भंग के कारण हुई आर्थिक हानि की पूर्ण अथवा भाग को उसके वेतन से वसूल करने का आदेश किया जा सकता है।

(3) शासकीय सेवक जब सेवा में था, चाहे उसकी सेवानिवृत्ति के अथवा उसकी पुनर्नियुक्ति के पहले उत्पन्न वाद-कारण के बारे में अथवा ऐसे संस्थापन के चार वर्ष से अधिक पहले घटित किसी घटना के बारे में न्यायिक कार्यवाही संस्थित नहीं की जावेगी ।

(4) उस मामले में जहां शासकीय सेवक अधिवार्षिकी आयु पर पहुंचने या अन्यथा से सेवानिवृत्त हुआ है, तथा जिसके विरूद्ध कोई विभागीय या न्यायिक कार्यवाहियां संस्थित हैं अथवा जहां विभागीय कार्यवाहियां उपनियम (2) के अधीन निरन्तर हैं, अनन्तिम पेंशन तथा मृत्यु-सह- सेवानिवृत्ति उपदान, जैसा नियम 64 में उपबंधित है, मंजूर होगा:

परन्तु जहां विभागीय कार्यवाहियां संस्थित करने के पूर्व ही शासकीय सेवक को उसकी पेंशन अंतिम रूप से स्वीकृत की जा चुकी है तो राज्यपाल, लिखित आदेश द्वारा, ऐसी विभागीय संस्थित करने की तिथि से इस प्रकार स्वीकृत पेंशन का पचास प्रतिशत, इस शर्त के साथ रोक सकता है कि ऐसी रोक के बाद पेंशन न्यूनतम पेंशन जैसा कि समय-समय पर शासन द्वारा निर्धारित की जावे, से कम नही होगी:

परन्तु यह और भी कि, जहां विभागीय कार्यवाही दिनांक 25-10-1978 के पूर्व संस्थित हुई हो तो प्रथम परन्तुक इस प्रकार से प्रभावशील होगा जैसे “ऐसी कार्यवाही संस्थित होने के दिनांक से” शब्दों के लिये “उपर्युक्त दर्शित तिथि से 30 दिनों से अधिक विलम्ब होने के दिनांक से प्रभावशील होगा” शब्द प्रतिस्थापित थे:

परन्तु यह और भी कि, --

(क) यदि विभागीय कार्यवाही संस्थित होने के दिनांक से एक वर्ष में पूर्ण नहीं होती है तो उपर्युक्त एक वर्ष की अवधि व्यतीत हो जाने के पश्चात् रोकी गई पेन्शन का 50% पुन: स्थापित हो जावेगा ।

(ख) यदि विभागीय कार्यवाही संस्थित होने की तिथि से दो वर्ष की अवधि में पूर्ण नहीं होती है तो उपर्युक्त दो वर्ष की अवधि व्यतीत होने के पश्चात् रोकी गई पेन्शन की पूर्ण धनराशि पुन: स्थापित हो जावेगी ;

(ग) यदि विभागीय कार्यवाही में अन्तिम आदेश पेन्शन को रोकने अथवा वापस लेने अथवा उसमें से कोई वसूली करने के लिये पारित किया जाता है तो ऐसा आदेश विभागीय कार्यवाही के संस्थित होने की तिथि से ही प्रभावशील हुआ समझा जावेगा और पेन्शन की धनराशि जो अब तक रोकी गई है, नियम 43 के उपनियम (2) में विहित सीमाओें के अधीन, अन्तिम आदेश की शर्तों के अनुसार समायोजित की जावेगी ।

(5) जहां शासन, पेंशन को रोकने अथवा वापस लेने का निर्णय नहीं करता है, बल्कि पेंशन से आर्थिक क्षति की वसूली के लिये आदेशित करता है तो शासकीय सेवक की सेवा निवृत्ति की तिथि पर स्वीकार्य पेंशन की एक तिहाई से अधिक की दर से उसकी वसूली नहीं की जावेगी ।

(6) इस नियम के उद्देश्य हेतु-

(क) जिस दिनांक को शासकीय सेवक अथवा पेंशनर को आरोप-पत्र जारी किया जाता है अथवा यदि शासकीय सेवक पूर्व तिथि से ही निलम्बन में है तो उस तिथि से विभागीय कार्यवाही संस्थित की गई मानी जावेगी;

( ख) न्यायिक कार्यवाही संस्थित मानी जायेगी—

(i) आपराधिक कार्यवाही के प्रकरण में उस तिथि से जिस दिन पुलिस अधिकारी को शिकायत अथवा रिपोर्ट की जाती है; जिस पर कि मजिस्ट्रेट संज्ञान लेता है; और

(ii) दीवानी कार्यवाहियों के प्रकरण में वह तिथि जब न्यायालय में वाद-पत्र प्रस्तुत किया जाता है।    GO TO TOP

 

नियम 10. सेवा निवृत्ति के उपरान्त व्यावसायिक नियोजन - 

(1) यदि कोई पेंशनर अपनी सेवा निवृत्ति के तत्काल पूर्व राज्य की प्रथम श्रेणी की सेवा में था, अपनी सेवानिवृत्ति की तिथि से दो वर्ष समाप्त होने के पूर्व कोई व्यावसायिक रोजगार करना चाहता है तो वह ऐसी स्वीकारोक्ति के लिये शासन की पूर्वानुमति प्राप्त करेगा:

परन्तु शासकीय सेवक जिसे सेवानिवृत्ति-पूर्व-अवकाश अथवा अस्वीकृत-अवकाश के दौरान शासन द्वारा किसी विशेष प्रकार के व्यावसायिक रोजगार को ग्रहण करने की अनुमति दी गई थी तो सेवानिवृत्ति के पश्चात् उस रोजगार को चालू रखने के लिये उसे पश्चात्वर्ती अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होगी।

(2) उपनियम (3) के उपबन्धों के अध्यधीन रहते, किसी पेंशनर के आवेदन पर उन शर्तों के अधीन, यदि कोई हो, शासन जैसा भी उचित समझे, लिखित आदेश द्वारा आवश्यक अनुमति दे सकता है अथवा उस पेंशनर को आवेदन में उल्लिखित व्यवसायिक नौकरी बाबत आदेश में कारणों को अभिलिखित कर अनुमति देने से इन्कार कर सकता है ।

(3) उपनियम (2) के अधीन किसी पेंशनर को कोई व्यावसायिक रोजगार ग्रहण करने के लिये अनुमति देने अथवा अनुमति देने से इन्कार करने के लिये शासन निम्नानुसार तथ्यों को ध्यान में रखेगा,

अर्थात्–

(क) प्रस्तावित ग्रहण किये जाने वाले रोजगार का स्वरूप और नियोजक का पूर्ववृत्त (इतिहास);

(ख) क्या उसके द्वारा ग्रहण किया जाने वाले प्रस्तावित्त रोजगार में उसके कर्त्तव्य ऐसे होंगे जिससे कि उसका शासन से विवाद उत्पन्न हो;

(ग) क्या सेवा में रहते हुये पेंशनर का उस नियोजक के साथ जिसके अधीन वह रोजगार प्राप्त करना चाहता है ऐसा कोई संबंध था, जिसके कारण पेंशनर ने ऐसे नियोजक के प्रति रूचि दिखायी है, ऐसी शंका के लिये युक्तियुक्त आधार हो;

(घ) क्या प्रस्तावित व्यावसायिक रोजगार के कर्त्तव्यों में शासन के विभागों से सम्पर्क स्थापित करना अथवा संविदा कार्य करना अन्तर्ग्रस्त है;

(ङ) क्या उसके व्यावसायिक कर्त्तव्य ऐसे होंगे जिससे कि शासन के अधीन उसकी पूर्व पदेन स्थिति अथवा ज्ञान अथवा अनुभव से प्रस्तावित नियोजक को अनुचित लाभ मिले;

(च) प्रस्तावित नियोजक द्वारा प्रस्तावित उपलब्धियाँ; और

(छ) अन्य कोई सुसंगत तथ्य।

(4) जहां उपनियम (3) के अन्तर्गत आवेदन-पत्र की प्राप्ति के दिनांक से साठ दिनों के भीतर शासन आवेदित अनुमति अस्वीकार नहीं करता है अथवा आवेदक को अस्वीकृति की सूचना नहीं देता है तो, यह मान लिया जावेगा कि शासन ने आवेदित अनुमति प्रदान कर दी है।

(5) जहां शासन आवेदित अनुमति किन्हीं शर्तों के साथ देता है अथवा ऐसी अनुमति से इन्कार करता है तो शासन के तत्सम्बन्धित आदेश की प्राप्ति के तीस दिनों के भीतर आवेदक ऐसी किसी शर्त अथवा अस्वीकृति के विरूद्ध अभ्यावेदन प्रस्तुत कर सकता है और शासन, जैसा कि वह उचित समझे, उस पर आदेश देगा:

परन्तु इस अधिनियम के अधीन ऐसी कोई शर्त निरस्त करने अथवा बगैर किन्हीं शर्तों के अनुमति प्रदान करने के आदेश के अतिरिक्त अभ्यावेदन करने वाले पेंशनर को उसे दिये जाने वाले प्रस्तावित आदेश के विरूद्ध कारण बताने का अवसर दिये बगैर कोई आदेश नहीं दिया जावेगा।

(6) यदि कोई पेंशनर शासन की पूर्वानुमति के बिना किसी भी समय उसकी सेवानिवृत्ति की तिथि से दो वर्ष की समाप्ति के पूर्व कोई व्यावसायिक रोजगार ग्रहण करता है अथवा किन्हीं शर्तों का, जिसके अधीन इस नियम के अधीन व्यावसायिक रोजगार ग्रहण करने की अनुमति दी गई है, उल्लंघन करता है, तो शासन लिखित आदेश के द्वारा और उसमें कारणों को उल्लेखित करते हुये यह घोषित करने के लिये सक्षम होगा कि उसे पूर्ण पेंशन अथवा पेंशन के किसी ऐसे अंश की और ऐसी समयावधि के लिये, जैसा कि आदेश में उल्लेखित हो, पात्रता नहीं होगी:

परन्तु सम्बन्धित पेंशनर की उपर्युक्त घोषणा के विरूद्ध कारण बताने का अवसर दिये बगैर ऐसा आदेश नहीं दिया जावेगा:

परन्तु यह और भी कि इस उपनियम के अधीन कोई आदेश देने के पहले शासन निम्नानुसार तथ्यों को ध्यान मे रखेगा, आर्थात्-

(i) सम्बन्धित पेंशनर की वित्तीय स्थिति ।

(ii) सम्बन्धित पेंशनर द्वारा ग्रहण किया गया व्यावसायिक रोजगार का स्वरूप और उससे प्राप्त उपलब्धियाँ।

(iii) अन्य कोई सुसंगत तथ्य।

(7) इस नियम के अधीन शासन द्वारा पारित किया जाने वाला प्रत्येक आदेश सम्बन्धित पेंशनर को संसूचित किया जायेगा ।

(8) इस विषय में---

(क) “ व्यावसायिक रोजगार ” से अभिप्रेत है--

(i) किसी भी हैसियत का रोजगार जिसमें व्यापारिक, वाणिज्यिक, औद्योगिक, वित्तीय अथवा व्यावसायिक कारोबार में लगी हुई किसी कम्पनी, सहकारी समिति, फर्म अथवा वैयक्तिक का एजेन्ट होना सम्मिलित है, और ऐसी कम्पनी का निदेशक पद और ऐसी फर्म की भागीदारी भी सम्मिलित है, परन्तु इसमें शासन द्वारा पूर्णत: अथवा सारभूत रूप से धारित अथवा नियंत्रित निगमित निकाय के अधीन रोजगार सम्मिलित नहीं है;

(ii) किसी फर्म की भागीदारी, स्वतंत्र रूप से उसका सलाहकार अथवा परामर्शदाता के रूप में व्यावसाय स्थापित करना जिसमें उस सम्बन्ध के प्रकरणों में पेंशनर-

(क) व्यावसायिक योग्यताएं नहीं रखता है और प्रकरण, जिनके सम्बन्ध में व्यावसाय स्थापित करना अथवा चलाना चाहता है, उसके कार्यालयीन ज्ञान अथवा अनुभव से सम्बन्धित है; अथवा

(ख) व्यावसायिक योग्यताएं रखता है, परन्तु प्रकरण जिनके सम्बन्ध में व्यवसाय स्थापित करना है इस प्रकार के हैं जिससे कि पूर्व की उसकी कार्यालयीन स्थिति के कारण उसके पक्षकार को अनुचित लाभ दिये जाने की सम्भावना है; अथवा

(iii) शासन के कार्यालयों अथवा अधिकारी के साथ सहकार्य अथवा सम्पर्क से अन्तर्ग्रस्त कोई कार्य करना है ।

स्पष्टीकरण - (क) इस खण्ड के प्रयोजनों के लिये “किसी सहकारी समिति में रोजगार” की अभिव्यक्ति में किसी पद को ग्रहण करना चाहे निर्वाचित अथवा अन्य प्रकार से जैसे- अध्यक्ष, सभापति, मैनेजर, सचिव, कोषाध्यक्ष, और इसी तरह के पद जिन्हें उस समिति में जिस किसी भी नाम से कहा जाता हो, सम्मिलित है।

( ख) किसी शासकीय सेवक की सेवानिवृत्ति के पश्चात् शासन के अधीन उसी समान अथवा अन्य प्रथम श्रेणी के पद पर अथवा शासन के अधीन किसी अन्य समतुल्य पद पर बगैर किसी व्यवधान के पुनर्नियुक्ति के सम्बन्ध में अभिव्यक्ति “सेवानिवृत्ति की तिथि से अभिप्रेत है वह तिथि जिस पर कि शासकीय सेवक शासकीय सेवा में इस प्रकार पुनर्नियुक्त से अन्तिम रूप से मुक्त हो जाता है ।    GO TO TOP

 

नियम 11. भारत के बाहर किसी शासन के अधीन सेवानिवृत्ति के पश्चात् रोजगार – 

यदि कोई पेंशनर जो सेवा निवृत्ति के तत्काल पूर्व राज्य शासन के अधीन चतुर्थ श्रेणी को छोड़कर अन्य किसी पद पर पदस्थ था, भारत के बाहर किसी भी शासन के अधीन रोजगार ग्रहण करना चाहता है तो; उसे ग्रहण करने के लिये वह राज्य शासन से पुर्वानुमति प्राप्त करेगा और ऐसा पेंशनर जो बगैर उचित अनुमति के ऐसा कोई रोजगार ग्रहण करता है तो उसे उस अवधि के लिये जिसमें वह इस प्रकार नियोजित रहता है अथवा ऐसी लम्बी अवधि के लिये, जैसा कि शासन निर्देशित करे, पेंशन भुगतान योग्य नहीं होगी :

परन्तु शासकीय सेवक जिसे सेवानिवृत्ति पूर्व अवकाश के दौरान राज्य शासन के अधीन किसी विशिष्ट प्रकार का रोजगार ग्रहण करने की अनुमति दी गई थी तो सेवानिवृत्ति के पश्चात् उसी रोजगार को चालू रखने के लिये उसे पश्चात्वर्ती अनुमति प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं होगी।

स्पष्टीकरण : इस नियम के प्रयोजनों के लिये “भारत के बाहर किसी शासन के अधीन रोजगार” अभिव्यक्ति में, भारत के बाहर किसी शासन के पर्यवेक्षण अथवा नियंत्रण के अधीन कार्यरत किसी स्थानीय प्राधिकरण अथवा निगम अथवा किसी अन्य संस्था अथवा वह रोजगार जो किसी अन्तर्राष्ट्रीय संगठन के अधीन है जिसका कि भारत सदस्य नहीं है, सम्मिलित है ।    GO TO TOP

 

अध्याय - 3

अर्हतादायी सेवा

 

नियम 12. अर्हतादायी सेवा का प्रारम्भ -

(1) क्षतिपूरक उपदान के सिवाय, किसी शासकीय सेवक की सेवा, जब तक वह 18 वर्ष की आयु पूर्ण नहीं करता अर्हता प्राप्त नहीं करती है, परन्तु इस खंड में की अन्तर्विष्ट कोई बात उन व्यक्तियों के प्रकरणों में, जो इन नियमों के प्रारंभ होने के दिनांक को सेवारत थे और जिनके प्रकरण में कम आयु सीमा विहित है, लागू नहीं होगी ।

(2) इन नियमों के उपबन्धों के अध्यधीन रहते हुये, किसी शासकीय सेवक की अर्हतादायी सेवा उस दिनांक से प्रारंभ होगी जिस दिनांक को वह किसी पद का जिस पर वह पहली बार स्थायी अथवा स्थानापन्न अथवा अस्थायी रूप से नियुक्त हुआ है, कार्यभार ग्रहण करता है ।

 

नियम 13. शर्तें जिनके अधीन सेवा अर्हता प्राप्त करती है - 

(1) किसी शासकीय सेवक की सेवा तब तक अर्हता प्राप्त नहीं करेगी जब तक उसका कार्य और वेतन शासन द्वारा विनियमित अथवा शासन द्वारा विहित शर्तों के अधीन नहीं दिया जाता है ।

(2) उपनियम (1) के उद्देश्यों के लिये ‘ सेवा ’ से अभिप्रेत है– शासन के अधीन किसी पद के विरूद्ध उस सेवा से है जो राज्य की संचित निधि से शासन द्वारा भुगतान किया जाता हो तथा जिसे पेन्शन के अयोग्य (नॉन पेंशनेबल) घोषित नहीं किया गया है ।    GO TO TOP

 

नियम 14. परिवीक्षा सेवा की गणना – किसी पद के विरूद्ध परिवीक्षा पर की गई सेवा अर्हतादायी होगी।

 

नियम 15. शिशिक्षु की हैसियत में सेवा की गणना - उन प्रकरणों को छोड़कर जहां अनुज्ञेय पेंशन नियमों के अधीन उस समय की गई सेवा अर्हतादायी है, शिशिक्षु के रूप में सेवा अर्हतादायी नहीं होगी।

 

नियम 15-क - तदर्थ सेवा की गणना – तदर्थ सेवा अर्हकारी होगी; यदि –

(अ) तदर्थ नियुक्ति नियमित पद के विरूद्ध थी तथा नियुक्ति बिना सेवा में व्यवधान नियमित की गई है, अथवा

(ब) उच्च पद पर तदर्थ नियुक्ति स्थायी, स्थापनापन्न अथवा अस्थायी हैसियत में धारित निम्न पद से पदोन्नति होने पर की गई थी।

"(स) तदर्थ सेवाओं में दो या अधिक व्यवधान की दशा में केवल नियमित नियुक्ति के तत्काल पूर्व की तदर्थ अवधि ही पेंशन के लिए अर्हकारी समझी जाएगी 

और यह भी कि तदर्थ सेवा से नियमित पद पर नियुक्ति होने पर तदर्थ पद से कार्यमुक्ति एवं नियमित पद पर कार्यभार ग्रहण करने के बीच की अवधि को सेवा में व्यवधान के रूप में नहीं माना जाएगा।”

[Inserted by notification dated 15 june 2020]

नियम 16. संविदा सेवा की गणना - 

(1) कोई व्यक्ति जो प्रारम्भ में शासन द्वारा किसी विनिर्दिष्ट कालावधि के लिए संविदा पर नियुक्ति किया जाय और तत्पश्चात् बिना किसी व्यवधान के उसी अथवा अन्य पद पर नियमित हैसियत में पेन्शन योग्य स्थापना पर नियुक्त किया जाता है तो, वह विकल्प दे सकता है कि या तो–

(क) ब्याज सहित अंशदायी भबिष्य निधि तथा सेवा के लिये अन्य क्षतिपू्र्ति को सम्मिलित करते हुये, शासकीय अंशदान प्रतिधारित करे; अथवा

(ख) खण्ड (क) में संदर्भित वित्तीय लाभ शासन को लौटाने का अथवा यदि वे उसे भुगतान नहीं किये गये हैं तो उन्हें छोड़ने का और जिस लिए उपरोक्त वित्तीय लाभ अनुज्ञेय होते हैं, उनके बदले में सेवा की गणना कराने की सहमति देने का।

(2) उपनियम (1) के अन्तर्गत विकल्प, पेंशन योग्य सेवा मे स्थानान्तर के आदेश प्रसारित होने की तिथि से तीन माह की अवधि के भीतर अथवा यदि शासकीय सेवक उस दिन अवकाश पर है तो उसके अवकाश से लौटने के तीन माह के भीतर, जो भी बाद में हो, आडिट आफिसर को सूचित करते हुए कार्यालय प्रमुख को, संसूचित किया जायेगा।

(3) यदि उपनियम (2) मे सन्दर्भित अवधि के भीतर कार्यालय प्रमुख को कोई संसूचना प्राप्त नहीं होती है तो, यह मान लिया जायेगा कि शासकीय सेवक ने संविदा पर की गई सेवा के लिए उसे देय अथवा भुगतान कर दिये गये वित्तीय लाभों को अवधारित रखने का विकल्प दे दिया है।    GO TO TOP

 

नियम 17. पुनर्नियोजित शासकीय सेवक सेवक के प्रकरण में सेवानिवृत्ति - पूर्व सिविल सेवा की गणना – 

(1) शासकीय सेवक जो क्षतिपूरक पेंशन अथवा अशक्त-पेंन्शन अथवा क्षतिपूरक उपदान अथवा अशक्त उपदान पर सेवानिवृत्त होकर पुनर्नियुक्त किया जाता है और उस सेवा अथवा पद पर नियुक्त किया जाता है जिस पर ये नियम लागू होते हैं, तो वह विकल्प दे सकता है कि या तो-

(क) वह अपनी पूर्व सेवा के लिए स्वीकृत पेंशन का आहरण करना चालू रखेगा अथवा उपदान को प्रतिधारित रखेगा। ऐसे प्रकरण में उसकी पूर्व सेवा की गणना अर्हकारी सेवा के रूप में नहीं की जायेगी; अथवा

(ख) वह अपनी पेन्शन का आहरण करना बन्द कर देगा अथवा मृत्यु-सह-सेवा निवृत्ति उपदान सहित यदि कोई पेन्शन जो उसने अन्त: कालीन आहरित की है, जैसा भी प्रकरण हो, वापस कर देगा और सेवानिवृत्ति दिनांक और पुनर्नियुक्ति के बीच की अवधि को सम्मिलित करते हुये, पिछली सेवा की गणना करायेगा ।

(ग) भूतपूर्व विन्ध्यप्रदेश और भेापाल राज्यों के आवंटित शासकीय सेवकों के प्रकरणों में जिन्हें 1/11/1956 के पूर्व छंटनी के कारण पार्ट-सी राज्यों से सेवामुक्त कर दिया गया था और जिन्होंने अपनी पूर्व सेवा की गणना के लिए विकल्प दिया है, उपदान/मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति उपदान को वापस करने पर और पेन्शन आहरण करना बन्द करने पर (बेरोजगार रहने की अवधि छोड़कर) पुनर्नियुक्ति सेवा के साथ केवल सेवानिवृत्ति के पूर्व की अवधि पेन्शन के लिये संगणित की जायेगी । ऐसे प्रकरणों में अन्त: कालीन आहरित की गई पेन्शन वापस जमा करने की आवश्यकता नहीं होगी। उपदान की धनराशि भारत शासन को लौटाई जायेगी जो छंटनी के पूर्व की सेवा के लिए आनुपातिक पेन्शन सम्बन्धित दायित्व वहन करेगा।

टिप्प्णी – खण्ड (ग) केवल उन्हीं शासकीय सेवकों के प्रकरणों में लागू होगा जिन्हें 14/7/1970 से पहले पुनर्नियुक्त किया गया था और जिन्होंने निवृत्तिमान लाभों को, यदि कोई हों, वापस कर दिया है।

(2) (क) किसी सेवा में अथवा पद पर जैसा कि उपनियम (1) में संदर्भित है, नियुक्ति आदेश प्रसारित करने वाला प्राधिकारी ऐसे आदेश के साथ शासकीय सेवक से, उपनियम (1) के अन्तर्गत ऐसा आदेश पारित करने की तिथि से तीन माह के भीतर अथवा यदि वह उस दिन अवकाश पर है तो उसके अवकाश से लौटने के तीन माह के भीतर, जो भी बाद में हो लिखित में विकल्प देने के लिए कहेगा और खण्ड (ख) के प्रावधानों को उसके ध्यान में लायेगा ।

(ख) यदि खण्ड (क) में संदर्भित अवधि के भीतर विकल्प नहीं दिया जाता है तो, शासकीय सेवक ने उप नियम (1) के खण्ड (क) का चयन का विकल्प दिया है, ऐसा मान लिया जायेगा।

(3) उस शासकीय सेवक के प्रकरण में जो उपनियम (1) के खण्ड (क) के लिये विकल्प देता है, उसकी अनुवर्ती सेवा के लिये पेंशन अथवा उपदान उस सीमा के अधीन कि वह सेवा उपदान अथवा पेंशन का पूंजीगत मूल्य और मृत्यु सह-सेवानिवृत्ति उपदान, यदि कोई हो, जो शासकीय सेवक के अन्तिम सेवा निवृत्ति के समय यदि सेवा की दोनों अवधियों और पूर्व की सेवा के लिये पहले स्वीकृत किये गये निवृत्तिमान लाभों का मूल्य जोड़कर जो उसे देय होती, दोनों के अन्तर से अनधिक न होगी, देय है।

टिप्पणी -- पेन्शन का पूंजीगत मूल्य मध्यप्रदेश सिविल सेवा (पेंशन का कम्यूटेशन) नियम, 1996; जो दूसरे अथवा अन्तिम सेवा निवृत्ति के समय लागू हो, के अधीन विहित तालिका के अनुसार संगणित किया जायेगा।

(4) (क) जो शासकीय सेवक उप नियम (1) के खण्ड (ख) के लिये विकल्प देता है उसे उसकी पूर्व सेवा के लिये प्राप्त उपदान 36 (छत्तीस) से अनधिक मासिक किश्तों में, जिस माह में उसने विकल्प दिया है उस माह के अगले माह से पहली किश्त शुरू करते हुए लौटाना होगा।

(ख) पूर्व सेवा को अर्हकारी सेवा में संगणित करने का अधिकार पुनर्जीवित नहीं होगा जब तक कि पूरी धनराशि लौटा नहीं दी जाती ।

(5) उस शासकीय सेवक के प्रकरण में जिसने उपदान को लौटाने का चयन किया है, सम्पूर्ण धनराशि लौटाने के पूर्व ही दिवंगत हो जाता है तो; उपदान की न लौटाई गई धनराशि का समायोजन उसके द्वारा नाम निर्देशित कानूनी वारिसों को देय होने वाले मृत्यु-सह-सेवा निवृत्ति उपदान से किया जायेगा ।

नियम 17-क . नियम 17 में कुछ भी निहित होते हुए भी, कार्यालय समाप्ति के कारण व्यवधान अथवा स्थापना में कमी के द्वारा नियुक्ति की हानि अथवा सक्षम प्राधिकारी के आदेशों के अधीन शासन नियंत्रणाधीन स्थापना के अनअर्हकारी सेवा में स्थानान्तरण के कारण सेवा जो नियम 27 के उपनियम (1) (ई) के अधीन राजसात नहीं हई है, जैसा भी प्रकरण हो, उसकी अवधि के दौरान यदाकदा की गई सेवा के खण्डों सहित टूट की अवधि पेंशन हेतु गणना में ली जावेगी बशर्ते शासकीय सेवक ने पूर्व सेवा के लिए कोई सेवानिवृत्ति हितलाभ प्राप्त नहीं किया हो। GO TO TOP

 

नियम 18. सिविल रोजगार के पूर्व की गई सेना सेवा की गणना - 

(1) कोई शासकीय सेवक जो अधिवार्षिकी आयु पूर्ण करने के पूर्व किसी सिविल सेवा अथवा पद पर पुनर्नियुक्त होता है और जिसने पुनर्नियुक्ति के पूर्व अट्ठारह वर्ष की आयु पूर्ण करने के पश्चात् नियमित सेना की सेवा की थी तो, सिविल सेवा अथवा पद पर नियुक्ति होने पर वह विकल्प दे सकता है कि या तो –

(क) मिलिटरी पेन्शन आहरित करना चालू रखे अथवा मिलिटरी सेवा से सेवामुक्त होने पर प्राप्त उपदान को प्रतिधारित रखें। ऐसे प्रकरण में उसकी पूर्व मिलिटरी सेवा अर्हतादायी सेवा के रूप में संगणित नहीं की जायेगी, अथवा

(बी) क्या वह अपनी पेन्शन लेना बन्द करना चाहता है अथवा मृत्यु सह-सेवानिवृत्ति उपदान, यदि कोई हो, के साथ उपदान वापस करना चाहता है और पूर्व को इस मिलिटरी की सेवा अर्हकारी सेवा के रूप में जुड़वाना चाहता है। ऐसे प्रकरण में सेवा को इस प्रकार संगणित करने के लिये दी गई अनुमति भारत में अथवा उसके बाहर अन्य कहीं सेवा की इकाई अथवा विभाग में उसे सेवा से निमित्त की जाएगी जिसका भुगतान संचित कोष से किया जाना है अथवा जिसके लिये भारत शासन द्वारा निवृत्तिमान अंशदान प्राप्त किया जाता है और बीच मे प्राप्त की गई पेन्शन को वापस लौटाने की आवश्यकता नहीं होगी परन्तु पेन्शन के सत्वों को, जिन्हें पुनर्नियुक्ति होने पर वेतन निर्धारण के लिये विचार में नहीं लिया गया था, भारत शासन के रक्षा विभाग को वापस लोटाया जावेगा ।

(2) (क) किसी सेवा अथवा पद पर जैसा कि उपनियम (1) में सन्दर्भित है, नियुक्ति आदेश प्रसारित करने वाला प्नाधिकारी ऐसे आदेश के साथ शासकीय सेवक से, उस उपनियम के अन्तर्गत ऐसा आदेश पारित करने की तिथि से तीन माह के भीतर अथवा यदि वह अवकाश पर है तो उसके अवकाश से लौटने के तीन माह के भीतर, जो भी, बाद में हो, लिखित में विकल्प देने के लिये कहेगा और खण्ड (ख) के प्रावधानों को उसके ध्यान मे लायेगा।

टिप्पणी – उन व्यक्तियों के प्रकरणों जो 7-7-1969 को पेन्शन योग्य सिविल सेवा में थे और जिन्होंने 7/10/1969 में पहले सिविल पेन्शन के लिये उनकी आर्मी सेवा को गणित करने के लिये आवेदन किया था, इस नियम के अन्तर्गत विचार किया जायेगा ।

(ख) यदि खण्ड (क) में सन्दर्भित अवधि के भीतर विकल्प नहीं दिया जाता है तो, शासकीय सेवक ने उपनियम (1) के खण्ड (क) का चयन किया है, ऐसा मान लिया जायेगा।

(3) (क) शासकीय सेवक जिसने उपनियम (1) के खण्ड (ख) के लिये विकल्प किया है उसे पूर्व मिलिटरी सेवा के लिये प्राप्त के पेन्शन अथवा उपदान, 36 (छत्तीस) से अनधिक मासिक किश्तों में, जिस माह में उसने विकल्प दिया है उस माह के अगले माह से पहली किश्त शुरू करते हुये, लौटाना होगा।

(ख) पूर्व सेवा को अर्हतादायी सेवा में जुड़वाने का अधिकार पुनर्जीवित नहीं होगा, जब तक कि पूर्ण धनराशि लौटाई नहीं जाती ।

(4) उस शासकीय सेवक के प्रकरण में जिसने पेन्शन अथवा उपदान के लौटाने का चयन किया है, सम्पूर्ण धनराशि लौटाने के पूर्व दिवंगत हो जाता है तो पेंशन अथवा उपदान की न लौटाई गई धनराशि का समायोजन उसके परिवार को भुगतान होने वाले मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति उपदान से किया जावेगा ।

(5) जहाँ इस नियम के तहत शासन द्वारा मिलिटरी सेवा सिविल पेन्शन के लिये अर्हतदायी सेवा के एक भाग के रूप में जोड़ने का आदेश पारित किया गया हो तो, उस आदेश में मिलिटरी सेवा और सिविल सेवा के बीच सेवा का व्यवधान, यदि कोई हो, का दोष – मार्जन होना सम्मिलित माना जावेगा, परन्तु व्यवधान की अवधि सिविल पेंशन के लिये अर्हतादायी नहीं होगी।    GO TO TOP

 

नियम 19. द्वितीय विश्व युद्ध में की गई युद्ध सेवा की गणना – 

उन शासकीय सेवकों के प्रकरण में जो इस नियम के लागू होने की तिथि पर अथवा उसके पश्चात् सेवानिवृत्त अथवा दिवंगत हो जाते हैं और जो सिविल पदों पर नियुक्त किये गये थे और 9/10/69 के पूर्व आर्मी में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान की गई “युद्ध सेवा” को स्वयं अथवा अन्य मिलिटरी सेवा के योग के साथ संगणित करने के लिये आवेदन करते हैं, यदि ऐसी सेवा में नियुक्त शासन के अधीन किसी पेन्शन योग्य पद पर बगैर व्यवधान के होती है तो, सिविल पेन्शन के लिये सम्पूर्ण सेवा जोड़ने की अनुमति निम्नानुसार शर्तों के अधीन दी जा सकेगी, अर्थात्-

(i) सम्बन्धित शासकीय सेवक द्वारा मिलिटरी नियम के अधीन प्रश्नाधीन सेवा के सम्बध में कोई पेन्शन अर्जित नहीं की गई हो,

(ii) उन सेवाओं अथवा पदों के प्रकरण में जिसके सम्बंध में भरती के लिये न्यूनतम आयु निर्धारित की गई है उस आयु से कम की, की गई कोई मिलिटरी अथवा युद्ध की सेवा पेन्शन के लिये जोड़ने की अनुमति नहीं दी जावेगी,

(iii) भारत की सशस्त्र सेना में की गई “युद्ध सेवा” पेंशन के लिए जोड़ने की अनुमति दी जावेगी,

(iv) सम्बन्धित शासकीय सेवक से उसकी “युद्ध सेवा” के सम्बंध में उसे भुगतान किये गये बोनस अथवा युद्ध उपदान को वापस नहीं माँगा जावेगा। फिर भी, यदि शासकीय सेवक को युद्ध और युद्ध के पश्चात् की (दोनों) अवधियों को मिलाते हुए कोई निवृत्ति उपदान स्वीकृत किया गया है तो ऐसा उपदान निम्नलिखित खण्ड (vi) के अनुसार वापसी योग्य होगा,

(v) मिलिटरी/ युद्ध सेवा और सिविल सेवा के बीच का खण्डन स्वत: ही दोषमार्जित हुआ माना जावेगा बशर्ते कि खण्डित काल की अवधि एक वर्ष से अधिक नहीं हो । आपवादिक प्रकरणो में शासन के विशेष आदेशों के अधीन एक वर्ष से अधिक परन्तु तीन वर्ष से कम के खण्डन को भी दोषमार्जित किया जा सकेगा। फिर भी, खण्डन अवधि पेन्शन के लिये जोडी़ नहीं जावेगी।

(vi) लेखा संहिता जिल्द एक के परिशिष्ट तीन के भाग चार की कण्डिका-12 के अनुसार पेन्शनिक दायित्व “युद्ध सेवा” के लिये राज्य शासन और मिलिटरी सेवा के लिये रक्षा प्राधिकारीयों पर न्यायगत होता है । इसलिये, युद्ध सेवा अवधि के लिये निवृत्ति उपदान की वापसी और उसका आकलन राज्य शासन के राजस्व में किया जावे और मिलिटरी सेवा (युद्ध कालीन सेवा के अतिरिक्त) के लिये निवृत्ति उपदान की वापसी और उसका आकलन रक्षा प्राधिकारियों द्वारा किया जाना चाहिये ।

टिप्प्णी –

(1) इस नियम के प्रयोजनों के लिये द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान सिविल रक्षा विभाग में किसी व्यक्ति द्वारा की गई सेवा को “युद्ध सेवा” माना जावेगा।

(2) जहाँ कोई शासकीय सेवक साधारण पेंशन के लिये पात्र होने पर भी निर्योग्यता पेन्शन प्राप्त करता है और निर्योग्यता पेन्शन में साधारण पेन्शन के तत्व सम्मिलित हैं तो वह सिविल पेन्शन में युद्ध/मिलिटरी सेवा को जुड़वाने का हकदार नहीं है।    GO TO TOP

 

नियम 20. मिलिटरी सेवा (अनियमिति/बिल्कुल अस्थायी) और भारतीय राष्ट्रीय आर्मी में की गई सेवा की गणना – 

(1) जिन प्रकरणों में किसी व्यक्ति ने 7/10/1969 के पूर्व निरस्त मिलिटरी सेवा (अनियमिति/बिल्कुल अस्थाई), जो कि आर्मी, नेवी और एयरफोर्स की युद्ध सेवा के साथ न की गई हो, की संगणना के लिये आवेदन किया है, यदि ऐसी सेवा में नियुक्ति राज्य शासन के अधीन किसी पेंन्शन योग्य पद पर बिना व्यवधान के की गई है तो, सिविल पेंशन के लिए सम्पूर्ण सेवा जुड़वाने की अनुमति निम्नानुसार शर्तों के अधीन दी जा सकेगी, अर्थात्--

(i) सम्बन्धित शासकीय सेवक द्वारा मिलिटरी नियम के अधीन प्रश्नाधीन सेवा के सम्बन्ध में कोई पेन्शन अर्जित नहीं की गई हो ।

(ii) उन सेवाओं अथवा पदों के प्रकरण में जिसके सम्बंध में न्यूनतम आयु निर्धारित है वहाँ तक पहुंचने के पहले सिविल नियमों के अधीन पेन्शन के लिये सेवा संगणित नहीं की जाती है, उस आयु से कम की गई कोई मिलिटरी सेवा पेंशन के लिये संगणित करने के लिये अनुमति नहीं दी जावेगी।

(iii) यदि, शासकीय सेवक को ऐसी सेवा के लिये कोई निवृत्ति उपदान स्वीकृत किया गया है तो वैसा उपदान रक्षा प्राधिकारीयों को लौटाया जावेगा जो कि प्रश्नाधीन सेवा के लिये पेन्शनिक दायित्व को वहन करेगा।

(iv) जहाँ मिलिटरी सेवा (अस्थाई अथवा अनियमित) और राज्य शासन के अधीन पेन्शन योग्य योग्य सेवा में व्यवधान हो तो वह व्यवधान नियम 28 के प्रावधानों के अधीन दोषमार्जित किया जा सकेगा ।

(2) (क) निम्नलिखित वर्गों के व्यक्तियों द्वारा भारतीय राष्ट्रीय आर्मी में की गई सेवा को सिविल पेंशन में संगणना के उद्देश्यों के लिये राज्य शासन के कर्मचारियों को लागू नियम 19 के निबन्धनों के अनुसार युद्ध सेवा के रूप में माना जा सकेगा-

(i) व्यक्ति जो भारतीय राष्ट्रीय आर्मी में प्रविष्ट होने के पूर्व राज्य शासन के अधीन सिविल पदों को धारित करते थे और उसी पद पर पुन: स्थापित किये गये हैं।

(ii) व्यक्ति जो भारतीय राष्ट्रीय आर्मी में प्रविष्ट होने के पूर्व सिविल पद धारित किये हुये थे अथवा भारतीय सशस्त्र सेनाओं के सदस्य थे और राज्य शासन के अधीन किन्हीं अन्य सिविल पदों पर पुनर्नियुक्ति किये गये हैं ।

(iii) व्यक्ति जो भारतीय राष्ट्रीय आर्मी में साधारण जनता से अथवा सशस्त्र सेनाओं से संयोजित हुये थे और उसके पश्चात् राज्य शासन के अधीन सिविल पदों पर संगणित किये गये हैं।

(ख) भारतीय राष्ट्रीय आर्मी में की सेवा, प्रशासनिक प्राधिकारियों द्वारा जारी किये गये इस आशय के प्रमाण-पत्र के आधार पर कि क्लेम वास्तविक और सही है, स्वीकार की जावेगी । सम्बन्धित व्यक्तियों द्वारा प्रस्तुत अभिलेखों अथवा संपार्श्विक साक्ष्य आदि के प्रमाणीकरण के पश्चात् ही प्रशासनिक प्राधिकारी ऐसा प्रमाण-पत्र देवेंगे। उपर्युक्त वर्ग (iii) से सम्बंधित अभिलेखों के साथ उनके उस आर्मी में होने का संपार्श्विक साक्ष्य के प्रस्तुतीकरण का आग्रह किया जाना चाहिये ।    GO TO TOP

 

नियम 21. अवकाश पर व्यतीत समयावधि की गणना – सेवाकाल में लिये गये तथा उचित प्राधिकारी द्वारा स्वीकृत सभी प्रकार के अवकाश, जिसमें असाधारण अवकाश भी शामिल हैं, अर्हतादायी सेवा के रूप में जोड़े जाते हैं । जहाँ 120 दिनों से अधिक असाधारण अवकाश सक्षम प्राधिकारी द्वारा स्वीकृत नहीं किया गया वहाँ केवल 120 दिन ही अर्हतादायी सेवा के रूप में मान किया जावेगा और शेष अवधि पेंशन के लिये अर्हतादायी नहीं होगी ।

 

नियम 22. प्रशिक्षण पर व्यतीत समयावधि की गणना – शासन आदेश द्वारा विनिश्चित कर सकता है कि क्या शासकीय सेवा में नियुक्ति के तत्काल पूर्व किसी शासकीय सेवक द्वारा प्रशिक्षण में व्यतीत किया गया समय अर्हतादायी सेवा के रूप में जोड़ा जावेगा।

 

नियम 23. निलम्बन काल की गणना – आचरण से सम्बंधित जांच के लंबित रहने तक, किसी शासकीय सेवक द्वारा निलंबन के अधीन बिताये गये समय की गणना अर्हक सेवा के रूप में तब ही की जाएगी, जहां ऐसी जांच की समाप्ति पर उसे पूर्ण रूप से दोष मुक्त कर दिया गया हो या निलंबन को पूर्णत: अनुचित ठहराया गया हो, अन्य मामलों में निलंबन की कालावधि की गणना तब तक नहीं की जायेगी जब तक कि ऐसे मामलों को शासित करने वाले नियम के अधीन आदेश पारित करने के लिये सक्षम प्राधिकारी, उस समय अभिव्यक्त रूप से यह घोषित नहीं कर देता कि इसकी गणना उस सीमा तक की जाएगी, जैसा कि सक्षम प्राधिकारी घोषित करें ।    GO TO TOP

 

नियम 24. पदच्युति अथवा पृथक्करण पर सेवा का हरण – शासकीय सेवक की सेवा अथवा पद से पदच्युति अथवा पृथक्करण किए जाने पर उसकी पूर्व सेवा का स्वत: ही हरण हो जाता है ।

 

नियम 25. बहाल होने पर पूर्व सेवा की गणना – (1) शासकीय सेवक जिसे सेवा से पदच्युत, पृथक अथवा अनिवार्य सेवानिवृत्त कर दिया गया है परन्तु बाद में पुन:स्थापित कर दिया जाता है, तो वह पूर्व सेवा को जुड़वाने का हक रखता है।

(2) पदच्युति; पृथक्करण अथवा अनिवार्य सेवानिवृत्ति के कारण व्यवधान की अवधियाँ, पुन:स्थापित होने पर अर्हतादायी सेवा के रूप में जोड़ी जाती हैं ।

 

नियम 26. त्यागपत्र पर सेवा का हरण – (1) किसी सेवा अथवा पद से त्यागपत्र देने से पूर्व-सेवा का हरण हो जाता है:

परन्तु त्यागपत्र से पूर्व सेवा का हरण नहीं होगा, यदि ऐसा त्यागपत्र राज्य शासन के ही अधीन जहाँ सेवा अर्हतादायी होती है दूसरी कोई नियुक्ति, चाहे अस्थायी अथवा स्थायी हो, को उचित अनुमति से ग्रहण करने के लिये दिया गया है।

स्पष्टीकरण - विलोपित [वित्त विभाग अधिसूचना क्रमांक बी -25-6/95/PWC/IV, दिनांक 20-9-96 तथा दिनांक 20/10/95 से प्रभावशील]

(2) उपनियम (1) के परन्तुक के अन्तर्गत आने वाले प्रकरणों में सेवा में व्यवधान, जो भिन्न स्थानों पर दो नियुक्तियों के करणों से है, स्थानान्तर नियमों में स्वीकार्य कार्यग्रहणकाल से अनधिक, शासकीय सेवक की मुक्ति की तिथि पर उसे देय किसी प्रकार का अवकाश स्वीकृत कर अथवा जो अवधि शासकीय सेवक को देय अवकाश से पूरी नहीं होती है, की सीमा तक औपचारिक दोषमार्जन करके, पूरा किया जावेगा ।    GO TO TOP

 

नियम 27. सेवा में व्यवधान का प्रभाव – (1) निम्न प्रकरणों को छोड़कर, शासकीय सेवक का सेवा में व्यवधान से उसकी पूर्व सेवा का हरण हो जाता है ।

(क) अधिकृत अवकाश के कारण गैर हाजिरी,

(ख) जब तक अनुपस्थित व्यक्ति के पद की पूर्ति नहीं कर दी जाती तब तक अधिकृत अवकाश के अनुक्रम में अनधिकृत अनुपस्थिति,

(ग) निलम्बन, जहाँ बाद में चाहे उसी अथवा किसी भिन्न पद पर पुन: स्थापना कर दी जाती है, अथवा निलंबनाधीन रहते हुये जहाँ शासकीय सेवक की मृत्यु हो जाती है अथवा सेवानिवृत्त होने की अनुमति दे दी जाती है अथवा सेवानिवृत्ति कर दी जाती है,

(घ) सेवा से पदच्युति अथवा पृथक्करण के पश्चात् पेंशन योग्य सेवा में पुन:स्थापन,

(ङ) कार्यालय टूटने अथवा स्थापना में कमी के कारण नियुक्त न रहने अथवा सक्षम प्राधिकारी के आदेशानुसार गैर-अर्हतादायी सेवा की स्थापना में, जो शासन के नियंत्रणाधीन है, में स्थानान्तरण,

(च) किसी एक पद से दूसरे पद पर स्थानान्तरण के दौरान कार्यभार ग्रहण करने का समय;

(2) उपनियम (1) में की अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुये भी, पेंशन स्वीकृतकर्त्ता प्राधिकारी बिना अवकाश अनुपस्थितिकाल को आदेश द्वारा भूतलक्षी प्रभाव से असाधारण अवकाश में परिवर्तित कर सकता है। असाधारण अवकाश की ऐसी अवधि नियम 21 की शर्त अधीन पेन्शन के लिये अर्हतादायी होगी।    GO TO TOP

 

नियम 28. सेवा में व्यवधान का दोषमार्जन –

(1) सेवा पुस्तिका में प्रतिकूल विनिर्दिष्ट उपदर्शन के अभाव में, सरकार के अधीन किसी शासकीय सेवक द्वारा दो बार की गई सिविल सेवा के बीच में व्यवधान स्वयमेव दोषमार्जित माना जाएगा तथा व्यवधान पूर्व सेवा अर्हतादायी सेवा मानी जाएगी।

(2) उप नियम (1) में की कोई भी बात सेवा से त्याग पत्र देने, पदच्युत किए जाने या सेवा से हटाये जाने या हड़ताल में भाग लेने के कारण उत्पन्न व्यवधान को लागू नहीं होगी।

(3) उपनियम (1) में निर्दिष्ट व्यवधान की कालावधि अर्हतादायी सेवा के रूप में संगणित नहीं की जायगी ।    GO TO TOP

 

नियम 29. पच्चीस वर्ष की सेवा के पश्चात् सेवानिवृत्ति के पाँच वर्ष पूर्व अर्हतादायी सेवा का सत्यापन –

(1) किसी शासकीय सेवक के 25 वर्ष की सेवा पूर्ण कर लेने पर अथवा सेवानिवृत्ति अथवा अधिवार्षिकी, जो भी पहले हो, के पाँच वर्ष शेष रह जाने पर, कार्यालय प्रमुख तत्कालीन प्रभावशील नियमों के अनुसार उस शासकीय सेवक द्वारा की गई सेवा को सत्यापित और अर्हतादायी सेवा को अवधारित करेगा और इस प्रकार अवधारित की गई अर्हतादायी सेवा की अवधि फार्म 27 में संसूचित करेगा ।

(2) उपनियम (1) में किसी बात के होते हुये भी, जब कोई शासकीय सेवक किसी अस्थाई विभाग से एक-दूसरे विभाग में स्थानान्तरित होता है अथवा जहाँ वह पहले कार्यरत था, का उसके द्वारा उसके धारित पद अतिशेष घोषित होने के कारण विभाग बन्द हो जाये तो, ऐसी परिस्थितियाँ जब भी घटित हों, उसकी सेवा का सत्यापन किया जावेगा ।

परन्तुक (विलोपित)

(3) उपनियम (1) और (2) के अन्तगर्त किये गये सत्यापन को अन्तिम माना जावेगा और बाद में उन नियमों और शासनादेशों, जिन शर्तों के अधीन पेंशन के लिये सेवा अर्हतादायी होती है, में यदि कोई परिर्वतन होता है तो उन्हें छोड़कर, उसे पुन: खोला जावेगा ।

(4) नवीन मध्यप्रदेश में सम्मिलित होने वाले घटकों में 1/11/1956 के पूर्व की सेवा पुस्तिका में प्रशासनिक अधिकारीयों द्वारा प्रमाणीकृत प्रविष्टियों को जहाँ कहीं वे सामान्य कारोबार के अनुक्रम में की गयी हैं और उनकी सत्यता पर सन्देह न हो, बशर्ते कि उसमें कोई प्रक्षेप काटपीट, उपरिलेखन अथवा परिवर्तन न हो जो बाद में किये गये प्रतीत होते हों अथवा शंकास्पद प्रकृति के हों, देय पेंशन अथवा उपदान के लिये प्रमाणित सेवा अभिलेख के रूप में माना जावेगा |    GO TO TOP

 

अध्याय - 4
उपलब्धियाँ और औसत उपलब्धियाँ

 

नियम 30. उपलब्धियाँ – “उपलब्धियों” से अभिप्रेत है, मूलभूत नियमों के नियम 9 (21) में यथापरिभाषित वेतन (जैसा कि शासन द्वारा समय-समय पर पारित आदेश के द्वारा अवधारित किया जाय, महँगाई वेतन, यदि कोई हो, को शामिल करते हुये) जो शासकीय सेवक अपनी सेवानिवृत्ति के तत्काल पूर्व अथवा उसकी मृत्यु के दिनांक को, जैसा भी प्रकरण हो, प्राप्त कर रहा था।

स्पष्टीकरण – 

(1) उन शासकीय सेवकों के मामले में, जो मध्य मध्य प्रदेश पुनरीक्षित वेतनमान, 1990 अथवा मध्यप्रदेश पुनरीक्षित वेतनमान, 1998 अथवा यू.जी.सी. के वेतमानों में या अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा अथवा अखिल भारतीय सेवा वेतमान में वेतन आहरित कर रहे हैं, अभिव्यक्ति “परिलब्धियाँ” से आशयित है मूल वेतन जैसा मूलभूत नियमों के नियम 9 (21) (a) (i) में परिभाषित है, जो कि एक शासकीय सेवक उसकी सेवानिवृत्ति के तुरन्त पूर्व प्राप्त कर रहा था तथा इसमें यदि कोई हो, महंगाई वेतन तथा व्यक्तिगत सेवक उसकी सेवानिवृत्ति के तुरंत पूर्व प्राप्त कर रहा था तथा इसमें यदि कोई हो, मंहगाई वेतन तथा व्यक्तिगत वेतन भी शामिल होगा, जैसा कि समय-समय पर राज्य सरकार के आदेश द्वारा अभिनिर्धारित किया जावे ।

(2) शीघ्रलेखकों का द्विभाषी भत्ता सेवा निवृत्ति परिलाभों की संगणना हेतु परिलब्धियों के समान समझा जायगा ।

(3) पदोन्नति पर उच्च वेतनमान के बदले में विशेष वेतन, यदि कोई हो, प्राप्त किया गया है, सेवानिवृत्ति लाभों के गणन हेतु ‘उपलब्धियों’ के समान हिसाब में लिया जाएगा।]

(4) चिकित्सा अधिकारियों/चिकित्सा शिक्षकों को निजी प्रेक्टिस करने के बदले स्वीकृत व्यवसाय निषेध भत्ता सेवानिवृत्ति लाभों की गणना के लिए निम्नलिखित शर्तों के अध्यधीन रहते हुए उपलब्धियों के रूप में माना जाएगा:

(क) सेवानिवृत्ति/मृत्यु की तारीख के ठीक पूर्व के अन्तिम 120 मास के दौरान आहरित व्यवसाय निषेध भत्ता औसत उपलब्धियों के निर्धारण के लिए हिसाब में लिया जाएगा।

(ख) ऐसे मामलों में जहां सेवानिवृत्ति/मृत्यु की तारीख के ठीक पूर्व के अन्तिम 120 मास के दौरान यदि व्यवसाय निषेध भत्ता भिन्न-भिन्न समयावधि पर आहरित किया गया है तथा इस प्रकार की समयावधियों का कुल योग 120 मास से कम है, तब व्यवसाय निषेध भत्ता का 120वां भाग सेवानिवृत्ति लाभों की गणना के लिए हिसाब में लिया जाएगा ।

टिप्प्णी 1 – यदि कोई शासकीय सेवक, अपनी सेवानिवृत्ति अथवा मृत्यु के तत्काल पूर्व सेवा के दौरान अवकाश पर कर्तव्य से अनुपस्थित रहा है जिसके लिए अवकाश वेतन देय है अथवा निलंबित होने से बिना सेवा राजसात बहाल किया गया है, तो परिलब्धियां जो वह आहरित करता यदि वह कर्त्तव्य से अनुपस्थित अथवा निलंबित नहीं होता, इस नियम के प्रयोजनार्थ परिलब्धियां होंगी।

टिप्पणी 2.- यदि कोई शासकीय सेवक, अपनी सेवा निवृत्ति अथवा मृत्यु के तत्काल पूर्व सेवा के दौरान असाधारण अवकाश पर कर्तव्य से अनुपस्थित रहा है अथवा निलंबित रहा है, जिसकी समयावधि सेवा के समान गणन नहीं की जाती है, उपलब्धियां जो उसने ऐसे अवकाश पर प्रस्थान करने के तत्काल पूर्व अथवा निलंबनाधीन रहने के कारण आहरित की हैं, इस नियम के प्रयोजनार्थ उपलब्धियां होंगी ।

टिप्प्णी 3 - यदि कोई शासकीय सेवक, अपनी सेवा निवृत्ति अथवा मृत्यु के तत्काल पूर्व, अर्जित अवकाश पर था तथा वेतनवृद्धि जिसे रोका नहीं गया था, अर्जित की है, ऐसी वेतन वृद्धि, यद्यपि वास्तविक रूप से रूप आहरित नहीं की गई है, उसके उपलब्धियों का हिस्सा होगा; बशर्ते कि 120 दिनों से अनधिक अर्जित अवकाश के दौरान अथवा जहां ऐसा अवकाश 120 दिनों से अधिक का था प्रथम 120 दिन के अर्जित अवकाश के दौरान वेतनवृद्धि अर्जित कर ली गई हो ।

टिप्पणी 4- बाहृा सेवा में रहते हुये शासकीय सेवक द्वारा आहरित वेतन उपब्धियों के रूप में नहीं माना जायेगा, परन्तु यदि वह बाहृा सेवा में नहीं गया होता तो शासन के अधीन उसके द्वारा जो वेतन आहरित किया जाता, केवल वही उपलब्धियों के रूप में माना जायेगा।

टिप्प्णी 5 – यदि पेंशनर शासकीय सेवा में पुनर्नियुक्त किया जाता है और उसने नियम 17 के उपनियम (1) के खण्ड (क) अथवा नियम 18 के उपनियम (1) के खण्ड (क) के निबंधनों के अनुसार अपनी पूर्व सेवा की पेंशन जो कायम रखने का चयन किया है और पुनर्नियुक्ति पर जिसका वेतन उस धनराशि तक कम किया गया है जो उसकी पेंशन से अधिक नहीं है तो, पेंशन का वह भाग जिसके द्वारा उसके वेतन को कम किया गया है, उपलब्धियों के रूप मे माना जायेगा।

टिप्प्णी 6- शासन के किसी विभाग स्वायत्त निकाय के रूप में सम्परिवर्तित होने के फलस्वरूप यदि किसी शासकीय कर्मचारी को उस निकाय में स्थानान्तरित किया जाता है और इस प्रकार स्थानान्तरित शासकीय कर्मचारी यदि शासन के नियमों के अधीन निवृत्ति लाभों को प्रतिधारित रखने के लिये विकल्प देता है तो उस स्वायत्त निकाय के अन्तर्गत प्राप्त उपलब्धियाँ इस नियम के उद्देश्यों के लिये उपलब्धियाँ मानी जायेंगी।

टिप्पणी 7- ऐसे शासकीय सेवक के मामले में, जिसका वेतन प्रोफार्मा पदोन्नति के कारण या न्यायिक निर्णय या अन्य किसी कारण से काल्पनिक रूप से नियत किया गया है, तो इस प्रकार नियत किया गया वेतन उसकी उपलब्धियों के रूप में माना जायगा ।    GO TO TOP

 

नियम 31. औसत उपलब्धियाँ - 

(1) किसी शासकीय सेवक द्वारा उसकी सेवा के अन्तिम 10 माह के दौरान आहरित उपलब्धियों के सन्दर्भ में औसत उपलब्धियाँ अवधारित की जायेंगी ।

टिप्प्णी 1.- यदि सेवा के अंतिम 10 महीनों दौरान शासकीय सेवक ऐसे अवकाश पर रहा है जिसमें अवकाश वेतन देय है, अथवा निलंबित होने से बिना सेवा राजसात होने के बहाल किया जाता है, परिलब्धियां जो वह आहरित करता यदि वह कर्त्तव्य पर होता अथवा निलंबित होने से अनुपस्थित नहीं होता, औसत उपलब्धियों के निर्धारण हेतु हिसाब में ली जावेंगी।

टिप्पणी 2.- यदि सेवा के अंतिम 10 महीनों के दौरान शासकीय सेवक असाधारण अवकाश पर कर्त्तव्य से अनुपस्थित रहा है अथवा निलम्बनाधीन रहा है जिसकी समयावधि सेवा के समान गणन नहीं की जाती है, अवकाश अथवा निलंबन की उक्त अवधि औसत परिलब्धियों की संगणना में छोड़कर दी जावेगी तथा उतनी अवधि 10 माह के पहले की जोड़ ली जावेगी ।

टिप्प्णी 3.- उस शासकीय सेवक के मामले में जो अपनी सेवा के अंतिम 10 महीनों के दौरान अर्जित अवकाश पर था तथा इसमें वेतनवृद्धि अर्जित करता है जिसे रोका नहीं गया था, ऐसी वेतनवृद्धि तथापि वास्तविक रूप से आहरित नहीं की गई, औसत परिलब्धियों में शामिल की जावेगी; बशर्ते कि वेतनवृद्धि 120 दिन से अनधिक अवकाश अवधि के दौरान अथवा जहां ऐसा अवकाश 120 दिन से अधिक का था तो प्रथम 120 दिन के दौरान अर्जित कर ली गई हो ।

(2) सामान्य वेतन पुनरीक्षण के नौ महीनों के अन्दर सेवा निवृत्त हो रहे शासकीय सेवक के मामले में, वित्त विभाग औसत परिलब्धियों के निर्धारण हेतु विशेष आदेश जारी करेगा; बशर्ते कि ऐसा विशेष आदेश उन शासकीय सेवको के लिए इन नियमों के उपबंधों से कम अनुकूल नहीं होगा।    GO TO TOP

 

अध्याय - 5
पेंशनों के वर्ग और उनकी स्वीकृति विनियमित करने वाली शर्तें

 

नियम 32. अधिवार्षिकी पेंशन – अधिर्वाषिकी पेंशन उस शासकीय सेवक को स्वीकृत की जाएगी जो अपनी सेवानिवृत्ति की अनिवार्य आयु को प्राप्त करने पर सेवानिवृत्त होता है।

 

नियम 33. निवृत्तिमान पेंशन - 

(1) इन नियमों के नियम 42 अथवा मूलभूत नियम 56 के प्रावधानों के अनुसार कोई शासकीय सेवक अनिवार्य सेवानिवृत्ति की आयु पर पँहुचने के पूर्व सेवानिवृत्त होता है अथवा सेवानिवृत्त किया जाता है, को निवृत्तिमान पेंशन स्वीकृत की जावेगी ।

(2) जो शासकीय सेवक तीन माह का नोटिस अथवा उपर्युक्त उप नियम (1) के अधीन तीन माह से कम अवधि के लिये वेतन और भत्ते प्राप्त करता है वह ऐसी अदायगी पर तत्काल सेवानिवृत्त हो जायेगा और इसलिये उसे इस अतिरिक्त अवधि के लिये पेंशन भी मिलेगी।   GO TO TOP

 

नियम 34. निगम, कम्पनी अथवा निकाय में अथवा उसके अधीन संविलयन होने पर पेंशन - शासकीय सेवक जिसे शासन द्वारा पूर्णत: अथवा आंशिक रूप से नियंत्रित निगम अथवा कम्पनी में अथवा उसके अधीन अथवा शासन द्वारा नियंत्रित अथवा वित्तीय सुविधा प्राप्त निकाय में अथवा उसके अधीन किसी सेवा अथवा पद में संविलयन होने की अनुमति दी गई है, यदि ऐसा संविलयन जनहित में घोषित किया गया हो तो, उसे संविलयन के दिनांक से अथवा उसे लागू होने वाले ऐसे दिनांक से, जो शासन के आदेशों के अनुसार, अवधारित किया जाये, वह निवृत्तिमान पेन्शन पर सेवा निवृत्त हुआ माना जायेगा और निवृत्तिमान लाभों को जिसका उसने चयन किया है अथवा चयन किया हुआ माना गया है प्राप्त करने का हकदार होगा :

परन्तु नियम 43 के उप नियम (5) के उपबंध इस नियम के अधीन पेंशन निर्धारण के उद्देश्य के लिये लागू नहीं होंगे।   GO TO TOP

 

नियम 35. अशक्त पेन्शन – (1) यदि कोई शासकीय सेवक शारीरिक अथवा मानसिक दुर्बलता, जो स्थायी रूप से उसे सेवा के लिये अशक्त बनाती है, के कारण सेवा से निवृत होता है तो उसे अशक्त पेन्शन स्वीकृत की जा सकती है।

(2) अशक्त पेन्शन के लिए आवेदन करने वाले शासकीय सेवक को अशक्तता का प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करना होगा। इसके लिये निम्नलिखित चिकित्सा प्राधिकारी सक्षम होंगे—

(क) राजपत्रित शासकीय सेवक के प्रकरण में-चिकित्सा मंडल।

(ख) अन्य प्रकरणों में सिविल सर्जन अथवा डिस्ट्रिक्ट मेडिकल आफीसर अथवा उसके समतुल्य हैसियत का चिकित्सा अधिकारी।

टिप्प्णी 1.-- सेवा के आयोग्य बाबत चिकित्सा प्रमाण-पत्र तब तक स्वीकृत नहीं किया जाना चाहिये, जब तक आवेदनकर्ता द्वारा यह लिखित में व्यक्त नहीं किया जाता है, जिसमें यह बताया गया हो कि चिकित्सा प्राधिकारी के समक्ष उपस्थित होने के आवेदक के इरादे की जानकारी उसके कार्यालय अथवा विभाग प्रमुख की है। जहाँ आवेदक सेवारत है वहाँ के कार्यालय अथवा विभाग प्रमुख द्वारा चिकित्सा प्राधिकारी को शासकीय अभिलेखों से प्रकट होने वाली आवेदक की आयु का विवरण भी दिया जायेगा। यदि आवेदक की सेवा पुस्तिका रखी गई है तो उसमें अभिलिखित आयु की जानकारी भेजी जाये ।

टिप्प्णी 2.-- जब कभी किसी महिला उम्मीदवार का परीक्षण किया जाना हो तो मेडिकल बोर्ड के सदस्य के रूप एक महिला डॅाक्टर को सम्मिलित किया जावेगा।

टिप्पणी 3.-- उपनियम (2) में वर्णित चिकित्सा प्राधिकारी द्वारा स्वीकृत किये गये चिकित्सा प्रमाण-पत्र का प्ररूप फार्म 22 के अनुरूप होगा।

टिप्पणी 4.— उपनियम (2) में वर्णित चिकित्सा प्रधिकारी ने जहाँ शासकीय सेवक को, जैसा कि वह कार्य करता था उसकी अपेक्षा कम श्रमसाध्य स्वरूप के कार्य को करने के लिये आगामी सेवा करने के योग्य घोषित किया है तो उसे निचले पद पर नियुक्त किया जायेगा, बशर्ते कि वह इस प्रकार नियुक्त कर दिये जाने का इच्छुक हो, और यदि उसे निचले पद पर नियुक्त करने का उपयुक्त पद न हो तो उसे अशक्त पेन्शन के लिये मान्य किया जायेगा ।

टिप्पणी 5.— (क) यदि असमर्थता का सीधा सम्बंध शासकीय सेवक की अनियमित अथवा असंयमित आदतों के कारण से है तो पेन्शन स्वीकृतकर्ता प्राधिकारी के आदेशेां के अधीन कोई अशक्त पेंशन स्वीकृत नहीं की जायेगी ।

(ख) यदि असमर्थता का सीधा सम्बंध उन आदतों से नहीं परन्तु उनमें त्वरित अथवा गुरूतर वृद्धि हुई है तो इस कारण कितनी कमी की जावे यह पेन्शन स्वीकृतकर्ता प्राधिकारी को विनिश्चय करना होगा।

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नियम 36. क्षतिपूरक पेन्शन - (1) यदि किसी शासकीय सेवक का, उसके पद की समाप्ति के कारण सेवामुक्त करने का चयन किया गया है, तो जब तक वह किसी दूसरे पद पर नियुक्त नहीं किया जाता, जिसकी शर्तें सेवामुक्त करने वाले प्राधिकारी द्वारा कम से उन शर्तों के बराबर मान्य नहीं की जाती हैं, तो उसको विकल्प देना होगा –

(क) कि उसके द्वारा की गई सेवा के बदले जिसके लिये वह पात्र होता क्षतिपूरक पेंशन लेने का, अथवा

(ख) ऐसे वेतन पर जैसा कि प्रस्तावित किया जाय, कोई अन्य नियुक्ति स्वीकार करने का और पेन्शन के लिये अपनी पूर्व सेवा को जुड़वाने का।

(2) (क) (i) स्थायी शासकीय सेवक को उसके स्थायी पद की समाप्ति पर उसकी सेवायें समाप्त किये जाने पर कम से कम तीन माह मान नोटिस दिया जायेगा।

(ii) अस्थायी नियोजन में शासकीय सेवक को, उसका अस्थायी पद अथवा स्थायी पद जिस पर वह बिना किसी स्थायी होते हुए भी स्थानापन्न था, की समाप्ति पर उसकी सेवा समाप्त करने के पूर्व कम से कम एक माह का नोटिस दिया जायेगा।

(ख) जहां खण्ड (क) के उपबंध के अनुसार नोटिस नहीं दिया गया है और शासकीय सेवक को, जिस तिथि से उसकी सेवा समाप्त की गई है और अन्य कोई रोजगार नहीं दिया गया है तो उसे अपेक्षित समयावधि का वास्तविक नोटिस दिये जाने की समयावधि में रही कमी के लिये उससे अधिक नहीं होने वाले वेतन और भत्तों की धनराशि का भुगतान उसकी सेवाएं समाप्त करने वाले सक्षम प्राधिकारी स्वीकृत कर सकेगा ।

(ग) उस समयावधि के लिये; जिसके सम्बन्ध मेंउसे नोटिस के बदले में वेतन और भत्ते दिये गये हैं, न तो क्षतिपूरक पेंशन मिलेगी और न ही ऐसी समयावधि पेंशन के लिये अर्हतादायी होगी ।

(3) जिस प्रकरण में शासकीय सेवक को समयावधि में रही कमी के लिये वेतन और भत्ते स्वीकृत किये गये है और जिस समयावधि के उसने वेतन और भत्ते प्राप्त किये हैं, उस समयावधि की समाप्ति के पूर्व ही यदि उसे पुन: रोजगार में रख लिया जाता है तो उसके द्वारा ऐसे प्राप्त किये गये वेतन और भत्ते पुन:रेाजगार में रखे जाने के बाद लौटाना होंगे।

(4) शासकीय सेवक, जो क्षतिपूरक पेंशन का पात्र है, उसके स्थान पर शासन के अधीन कोई अन्य नियुक्ति स्वीकार कर ले और तदन्तर किसी अन्य वर्ग की पेन्शन प्राप्त करने का पात्र हो जाय तो, ऐसी पेन्शन की धनराशि, यदि उसने नियुक्ति स्वीकार न की होती तो जितनी क्षतिपूरक पेंशन के लिये वह दावेदार होता, से कम नहीं होगी ।   GO TO TOP

 

नियम 37. अनिवार्य सेवा निवृत्ति पेन्शन – (1) शास्ति के रूप में सेवा से अनिवार्य सेवा- निवृत्त शासकीय सेवक को, वैसी शास्ति अधिरोपित करने वाले सक्षम प्राधिकारी द्वारा, पेंशन अथवा उपदान अथवा दोनों, दो तिहाई से कम नहीं और उसे देय अनिवार्य सेवा- निवृत्ति के दिनांक पर अनुज्ञेय सम्पूर्ण क्षतिपूरक पेंशन अथवा उपदान अथवा दोनों से, अनधिक, की दर से स्वीकृत किये जा सकेंगे।

(2) जब कभी किसी शासकीय सेवक के प्रकरण में राज्यपाल द्वारा (चाहे मूल, अपीलीय अथवा पुनर्विलोकन की शक्तियों का प्रयोग करते हुये) इन नियमों के अधीन स्वीकार्य पूर्ण क्षतिपूरक पेन्शन से कम पेन्शन देने का आदेश पारित किया जाये तो ऐसा आदेश पारित करने के पूर्व लोक सेवा आयेाग से परामर्श लिया जायेगा।

स्पष्टीकरण .– इन नियमों में “पेंशन” में “ उपदान ” (ग्रेच्युटी) शामिल है।

[(3) उपनियम (1) अथवा उपनियम (2) जैसा भी मामला हो, के अधीन स्वीकृत अथवा पुरस्कृत पेंशन न्यूनतम पेंशन जैसा कि शासन द्वारा समय-समय पर निर्धारित की जावे, से कम नहीं होगी ।  GO TO TOP

 

नियम 38. अनुकम्पा भत्ते – (1) शासकीय सेवक जिसे सेवा से पदच्युत अथवा पृथक् किया जाता है तो वह अपनी पेंशन और उपदान से वंचित रहेगा:

परन्तु यदि प्रकरण विशेष विचार के योग्य है तो पदच्युत अथवा पदमुक्त करने वाला सक्षम प्राधिकारी अनुकम्पा भत्ते स्वीकृत कर सकेगा जो क्षतिपूरक पेंशन पर सेवानिवृत्त होने पर मिलने वाली पेंशन या उपदान या दोनों की राशि के दो-तिहाई से अधिक नहीं होगा ।

(2) उपनियम (1) के प्रावधानों के तहत स्वीकृत अनुकम्पा भत्ता नियम 43 के उपनियम (5) में निर्धारित सीमा से कम नहीं होगा।   GO TO TOP

 

अध्याय - 6
1933 के पूर्व के प्रवेशार्थियों के पेंशन की धनराशि का विनियमन

 

नियम 39. क्षेत्र - चतुर्थ श्रेणी के शासकीय सेवकों को छोड़कर, शासकीय सेवक जो 30 नवम्बर, 1933 को राज्य सरकार अथवा भारत सरकार या सरकार द्वारा नियंत्रित किसी स्थानीय निधि के अधीन पेंशन योग्य स्थाई पद पर धारणाधिकारी या निलंबित धारणाधिकार रखता है तथा जिसका पहली सितम्बर, 1950 को पूर्व मध्यप्रदेश राज्य के अधीन पेंशन योग्य किसी स्थाई पद पर धारणाधिकार अथवा निलंबित धारणाधिकार था तथा जिसने मध्यप्रदेश न्यू पेंशन नियम, 1951 के नियम 8 (1) के खण्ड (ख) अथवा खण्ड (ग) के उपबंधों के अधीन पेंशन अथवा उपदान के लिए विकल्प दिया है, पर इस अध्याय के उपबन्ध लागू होंगे।

 

नियम 40. पेन्शन नियमों का लागू होना - 

(1) जिस शासकीय सेवक ने मध्यप्रदेश न्यू पेंशन रूल्स, 1951 के नियम 8 (1) के खण्ड (ख) के अधीन विकल्प दिया है, पहली सितम्बर, 1950 के पूर्व राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर संशोधित जो पेंशन नियम उसे लागू थे, वह उसको लागू होंगे और इन नियमों की कुछ भी बात उन लागू नहीं होगी ।

(2) शासकीय सेवक जिसने मध्यप्रदेश न्यू पेन्शन, 1951 के नियम 8 (1) के खण्ड (ग) के अधीन विकल्प दिया है वह (निम्म्नलिखित का) पात्र होगा –

(ए) नियम 44 के अधीन स्वीकार्य तथा शासकीय सेवक की सेवानिवृत्ति के समय लागू मध्यप्रदेश सिविल पेंशन (कम्यूटेशन) नियम, 1976 के अन्तर्गत विहित सारणी के अनुसार संगणित मृत्यु- सह- सेवानिवृत्ति- उपदान के बराबर पेंशन (अतिरिक्त पेन्शन छोड़कर) से घटाकर 1 सितम्बर, 1950 के पूर्व से उसे लागू वर्तमान नियमों के अधीन अतिरिक्त पेन्शन को शामिल करते हुये पेंशन।

(बी) ऐसा शासकीय सेवक, जिसने 17 अगस्त, 1966 को अथवा उसके पश्चात् नियम 47 अथवा नियम 48 के अधीन विकल्प दिया है, को परिवार पेंशन की पात्रता होगी ।   GO TO TOP

 

अध्याय - 7
1933 के बाद के प्रवेशार्थियों के पेंशन की धनराशि का विनिमय

 

नियम 41. क्षेत्र -- इस अध्याय के प्रावधान उन शासकीय सेवकों को लागू होंगे—

(क) जिनका 30 नवम्बर, 1933 को पूर्व मध्यप्रदेश शासन अथवा भारत शासन, अथवा शासन द्वारा नियंत्रित किसी स्थानीय निधि की सेवा में किसी पेंशन योग्य स्थाई पद पर धारणाधिकार था अथवा निलंबित धारणाधिकार था या जिन्होंने मध्यप्रदेश न्यू पेंशन रूल्स, 1951 के नियम 8 के उपनियम का (1) के खण्ड (ख) अथवा खण्ड (ग) के लिये विकल्प नहीं दिया था; तथा

(ख) वे समस्त शासकीय सेवक जिनके प्रकरण उपर्युक्त खण्ड (क) के अधीन नहीं आते ।   GO TO TOP

 

नियम 42. 20/25 वर्ष की अर्हता सेवा के पूर्ण होने पर सेवानिवृत्ति : 1 (क) सरकारी सेवक 20 वर्ष की अर्हता सेवा पूर्ण करने के पश्चात् किसी भी समय नियुक्ति प्राधिकारी को प्ररूप 28 में उस तारीख से, जिसको कि वह सेवानिवृत्ति होना चाहता है, कम से कम एक मास की पूर्व सूचना (नोटिस) देकर या उसके द्वारा एक मास की कालावधि के लिए या उस कालावधि के लिए, जिसके लिए उसके द्वारा वास्तविक रूप से दी गई सूचना एक मास से कम होती हो, वेतन तथा भत्तों का उसके द्वारा भुगतान करने पर, सेवानिवृत्ति हो सकेगा:

परन्तु यह उपनियम निम्नलिखित विभागों के प्रत्येक के सामने कोष्ठकों में वर्णित सरकारी सेवकों के लागू नहीं होगा, जब तक कि उन्होने 25 वर्ष की अर्हत सेवा पूर्ण न कर ली हो:

(क) लोक स्वास्थ एवं परिवार कल्याण विभाग [चिकित्सा, सह-चिकित्सा(पैरा-मेडिकल) और तकनीकी स्टाफ];

(ख) चिकित्सा शिक्षा विभाग [अध्यापन स्टॉफ, सह-चिकित्सा और (पैरा मेडिकल) और तकनीकी स्टाफ];

(ग) श्रम विभाग कर्मचारी राज्य बीमा सेवाओं का चिकित्सा, सह-चिकित्सा (पैरा मेडिकल) तथा तकनीकी (टेक्नीकल) स्टॉफ;

परन्तु यह और कि, ऐसा सरकारी सेवक, नियुक्ति प्राधिकारी की लिखित में पूर्व अनुज्ञा के विना, निम्नलिखित परिस्थितियों के अधीन, सेवानिवृत्त होने के लिए अनुज्ञात नहीं किया जाएगा-

(एक) जहां सरकारी सेवक निलंबन के अधीन हों;

(दो) जहां सरकारी सेवक के विरूद्ध अनुशासनिक कार्रवाई संस्थित करना नियुक्ति प्राधिकारी के विचाराधीन हों:

परन्तु यह भी कि, यदि, नियुक्ति प्राधिकारी ने सरकारी सेवक द्वारा दी गई सूचना की तारीख से छह मास के भीतर द्वितीय परन्तुक के खण्ड (दो) के अधीन कोई विनिश्चय, ऐसी अनुशासनिक कार्रवाई के संबंध में नहीं किया है, तो यह समझा जाएगा कि नियुक्ति प्राधिकारी ने ऐसे सरकारी सेवक को छह मास की कालावधि की समाप्ति के पश्चात् की तारीख को सेवानिवृत्त होने के लिए अनुज्ञात कर दिया है।]

(ख) नियुक्ति प्राधिकारी , राज्य सरकार के अनुमोदन से, लोकहित में किसी सरकारी सेवक से, उसकी 20 वर्ष की अर्हता सेवा पूर्ण करने के पश्चात् या उसके द्वारा 50 वर्ष की आयु प्राप्त करने के पश्चात्, इनमें से जो भी पूर्वतर हो, किसी भी समय, प्ररूप 29 में तीन मास की सूचना (नेाटिस) उसे देकर सेवानिवृत्त कर सकेगा:

परन्तु ऐसे सरकारी सेवक को तत्काल सेवानिवृत्त किया जा सकेगा और ऐसी सेवानिवृत्ति पर सरकारी सेवक, ऐसी राशि का जो उसके वेतन तथा भत्तों की रकम के बराबर हो, यथास्थिति, सूचना की कालावधि के लिए उसी दर पर, जिस पर वह, सेवानिवृत्ति से ठीक पूर्व आहरित कर रहा था या उस कालावधि के लिए जिस तक ऐसी सूचना (नोटिस) तीन मास से कम होती हो, दावा करने का हकदार होगा।

टिप्प्णी 1- उपरोक्त ख्ण्ड (क) के अधीन किसी सरकारी सेवक के द्वारा सेवानिवृत्ति की सूचना देने के पूर्व, नियुक्ति प्राधिकारी को निर्देश के द्वारा स्वयं का यह समाधान करना चाहिए कि उसने पेंशन के लिए यथास्थिति 20 या 25 वर्ष की अर्हता सेवा वास्तव में पूर्ण कर ली है। इसी प्रकार, नियुक्ति प्राधिकारी के किसी सरकारी सेवक को उपरोक्त ख्ण्ड (ख) के अधीन सेवानिवृत्ति की सूचना देते समय स्वयं का भी यह समाधान करना चाहिए कि सरकारी सेवक ने वास्तव में 20 वर्ष की अर्हता सेवा पूर्ण कर ली है या उसने 50 वर्ष की आयु प्राप्त कर ली है।

टिप्प्णी 2- यथास्थिति, सूचना की एक मास या तीन मास की कालावधि या सूचना की कालावधि, जो तीन मास से कम हो, की संगणना उस तारीख से की जाएंगी, जिसको वह हस्ताक्षरित की गई हो और रजिष्ट्रीकृत डाक के अधीन संसूचित की गई हो। जहां सूचना व्यक्तिश: तामील की गई हो वहां कालावधि की संगणना, उसकी प्राप्ति की तारीख से की जाएगी ।

टिप्प्णी 3- सरकारी सेवक को, आवेदन प्रस्तुत करने पर सूचना की कालावधि के दौरान ऐसा अवकाश मंजूर किया जाएगा, जिसके लिए वह नियमों के अनुसार हकदार हो:

परन्तु सूचना की कालावधि की समाप्ति के परे कोई अवकाश मंजूर नहीं किया जाएगा।

टिप्प्णी 4- उस कालावधि के लिए पेंशन का भुगतान जिसके लिए किसी सरकारी सेवक को सूचना के बदले में वेतन तथा भत्तों का भुगतान किया गया हो, इन नियमों के नियम 33 के उपनियम (2) के उपबंध द्वारा विनियमित किया जाएगा।

(2) सरकारी सेवक जिसने, उपनियम (1) के खण्ड (क) के अधीन सेवानिवृत्त होने का चयन कर लिया है तथा नियुक्ति प्राधिकारी को इस आशय की आवश्यक सूचना दे दी है, तदन्तर, मामले की परिस्थितियों पर विचार कर, ऐसे प्राधिकारी की विशिष्ट अनुमति के बिना, उसके द्वारा दी गई सूचना वापस लेने से प्रवारित किया जाएगा:

परन्तु वापसी का निवेदन, उसकी सेवानिवृत्त्िा की आशयित तारीख से पूर्व होगा ।

(3) जहां सेवानिवृत्ति की सूचना, नियुक्ति प्राधिकारी द्वारा सरकारी सेवक पर तामील की गई हो, वह सूचना वापस ली जा सकेगी, यदि पर्याप्त कारणों से ऐसा वांछित हो, बशर्ते कि संबंधित सरकारी सेवक सहमत हो।

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नियम 42-क . स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति पर अर्हता सेवा को जोड़ना : 

(1) अनुज्ञा सहित या अनुज्ञा के बिना, नियम 42 के उपनियम (1) के खण्ड (क) के अधीन सेवानिवृत्त होने वाले सरकारी सेवक की आशयित सेवानिवृत्त की तारीख पर जो अर्हता सेवा हो, उसमें ऐसी कालावधि की, जो पांच वर्ष से अधिक नहीं हो इस शर्त के अध्याधीन रहते हुए वृद्धि की जाएगी कि सरकारी सेवक द्वारा की गई कुल अर्हता सेवा किसी भी मामले में तैंतीस वर्ष से अधिक नहीं हो और जो अधिवार्षिकी की तारीख से परे नहीं हो।

(2) उपनियम (1) के अधीन उसकी अर्हता सेवा में वृद्धि, जो पांच वर्ष से अधिक की नहीं होगी उसे पेंशन तथा उपदान (ग्रेच्युटी) की गणना के प्रयोजनों के लिए वेतन के नोशनल निर्धारण का हकदार बनाएगी।

(3) यह नियम ऐसे सरकारी सेवक को लागू नहीं होगा जो केन्द्रीय सरकार में, किसी स्वशासी निकाय या पब्लिक सेक्टर उपक्रम में, जहां वह स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति चाहने के समय प्रतिनियुक्ति पर है, स्थायी रूप से आमेलित होने के लिए सरकारी सेवा से निवृत होता है।

(4) उपनियम (1) के अधीन पांच वर्ष का अधिमान उन सरकारी सेवकों के मामलों में अनुज्ञेय नहीं होगा, जो नियम 42 (1) (ख) या मूल नियम 56 (2) के अधीन सरकार द्वारा लोकहित में समय पूर्व सेवानिवृत्त किए गए हों।

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नियम 43. पेन्शन की धनराशि – (1) दस वर्ष की अर्हतादायी सेवा पूर्ण करने के पूर्व इन नियमों के प्रावधानों के अनुसार सेवानिवृत्त होने वाले शासकीय सेवकों के प्रकरणों में, नीचे उपवर्णित के अनुसार सेवा उपदान की धनराशि होगी, अर्थात्.—

 

 

अर्हतादायी सेवा की पूर्ण छ:माही अवधि

 

उपदान की दर

 

अर्हतादायी सेवा की पूर्ण छ:माही अवधि

 

उपदान की दर

(1) (2) (1) (2)

 

 

01

 

½ माह की उपलब्धियां

 

11

 

5-1/8 माह की उपलब्धियां

 

02

 

1 माह की उपलब्धियां 

 

12

 

5-1/2 माह की उपलब्धियां

 

03

 

1-1/2 माह की उपलब्धियां

 

13

 

5-7/8 माह की उपलब्धियां

 

04

 

2 माह की उपलब्धियां

 

14

 

6-1/4 माह की उपलब्धियां

 

05

 

2-1/2 माह की उपलब्धियां

 

15

 

6-5/8 माह की उपलब्धियां

 

06

 

3 माह की उपलब्धियां

 

16

 

7 माह की उपलब्धियां

 

07

 

3-1/2 माह की उपलब्धियां

 

17

 

7-3/8 माह की उपलब्धियां

 

08

 

4 माह की उपलब्धियां

 

18

 

7-3/4 माह की उपलब्धियां

 

09

 

4-3/8 माह की उपलब्धियां

 

19

 

8-1/8 माह की उपलब्धियां

 

10

 

4-3/4 माह की उपलब्धियां

   

 

 

टिप्पणी .— सेवा उपदान की रकम पूर्ण रूपयों में अभिव्यक्त की जायेगी और जहां सेवा उपदान में रूपये का भाग अन्तर्विष्ट है वहां उसे निकटतम उच्चतर रूपये तक पूर्णांकित किया जायेगा।

(2) इन नियमों के उपबंधों के अन्तर्गत 10 वर्ष से अधिक अर्हकारी सेवा पूर्ण करने के पश्चात् सेवा निवृत्त होने वाले शासकीय सेवकों के मामलों में, पेंशन की धनराशि वह होगी जैसी कि समय-समय पर शासन द्वारा निर्धारित की जावे।

(3) सेवाकाल की गणना में अपूर्ण वर्ष के 3 माह या उससे अधिक की अवधि को पूर्ण छ: माही अवधि के रूप में माना जायेगा।

(4) पेंशन की धनराशि का निर्धारण मासिक दर का होगा और पूर्ण रूपयों में अभिव्यक्त किया जाएगा, और जहां पेंशन रूपये के किसी भाग मे आये तो उसे अगले रूपये में पूर्णांकित किया जायेगा:

परन्तु किसी भी दशा में इस नियम में विहित अधिकतम पेंशन से अधिक पेंशन मंजूर नहीं की जायेगी:

(5) जहां पेंशन की धनराशि--

(क) महंगाई वेतन, यदि कोई हो, को सम्मिलित करते हुए संगणित की गई है; अथवा

(ख) महंगाई वेतन को छोड़कर, परन्तु तदर्थ वृद्धि अथवा अस्थायी वृद्धि अथवा दोनों, यदि कोई हो, को सम्मिलित करते हुए संगणित की गई है,

न्यूनतम पेंशन, जैसी कि शासन द्वारा समय-समय पर निर्धारित की जावे, से कम है, पेंशन में अतिरिक्त वृद्धि करके अन्तर को पूरा किया जायेगा, परन्तु अशक्त पेंशन (Invalid Pension) की धनराशि किसी भी दशा में न्यूनतम पेंशन जैसा कि शासन द्वारा समय-समय पर निर्धारित की जावे से कम नहीं होगी:

परन्तु अश्क्त पेंशन (Invalid Pension) की धनराशि उस सामान्य परिवार पेंशन की धनराशि से कम नहीं होगी जो नियम 47 (2) के अन्तर्गत शासकीय सेवक के परिवार को स्वीकार्य है।

टिप्पणी -- पेंशन संराशिकरण (Commutation) के लिये, आशक्त पेंशन की मूल धनराशि, अर्थात् अर्हतादायी सेवा के वर्षों और औसत उपलब्धियों के संदर्भ मे निश्चित की गई धनराशि को ही केवल विचार में लिया जायेगा। फिर भी मूल अशक्त पेंशन और अतिरिक्त पेंशन (पेंशनर की मृत्यु होने पर परिवार को अनुज्ञेय सामान्य परिवार पेंशन की धनराशि के बराबर करने वाली अनुज्ञेय अशक्त पेंशन की धनराशि) के कुल योग पर राहत अनुज्ञेय होगी।

(6) विलोपित [वित्त विभाग अधिसूचना क्रमांक बी -25/6/95/PWC/IV, दिनांक 20-9-96 तथा दिनांक 1-1-86से लागू ।]   GO TO TOP

 

नियम 44. मृत्यु - सह - सेवानिवृत्ति उपदान - 

(1) (क) शासकीय सेवक ने 5 वर्ष की अर्हतादायी सेवा पूर्ण कर ली है और नियम 43 के अधीन सेवा उपदान अथवा पेंशन का पात्र हो गया है तो उसके सेवानिवृत्त होने पर अर्हतादायी सेवा की प्रत्येक पूर्व छ: माही समयावधि के लिये उसकी उपलब्धियों के एक चौथाई के बराबर, उपलब्धियों के 16-1/2 गुना से अधिकतम के अध्यधीन रहते हुए, उसे मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति उपदान स्वीकृत किया जायेगा ।

परन्तु उन शासकीय सेवकों के मामले में जो अप्रैल, 1981 तथा दिसम्बर, 1988 के मध्य सेवा निवृत्त हुए हैं, मृत्यु-सह-सेवा निवृत्ति उपदान, अधिकतम उपलब्धियों का 15 गुना की शर्त के अधीन, अर्हकारी सेवा के प्रत्येक पूर्ण छ: माही अवधि हेतु उपलब्धियों का ¼ भाग के बराबर होगा।

(ख) 5 वर्ष की अर्हतादायी सेवा पूर्ण करने के पश्चात् यदि सेवा में रहते हुए किसी शासकीय सेवक की मृत्यु हो जाती है तो मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति उपदान की धनराशि उसकी कुलउपलब्धियों की 12 गुना के बराबर अथवा खण्ड (क) के अधीन निश्चित की गई धनराशि, जो भी अधिक हो, होगी और उसका भुगतान नियम 45 में बताई गई रीति से किया जायेगा :

परन्तु इस नियम के अधीन देय मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति उपदान की धनराशि की सीमा वह होगी जैसा कि समय-समय पर शासन द्वारा विनिशि्चत किया जाये ।

टिप्पणी - मृत्यु और सेवानिवृत्ति उपदान की रकम पूर्ण रूपयों में अभिव्यक्त की जायेगी और जहाँ मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति उपदान में रूपये का भाग अन्तर्विष्ट है वहां उसे रूपये के निकटतम उच्चतर रूपये तक पूर्णांकित किया जायेगा ।

(2) यदि कोई शासकीस सेवक जो सेवा उपदान अथवा पेंशन के लिये पात्र हो गया है, तथा उसकी सेवानिवृत्ति के पश्चात् मृत्यु हो जाती है और उसकी मृत्यु के समय उपनियम (1) के खंड (क)

उपदान की अधिकतम सीमा

(i) उपलब्धियों का 16-1/2 गुणा या रू. 25000/- इनमें से जो भी कम हो, दिनांक 1-4-81 के पूर्व के मामले में।

(ii) उपलब्धियों का 15 गुणा या रू. 30,000/- इनमें जो भी कम हो, दिनांक 1-4-81 के पश्चात् सेवानिवृत्त होने वालों के मामले में ।

(iii) उपलब्धियों का 15 गुणा या रू. 50,000/- इनमें से जो भी कम हो, दिनांक 31-3-85 को या इसके पश्चात् सेवानिवृत्त होने वाले के मामले में ।

(iv) उपलब्धियों का 16-1/2 गुणा या रू. 75,000/- इनमें से जो भी कम हो, दिनांक 1-1-89 के बाद वाले मामले में ।

(v) उपलब्धियों का 16-1/2 गुणा या रू. 1,00,000/- इनमें से जो भी कम हो, दिनांक 1-1-89 के बाद वाले मामलों में

(vi) दिनांक 1-4-95 को अथवा उसके पश्चात् सेवा निवृत अथवा मृत्यु के मामले में रू. 2.50 लाख ।

(vii) रू. 3.50 लाख – दिनांक 1-1-96 से पुनरीक्षित वेतनमानों में वेतन प्राप्त करने वालों के मामले में।

(viii) रू. 10 लाख – दिनांक 1-9-2008 से [वित्त विभाग क्र.एफ-9/2/2009/नियम/चार (भाग -2) दिनांक 3 अगस्त, 2009]

के अधीन स्वीकृत उपदान के साथ ऐसे उपदान अथवा पेंशन की उसके द्वारा वास्तव में प्राप्त धनराशि, उसकी 12 गुना “उपलब्धियों” के बराबर धनराशि से कम है तो कमी के बराबर उपदान (Gratuity) नियम 45 के उपनियम (1) में विनिर्दिष्ट व्यक्ति अथवा व्यक्तियों को स्वीकृत किया जा सकेगा। यदि मृत्यु के पूर्व किसी शासकीय सेवक ने अपनी पेंशन का कुछ भाग लघुकृत (Commute) करा लिया है तो यह लाभ अनुज्ञेय नहीं होगा ।

टिप्पणी 1.- अवशिष्ट उपदान (Residuary Gratuity) केवल तभी स्वीकार्य है जब सेवानिवृत्ति के दिनांक से 5 वर्ष के अन्दर शासकीय सेवक की मृत्यु हो जाये। इस नियम के अधीन भुगतान योग्य अवशिष्ट उपदान की धनराशि अवधारित करने के लिए मृतक के द्वारा आहरित अस्थायी वृद्धि/तदर्थ वृद्धि अथवा दोनों को हिसाब में लिया जायेगा।

टिप्पणी 2.- अवशिष्ट उपदान की रकम पूर्ण रूपयों मे अभिव्यक्त की जायेगी और जहाँ अवशिष्ट उपदान में रूपये का भाग अन्तर्विष्ट हो वहाँ उसे रूपये के निकटतम उच्चतर रूपये तक पूर्णांकित किया जायेगा ।

(3) (विलोपित) [वित्त विभाग अधिसूचना क्रमांक बी -25-9/96/PWC/IV, दिनांक 28-9-1996 तथा दिनांक 31-3-1979 से लागू]

(4) (विलोपित) वित्त विभाग अधिसूचना क्र. बी-25/9/96/PWC/IV, दिनांक 17-6-96

(5) इस नियम और नियम 45 और 46 के प्रयोजनार्थ शासकीय सेवक के “परिवार” से अभिप्रेत है –

(i) पुरूष शासकीय सेवक के प्रकरण में उसकी पत्नी;

(ii) महिला शासकीय सेवक के प्रकरण में उसका पति;

(iii) सौतेले पुत्र सहित पुत्र और गोद लिए पुत्र;

(iv) सौतेली पुत्रियों सहित अविवाहित पुत्रियाँ और गोद ली गई पुत्रियाँ;

(v) सौतेली पुत्रियों सहित विधवा पुत्रियाँ और गोद ली गई पुत्रियाँ;

(vi) पिता उन व्यक्तियों के प्रकरण में जिनका व्यक्तिगत कानून धर्म पिता; एंव

(vii) माता माता बनाने की अनुमति देता है, सम्मिलित है ।

(viii) अट्ठारह वर्ष से कम आयु के भाई, सौतेले भाइयों सहित;

(ix) अविवाहित बहनें और विधवा बहनें सौतेली बहनों सहित;

(x) विवाहित पुत्रियाँ; और

(xi) मृत पुत्र के बच्चे ।   GO TO TOP

 

नियम 45. व्यक्ति जिन्हें उपदान देय है – 

(1) (क) नियम 44 के उपनियम (2) अथवा उपनियम (1) के खण्ड (ख) के अधीन देय उपदान (Gratuity) का भुगतान उस व्यक्ति अथवा व्यक्तियों को होगा जिन्हें नियम 46 के अधीन नामांकन के माध्यम से उपदान प्राप्त करने का अधिकार प्रदत्त किया गया है ।

(ख) यदि ऐसा कोई नामांकन नहीं है या किया गया नामांकन अस्तित्व में नहीं है तो उपदान नीचे उपदर्शित किये अनुसार संदत्त किया जायेगा—

(एक) यदि नियम 44 के उपनियम (5) खण्ड (एक), (दो), (तीन) तथा (चार) के अनुसार परिवार के एक या अधिक उत्तरजीवी सदस्य हों, तो समस्त ऐसे सदस्यों को समान अंशों में,

(दो) यदि ऊपर दिये गये उपखण्ड (एक) के अनुसार परिवार में ऐसे कोई उत्तरजीवी सदस्य नहीं हो, किन्तु नियम 44 उपनियम (5) के खण्ड (पांच), (छ:), (सात), (आठ), (नौ), (दस) तथा (ग्यारह), के अनुसार एक या अधिक सदस्य हों तो समस्त ऐसे सदस्यों को समान अंशों में,

(तीन) यदि किसी दशा में उपदान, ऊपर दिये गये उपखण्ड (एक) तथा (दो) में उपदर्शित किये गये अनुसार संदत्त नहीं किया जा सकता है तो शासकीय सेवक के विधिक वारिसों को।]

टिप्प्णी .– (विलोपित) वि.वि. क्र. एफ.बी. 6/5/86/नि-2/चार, दि. 15-11-1990।

(2) यदि किसी शासकीय सेवक की सेवानिवृत्ति के पश्चात् मृत्यु नियम 44 के उपनियम (1) के खण्ड (क) के अधीन अनुज्ञेय उपदान प्राप्त किये बिना ही हो जाती है तो, उपदान का संवितरण उप-नियम (1) के खण्ड (ख) के उप-खण्ड (एक), (दो) अथवा (तीन) जैसी भी स्थिति हो, में उपदर्शित किये गये अनुसार किया जाएगा ।

(3) शासकीय सेवक जिसकी सेवा में रहते अथवा सेवानिवृत्ति के बाद मृत्यु हो जाये, के परिवार की महिला सदस्य का अथवा उसके भाई का उपदान के अंश को प्राप्त करने का अधिकार प्रभावित नहीं होगा, यदि शासकीय सेवक की मृत्यु के बाद तथा वह अपना उपदान का अशं प्राप्त करने के पहले, महिला सदस्य विवाह या पुनर्विवाह कर ले अथवा भाई 18 वर्ष की आयु को प्राप्त कर ले।

(4) जहां मृत शासकीय सेवक के परिवार के अवयस्क सदस्य को नियम 44 के अधीन उपदान स्वीकृत किया गया है, वह अवयस्क की ओर से संरक्षक को देय होगी :

परन्तु यदि किसी विशिष्ट मामले में संबंधित प्रशासनिक विभाग के कार्यालय प्रमुख की राय में कोई उपयुक्त संरक्षक मिल पाना संभव नहीं है या अवयस्क द्वारा संरक्षक को उपदान का भुगतान किए जाने में आपत्ति की जाती है, तब उपदान की रकम डाकघर में बचत बैंक खाते में जमा की जाएगी, जो कलेक्टर और जिला कोषालय अधिकारी द्वारा संयुक्त रूप से चलाया जायगा एवं अवयस्क को उसकी शिक्षा/उपचार आदि के लिये समय-समय पर आवश्यक रकम उपलब्ध कराई जाएगी । अवयस्क को जब वह वयस्क हो जाता है, संपूर्ण अतिशेष रकम का भुगतान करने के पश्चात् बचत बैंक खाता बन्द कर दिया जाएगा।

टिप्पणी –उस मामले में जहां मृत्यु-तथा-सेवानिवृत्ति उपदान में का अवयस्क के हिस्से का भुगतान अवयस्क के प्राकृतिक अभिभावक को किया जाना है अथवा अवयस्क के प्राकृतिक अभिभावक के अभाव में, उस व्यक्ति को जो संरक्षकता प्रमाण-पत्र पेश करे, स्वीकृति आदेश में प्राकृतिक/विधिक संरक्षक का नाम महालेखाकार के ध्यान में लाने के लिए दिया जाना चाहिए इसलिये कि ऐसे मामले में कोई प्राधिकार जारी करने के पहले उन्हें यह ज्ञात हो सके कि भुगतान किसे किया जाना है।

स्पष्टीकरण - अवयस्क के नैसर्गिक/वैधानिक संरक्षण की हैसियत से अवयस्क का हिस्सा किसको देय होगा, की वैधानिक स्थिति निम्नानुसार होगी –

(i) जहां विधिमान्य नामांकन अस्तित्व में नहीं है -

(क) जब कोई हिस्सा अवयस्क पुत्रों अथवा अवयस्क अविवाहित पुत्रियों को देय हो उन प्रकरणेां को छोड़कर, जहाँ जीवित माता एक मुसलमान महिला है अथवा सौतेली माता हो, वह जीवित पिता-माता को भुगतान किया जाना चाहिए । यद्यपि जहां पिता-माता नहीं है अथवा जीवित माता मुसलमान महिला अथवा सौतैली माता है, सरंक्षकता प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति को भुगतान होगा ।

(ख) संरक्षकता प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करना आवश्यक होगा जहां विधवा अवयस्क पुत्री (पुत्रियों) को हिस्सा भुगतान योग्य है ।

(ग) यदि किसी विरले ही प्रकरण में पत्नी स्वत: अवयस्क ही है तो उसकेा देय मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति उपदान का भुगतान सरंक्षकता प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति को किया जावेगा।

(घ) जहाँ मृत्यु-सह-सेवनिवृत्ति उपदान अवयस्क भाई अथवा अवयस्क अविवाहित बहिन को भुगतान येाग्य हो तब पिता को अथवा उसकी अनुपस्थिति में हितग्राही की माता को; केवल ऐसे प्रकरण को छोड़कर जहाँ जीवित माता मुसलमान महिला है अथवा सौतेली माता है, किया जाना चाहिए। ऐसे प्रकरण में भी, यदि जीवित पिता-माता नहीं हैं अथवा जीवित माता मुसलमान महिला अथवा सौलेली माता है, संरक्षकता प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति को भुगतान होगा। यदि कोई हिस्सा विधवा अव्यस्क बहिन को भुगतान योग्य है तो संरक्षकता प्रमाण-पत्र का प्रस्तुतीकरण आवश्यक होगा ।

(ii) जहाँ विधिमान्य नामांकन अस्तित्व में है —

(क) जहाँ नामांकन परिवार के एक अथवा अधिक सदस्येां के पक्ष में हो तब पैरा (i) में वर्णित स्थिति लागू होगी ।

(ख) जहां परिवार नहीं है वहां अधर्मज बच्चा, अविवाहित पुत्री अथवा विवाहित बहिन के रूप में भी नामांकन विधिमान्य होगा । अतएव, स्थिति निम्नलिखित रूप में होगी --

(i) यदि नामनिर्देशिती अधर्मज बच्चा है तो हिस्सा माता को भुगतान योग्य होगा और उस (माता) की अनुपस्थिति में संरक्षक प्रमाण-पत्र का प्रस्तुतीकरण आवश्यक होगा ।

(ii) यदि हिस्सा विवाहित अवयस्क लड़की को भुगतान योग्य है तब हिस्सा उसके पति को भुगतान योग्य होगा और यदि ऐसी लड़की मुस्लिम है तो धनराशि उस व्यक्ति को भुगतान की जाना चाहिए जो संरक्षकता प्रमाणपत्र प्रस्तुत करे ।

टिप्पणी .-- जिन प्रकरणेां में किसी अवयस्क (अवयस्कों) के जीवित पिता-माता नहीं हैं अथवा जीवित माता मुस्लिम महिला अथवा सौतेली माता है तो संरक्षकता प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने में असुविधा और कठिनाई हो सकती है। ऐसे प्रकरणेां में, अवयस्क के पक्ष का मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति उपदान 5000/- रूपये (अथवा जब भुगतान योग्य धनराधि 5000/- रूपये से अधिक है तो प्रथम 5000/- रूपये) तक भुगतान उसके/उसकी वास्तविक संरक्षक को जिसका अवयस्क (अवयस्कों) व्यक्ति और उसके/उसकी सम्पत्ति पर कब्जा है इस आशय के शपथ-पत्र प्रस्तुत करने पर और स्वीकृतकर्ता की संतुष्टि के अनुरूप दो जमानतदार के साथ फार्म क्रमांक 23 में सादे कागज पर (स्टाम्प ड्युटी राज्य शासन द्वारा वहन की जावेगी) इनडेमिनिटी-बांड प्रस्तुत करने के अध्याधीन किया जा सकेगा । रूपये 5000/- से अधिक अतिशेष, यदि कुछ हो ,संरक्षककर्ता प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करने पर ही केवल भुगतान येाग्य होगा ।   GO TO TOP

 

नियम – 45- क . किसी व्यक्ति का उपदान प्राप्त करने का विवर्जन - 

(1) यदि कोई व्यक्ति जो, शासकीय सेवक की सेवाकाल दौरान हुई मृत्यु की दशा में, नियम 45 के प्रावधानों के अनुसार उपदान प्राप्त करने के लिये पात्र है, उस शासकीय सेवक की हत्या के अपराध अथवा ऐसे किसी अपराध को करने के दुष्प्रेरण के लिये आरोपित किया गया है तो उसके विरूद्ध संस्थित दाण्डिक कार्यवाही की समाप्ति तक उपदान के उसके हिस्से को प्राप्त करने का उसका दावा निलम्बित रहेगा ।

(2) यदि सम्बंधित व्यक्ति, उपनियम (1) में संदर्भित दाण्डिक कार्यवाही की समाप्ति पर-

(क) शासकीय सेवक की हत्या अथवा हत्या के दुष्प्रेरण करने के लिये सिद्धदोष ठहराया जाता है तो उपदान का उसका हिस्सा प्राप्त करने से विवर्जित कर दिया जायेगा जो कि परिवार के अन्य किन्हीं पात्र सदस्यों को भुगतान योग्य होगा;

(ख) शासकीय सेवक की हत्या अथवा हत्या के दुष्प्रेरणा करने के आरोप से दोषमुक्त कर दिया जाता है तो उपदान का उसका हिस्सा उसे भुगतान हो जायेगा ।

(3) उपनियम (1) और उपनियम (2) के प्रावधान नियम 45 के उपनियम (2) में निर्दिष्ट असंवितरित उपदान को भी लागू होंगे ।

 

नियम 46. नामांकन - (1) पेंशन योग्य सेवा अथवा पद पर अपनी प्रारम्भिक नियुक्ति होने पर शासकीय सेवक नियम 44 के उपनियम (1) के खण्ड (ख) अथवा उपनियम (2) के अधीन मृत्यु-सह-सेवा-निवृत्ति उपदान प्राप्त करने का अधिकार एक अथवा एक से अधिक व्यक्तियों को प्रदत्त करते हुये फार्म-1 अथवा फार्म-2 में, प्रकरण की परिस्थितियों के अनरूप, जो भी उचित हो, नामांकन प्रस्तुत करेगा :

परन्तु यदि नामांकन करते समय----

(i) शासकीय सेवक का परिवार है तो उसके परिवार के सदस्यों के अतिरिक्त अन्य किसी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के पक्ष में नामांकन नहीं होगा; अथवा

(ii) शासकीय सेवक का परिवार नहीं है तो, किसी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों अथवा व्यक्तियों के निकाय चाहे निगमित हो अथवा नहीं, के पक्ष में नामांकन किया जा सकता है ।

(2) यदि शासकीय सेवक उपनियम (1) के तहत एक से अधिक व्यक्तियों को नामांकित करता है तो नामित व्यक्ति को देय राशि का हिस्सा वह नामांकन में इस प्रकार निर्दिष्ट करेगा कि उपदान की संपूर्ण राशि पुरी हो जायेगी ।

(3) शासकीय सेवक नामांकन में व्यवस्था कर सकता है---

(i) किसी निर्दिष्ट नामांकित व्यक्ति के सम्बंध में जिसकी मृत्यु उस शासकीय सेवक से पूर्व हो जाये अथवा जिसकी मृत्यु शासकीय सेवक की मृत्यु के बाद परन्तु उपदान का भुगतान प्राप्त करने के पूर्व हो जाय तो उस नाम निर्देशित को प्रदत्त अधिकार ऐसे अन्य व्यक्ति को स्थानांन्तरित हो जायेंगे जैसा कि नामांकन में निर्दिष्ट किया गया है :

परन्तु यदि नामांकन करते समय शासकीय सेवक के परिवार में एक से अधिक सदस्य हैं तो इस प्रकार निर्दिष्टि व्यक्ति उसके परिवार के सदस्य के अतिरिक्त कोई दूसरा व्यक्ति नहीं होगा :

परन्तु यह और भी कि जहां शासकीय सेवक के परिवार में केवल एक ही सदस्य है, और उसके पक्ष में नामांकन किया गया है, तब किसी भी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के निकाय चाहे निगमित हों अथवा न हों, के पक्ष में वैकल्पिक नाम-निर्देशिती अथवा निर्देतशितियों का नामांकन करने का शासकीय सेवक केा अधिकार होगा :

(ii) यह कि नामांकन, उसमें उपबन्धित आकस्मिकता के घटित हो जाने की दशा में अविधिमान्य (Invaild) हो जायेगा ।

(4) नामांकन करते समय जहाँ शासकीय सेवक का कोई परिवार नहीं है अथवा जहाँ उसके परिवार में केवल एक ही सदस्य है, उपनियम (3) के खण्ड (i) के द्वितीय परन्तुक के अधीन उस शासकीय सेवक द्वारा किया गया नामांकन, शासकीय सेवक के द्वारा पक्ष्चात्वर्ती परिवार अथवा परिवार में एक अतिरिक्त सदस्य अर्जित कर लेने की दशा में, अविधिमान्य (Invaild) हो जायेगा ।

(5) शासकीय सेवक किसी भी समय, उपनियम (7) में उल्लेखित प्राधिकारी को लिखित सूचना देकर नामांकन निरस्त करा सकता है, परन्तु यह कि वह, ऐसी सूचना के साथ, इस नियम के अनुसार एक नया नामांकिन भेजेगा ।

(6) उपनियम (3) के खण्ड (i) अधीन नाम-निर्देशन में नामिनी जिसके पक्ष में कोई विशेष प्रावधान नहीं किया गया है, कि तुरन्त मृत्यु हो जाने की दशा में अथवा कोई घटना-घटित हो जाने पर जिसके कारण इस उपनियम के खण्ड (ii) के अनुसरण में नाम-निर्देशन अधिमान्य हो जाता है, तो शासकीय सेवक उपनियम (7) में उल्लेखित प्राधिकारी को लिखित में नाम-निर्देशन निरस्त करने की एक सूचना भेजेगा और उसके साथ ही इस नियम के अनुसार एक नया नाम निर्देशन देगा ।

(7) (क) इस नियम के अधीन शासकीय सेवक द्वारा किया गया प्रत्येक नामांकन (निरस्तीकरण के प्रत्येक नोटिस सहित, यदि कोई दिया हो) कार्यालय प्रमुख को भेजा जायेगा;

चरण (i) एवं (ii) विलोपित । वि.वि. क्र. एफ.बी. 6-1-77/नि-2/चार, दिनांक 1-2-77.

(ख) खण्ड (क) में संदर्भित नामांकन प्राप्त होने पर तुरन्त प्राप्ति का दिनांक उपदर्शित करते हुये कार्यालय प्रमुख उसे प्रतिहस्ताक्षरित करेगा और उसे अपना अभिरक्षा में रखेगा ।

(ग) (i) अराजपत्रित शासकीय सेवकों के नामांकन फार्मों को प्रतिहस्ताक्षरित करने के लिये कार्यालय-प्रमुख उसके अधीनस्थ किसी राजपत्रित अधिकारी को अधिकृत कर सकता है ।

(ii) शासकीय सेवक की सेवा पुस्तिका में नामांकन प्राप्ति की यथोचित प्रविष्टि की जायगी ।

8. शासकीय सेवक द्वारा किया गया प्रत्येक नामांकन तथा निरसन हेतु दी गई प्रत्येक सुचना उपनियम (7) में उल्लिखित प्राधिकारी द्वारा जिस दिनांक को प्राप्त होगी उस दिनांक से वह प्रभावशील मानी जाएगी ।

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परिवार पेन्शन

 

नियम 47. अंशदायी परिवार पेन्शन  - 

(1) इस नियम के उपबंध लागू होंगे--

(क) पेन्शन योग्य स्थापना में पहली अप्रेल, 1966 को अथवा उसके पश्चात् प्रविष्ट होने वाले शासकीय सेवक को तथा

(ख) उन शासकीय सेवकों को जो 31 मार्च, 1966 को सेवा में थे तथा मध्यप्रदेश की सरकार के वित्त विभाग ज्ञाप क्रमांक 1963/सी/आर/903/चार/नियम-दो, दिनांक 17 अगस्त, 1966 में अन्तर्विष्ट सरकारी कर्मचारी के लिये लागू कुटम्ब पेन्शन येाजना जैसी कि वह इन नियमों के तुरन्त प्रारम्भ होने के पूर्व प्रभावशील थी, के उपबंधो द्वारा शासित हुये हैं।

(2) उपनियम (3) में अन्तर्विष्ट उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले, बिना जहाँ कोई सरकारी सेवक मृत हो जाता है-

(क) सेवा के दौरान, बशर्ते कि उसका मेडिकल परीक्षण हुआ था तथा शासन के अधीन नियुक्ति के लिये फिट पाया गया था;

(ख) सेवा के निवृत्ति पश्चात् तथा अध्याय पांच में संदर्भित मृत्यु की तारीख को पेंशन अथवा अनुकंपा भत्ता प्राप्त कर रहा था, तो मृतक का परिवार अंशदायी परिवार पेंशन (इस नियम में उसके पश्चात् परिवार पेंशन कहा गया है) का हकदार होगा जिसकी राशि निम्नानुसार विनिश्चित की जावेगी--

राज्य शासन अनुदेश

(1)

 

दिनांक 1 जनवरी, 2006 से लागू नये पुनरीक्षित वेतन ढांचे में परिवार पेंशन की गणना-

अंतिम मूल वेतन (पे बैंड में वेतन तथा उस पर देय ग्रेड पे का योग) का 30% न्यूनतम रू . 3025/- प्रतिमाह ।

[म.प्र. शासन, वित्त विभाग क्र. एफ- 9/2/2/009/नियम/चार (भाग-2), दिनांक 3 अगस्त, 2009]

दिनांक 1-1-2006 से 31-8-2008 के मध्य सेवानिवृत्ति/मृत हुए कर्मचारियों के मामलों में पेंशन भी गणना काल्पनिक तौर करते हुए वास्तविक लाभ 1 सितम्बर, 2008 से दिया जाएगा ।

(2)

दि . 1 जनवरी , 1996 से लागू वेतनमान में वेतन प्राप्त करने वाले शासकीय सेवकों को परिवार पेंशन

पैरा 4. म . प्र . शासन , वित्त् विभाग क्रमांक बी -25/7/98/PWC/ चार / भाग (1), दिनांक 14 जुलाई , 1998 का उद्धरण -

परिवार पेंशन की संगणना --

4.1 दिनांक 1-1-96 से पुनरीक्षित वेतनमान में परिवार पेंशन की संगणना वर्तमान दरों के स्थान पर वेतन के 30 प्रतिशत की दर से परिवार पेंशन की राशि न्यूनतम रू . 1275/- प्रतिमाह तथा उच्चतम वेतन के 30 प्रतिशत के अधीन की जावेगी ।

(2-क) परिवार पेंशन की धनराशि मासिक दर से पूर्ण रूपये में अभिनिर्धारित की जाएगी, और जहाँ परिवार पेंशन की धनराशि रूपये के भाग (Fraction of a Rupee) में है तो उसे अगले रूपये में पूर्णांकित किया जायेगा । बशर्ते कि किसी भी प्रकरण में परिवार पेंशन, इस नियम के अन्तर्गत [विहित] अधिकतम से अधिक मंजूर नहीं की जायेगी ।

(3) (क) जहां कोई शासकीय सेवक श्रमजीवी क्षतिपूरक अधिनियम , 1923 (1923 का 8) से शासित नहीं है, सात वर्ष से कम की नहीं लगातार सेवा करने के पश्चात्, सेवा में रहते हुए दिवंगत हो जाये तो कुटुम्ब को देय परिवार पेंशन उसके द्वारा प्राप्त अन्तिम वेतन के 50 प्रतिशत की दर के बराबर अथवा उपनियम (2) के अधीन स्वीकार्य परिवार पेंशन की दुगुनी राशि, इन दोनों में से जो भी कम हो, स्वीकार्य होगी, और इस प्रकार स्वीकार्य धनराशि शासकीय सेवक की मृत्यु की तिथि के पश्चात् आने वाली तिथि से---

(i) सात वर्षों की समयावधि तक, अथवा

(ii) उस तिथि तक जब मृतक शासकीय सेवक यदि जीवित रहता तो 67 वर्ष की आयु पूर्ण करता; इनमें से जो भी अवधि कम हो, तक देय होगी ।

(ख) [जहां कोई शासकीय सेवक] श्रमजीवी क्षतिपूरक अधिनियम , 1923 (1923 का 8) से शासित नहीं है, सात वर्ष से अधिक की लगातार सेवा कर सेवानिवृत्त होने के पश्चात् दिवंगत हो जाये तो, कुटुम्व को देय परिवार पेंशन उसके द्वारा प्राप्त अन्तिम वेतन के 50 प्रतिशत की दर के बराबर अथवा उपनियम (2) के अधीन स्वीकार्य परिवार पेंशन की दुगुनी धनराशि, इनमें से जो भी कम हो, स्वीकार्य होगी और इस प्रकार स्वीकार्य धनराशि शासकीय सेवक की मृत्यु की तिथि के पश्चात् आने वाली तिथि से-

(i) सात वर्षों की समयावधि तक; अथवा

(ii) उस तिथि तक जब पेंशनर यदि जीवित रहता तो 67 वर्ष की आयु पर पहुंच जाता, जो भी समयावधि कम हो, तक देय होगी :

परन्तु परिवार पेंशन की धनराशि शासकीय सेवक को सेवानिवृत्ति के समय स्वीकार्य पेंशन से अधिक नहीं होगी । उन प्रकरणों में जहां नियम 47 के उपनियम (2) के खण्ड (ख) के अधीन स्वीकार की जाने वाली परिवार पेंशन की धनराशि सेवानिवृत्ति के समय स्वीकृत पेन्शन से अधिक होती है तो, इस नियम के अधीन स्वीकृत परिवार पेन्शन की धनराशि उस धनराशि से कम नहीं होगी । “ सेवानिवृत्ति के समय स्वीकृत पेंशन ” से अभिप्रेत है “पेन्शन के भाग को सम्मिलित करते हुये पेन्शन जिसे सेवानिवृत्त शासकीय सेवक ने मृत्यु-पूर्व लघुकृत कराया है ।”

(ग) (i) जहाँ शासकीय सेवक श्रमजीवी क्षतिपूरक अधिनियम , 1923 (1923 का 8) द्वारा शासित होता है, सात वर्ष से कम नहीं होने वाली लगातार सेवा करने के पश्चात् सेवा में रहते हुये, दिवंगत हो जाय तेा कुटुम्ब को देय परिवार पेन्शन की दर अन्तिम आहरित वेतन के 50 प्रतिशत के बराबर अथवा उपनियम (2) के अधीन स्वीकार्य परिवार पेंशन का डेढ़ गुना, जो भी कम हो, होगी ।

(ii) जहां शासकीय सेवक श्रमजीवी क्षतिपूरक अधिनियम , 1923 (1923 का 8) द्वारा शासित होता है, सात वर्ष की सेवा करके सेवानिवृत्ति के पश्चात् दिवंगत हो जाय तो कुटुकम्ब को देय परिवार पेंशन की दर शासकीय सेवक द्वारा अन्तिम आहरित वेतन के 50 प्रतिशत के बराबर अथवा उपनियम (2) के अधीन स्वीकार्य परिवार पेंशन का डेढ़ गुना, जो भी कम हो, होगी ।

(iii) उपखण्ड (i) अथवा (ii) के अधीन इस प्रकार विनिर्धारित परिवार पेन्शन खण्ड (क) अथवा खण्ड (ख), जैसा भी प्रकरण हो, में उलि्लखित अवधि के लिये भुगतान योग्य होगी :

परन्तु जहां उपर्युक्त अधिनियम के अधीन क्षतिपूर्ति भुगतान योग्य नहीं हो तो कार्यालय प्रमुख आडिट आफिसर को इस आशय का एक प्रमाण-पत्र प्रेषित करेगा कि मृत शासकीय सेवक का परिवार उपर्युक्त अधिनियम के अधीन कोई क्षतिपूर्ति प्राप्त का पात्र नहीं है और परिवार को चरण (क) में उल्लेखित मान और अवधि के लिये देय परिवार पेंशन का भुगतान किया जायेगा।

(घ) खण्ड (क) अथवा (ख) में उल्लिखित अवधि व्यतीत हो जाने के पश्चात् उन खण्डों अथवा खण्ड (ग) के अधीन परिवार पेंशन प्राप्त करने वाला कुटुम्व, उपनियम (2) के अधीन स्वीकार्य दर से परिवार पेंशन प्राप्त करने का हकदार होगा ।

(4) उस शासकीय सेवक का परिवार जिसकी मृत्यु “ कार्यालय की जोखिम ” अथवा ‘ कार्यालय की विशेष जोखिम ’ के परिणाम स्वरूप हुई है, जैसा कि म.प्र. सिविल सेवायें (असाधारण पेंशन) नियम, 1963 में परिभाषित है, इस नियम के अधीन परिवार पेंशन के लाभों का हकदार नहीं होगा। इसी प्रकार शासकीय सेवक, जो म.प्र. पुलिस कर्मचारी वर्ग (असाधारण परिवार पेंशन) नियम, 1965 के अधीन असाधारण पेंशन लाभों का हकदार है, इस नियम के अधीन परिवार पेंशन के लाभों का हकदार नही होगा ।

(5) विलोपित । [वित्त् विभाग अधिसूचना क्रमांक बी -25/9/96/PWC/IV, दिनांक 28/9/96 तथा दिनांक 31/3/79 से लागू]

(6) कालावधि जब तक परिवार पेंशन देय होगी --

(i) विधवा अथवा विधुर के प्रकरण में मृत्यु अथवा पुनव्रिवाह की तिथि तक इनमें से जो भी पहले हो।

(ii) पुत्र के प्रकरण में, 25 वर्ष की आयु तक,

(iii) अविवाहित पुत्री के प्रकरण में, 25 वर्ष की आयु तक अथवा उसके विवाह पर्यन्त, जो भी पहले हो :

परन्तु यदि, किसी शासकीय सेवक का पुत्र अथवा अविवाहित पुत्री किसी प्रकार के मानसिक विकार से पीड़ित है अथवा शरीर से पंगु अथवा अशक्त है जिससे कि वह पुत्र के प्रकरण में 25 वर्ष और पुत्री के प्रकरण में [25 वर्ष] की आयु पूर्ण कर लेने पर भी जीविकोपार्जन करने के अयोग्य है तो ऐसे पुत्र अथवा अविवाहित पुत्री को जीवनपर्यन्त (For life) परिवार पेंशन निम्नलिखित शर्तों अध्यधीन देय होगी,

अर्थात्---

(क) यदि ऐसा पुत्र अथवा अविवाहित पुत्री शासकीय सेवक के देा या अधिक बच्चों में से एक है तो प्रारम्भ में परिवार पेंशन अवयस्क बच्चों को इस नियम के उपनियम (6) में स्थापित क्रम में, जब तक कि अन्तिम अवयस्क बच्चा 25 वर्ष की आयु का नहीं हो जाता है, देय होगी, और उसके पश्चात् मानसिक विकार अथवा अशक्तता से ग्रस्त अथवा जो शरीर से पंगु अथवा अशक्त है उस पुत्र अथवा अविवाहित पुत्री के पक्ष में परिवार पेंशन फिर से चालू हो जायेगी और उन्हें जीवनपर्यन्त देय होगी ।

(ख) यदि एक से अधिक पुत्र अथवा अविवाहित पुत्रियां मानसिक विकार अथवा अशक्त्ता से ग्रस्त अथवा शारीरिक रूप से पंगु अथवा अशक्त है, तो परिवार पेंशन निम्नलिखित क्रम में देय होगी,

अर्थात्---

(i) प्रथमत: पुत्र को और यदि एक से अधिक पुत्र हैं तेा उनमें से पहले केवल ज्येष्ठ को, ज्येष्ठ के जीवन काल के पश्चात् ही कनिष्ठ परिवार पेंशन प्राप्त करेगा;

(ii) द्वितीय (क्रम), अविवाहित पुत्री को और यदि एक से अधिक अविवाहित पुत्रियां हैं तो उसमें से पहले केवल ज्येष्ठ को, ज्येष्ठ के जीवनकाल के पश्चात् ही कनिष्ठ परिवार पेंशन प्राप्त करेगी;

(iii) परिवार पेंशन ऐसे पुत्र अथवा अविवाहित पुत्री को यदि अवयस्क हों तो संरक्षण माध्यम से दी जायेगी;

(iv) किसी ऐसे पुत्र अथवा विवाहित पुत्री को जीवन पर्यन्त परिवार पेंशन स्वीकार करने के पूर्व स्वीकृतकर्ता प्राधिकारी को सन्तुष्ट होना होगा कि विकलांगता ऐसी प्रकृति की है जो उसके जीविकोपार्जन से उसे रोकती है, तथा उसके सबूत में सिविल सर्जन के समकक्ष अथवा उच्च चिकित्सा पदाधिकारी का प्रमाण-प्रत्र लेना चाहिेये और वहा जहां तक सम्भव हो, बच्चे की यथास्थिति मानसिक अथवा शारीरिक दशा की घोषणा भी करेगा;

(v) ऐसे पुत्र अथवा अविवाहित पुत्री के संरक्षक के रूप में परिवार पेंशन प्राप्त करने वाला व्यक्ति; सिविल सर्जन के समकक्ष अथवा उच्च चिकित्सा पदाधिकारी से प्रत्येक (पांच वर्ष) में,इस आशय का प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करेगा कि वह (पुत्र अथवा अविवाहित पुत्री) मानसिक विकार अथवा अशक्तता से निरन्तर ग्रस्त है अथवा निरन्तर शारिरिक पंगु अथवा अशक्त है।

स्पष्टीकरण --

[(क) विलोपित]

(ख) जिस दिन पुत्री विवाहित हेा जाती है उसी दिन से उसे इस उपनियम के अधीन परिवार पेंशन की पात्रता नहीं होगी ।

(ग) यदि पुत्र अथवा पुत्री उसकी आजीविका स्वयं अर्जित करना प्रारंभ करता/करती है तो देय परिवार पेंशन बन्द कर दी जायेगी ।

(घ) ऐसे प्रकरणों में संरक्षक का कर्त्तव्य होगा कि वह कोषालय अथवा बैंक, जैसा भी प्रकरण हो, को प्रत्येक माह ऐसा प्रमाण-पत्र देगा कि –

(i) पुत्र अथवा पुत्री ने उसकी आजीविका अर्जित करना प्रारंभ नहीं किया है;

(ii) पुत्री के प्रकरण में पुत्री अभी तक अविवाहित है ।

(7) (क) (i) जहाँ एक से अधिक विधवाओं को परिवार पेन्शन भुगतान योग्य है तो विधवाओं को बराबर-बराबर हिस्से में परिवार पेन्शन का भुगतान किया जावेगा।

(ii) किसी विधवा की मृत्यु पर उसके परिवार पेंशन का हिस्सा उसके पात्र बच्चे को देय हो जावेगा, परन्तु यदि विधवा का कोई जीवित बच्चा नहीं है तो उसकी पेंशन के हिस्से का भुगतान बन्द हो जावेगा ।

(ख) जहाँ मृत शासकीय सेवक अथवा पेन्शनर की दूसरी पत्नी थी और जो अब जीवित नहीं है, तो उसका पात्र बच्चा अथवा बच्चे उसकी परिवार पेन्शन के हिस्से के हकदार होंगे, जिस प्रकार उनकी माँ शासकीय सेवक अथवा पेन्शनर की मृत्यु के समय यदि वह जीवित रहती तो प्राप्त करती;

(ग) जहाँ किसी महिला शासकीय सेवक का उत्तरजीवी पति है और प्रथम पति से पात्र कोई अवयस्क बच्चा जीवित है, तो परिवार पेन्शन उन दोनों को समान अंशों में संदत्त होगी । दूसरे पति की अनुपस्थिति में उसका हिस्सा मृत महिला शासकीय सेवक से उत्पन्न उसके पात्र अवयस्क बच्चे को भुगतान होगा ।

(8) (i) उपनियम (7) में यथा उपबन्धित के सिवाय, परिवार पेंशन एक समय में एक से अधिक सदस्यों को भुगतान योग्य नहीं होगी ।

(ii) यदि कोई मृत शासकीय सेवक अथवा पेन्शनर अपने पीछे कोई विधवा अथवा विधुर छोड़ जाए तो परिवार पेन्शन विधवा अथवा विधुर को, उसके नहीं रहने पर पात्र बच्चे को, भुगतान योग्य होगी ।

(iii) यदि पुत्र एवं पुत्रियाँ जीवित हैं तो जब कि पुत्र 25 वर्ष की आयु पूर्ण नहीं कर लेता है और इस कारण जब तक परिवार पेन्शन की स्वीकृति के लिये अपात्र नहीं हो जाए तब तक अविवाहित पुत्रियाँ परिवार पेन्शन के लिए हकदार नहीं होंगी।

(9) जहाँ मृत शासकीय सेवक अथवा पेन्शनर अपने पीछे एक से अधिक बच्चे छोड़ जाता है तो ज्येष्ठ बच्चा, उपनियम (6) के खण्ड (ii) अथवा (iii) जैसा भी प्रकरण हो, में उल्लेखित समयावधि के लिये परिवार पेन्शन का हकदार होगा और वह समयावधि समाप्त हो जाने पर द्वितीय बच्चा परिवार पेन्शन स्वीकृति के लिए हकदार हो जायेगा ।

(10) जहाँ इस नियम के अधीन किसी अवयस्क को परिवार पेन्शन स्वीकृत की जाय तो वह अवयस्क की ओर से संरक्षक को देय होगी :

परन्तु यदि परिवार पेंशन के भुगतान के संबंध में अवयस्क द्वारा आपति्त की जाती है या यदि संबंधित विभाग के कार्यालय प्रमुख द्वारा यह अभिव्यक्त किया जाता है कि उपयुक्त संरक्षक मिल पाना संभव नहीं है तो अवयस्क के परिवार पेंशन की रकम उसके वयस्क होने तक, डाकघर में बचत बैंक में प्रतिमाह जमा की जायेगी । बचत बैंक खाता, कलेक्टर और जिला कोषालय अधिकारी द्वारा संयुक्त रूप से चलाया जाएगा तथा इस खाते में से कुछ रकम अवस्यक को उसकी शिक्षा और जीविका के लिये प्रतिमाह संवितरित की जायेगी । किन्तु संवितरित की जाने वाली रकम किन्हीं भी परिस्थितियों में प्रतिमाह देय परिवार पेंशन की रकम से अधिक नहीं होगी। बचत बैंक खाते की संपूर्ण अतिशेष रकम का अवयस्क परिवार पेंशनभोगी का उसके व्यस्क होने पर भुगतान कर दिया जायेगा और बचत बैंक खाता बन्द कर दिया जायेगा ।

(11) जिस प्रकरण में पत्नी और पति दोनों ही शासकीय सेवक हैं और इस नियम के उपबंधों द्वारा शासित होते हैं और सेवा में रहते हुए अथवा सेवा निवृत्ति के पश्चात उनमें से किसी एक की मृत्यु हो जाती है तो मृतक से सम्बन्धित परिवार पेन्शन जीवित पति अथवा पत्नी को देय होगी और पति अथवा पत्नी की मृत्यु घटित हो जाने पर जीवित बच्चा अथवा बच्चों को मृतक माता-पिता से सम्बन्धित दोनों परिवार पेन्शनें नीचे विनिर्दिष्ट सीमाओं के अध्यधीन स्वीकृत की जायेंगी, अर्थात् –

(क) (i) उपनियम (3) में उल्लेखित दर से यदि दोनों परिवार पेंशनों को आहरित करने के लिये जीवित बच्चा अथवा बच्चे पात्र हैं, तो दोनों की पेन्शनों की धनराशि प्रतिमाह रूपये 11,200/- ग्यारह हजार दो सौ तक ही सीमित होगी;

(ii) उपनियम (3) में उल्लेखित दर से यदि एक परिवार पेन्शन के भुगतान की पात्रता समाप्त हो जाती है तो उसके बदले उपनियम (2) में उल्लेखित दर से पेन्शन देय हो जायेगी । दोनों ही पेन्शनों की धनराशि भी प्रतिमाह रूपये 11,200/- ग्यारह हजार दो सौ तक ही सीमीत होगी ।

(ख) यदि दोनों ही परिवार-पेंशनें उपनियम (2) में उल्लेखित दर से भुगतान योग्य हैं तो प्रतिमाह दोनों पेन्शन की धनराशि [छह हजार सात सौ बीस रूपये प्रतिमाह] तक सीमित होगी ।

(ग) (i) यदि कोई व्यक्ति जो शासकीय सेवक की सेवाकाल के दौरान हुई मृत्यु की दशा में, इस नियम के अधीन परिवार-पेन्शन पाने के लिये पात्र है, उस शासकीय सेवक की हत्या के अपराध अथवा ऐसे किसी अपराध को करने के दुष्प्रेरण के लिये आरोपित किया गया है, तो उसके विरूद्ध संस्थित दांडिक कार्यवाही की समाप्ति तक परिवार पेंशन प्राप्तकरनेका उसका दावा, अन्य सदस्य अथवा सदस्योंके दावे को सम्मिलित करते हुए, निलम्बित रहेगा ।

(ii) यदि सम्बद्ध व्यक्ति उपखण्ड (i) में निर्दिष्ट दांडिक कार्यवाही की समाप्ति पर --

(क) उस शासकीय सेवक की हत्या अथवा हत्या का दुष्प्रेरण करने के लिये सिद्धदोष ठहराया जाता है, तो वह परिवार-पेन्शन प्राप्त करने से विवर्जित कर दिया जावेगा तथा परिवार पेंशन शासकीय सेवक की मृत्यु की तिथि से परिवार के अन्य पात्र सदस्य को भुगतान योग्य होगी ।

(ख) उस शासकीय सेवक की हत्या अथवा हत्या के दुष्प्रेरण करने के आरोप से दोषमुक्त कर दिया जाता है, तो ऐसे व्यक्ति को शासकीय सेवक की मृत्यु की तिथि से परिवार-पेन्शन भुगतान योग्य होगी ।

(iii) उपखण्ड (i) तथा उपखण्ड (ii) के उपबंध किसी शासकीय सेवक को उसकी सेवानिवृत्ति के पश्चात् उसकी मृत्यु होने पर देय होने वाली परिवार पेन्शन को भी लागु होंगे ।]

[(12) (क) (i) जैसे ही कोई शासकीय सेवक अपनी एक वर्ष की लगातार सेवा पूर्ण कर लेता है, फार्म- 3 में अपने परिवार का विवरण कार्यालय प्रमुख को देगा :

(ii) यदि शासकीय सेवक का परिवार नहीं है परन्तु जैसे ही वह परिवार अर्जित करता है फार्म -3 में परिवार का विवरण देगा ।

(ख) शासकीय सेवक कार्यालय-प्रमुख को, परिवार के आकार में पश्चातवर्ती हुआ कोई भी परिवर्तन सूचित करेगा । इस सूचना में लड़की के विवाह की वस्तुस्थिति की जानकारी भी शमिल होगी।

(ग) [विलोपित] [ वि. वि. क्र. 6/1-77/नि-2/चार, दिनांक 1-2-77]

(घ) कार्यालय-प्रमुख कथित फार्म -3 प्राप्त होने पर उसे सम्बन्धित शासकीय सेवक की सेवा पुस्तिका (Servise Book) में चिपकायेगा और कथित फार्म -3 और उस निमित्त शासकीय सेवक से आगे प्राप्त सभी संसूचनाओं की अभिस्वीकृति देगा ।

(ड़) परिवार के आकार में किसी भी परिवर्तन की सूचना शासकीय सेवक से प्राप्त होने पर कार्यालय प्रमुख फार्म -3 में समाविष्ट करेगा ।

(13) वित्त विभाग के ज्ञापन क्रमांक 1295/ आर-1508/चार-आर दो; दिनांक 21 मई, 1965 तथा समय–समय पर किये गये संशोधनों के अधीन स्वीकृति पेंशन में तदर्थ वृद्धि और वित्त विभाग के ज्ञापन क्र. बी./6/21/74 आर–दो/चार, दिनांक 22 मई, 1975 के अधीन स्वीकृति तदर्थ सहायता इस नियम के अधीन स्वीकृत परिवार-पेंशन पद स्वीकार्य नहीं होगी

(14) इस नियम के प्रयोजनार्थ --

( क ) “ लगातार सेवा ” से अभिप्रेत है पेन्शन सेवा प्रेवश की तिथि से सभी समयावधियाँ जो कि इस नियम के अधीन शासकीय सेवक को स्वीकार्य पेंशन/उपदान (Pension/Gratuity) के लिये संगणित की जाती हैं ।

(ख) शासकीय सेवक के “परिवार” से अभिप्रेत है—

(i) पुरूष सरकारी सेवक के मामले में उसकी पत्नी या पत्नियाँ एवं महिला सरकारी सेवक के मामले में उसका पति ।जहाँ कोई भी महिला सरकारी सेवक या कोई पुरूष सरकारी सेवक अपने पीछे विधुर या विधवा तथा पात्र बालकों को छोड़कर मर जाता है और यथास्थिति ऐसे विधुर या विधवा ने सरकारी सेवक की मृत्यु के पूर्व पुनर्विवाह कर लिया हो, वहाँ मृतक के सम्बन्ध में किसी बालक या बालकों को देय कुटुम्ब पेन्शन, उत्तरजीवी व्यक्ति को उस स्थिति में देय होगी जबकि वह ऐसे बालक या बालकों का सरंक्षक हो । जहाँ उत्तरजीवी व्यक्ति ऐसे बालक या बालकों का संरक्षक न रह गया हो, वहाँ ऐसी कुटुम्ब पेन्शन उस व्यक्ति को देय होगी जो कि बालक या बालकों का बास्तविक संरक्षक हो ।]

टिप्पणी -- जहाँ नियम 6 के उपनियम (3) में उल्लेखित कार्यालय-प्रमुख, कारणों को अभिलिखित करके निश्चित करे कि न्यायिक रूप से पृथक मृत महिला शासकीय सेवक का बच्चा अथवा बच्चों को मृत शासकीय सेवक की परिवार-पेन्शन, न्यायिक रूप से पृथक पति पर अधिमान देकर (In preference), स्वीकार करना चाहिये तो ऐसा पति “परिवार” में समाविष्ट नहीं माना जायेगा।

(ii) राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर विहित किये गये आय के मानदंड के अध्यधीन रहते हुए, पुत्र या अविवाहित या विधवा या विचि्छन्न विवाह पुत्री, यथास्थिति, ऐसे पुत्र या पुत्री के पच्चीस वर्ष की आयु पूरी कर लेने तक या उसके विवाह/पुनर्विवाह की तारीख तक, इनमें से जो भी पूर्वतर हो । इसमें ऐसा पुत्र या पुत्री सम्मिलित है जिसे सेवानिवृत्ति के पूर्व वैध रूप से दत्तक लिया गया है।

(iii) माता-पिता, बशर्ते कि सरकारी सेवक पर, जब वह जीवित था, पूरी तरह अश्रित, थे तथा मृत कर्मचारी राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर, विहित किये गये आश्रितता के अध्यधीन रहते हुए अपने पीछे न तो कोई विधवा छोड़ गया हो और न ही कोई संतान ।

(iv) यथा स्थिति, पुत्र अविवाहित या विधवा या विच्छिन्न विवाह पुत्री और माता-पिता, राज्य सरकार द्वारा, समय-समय पर, नियत किये गये अनुसार आय/आश्रितता मापदण्ड संबंधी वार्षिक प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करेंगे ।]

टिप्पणी -- 1. पिता की मृत्यु के उपारन्त उत्पन्न बच्चा (Posthumous child) परिवार पेंशन का हकदार होगा।

टिप्पणी -- 2. सेवानिवृत्ति के उपरान्त माता या पिता (post-retiral spouse) तथा शासकीय सेवक के सेवानिवृत्ति पश्चात् किये गये विवाह से पैदा हुए बच्चे को शामिल करने के लिये प्रार्थना-पत्र फार्म 30 में किया जायगा ।

(ग)  वेतन ” से अभिप्रेत है नियम 30 में उल्लेखित उपलब्धियाँ ।

(15) इस नियम में अन्तर्विष्ट कोई भी बात लागू नहीं होगी---

(क) पुनर्नियुक्त शासकीय सेवक को जो 1 अप्रैल, 1996 के पूर्व सेवानिवृत्त हो गया था---

(i) निवृत्ति पेन्शन अथवा अधिवार्षिकी-पेन्शन पर सिविल सेवा से, अथवा

(ii) निवृत्ति पेन्शन, सेवा पेन्शन; अथवा असमर्थता पेन्शन पर मिलिटरी सेवा से तथा जिस व्यक्ति ने अपनी पुनर्नियुक्ति की तिथि को जिस पद पर वह पुनर्नियुक्त हुआ है उस पद को लागू अधिवार्षिकी आयु पूर्ण कर ली है ।

(ख) मिलिटरी पेन्शनर जो 1 अप्रैल, 1966 को अथवा इसके पश्चात् मिलिटरी सेवा से सेवानिवृत्त हुआ है अथवा इन नियमों के प्रारम्भ होने के पश्चात् ऐसी सेवा से सेवानिवृत्ति पेन्शन, सेवा-पेन्शन, अथवा असमर्थता पेंशन पर सेवानिवृत्ति होता है और अधिवार्षिकी आयु पूर्ण करने के पूर्व किसी सिविल सेवा अथवा पद पर पुनर्नियुक्त किया जाता है।

(ग) वि.वि. अधिसूचना क्र . B-25-18-97/PWC/ चार, दिनांक 28-11-97 द्वारा विलोपित । यह संशोधन 20-5-97 से लागू ।   GO TO TOP

 

नियम 48. गैर - अंशदायी परिवार पेंशन - (1) इस नियम के प्रावधान उन शासकीय सेवकों पर लागू होंगे जो 31 मार्च, 1966 को सेवा में थे और जिन्होंने विशेष तौर पर परिवार पेंशन योजना (इसके पश्चात् इस नियम में गैर अंशदायी परिवार पेंशन के नाम से सन्दर्भित) जो परिवार पेंशन योजना , 1966 ( अंशदायी परिवार पेन्शन) के प्रारम्भ होने के तत्काल पूर्व प्रभावशील थी, के लिये विकल्प दिया था ।

(2) गैर अंशदायी परिवार-पेंशन, उस शासकीय सेवक के परिवार को दस वर्ष की अवधि के लिये स्वीकृत की जावेगी जिसकी सेवा में रहते हुये 20 वर्ष की अर्हतादायी सेवा पूर्ण करने के पश्चात् मृत्यु हो जाती है :

परन्तु यह कि भुगतान की अवधि किसी भी दशा में शासकीय सेवक जिस तिथि को अधिवार्षिकी पेंशन पर सामान्य रीति से सेवानिवृत्ति हुआ होता उस तिथि से पाँच वर्ष से अधिक विस्तारित नहीं होगी ।

स्पष्टीकरण – जहाँ किसी शासकीय सेवक की सेवा वृद्धि-काल के दैारान मृत्यु हो जाती है तो उसकी मृत्यु के पूर्व जिस तिथि तक उसे सेवा-वृद्धि स्वीकृत की गई थी वही तिथि, जिस पर शासकीय सेवक अधिवार्षिकी पेंशन पर सेवा-निवृत्त होता, माना जावेगी।

(3) शासकीय सेवक जिसने अपनी सेवा निवृत्ति के समय 20 वर्ष से अधिक अर्हतादायी सेवा पूरी कर ली है तथा अपनी सेवानिवृत्ति की तिथि से पाँच वर्ष के भीतर हो जाती है तो, उसकी सेवानिवृत्ति की तिथि से पाँच वर्ष के असमाप्त भाग के लिए उसके परिवार को गैर-अंशदायी परिवार पेंशन स्वीकृत की जावेगी ।

(4) (ए) उप नियम (2) के अन्तर्गत भुगतान योग्य गैर-अशंदायी परिवार पेंशन की धनराशि शासकीय सेवक को उसकी मृत्यु की तिथि के पश्चात् अगली तिथि को यदि वह सेवानिवृत्त हुआ होता तो जो अधिवार्षिकी पेंशन स्वीकृत होती, उसकी आधीन होगी ।

(बी) उप-नियम (3) के अन्तर्गत गैर-अंशदायी परिवार-पेंशन की धनराशि शासकीय सेवक को उसके सेवानिवृत्ति के समय पेंशन की आधी होगी और यदि पेंशनर ने मृत्यु के पूर्व उसकी पेंशन के भाग को लघुकृत (Commuted) करा लिया है तो वह गैर-अशंदायी पेंशन की धनराशि से काटा जावेगा :

परन्तु यह कि गैर-अंशदायी परिवार-पेंशन की धनराशि प्रतिमाह अधिकतम एक सौ पचास रूपये प्रतिमाह और न्यूनतम चालीस रूपये सीमा तक होगी :

परन्तु यह और कि, जहाँ गैर-अंशदायी परिवार पेंशन (मध्य प्रदेश शासन वित्त विभाग ज्ञापन क्र. 1069-चार-आर-दो-70, दिनांक 29 अप्रैल, 1970 में स्वीकृत तदर्थ वृद्धि, यदि स्वीकृति योग्य है, हिसाब में लेने के पश्चात् संगणित करके) की धनराशि रूपये चालीस प्रतिमाह से कम है तो गैर-अंशदायी पेन्शन की धनराशि में और अतिरिक्त वृद्धि स्वीकृत करके अन्तर को पूर्ण किया जावेगा ।

(5) गैर-अंशदायी परिवार पेंशन इस नियम के अधीन निम्न को भुगतान योग्य नहीं होगी---

(ए) उप नियम (6) के खण्ड (बी) में उल्लेखित व्यक्ति को, समुचित प्रमाण-पत्र प्रस्तुत किए बगैर कि वह व्यक्ति सहायता कि लिए मृतक शासकीय सेवक पर आश्रित था,

(बी) शासकीय सेवक के परिवार की अविवाहित महिला सदस्य को, उसका विवाह हो जाने की दशा में,

(सी) शासकीय सेवक के परिवार की विधवा महिला सदस्या को, उसका पुनर्विवाह हो जोन की दशा में,

(डी) शासकीय सेवक के भाई को, उसके अट्ठारह वर्ष की आयु पूर्ण कर लेने पर,

(ई) उस व्यक्ति को जो शासकीय सेवक के परिवार का सदस्य नहीं है ।

(6) (ए) उप नियम (7) के अधीन नामांकन के द्वारा विहित किए गए के सिवाय, इस नियम के अधीन स्वीकृत की गई गैर-अंशदायी परिवार पेंशन (इन्हें) भुगतान येाग्य होगी --

(i) विधवा को, यदि मृतक शासकीय सेवक पुरूष था, और यदि एक से अधिक विधवाएँ हैं तो सबसे ज्येष्ठ जीवित विधवा को,

स्प्ष्टीकरण -- जीवित विधवाओं के विवाहों की तिथि के अुनसार, वरिष्ठता के सन्दर्भ में, और न कि उनकी आयु के संदर्भ में ज्येष्ठ जीवित विधवा (Eldest Surviving widow) अभिव्यक्ति मानी जावेगी ।

(ii) ज्येष्ठ जीवित पुत्र को, विधवा अथवा पति जैसा भी प्रकरण हो, नहीं रहने पर,

(iii) ज्येष्ठ जीवित अविवाहित पुत्री को, (i) और (ii) नहीं होने पर,

(iv) उपर्युक्त के अभाव में, जीवित ज्येष्ठ विधवा पुत्री को ।

(बी) खण्ड (ए) के अनुसार यदि परिवार का कोई सदस्य जीवित नहीं है तो गैर अशंदायी परिवार पेंशन (इन्हें) स्वीकृत की जा सकती है--

(i) पिता को,

(ii) उपर्युकत (i) के अभाव में माता को,

(iii) उपर्युक्त (i) और (ii) के अभाव में 18 वर्ष से कम आयु के ज्येष्ठ जीवित भाई को,

(iv) उपर्युक्त (i), (ii) और (iii) के अभाव में जीवित ज्येष्ठ अविवाहित बहिन को,

(v) उपर्युकत के अभाव में जीवित ज्येष्ठ विधवा बहिनों को ।

(7) (ए) बीस वर्ष की अर्हतादायी सेवा पूर्ण कर लेने के पूर्व, शासकीय सेवक किसी भी समय फार्म-4 में नामांकन, वह क्रम उपदर्शित करते हुए जिनमें उसके परिवार के सदस्यों को गैर-अंशदायी परिवार पेंशन का भुगतान किया जाना चाहिये, नामांकन करेगा और जिस सीमा तक वह विधिमान्य है वैसे नामांकन के अनुसार ही गैर-अंशदायी परिवार पेंशन भुगतान योग्य होगी, परन्तु यह कि, जिस तिथि से गैर-अंशदायी परिवार पेंशन देय है, सम्बन्धित व्यक्तियों द्वारा उस तिथि को उप नियम (5) की आवश्यकताओं को पूर्ण किया जाये ।

(बी) यदि सम्बंधित व्यक्ति उप नियम (5) की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं करता है तो नामांकन में बताए गए क्रम मे अगले नीचे वाले व्यक्ति को गैर-अंशदायी परिवार पेंशन स्वीकृत की जावेगी ।

(सी) नियम 46 के उपनियम (5), (7) और (8) के प्रावधान इस उप नियम के अधीन किये गये नामांकन के सम्बंध में लागू होंगे ।

(8) (ए) इस नियम के अधीन स्वीकृत की गई गैर-अशंदायी परिवार पेंशन एक ही शासकीय सेवक के परिवार के एक से अधिक सदस्य को देय नहीं होगी ।

(बी) यदि इस नियम के अधीन स्वीकृत गैर-अंशदायी परिवार पेंशन का भुगतान उसके प्राप्तकर्ता की मृत्यु अथवा विवाह अथवा अन्य कराणों से बन्द हो जाय तो वह उप नियम (6) में उल्लेखित क्रम के अधीन प्रस्तुत किये गये नामांकन में दर्शाये गये क्रम में नीचे के व्यक्ति को, जैसा भी प्रकरण हो, जो इस नियम के अन्य प्रावधानों को पूरा करता है, पुन: स्वीकृत की जावेगी ।

(9) इन नियम के अधीन स्वीकृत की गई गैर-अशंदायी परिवार पेंशन किसी शासकीय सेवक के परिवार के सदस्य को स्वीकृत होने वाली असाधारण पेंशन अथवा उपदान अथवा क्षतिपूर्ति के अतिरिक्त मान्य होगी ।

(10) इस नियम के अधीन जहाँ मृत शासकीय सेवक के परिवार के किसी अवयस्क सदस्य को गैर-अशंदायी परिवार पेंशन स्वीकृत की जाती है तो वह अवयस्क की और से संरक्षक को देय होगी :

परन्तु यदि परिवार पेंशन के भुगतान के संबंध में अवयस्क द्वारा आपत्ति की जाती है या यदि संबंधित विभाग के कार्यालय प्रमुख द्वारा यह अभिव्यक्त किया जाता है कि उपयुक्त संरक्षक मिल पाना संभव नहीं है तो अवयस्क के परिवार पेंशन की रकम, उसके वयस्क होने तक, डाकघर में बचत बैंक में प्रतिमाह जमा की जाएगी । बचत बैंक खाता, कलेक्टर और जिला कोषालय अधिकारी द्वारा संयुक्त रूप से चलाया जाएगा तथा इस खाते में से कुछ रकम अवयस्क को उसकी शिक्षा और जीविका के लिए प्रतिमाह संवितरित की जाएगी । किन्तु संवितरित की जाने वाली रकम किन्हीं भी परिस्थितियों में प्रतिमाह देय पेरिवार पेंशन की रकम से अधिक नहीं हेागी । बचत बैंक खाते की संपूर्ण अतिशेष रकम का अवयस्क परिवार पेंशन भोगी को उसके वयस्क होने पर भुगतान कर दिया जाएगा और बचत बैंक खाता बन्द कर दिया जाएगा।

(11) इस नियम के प्रयोजनों के लिये शासकीय सेवक के ‘परिवार’ अभिव्यक्ति से अभिप्रेत है नियम 44 के उप नियम (5) के खण्ड (i) से (xi) तक में परिभाषित परिवार ।

(12) इस नियम में की अतंर्विष्ट कोई भी बात उस शासकीय सेवक को लागू नहीं होगी जिसे शासन के द्वारा धारित अथवा नियंत्रित किसी निगम अथवा कम्पनी अथवा निगमित अथवा अनिगमित किसी अन्य निकाय के अधीन पूर्णत: अथवा आंशिक रूप से किसी सेवा में अथवा पद पर संविलयन होने पर नियम 34 के अधीन पेंशन स्वीकृत की गई है।   GO TO TOP

 

अध्याय - 8
आवेदन – पत्र तथा पेंशन की स्वीकृति
सामान्य (General)

 

नियम 49. सेवानिवृत्त होने वाले शासकीय सेवकों की सूची का बनाया जाना – 

(1) प्रत्येक विभागाध्यक्ष/कार्यायल प्रमुख प्रत्येक छ: माह पर, अर्थात् प्रतिवर्ष पहली जनवरी और पहली जुलाई को ऐसे समस्त राजपत्रित और अराजपत्रित शासकीय कर्मचारियों की सूची बनायेंगे जो उनके आदेश से, आगामी 24 से 30 महीनों के भीतर सेवानिवृत्त होने वाले हैं ।

(2) उपनियम (1) में निर्दिष्ट प्रत्येक सूची की प्रतियां संचालक, पेंशन, संबंधित संयुक्त संचालक, कोष, लेखा एवं पेंशन/कोषालय अधिकारी तथा महालेखाकार, म.प्र. उसी वर्ष की यथास्थिति, 31 जनवरी या जुलाई के अपश्चात् तत्परता से भेजी जाएंगी ।

(3) जिन प्रकरणों में कोई शासकीय सेवक अधिवार्षिकी आयु के अलावा, अन्य कारणों से सेवानिवृत्त हो रहा हो तो विभागाध्यक्ष/कार्यालय-प्रमुख को जैसे ही सेवानिवृत्ति का संज्ञान हो तत्परता से लेखा परीक्षा अधिकारी और वित्त विभाग को सूचित करेगा ।

(4) उपनियम (1) और (3) में उल्लेखित सूची की एक-एक प्रति लोक निर्माण विभाग और लोक स्वास्थ्य यान्त्रिकी विभाग के कार्यपालन यन्त्री को भी भेजी जावेगी, जिससे कि वे ऐसे शासकीय सेवक के विरूद्ध आवास किराया और जलपूर्ति के बकाया की जांच पड़ताल कर सकें ।   GO TO TOP

 

नियम 50. स्थापना देयकों पर वेतन प्राप्त करने वाले राजपत्रित शासकीय सेवक और स्थानापन्न रूप से राजपत्रित पद पर पदस्थ अन्य शासकीय सेवक - विलोपित [ वित्त विभाग क्र. बी.-6/1/77/नि-2/चार, दिनांक 1-2-1977]

 

नियम 51. विलोपित [ वित्त विभाग क्र. बी.-6/3/81/नि-2/चार, दिनांक 20-3-1981]

 

नियम 52. स्वीकृति के पश्चात् पेंशन का पुनरीक्षण – 

(1) नियम 8 और 9 के उपबंधों की शर्तों के अधीन अंतिम निर्धारण के पश्चात् एक बार स्वीकृत की गई पेंशन को शासकीय पेंशनर को हानि पहुँचाने के उद्देश्य से तब तक पुनरीक्षित नहीं किया जावेगा जब तक कि बाद में लिपिकीय अथवा गणना की भूल का पता लगाने के कारण ऐसा पुनरीक्षण आवश्यक न हो:

किन्तु पेंशन स्वीकृति की तिथि से दो वर्ष की अवधि के पश्चात् यदि लिपिकीय अथवा गणना की भूल का पता चलता है तो वित्त विभाग की स्वीकृति के बगैर स्वीकृतकर्त्ता प्राधिकारी द्वारा पेंशनर को हानि के लिये पेंशन पुनरीक्षण आदेश नहीं दिया जावेगा ।

(2) उप नियम (1) के प्रयोजनार्थ, संबंधित शासकीय पेंशनर को पेंशन स्वीकृतकर्ता प्राधिकारी द्वारा एक नोटिस भेजा जाएगा जिसमें उससे अपेक्षा की जायेगी कि वह पेंशन का अधिक भुगतान नोटिस प्राप्ति के दिनांक से दो माह के अंदर वापस लौटा दे ।

(3) यदि शासकीय पेंशनभोगी नोटिस का पालन करने में असफल रहता है तो पेंशन स्वीकृतकर्ता प्राधिकारी के लिखित आदेश से इस प्रकार का अधिक भुगतान भावी पेंशन के भुगतानों में कमी करके एक अथवा अधिक किश्तों में, जैसा कि कथित प्राधिकारी निर्देशित करे, समायोजन किया जावेगा ।   GO TO TOP

नियम 53.    [ विलोपित]

नियम 54.    [ विलोपित]

नियम 55.    [ वित्त विभाग क्र. एफ.बी. 6/1/77/नि-2/चार, दिनांक 1-2-1977] ।

नियम 56.    [ विलोपित]

 

नियम 57. पेंशन के कागजपत्रों की तैयारी – 

(1) जिस तिथि से शासकीय सेवक अधिवार्षिकी पर सेवानिवृत्त होने वाला है अथवा उस तिथि से जिससे सेवानिवृत्ति पूर्व छुट्टी पर जाता है, जो भी पहले हो, उससे दो वर्ष पूर्व प्रत्येक कार्यालय प्रमुख प्ररूप 6 ख में पेंशन–पत्रों को तैयार करने का कार्य प्रारम्भ कर देगा ।

व्याख्या – [विलोपित] [ वि. वि. क्र. एफ. बी. 6/1/77/नि-2/चार, दिनांक 1-2-77]   GO TO TOP

 

नियम 58. सेवा का प्रमाणीकरण – 

(1) (क) कार्यालय प्रमुख शासकीय सेवक की सेवा पुस्तिका और सर्विस रोल, यदि कोई हो, की जांच करेगा और स्वयं समाधान करेगा कि क्या सम्पूर्ण सेवाकाल के लिये सत्यापन का वार्षिक प्रमाण-पत्र, नियम 29 के उपनियम (3) में उल्लेखित भाब को छोड़कर, उसमें अंकित है ।

(ख) सेवा का अप्रमाणित भाग अथवा भागों के सम्बंध में वह उसे अथवा उन्हें, जैसा भी प्रकरण हो, वेतन देयकों, भुगतान पत्रकों अथवा अन्य सम्बंधित अभिलेखों के संदर्भ में सत्यापन करने की व्यवस्था करेगा और सेवा पुस्तिका अथवा सर्विस-रोल में, जैसा भी प्रकरण हो, आवश्यक प्रमाण-पत्रों को अंकित करेगा ।

(2) उपनियम (1) में निर्दिष्ट रीति से यदि किसी अवधि की सेवा इसलिये सत्यापित की जाना संभव नहीं है कि उस अवधि में सेवा शासकीय सेवक द्वारा अन्य कार्यालय अथवा विभाग में व्यतीत की गई है तो, सत्यापन के लिये उस कार्यालय प्रमुख अथवा विभाग प्रमुख, जैसा भी प्रकरण हो, को लिखा जायेगा जहाँ शासकीय सेवक उस अवधि के दौरान कार्यरत रहा है ।

(3) (क) उपनियम (1) अथवा उपनियम (2) में निर्दिष्ट रीति से यदि शासकीय सेवक द्वारा की गई सेवा का कोई भाग सत्यापित करना संभव नहीं है तो शासकीय सेवक सादे कागज पर एक लिखित कथन प्रस्तुत करेगा कि उसने उस अवधि में वास्तव में सेवा की है और ऐसी घोषणा के समर्थन में सभी दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत करेगा और घोषणा पर हस्ताक्षर करेगा और उस कथन की सत्यता के विषय में समस्त जानकारी देगा जिसे प्रस्तुत करने अथवा देने में वह समर्थ है ।

(ख) कथित सेवा की अवधि के सम्बन्ध में, शासकीय सेवक द्वारा लिखित कथन और प्रस्तुत लक्ष्य और दी गई जानकारी पर विचार कर कार्यालय प्रमुख यदि संतुष्ट होता है तो, उस शासकीय सेवक की पेंशन संगणना के उद्देश्यों के लिये वैसी व्यतीत की गई सेवा का भाग स्वीकार करेगा ।   GO TO TOP

 

नियम 59. पेन्शन पत्रों की पूर्णता और उन्हें लेखा परीक्षा अधिकारी को अग्रेषित करना – 

[(1) (क) इस प्रक्रम पर पहुंचने पर, अर्थात् सेवा निवृत्ति की तारीख से 13 मास पूर्व, कार्यालय प्रमुख, प्ररूप 6-क तथा प्ररूप 6-ख में पेंशन पत्रों को तैयार करने का वास्तिवक कार्य करेगा। कार्यालय प्रमुख शासकीय सेवक की सेवा निवृत्ति के 6 मास पूर्व, अपेक्षित सेवा अभिलेख के साथ प्रारूप 6-क तथा प्रारूप 6-ख, जिसमें प्ररूप 6-क के साथ संलग्न क्षतिपूर्ति बंधपत्र सम्मिलित है, यथास्थिति, संबंधित संयुक्त संचालक, कोष, लेखा एवं पेंशन/कोषालय अधिकारी को भेजेगा । किसी कमी या अपूर्णता अथवा चूक पर, जो सेवा अभिलेख में अब भी शेष रहती है, इस प्रक्रम पर ध्यान नहीं दिया जाएगा और अर्हक सेवा, सेवा अभिलेख में की गई प्रविष्टियों के आधार पर पूर्णता की उस मात्रा (डिग्री) तक, जिस तक उस समय उसे लाना संभव हो, आगे बढ़ाई जाएगी ।

(ख)  [ वित्त विभाग क्रमांक बी/6/2/81/नि-2/चार, दिनांक 20-03-81 द्वारा विलोपित]

(ग)   [ वित्त विभाग क्रमांक बी/6/2/81/नि-2/चार, दिनांक 20-03-81 द्वारा विलोपित]

(2) (क) सेवानिवृत्ति की तिथि के 12 माह पूर्व कार्यालय प्रमुख, फार्म 7 में स्पष्टीकरण ज्ञापन के साथ, सम्यक् रूप से और अद्यतन दिनांक तक पूर्ण सेवा पुस्तिका/सर्विस-रोल और स्वीकार किया गये सेवा सत्यापन पर आधारित अन्य अभिलेख के साथ, प्ररूप 6-ख इस प्रकार भेजेगा कि उस पर सुविधापूर्वक विचार हो सके ।

(ख) कार्यालय-प्रमुख उसके कार्यालय के अभिलेख हेतु उपर्युक्त प्रत्येक फार्म की एक-एक प्रतिलिपि रखेगा ।

(3) यदि किसी अन्य आडिट-सर्कल में भुगतान होना इच्छित है तो कार्यालय-प्रमुख [प्ररूप 6-ख] दो प्रतियों में आडिट आफिसर को भेजेगा ।   GO TO TOP

 

नियम 60. पेंशन पर प्रभाव डालने वाली किसी घटना के सम्बन्ध में आडिट आफिसर को सूचना-

(1) यदि पेंशन पत्रों को आडिट आफिसर को अग्रेषित करने के पश्चात् कोई घटना घटित होती है जिसका प्रभाव स्वीकार्य पेंशन की धनराशि पर पड़ेगा तो कार्यालय प्रमुख द्वारा आडिट आफिसर को तत्परता से उन तथ्यों की जानकारी दी जावेगी । यदि सेवानिवृत्ति की तिथि से एक सप्ताह के भीतर ऐसी कोई रिपोर्ट प्राप्त नहीं होती है तो आडिट आफिसर यह मान लेगा कि ऐसी कोई घटना घटित नहीं हुई है ।

(2) कार्यालय प्रमुख आडिट आफिसर को शासकीय सेवक की सेवानिवृत्ति के कम से कम डेढ़ माह पूर्व निम्नलिखित ब्यौरे देगा, अर्थात् –

(क) भुगतान प्राधिकृत किये जाने के पूर्व उपदान से वसूली योग्य शासकीय बकाया, अर्थात्—

(i) अंशदायी परिवार पेन्शन के सम्बन्ध में अंशदान, यदि लागू हो,

(ii) शासकीय बकाया जो कि अभिनिश्चित और निर्धारित किये जा चुके हैं ।

(ख) अब तक निर्धारित नहीं किये गये शासकीय बकाया के समायोजन के लिये रोकी जाने वाली उपदान की धनराशि:

परंतु यह कि यदि शासकीय सेवक ने नियम 65 के अधीन नकद धनराशि जमा कर दी है अथवा किसी स्थायी शासकीय सेवक की जमानत दे दी है तो, शासकीय बकाया, जिसका निर्धारण नहीं किया गया है, के समायोजन के लिये उपदान की धनराशि रोकने की आवश्यकता कार्यालय प्रमुख को नहीं होगी ।   GO TO TOP

 

नियम 61. पूर्वानुमानित पेंशन और उपदान की स्वीकृति , आहरण और संवितरण - 

(1) शासकीय सेवक के पेंशन कागजात संबंधित लेखा परीक्षा अधिकारी को प्रेषित कर दिये जाने के उपरांत, कार्यालय प्रमुख सहपठित नियम 74 के अनुसार अधिकतम पेंशन से अनधिक अनुमानित पेंशन तथा उपदान का 90 प्रतिशत जैसा कि प्ररूप 6-ख में उल्लेखित है, आहरित करेगा तथा इस हेतु निम्न प्रक्रिया का अनुसरण किया जाएगा, यथा –

(क) ऐसे शासकीय सेवक को सेवानिवृत्ति पर भुगतान योग्य पूर्वानुमानित पेंशन और उपदान की 90 प्रतिशत धनराशि बताते हुए आदेश की एक प्रति आडिट आफिसर को भेजते हुए, कार्यालय-प्रमुख शासकीय सेवक को एक स्वीकृति –पत्र जारी करेगा ।

(ख) कार्यालय-प्रमुख नियम-60 के उपनियम (2) के अधीन उपदान में से वसूली योग्य धनराशि स्वीकृति –पत्र में बतायेगा ।

(ग) स्वीकृति-पत्र जारी करने के पश्चात् कार्यालय-प्रमुख—

(i) पूर्वानुमानित पेन्शन की धनराशि, और

(ii) 90 प्रतिशत उपदान, जिसमें से खण्ड (ख) में उल्लेखित बकाया वसूली कम करने के पश्चात्,

आडिट आफिसर को सूचना देते हुए, उस कोषालय से जहां से उसके द्वारा स्थापना के वेतन और भत्तों का आहरण किया जाता है, स्थापना वेतन-बिल पर आहरण करेगा ।

(घ) सेवानिवृत्त हो जाने के पश्चात् ऐसे शासकीय सेवक से, रोजगार में नहीं होने का प्रमाण-पत्र प्रतिमाह कार्यालय प्रमुख प्राप्त करेगा और उसे पूर्वानुमानित पेंशन भुगतान के अभिलेख के साथ रखेगा ।

(2) जिस तिथि को पेंशन/उपदान देय हो जाते हैं, यदि उस तिथि तक पेंशन भुगतान आदेश/उपदान भुगतान आदेश प्राप्त नहीं होते हैं तो जिस माह में शासकीय सेवक सेवानिवृत्त हुआ है उसके अगले माह के प्रथम दिन, सेवानिवृत्त शासकीय सेवक को पूर्वानुमानित पेंशन और उपदान के आहरण और संवितरण के लिये कार्यालय-प्रमुख कार्यवाही करेगा ।

(3) यदि पेंशनर पूर्वानुमानित पेंशन का भुगतान मनीआर्डर से चाहता है, और यदि धनराशि पांच सौ रूपये से अधिक नहीं है तो, उसे शासन के खर्च पर मनीआर्डर द्वारा भेजी जा सकती है ।   GO TO TOP

 

नियम 62. कोषालय अथवा कार्यालय प्रमुख के यहाँ से उपदान के अवशेष का आहरण – 

(1) यह शासकीय सेवक पर निर्भर होगा कि उपदान की अवशेष धनराशि का भुगतान उस कोषालय से जहाँ से अंतिम पेंशन का भुगतान इच्छित है वहाँ अथवा कार्यालय प्रमुख के मार्फत प्राप्त करें ।

(2) जहाँ ऐसा शासकीय सेवक कार्यालय प्रमुख के मार्फत उपदान की अवशेष राशि प्राप्त करना चाहता है वहाँ इस निमित्त वह अपना विकल्प उसकी सेवानिवृत्ति की तिथि से पूर्व लिखित में कार्यालय प्रमुख को संसूचित करेगा ।

(3) नियम 63 के उपनियम (4) में यथा उपबंधित अनुसार आडिट आफिस द्वारा आवश्यक प्राधिकार जारी करने के पश्चात् कार्यालय प्रमुख उपदान की अवशेष धनराशि के आहरण और संवितरण के लिये आवश्यक कार्यवाही करेगा ।

 

नियम 63. आडिट आफिसर द्वारा अंतिम पेंशन और उपदान का अधिकार - 

(1) नियम 59 में उल्लेखित पेन्शन-पत्रों के प्राप्त होने पर आडिट आफिसर अपेक्षित जांच पड़ताल करेगा, तथा प्ररूप 6ख पर अपना आडिट मुखांकन अंकित करेगा और सेवा निवृत्ति के कम से कम दो माह पूर्व अंतिम पेन्शन और उपदान की धनराशि का निर्धारण करेगा :

परंतु यदि आडिट आफिसर किसी भी कारण से कथित धनराशि निर्धारित करने में असमर्थ है तो वह कार्यालय प्रमुख को तथ्य संसूचित करेगा ।

टिप्पणी – अपेक्षित जांच पड़ताल से आशयित है सम्पूर्ण सेवा पुस्तिका अथवा अभिलेख का सर्वांगीण योग अथवा आडिट करना नहीं । केवल हस्तगत तात्कालिक उद्देश्य अर्थात् पेन्शन कागजातों की तैयारी की सीमित समीक्षा करना है । इसी प्रकार पेन्शन कागजात तैयार करने वाले कार्यालय अथवा आडिट आफिस में उपलब्धियों के सही होने की जांच पड़ताल अतीत में वापस जाकर व्यापक परीक्षण करने का नहीं है, पूर्ववर्ती जांच पड़ताल सेवा निवृत्ति की तिथि से पूर्व के अंतिम 12 माह न्यूनतम की जो कि पूर्ण रूप से आवश्यक है होना चाहिये और यह (जांच पड़ताल) किसी भी प्रकरण में अधिकतम 24 माह के पूर्व की नहीं होगी ।

(2) (क) यदि पेन्शन. उसी के आडिट सर्कल में भुगतान योग्य है तो सेवानिवृत्ति की तिथि से एक माह पूर्व ही अग्रिम रूप से आडिट आफिसर मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति उपदान के आदेश सहित पेन्शन भुगतान आदेश तैयार करेगा ।

(ख) पेन्शन का भुगतान शासकीय सेवक के स्थापना में नहीं रहने की तिथि से प्रभावशील होगा।

(ग) पूर्वानुमानित पेन्शन के रूप में कार्यालय प्रमुख द्वारा किये गये भुगतान का समायोजन अंतिम पेंशन की बकाया-राशि से होगा ।

(3) आडिट आफिसर, सेवानिवृत्त शासकीय सेवक के विरूद्ध बकाया धनराशि, यदि कोई हो, और पूर्वानुमानित उपदान के रूप में भुगतान की गई धनराशि को समायोजित करने के पश्चात् उपदान से भुगतान के लिये प्राधिकृत करेगा । यदि ऐसा उपदान उसके आडिट सर्कल में भुगतान योग्य है तो आडिट आफिसर उसके भुगतान के लिये एक आदेश तैयार करेगा ।

(4) यदि शासकीय सेवक ने उपदान की शेष धनराशि कार्यालय प्रमुख के मार्फत प्राप्त करने का विकल्प दिया है तो, पूर्वानुमानित उपदान के रूप में भुगतान की गई धनराशि सहित, यदि कोई हो, बताते हुये जिसे कार्यालय प्रमुख शासकीय सेवक को भुगतान करने के पूर्व समायोजित करेगा, कोषालय अधिकारी को सूचना देते हुये आडिट आफिसर इस निमित्त आवश्यक प्राधिकार जारी करेगा।

(5) पेंशन भुगतान आदेश और उपदान भुगतान आदेश जारी किये जाने के तथ्य की जानकारी कार्यालय प्रमुख को तत्काल दी जावेगी और जिन पेंशन-पत्रों की आवश्यकता नहीं है उन्हें वापस लौटा दिया जावेगा ।

(6) आडिट आफिसर पुर्वानुमानित पेंशन चालू रहने की अवधि में भी उपदान की अवशेष धनराशि का भुगतान प्राधिकृत कर सकता है, बशर्ते कि उपदान की धनराशि अंतिम रूप से निर्धारित कर ली गई हो और सेवानिवृत्त शासकीय सेवक के विरूद्ध कोई शासकीय वसूली बकाया न हो ।

(7) यदि पेन्शन और उपदान की धनराशि का भुगतान किसी अन्य आडिट सर्कल में किया जाना है तो आडिट आफिसर कार्यालय प्रमुख के द्वारा पूर्वानुमानित पेन्शन और उपदान की भुगतान की गई धनराशि की जानकारी प्राप्त करेगा और आडिट मुखांकन और अंतिम वेतन प्रमाण-पत्र, यदि प्राप्त हो गया हो, के साथ प्ररूप 6-ख की प्रति के साथ उस सर्कल के आडिट आफिसर को भेजेगा जिसे पेंशन भुगतान आदेश तैयार करना है :

परंतु कार्यालय–प्रमुख द्वारा आहरित और संवितरित पूर्वानुमानित पेंशन और उपदान की धनराशि का समायोजन उस आडिट आफिसर द्वारा किया जावेगा जिसके सर्कल में पूर्वानुमानित पेंशन और उपदान की धनराशि भुगतान की गई थी ।

(8) यदि कार्यालय – प्रमुख द्वारा आहरित और संवितरित पूर्वानुमानित पेंशन की धनराशि आडिट आफिसर द्वारा निर्धारित अंन्तिम पेंशन से अधिक पाई जाती है, तो आधिक्य- धनराशि को उपदान के अवशेष में से समायोजित करना अथवा आधिक्य धनराशि भविष्य में भुगतान होने वाली पेंशन में कटौती कर के वसूल करना, यह आडिट आफिसर पर निर्भर करेगा ।

(9) यदि कार्यालय–प्रमुख द्वारा संवितरित पूर्वानुमानित उपदान की धनराशि आडिट आफिसर द्वारा अन्तिम रूप से निर्धारित धनराशि से अधिक होना प्रमाणित होती है तो उपदान प्राप्तकर्ता से आधिक्य की वापसी की अपेक्षा नहीं की जायेगी ।   GO TO TOP

 

नियम 64. अन्तरिम पेन्शन जहां विभागीय अथवा न्यायिक कार्यवाही लम्बित है – 

(1) (क) नियम 9 के उपनियम (4) में निर्दिष्ट शासकीय सेवक के सम्बन्ध में कार्यालय प्रमुख उतनी अनन्तिम पेन्शन प्राधिकृत करेगा जो उस अधिकतम पेंशन के बराबर होगी जो शासकीय सेवक को सेवानिवृत्ति की तारीख तक की या यदि वह सेवानिवृत्ति की तारीख को निलम्बित था तो उस तारीख, जिस तारीख को उसे निलम्बित किया गया था, के ठीक पूर्व की तारीख तक की अर्हकारी सेवा के आधार पर अनुज्ञेय हो।

(ख) सेवानिवृत्ति की तारीख से प्रारम्भ होकर उस तारीख तक तथा उस तारीख को सम्मिलित करते हुये जिसको कि विभागीय या न्यायिक कार्यवाहियाँ समाप्त होने के पश्चात् सक्षम प्राधिकारी द्वारा अंन्तिम आदेश पारित किये जायें की कालावधि की अनन्तिम पेंशन कार्यालय प्रमुख द्वारा स्थापना वेतन देयक पर निकाली जायेगी और सेवानिवृत्त शासकीय सेवक को भुगतान की जावेगी ।

(ग) शासकीय सेवक को उपदान का भुगतान तब तक नहीं किया जायेगा जब तक कि विभागीय या न्यायिक कार्यवाहियाँ समाप्त न हो जायें और उस पर अंतिम आदेश पारित नहीं कर दिया जाये :

परन्तु जहाँ विभागीय कार्यवाहियाँ मध्यप्रदेश सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण तथा अपील) नियम, 1966 के नियम 16 के अधीन उक्त नियमों के नियम 10 के खण्ड (एक), (दो) तथा (चार) में विनिर्दिष्ट शास्तियों में से किसी भी शास्ति को अधिरोपण करने के लिये संस्थित की गई है, वहां शासकीय सेवक को नियमों के अधीन अनुज्ञेय उपदान का 90% तक अनन्तिम उपदान का भुगतान किया जाना प्राधिकृत किया जा सकता है ।

(2) कार्यालय प्रमुख द्वारा अनन्तिम उपदान स्थापना वेतन देयक पर निकाला जायेगा तथा नियम 60 के उपनियम (2) में बर्णित शोध्यों को समायोजित करने के पश्चात् शासकीय सेवक को भुगतान संपरीक्षा कार्यालय को सूचना के अधीन किया जायेगा । उपनियम (1) के अधीन अनन्तिम पेंशन/उपदान के भुगतान का समायोजन ऐसी कार्यवाहियों की समाप्ति पर उस शासकीय सेवक को स्वीकृत अन्तिम सेवानिवृत्ति लाभों से किया जायेगा, किन्तु उस स्थिति में कोई वसूली नहीं की जायेगी जहाँ अन्तिम रूप से स्वीकृत पेन्शन/उपदान अनन्तिम पेन्शन/उपदान से कम है या जहाँ पेंशन/उपदान को या तो स्थायी रूप से या किसी विनिर्दिष्ट कालावधि के लिये कम कर दिया गया हो या रोक दिया गया हो ।

टिप्पणी –नियम 64 के अधीन अनन्तिम पेंशन की मन्जूरी आज्ञापक है, भले ही विभागीय या न्यायिक कार्यवाहियाँ चालू हों ।   GO TO TOP

 

नियम 64-A. प्रतिनियुक्ति पर शासकीय सेवक – प्रतिनियुक्ति पर अथवा बाह्रा सेवा में रहते हुये सेवानिवृत्त होने वाले शासकीय सेवक के प्रकरण में इस अध्याय के प्रावधानों के अनुसार पेन्शन और उपदान स्वीकृत करने की कार्यवाही विभागीय अधिकारी के कार्यालय प्रमुख, जिसने शासकीय सेवक की प्रतिनियुक्ति स्वीकृत की थी अथवा उसे बाह्रा सेवा पर भेजा था, के द्वारा की जावेगी ।

 

शासकीय बकाया

 

नियम 65. शासकीय बकाया की वसूली और समायोजन – (1) प्रत्येक सेवानिवृत्त होने वाले शासकीय सेवक का कर्त्तव्य होगा कि वह अपनी सेवानिवृत्ति की तिथि के पूर्व सभी शासकीय बकाया चुकता करे ।

(2) जहाँ शासकीय सेवक शासकीय बकाया का चुकारा नहीं करता है और ऐसी बकाया अभिनिश्चित किये जाने योग्य है, तो –

(क) उस व्यक्ति से उसके समतुल्य नगद जमा प्राप्त कर ली जाय; अथवा

(ख) अभिनिश्चित शासकीय बकाया के कारण उसके बराबर वसूली योग्य धनराशि, उससे उसके नाम-निर्देशितों को अथवा उसके कानूनी वारिसों को भुगतान होने वाले उपदान से काट ली जावेगी ।

स्पष्टीकरण “अभिनिश्चित-शासकीय-बकाया” में शामिल है- भवन निर्माण अथवा वाहन अग्रिम की बकाया, शासकीय आवास पर वास्तविक कब्जे से सम्बन्धित किराया और अन्य प्रभार का बकाया, वेतन और भत्तों का भुगतान-आधिक्य और आय-कर अधिनियम , 1961 (1961 का 48) के अधीन स्त्रोत पर कटौती-आय कर की बकाया ।   GO TO TOP

 

नियम 66. निवृत्तमान शासकीय सेवक द्वारा जमानत देना – (1) (क) यदि कोई शासकीय बकाया (नियम 65 में उल्लिखित बकाया के अलावा) की वसूली किन्हीं कारणों से शेष रह जाती है तथा निर्धारित नहीं हो पाती है तो निवृत्तमान शासकीय सेवक को किसी उपयुक्त स्थायी शासकीय सेवक जो पेंशन योग्य पद धारण किये हैं, से फार्म 8 में जमानत देने को कहा जायेगा ।

(ख) यदि उसके द्वारा दी गई जमानत स्वीकार करने योग्य पायी जाती है तो पेंशन तथा उपदान की स्वीकृति में विलम्ब नहीं किया जावेगा ।

(2) (क) यदि निवृत्तमान शासकीय सेवक जमानत देने में असमर्थ है अथवा जमानत देने का अनिच्छुक है तो, उससे उचित नगद जमा करा ली जाये अथवा जब तक बकाया वसूलियाँ निर्धारित और समायोजित नहीं हो जाती हैं, तब तक उसे देय उपदान का ऐसा भाग, जो पर्याप्त समझा जाय, रोक लिया जाय ।

(ख) नगद जमा होने वाली राशि अथवा उपदान की धनराशि जो रोकी जाना है, बकाया वसूलियों की अनुमानित धनराशि (+) उसका पच्चीस प्रतिशत से अधिक नहीं होगी ।

(ग) जहाँ सेवानिवृत्त होने वाले शासकीय सेवक से वसूली योग्य अनुमानित धनराशि का आंकलन सम्भव नहीं है तो जमा कराई जाने वाली धनराशि अथवा रोका जाने वाला उपदान का भाग, उपदान की धनराशि का दस प्रतिशत अथवा एक हजार रूपये, जो भी कम हो, तक सीमित होगा ।

(3) (क) शासकीय सेवक की सेवानिवृत्ति की तिथि से 6 माह की अवधि में शासकीय बकाया का आंकलन तथा उसके समायोजन का प्रयास कर लिया जावे तथा यदि शासन के पक्ष में शासकीय सेवक के विरूद्ध कोई दावा प्रस्तुत नहीं किया जाता है तो यह मान लिया जायेगा कि उसके विरूद्ध आवास किराया तथा जल प्रभार को छोड़कर कोई बकाया नहीं है ।

(ख) शासकीय बकाया निर्धारित हो जाने के बाद उसका समायोजन या तो नगद धनराशि जमा कराकर किया जायेगा अथवा उपदान से उतनी धनराशि रोक ली जाएगी तथा यदि कोई धनराशि शेष रह जाती है तो खण्ड (क) में उल्लेखित अवधि की समाप्ति पर निवृत्तमान शासकीय सेवक को भुगतान की जायगी ।

(ग) जहाँ पेंशनभोगी ने जमानत दे दी है वहां खण्ड (क) में उल्लेखित अवधि के बाद जमानत पत्र वापस कर दिया जाये, वशर्ते कि उस समय तक निर्धारित शासकीय बकाया की वसूली कर ली गई हो ।

(4) उपनियम (3) के खण्ड (क) में उल्लेखित अवधि में शासकीय बकाया तथा अन्य ऐसे बकाया जिनकी वसूली रह जाती है और जिनकी सूचना उक्त अवधि के पश्चात् दी गई है तो वह निवृत्तमान शासकीय सेवक से वैध प्रक्रिया द्वारा वसूल किया जायगा:

परंतु आवास किराया तथा जल प्रभार की यदि कोई राशि है, जिसका दावा सेवा निवृत्ति की तिथि से 12 महीने की अवधि की समाप्ति के बाद प्राप्त होता है तो उसकी वसूली सेवानिवृत्त शासकीय सेवक से नहीं होगी ।

टिप्पणी – जहां शासकीय सेवक के सेवानिवृत्ति की तिथि के तुरंत बाद कार्यालय प्रमुख की मांग पर लोक निर्माण विभाग तथा लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग से 1 ½ माह की अवधि में बकाया की जानकारी प्राप्त नहीं होती है तो शासकीय सेवक की सेवानिवृत्ति पर, चाहै अमांग प्रमाण पत्र जारी नहीं किया गया हो अथवा उस पर बकाया हो, इस नियम के तहत की गई कार्यवाही के अतिरिक्त उस कर्मचारी से फार्म 25 में एक घोषणा पत्र प्राप्त किया जावेगा । उसे आगे फार्म 26 में वचनदान पत्र पर हस्ताक्षर करने को कहा जाएगा । उपर्युक्त घोषणा पत्र तथा वचनपत्र प्राप्त होने पर कार्यालय प्रमुख आडिट आफिसर को पेंशन तथा उपदान जारी करने हेतु लिखेगा । यदि शासकीय सेवक के विरूद्ध किसी बकाया की मांग उसकी निवृत्ति से 12 माह की अवधि में नहीं की जाती है तो लोक निर्माण विभाग तथा लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग से सम्बन्धित अधिकारी शासन को हुई क्षति हेतु व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी माने जायेंगे।   GO TO TOP

 

अध्याय - 9


उन शासकीय सेवकों के पक्ष में परिवार पेंशन तथा मृत्य-सह-सेवानिवृत्ति उपदान की स्वीकृति जिनकी सेवा के दौरान मृत्यु हुई है

नियम 67 - [ विलोपित]

 

नियम 68. वित्त विभाग अधिसूचना क्र.बी. 6/1/77/नि-2/चार, दिनांक 1-2-77 द्वारा विलोपित ।

 

नियम 69. जब सेवा में रहते शासकीय सेवक की मृत्यु हो जाय तब पूर्वानुमानित परिवार पेंशन तथा मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति उपदान का भुगतान - (1) जब कार्यालय प्रमुख को किसी सेवारत शासकीय सेवक की मृत्यु की सूचना प्राप्त हो तब वह अभिनिश्चित करेगा कि क्या मृत शासकीय सेवक के परिवार को मृत्यु सह-सेवानिवृत्ति उपदान अथवा परिवार पेंशन अथवा दोंनों का भुगतान किया जाना है अथवा नहीं ।

व्याख्या – [विलोपित] वित्त विभाग क्र.एफ.बी. 6/1/77/नि-2/चार, दिनांक 1-2-77।

(2) (क) जहां नियम 44 के अधीन मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति उपदान की धनराशि का भुगतान किया जाना है, कार्यालय प्रमुख अभिनिश्चित करेगा कि –

(i) क्या मृत्त शासकीय सेवक ने किसी व्यक्ति अथवा व्यकि्तयों को उपदान प्राप्त करने के लिए नामांकित किया है; और

(ii) जहाँ मृत शासकीय सेवक ने कोई नामांकन नहीं किया है अथवा किया गया नामांकन अस्तित्व में नहीं है तो, उपदान किस व्यक्ति अथवा व्यक्तियों को भुगतान योग्य होगा?

(ख) कार्यालय-प्रमुख सम्बंधित व्यक्ति को फार्म 9 या 10 में, जो भी लागू हो, सम्बोधित करेगा कि वह प्ररूप 6-ग में अपना दावा प्रस्तुत करे ।

(3) (क) जहाँ मृत शासकीय सेवक का परिवार नियम 47 के अधीन अंशदायी परिवार पेंशन का हकदार है, वहां प्ररूप 6-ग में दावा प्रस्तुत करने के लिये कार्यालय-प्रमुख, फार्म 12 में उसकी विधवा अथवा विधुर को संबोधित करेगा, और

(ख) जहां मृत शासकीय सेवक का केवल बच्चा अथवा बच्चे जीवित हैं, तो ऐसे बच्चे अथवा बच्चों का संरक्षक प्ररूप 6-ग में दावा कार्यालय-प्रमुख, को प्रस्तुत करेगा ।

परंतु अविवाहित पुत्री की ओर से यदि उसने 18 वर्ष की आयु पूर्ण कर ली है तो कथित फार्म में दावा प्रस्तुत करने के लिये संरक्षक से अपेक्षा नहीं की जावेगी और ऐसी पुत्री स्वयं ही कथित फार्म में अपना दावा प्रस्तुत कर सकती है ।

(4) (क) जहाँ मृत शासकीय सेवक का परिवार नियम 48 के अधीन गैर-अंशदायी परिवार पेंशन का हकदार है तो, कार्यालय प्रमुख अभिनिश्चित करेगा कि –

(i) क्या मृत्त शासकीय सेवक ने अपने परिवार के किसी सदस्य को गैर-अंशदायी परिवार पेंशन का भुगतान करने के लिये नामांकित किया है, और

(ii) जहाँ मृत शासकीय सेवक ने कोई नामांकन नहीं किया है अथवा किया गया नामांकन अस्तित्व में नहीं है तो, गैर-अंशदायी परिवार पेंशन;

किस व्यक्ति को भुगतान योग्य होगी, का अभिनिश्चय कार्यालय-प्रमुख करेगा ।

(ख) कार्यालय-प्रमुख सम्बंधित व्यक्ति को फार्म 16 में दावा प्रस्तुत करने के लिये फार्म 14 अथवा फार्म 15, जो भी लागू हो, में सम्बोधित करेगा ।

(5) कार्यालय-प्रमुख आडिट आफिसर को मृतक शासकीय सेवक के विरूद्ध शासकीय बकाया के ब्यौरों के बारे में निम्नलिखित जानकारियां उपलब्ध करायेगा –

(क) भुगतान प्राधिकृत करने के पूर्व उपदान से वसूली योग्य शासकीय बकाया, अर्थात्—

(i) अंशदायी परिवार पेंशन के विषय में अंशदान, जो लागू हो;

(ii) अभिनिश्चित किया गया शासकीय बकाया;

( ख) अब तक अभिनिर्धारित नहीं किये जा सके शासकीय बकाया के समायोजन हेतु रोकी जाने वाली उपदान की धनराशि ।

टिप्पणी .— उपदान की रोकी जाने वाली धनराशि का अवधारण नियम 66 के उपनियम (2) के खण्ड (ख) और (ग) के अनुसार किया जावेगा ।

(6) (क) दावा की गई सेवा के सत्यापन के लिये फार्म 17 पूर्ण करने के पश्चात् कार्यालय –प्रमुख उस फार्म को मूलत: फार्म 18 मे स्पष्टीकरण ज्ञापन के साथ और शासकीय सेवक के अद्यतन पूर्ण किये गये सेवा-पुस्तिका/सर्विस रोल और अन्य विश्वसनीय दस्तावेज के साथ आडिट आफिसर को इस प्रकार भेजेगा कि उन पर सुविधाजनक ढंग से विचार किया जा सके ।

(ख) उपयुक्त कथित फार्म की एक प्रति कार्यालय प्रमुख अपने कार्यालय के अभिलेख के लिये रखेगा।

(ग) यदि अन्य आडिट सर्कल मे भुगतान प्राप्त करना इच्छित है तो आडिट आफिसर को फार्म 17-दो प्रतियों में भेजा जावेगा ।

(7) उपनियम (5) और (6) में उल्लिखित दस्तावेजों को सम्बंधित आडिट आफिसर को भेज दिये जाने के पश्चात् कार्यालय-प्रमुख, अधिकतम परिवार पेंशन से अनधिक पूर्वानुमानित परिवार पेंशन और 90 प्रतिशत उपदान, प्रारूप 6-घ में बतलाये अनुसार आहरित करेगा और इस उद्देश्य के लिये निम्नलिखित प्रक्रिया अपनायेगा, अर्थात् –

(क) इन नियमों के अधीन भुगतान योग्य पूर्वानुमानित परिवार पेंशन और उपदान की 90 प्रतिशत धनराशि दर्शाते हुये दावेदारों के पक्ष में वह एक स्वीकृति-पत्र, एक प्रतिलिपि आडिट आफिसर को पृष्ठांकित करते हुये, जारी करेगा ।

(ख) वह स्वीकृति पत्र में उपनियम (5) के अधीन उपदान से वसूली योग्य धनराशि दर्शाएगा,

(ग) स्वीकृति पत्र जारी करने के पश्चात् वह –

(i) पूर्वानुमानित पेंशन की धनराशि और,

(ii) उपदान की 90 प्रतिशत धनराशि में से खण्ड (ख) में उल्लेखित बकाया काटने के पश्चात्, उसके द्वारा जिस कोषालय से स्थापना के वेतन तथा भत्ते आहरित किये जाते हैं, आहरणकरेगा ।

(8) शासकीय सेवक की मृत्यु जिस माह में हुई है उसके पूर्व माह के पहले दिन अथवा उसके पश्चात् यदि उस समय तक अंतिम पी.पी.ओ./जी.पी.ओ. प्राप्त नहीं हुआ है तो, दावेदार अथवा दावेदारों को कार्यालय-प्रमुख पूर्वानुमानित परिवार पेंशन और उपदान का भुगतान करेगा ।

(9) जैसे ही दावेदार अथवा दावेदारों को उपदान का भुगतान कर दिया जाता है तो ऐसे उपदान से वसूल की गई धनराशि की विस्तृत जानकारी कार्यालय-प्रमुख आडिट आफिसर को सूचित करेगा ।

(10) यदि दावेदार पूर्वानुमानित परिवार पेंशन अथवा उपदान का अथवा दोनों का भुगतान मनीआर्डर द्वारा चाहता है तो उसका भुगतान, यदि धनराशि पांच सौ रूपये अथवा इससे कम है तो, राज्य शासन के खर्च पर मनीआर्डर द्वारा भेज दी जावेगी ।   GO TO TOP

 

नियम 70. नियम 69 में उल्लेखित मृतक शासकीय सेवक के सम्बंध में अन्तिम परिवार पेंशन और उपदान के अवशेष का प्राधिकार - 

(1) नियम 69 के उपनिमय (5) और (6) में उल्लिखित दस्तावेज प्राप्त होने पर आडिट आफिसर शासकीय सेवक की मृत्यु की तिथि से छ: माह की अवधि के भीतर अपेक्षित जाँच-पड़ताल कर प्ररूप 6-घ पर अपना आडिट मुखांकन अंकित करेगा और अन्तिम परवार पेंशन और उपदान की धनराशि अवधारित करेगा:

परन्तु यदि आडिट आफिसर किन्हीं करणों से उपर्युक्त कथित अवधि में धनराशि का निर्धारण करने में असमर्थ है तो वह तथ्य कार्यालय-प्रमुख को संसूचित करेगा ।

(2) (क) यदि परिवार पेंशन उसी के आडिट सर्कल में भुगतान योग्य है तो आडिट आफिसर पेन्शन भुगतान आदेश तैयार करेगा ।

(ख) शासकीय सेवक की मृत्यु जिस तिथि को हुई उसकी अगली तिथि से परिवार पेन्शन का भुगतान प्रभावशील होगा ।

(ग) कार्यालय-प्रमुख द्वारा जिस अवधि के लिये परिवार पेंशन आहरित और संवितरित की गई थी उसके सम्बध में पूर्वानुमानित परिवार पेंशन की धनराशि, यदि कोई हो, तो वह, कार्यालय प्रमुख द्वारा सम्बंधित कोषालय अधिकारी को सूचित की जावेगी और उसके द्वारा ऐसी परिवार पेंशन के अन्तिम भुगतान से समायोजित की जावेगी ।

(3) (क) पूर्वानुमानित उपदान के रूप में कार्यालय-प्रमुख द्वारा भुगतान की गई धनराशि सहित शासकीय सेवक के विरूद्ध बकाया धनराशि, यदि कोई हो, का समायोजन करने के पश्चात् आडिट आफिसर उपदान का भुगतान प्राधिकृत करेगा ।

(ख) नियम 69 के उपनियम (5) के अधीन रेाकी गई उपदान की धनराशि का समायोजन पश्चात्वर्ती अभिनिश्चित और निर्धारण शासकीय बकाया के विरूद्ध आडिट आफिसर द्वारा किया जावेगा और अवशेष, यदि कोई हो, नियम 66 के उपनियम (3) के खण्ड (क) में संदर्भित अवधि समाप्त होने के पश्चात् दावेदार अथवा दावेदारों को मुक्त (भुगतान) कर दिया जावेगा ।

(ग) यदि उपदान का भुगतान उसके ही आडिट सर्कल में किया जाना है तो, आडिट आफिसर उसके भुगतान का आदेश तैयार कर जारी करेगा ।

(4) पेंशन भुगतान आदेश और उपदान भुगतान के आदेश पारित होने के तथ्य तत्परता से दावेदार और कार्यालय- प्रमुख को सूचित करेगा और दस्तावेज जिनकी आवश्यकता नहीं है उसे लौटा दिये जावेंगे ।

(5) पूर्वानुमानित परिवार पेन्शन के चालू रहने की अवधि के दौरान भी आडिट आफिसर उपदान का भुगतान प्राधिकृत कर सकता है:

परन्तु यह तब जबकि उपदान की धनराशि अन्तिम रूप से निर्धारित की जा चुकी है और मृतक शासकीय सेवक के विरूद्ध शासकीय बकाया की कोई वसूली शेष नहीं है।

(6) यदि अन्तिम परिवार पेन्शन और उपदान का भुगतान किसी अन्य आडिट सर्कल में किया जाना है तो आडिट आफिसर, मुखांकन और अन्तिम वेतन प्रमाण-पत्र, यदि प्राप्त हो गया हो, के साथ के साथ प्ररूप 6-घ की एक प्रतिलिपि उस आडिट सर्कल के आडिट आफिसर को भेजेगा जिसे पेंशन भुगतान आदेश और उपदान भुगतान आदेश तैयार करना है:

परन्तु कार्यालय-प्रमुख द्वारा आहरित और संवितरित पूर्वानुमानित परिवार पेंशन और उपदान की धनराशि का समायेाजन उस आडिट आफिसर द्वारा किया जावेगा जिसके सर्कल में अनन्तिम भुगतान किया गया था ।

(7) यदि कार्यालय-प्रमुख द्वारा आहरित और संवतिरित पुर्वानुमानित परिवार पेंशन की धनराशि आडिट आफिसर द्वारा निर्धारित अन्तिम परिवार पेन्शन से अधिक पाई जाती है तो, आधिक्य भुगतान को उपदान, यदि कोई हो, में से समायेाजित करना अथवा आधिक्य धनराशि भविष्य में भुगतान होने वाली परिवार पेंशन की धनराशि से कटौती करके वसूल करना यह आडिट आफिसर पर निर्भर होगा ।

(8) यदि कार्यालय प्रमुख द्वारा संवितरित की गई उपदान की धनराशि आडिट आफिसर द्वारा अन्तिम रूप से निर्धारित धनराशि से अधिक पायी जाती है तो उपदान प्राप्तकर्ता से आधिक्य की वापसी की अपेक्षा नहीं की जावेगी ।   GO TO TOP

 

नियम 70- ए . राज्य शासन में प्रतिनियुक्ति पर अथवा बाहृ सेवा में रहते हुये शासकीय सेव क के दिवंगत हो जाने पर परिवार पेन्शन और मृत्यु - सह - सेवानिवृत्ति - उपदान का भुगतान - यदि किसी शासकीय सेवक की प्रतिनियुक्ति के दौरान अथवा बाहृ सेवा में रहते हुये मृत्यु हो जाती है तो इस अध्याय के उपबंधों के अनुसरण में परिवार पेन्शन और मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति-उपदान के भुगतान को प्राधिकृत करने की कार्यवाही उस विभागीय प्राधिकारी के कार्यालय प्रमुख द्वारा की जायेगी जिसने उसको प्रतिनियुक्ति अथवा बाहृ सेवा पर भेजा था ।    GO TO TOP

 

अध्याय-10
दिवंगत पेन्शनरों के सम्बंध में परिवार पेंशन और अवशिष्ट उपदान की सवीकृति

 

नियम 71. पेंशनभोगी की मृत्यु पर परिवार पेन्शन और अवशिष्ट उपदान की स्वीकृति - (1) जहाँ कार्यालय प्रमुख ने सेवानिवृत्त शासकीय सेवक की मृत्यु की सूचना प्राप्त कर ली है तो वह अभिनिश्चित करेगा कि क्या मृतक पेन्शनभोगी को कोई परिवार पेंशन अथवा अवशिष्ट उपदान अथवा दोनों का भुगतान बकाया तो नहीं है :

परन्तु कार्यालय प्रमुख जब भी वह ऐसा करना आवश्यक समझे तब आडिट आफिसर से परामर्श कर सकता है--

(2) (क) (i) यदि मृतक पेंशनभोगी की विधवा अथवा विधुर जीवित है और यदि वह नियम 47 के अधीन अंशदायी-परिवार पेंशन की स्वीकृति के लिये पात्र है तो पेन्शन भुगतान आदेश में बताये अनुसार अंशदायी परिवार पेन्शन की धनराशि, पेंशनभोगी की मृत्यु की तिथि के अगले दिन से विधवा अथवा विधुर को, जैसा भी प्रकरण हो, भुगतान योग्य हो जावेगी ।

(ii) विधवा अथवा विधुर से आवेदन-पत्र प्राप्त होने पर कोषालय अधिकारी, जहाँ से मृतक पेंशनभोगी अपनी पेंशन आहरित करता था/करती थी, विधवा विधुर, जैसा भी प्रकरण हो, को अंशदायी परिवार पेंशन का भुगतान प्राधिकृत करेगा ।

(ख) (i) जहाँ मृतक पेंशनभोगी का बच्चा अथवा बच्चे जीवित हैं तो अंशदायी परिवार पेंशन के भुगतान के लिए उस बच्चा अथवा बच्चों की सरंक्षक प्ररूप 6-ग में कार्यालय प्रमुख को दावा प्रस्तुत करेगा:

परन्तु अविवाहित पुत्री की ओर से, यदि उसने अट्ठारह वर्ष की आयु पूरी कर ली है तो, कथित फार्म में दावा प्रस्तुत करने के लिये संरक्षक से अपेक्षा नहीं की जायेगी और ऐसी पुत्री कथित फार्म स्वत: अपना दावा प्रस्तुत कर सकती है।

(ii) सरंक्षक से दावा प्राप्त होने पर कार्यालय प्रमुख फार्म 19 में अशंदायी परिवार पेंशन स्वीकृत करेगा ।

(ग) (i) जहाँ अंशदायी परिवार पेंशन प्राप्त करने वाली विधवा अथवा विधुर पुनर्विवाह करती/करता है और पुनर्विवाह के समय पूर्व पति अथवा पत्नी से उत्पन्न बच्चा अथवा बच्चे जीवित हैं तो पुनर्विवाहित व्यक्ति ऐसे बच्चा अथवा बच्चों की ओर से अंशदायी परिवार पेंशन आहरित करने के लिये पात्र होगा, यदि, ऐसा व्यक्ति ऐसे बच्चे अथवा बच्चों का सरंक्षक निरन्तर बना रहता है ।

(ii) उपखण्ड (i) के उद्देश्यों के लिए पुनर्विवाहित व्यक्ति सादे कागज पर निम्नलिखित विवरण प्रस्तुत करेगा अर्थात्---

(क) यह घोषणा कि आवेदक उस बच्चे अथवा बच्चों का संरक्षक निरन्तर बना हुआ है;

(ख) पुनर्विवाह की तिथि;

(ग) पूर्व पत्नी अथवा पति से उत्पन्न बच्चा अथवा बच्चों का नाम और उनकी जन्म तिथियाँ;

(घ) कोषालय, जहाँ से ऐसे बच्चा अथवा बच्चों की ओर से परिवार पेंशन का भुगतान इच्छित है;

(ड.) आवेदक का डाक का पूरा पता ।

(iii) यदि किन्हीं कारणों से पुनर्विवाहित व्यक्ति उस बच्चे अथवा बच्चों का संरक्षक नहीं रह गया है तो, अंशदायी परिवार पेन्शन उस व्यक्ति को देय होगी जो उस समय प्रभावशील कानून के अधीन ऐसे बच्चे अथवा बच्चों का संरक्षक बनने का हकदार है और ऐसा व्यक्ति फार्म 13 में अंशदायी परिवार पेन्शन के भुगतान के लिए कार्यालय प्रमुख को दावा प्रस्तुत कर सकता है ।

(iv) उपखण्ड (iii) में उल्लेखित दावा प्राप्त होने पर कार्यालय प्रमुख फार्म 20 में अंशदायी परिवार पेंशन स्वीकृत करेगा ।

(घ) (i) जहाँ अंशदायी परिवार पेंशन प्राप्त करने वाली विधवा अथवा विधुर की मृत्यु हो जाती है और उसने अपने पीछे जीवित बच्चा अथवा बच्चे छोड़े हैं जो कि अशंदायी परिवार पेंशन प्राप्त करने के पात्र हैं तो ऐसा संरक्षक अंशदायी परिवार पेंशन के भुगतान के लिए फार्म 13 में कार्यालय प्रमुख को अपना दावा प्रस्तुत कर सकता है :

परन्तु अविवाहित पुत्री की ओर से, यदि उसने अट्ठारह वर्ष की आयु पूर्ण कर ली है तो, कथित फार्म में दावा प्रस्तुत करने के लिये सरंक्षक से अपेक्षा नहीं की जावेगी और ऐसी पुत्री कथित फार्म मे स्वत: अपना दावा प्रस्तुत कर सकती है ।

(ii) संरक्षक से दावा प्राप्त होने पर कार्यालय प्रमुख फार्म 20 में अंशदायी परिवार पेंशन स्वीकृत करेगा ।

(3) (क) जिस प्रकरण में मृतक पेंशन गैर-अंशदायी परिवार योजना से शासित है और उसकी सेवानिवृत्ति से पांच वर्ष की अवधि के भीतर मृत्यु हो जाती है तो मृतक की सेवानिवृत्ति की तिथि से पांच वर्ष की अवधि तक नियम 48 में उपबंधित अनुसार मृतक पेंशनभोगी के परिवार के पात्र सदस्य को गैर अशंदायी परिवार पेंशन भुगतान योग्य हो जावेगी ।

(ख) ऐसे सदस्य से फार्म 16 में दावा प्राप्त होने पर, कार्यालय प्रमुख उर्पयुक्त कथित अवधि तक के लिए गैर-अशंदायी परिवार पेंशन स्वीकृत करेगा ।

(4) जहाँ सेवानिवृत्ति शासकीय सेवक की मृत्यु पर नियम 44 के उपनियम (2) के अधीन अवशिष्ट उपदान भुगतान योग्य पाया जाये तो अवशिष्ट उपदान प्राप्त करने के लिए पात्र व्यक्ति अथवा व्यक्तियों से फार्म 21 में दावा प्राप्त होने पर कार्यालय प्रमुख उसके भुगतान की स्वीकृति देगा ।

 

नियम 72. आडिट आफिसर द्वारा भुगतान का प्राधिकार - परिवार पेंशन अथवा अवशिष्ट उपदान अथवा दोनों के भुगतान विषय में नियम 71 के अधीन स्वीकृत प्राप्त होने पर आडिट आफिसर उसका भुगतान प्राधिकृत करेगा ।   GO TO TOP

 

अध्याय - 11
पेन्शन भुगतान

 

नियम 73. तिथि जबसे पेंशन देय होगी – (1) उन मामलों को छोड़कर जिसमें शासकीय सेवक पर नियम 34 के उपबंध लागू होते हैं, अथवा नियम 9, और 64 के उपबंधों के अध्याधीन परिवार पेंशन के अलावा पेंशन उस तिथि से जिस तिथि को शासकीय सेवक स्थापना में नहीं रहता है, देय होगी ।

(2) परिवार पेंशन सहित पेंशन, उस दिन जिस दिन उसके प्राप्तकर्ता की मृत्यु हो जाती है, देय होगी ।

 

नियम 74. कार्यालय प्रमुख द्वारा पूर्वानुमानित और अन्तरिम पेंशन / उपदान की स्वीकृति और संवितरण - यदि पेंशन देय होने की तिथि के 15 दिन पूर्व पेन्शन भुगतान आदेश प्राप्त नहीं होता है तो कार्यालय प्रमुख सभी प्रकरणों में पेंशन देय होने वाले माह की पहली तारीख से पूर्वानुमानित पेन्शन स्वीकृत कर उसका संवितरण करेगा । इसी प्रकार पेन्शन देय होने वाले माह की पहली तारीख से कार्यालय प्रमुख द्वारा स्वीकृत का संवितरण किया जायेगा । इस उद्देश्य के लिये कार्यालयीन अभिलेख में जो भी, जैसी भी जानकारी उपलब्ध हो, का उपयोग किया जायेगा तथा इसके आगे कार्यालय प्रमुख को चाहिये कि वह सेवानिवृत्त होने वाले शासकीय सेवक को उसकी कुल सेवा की अवधि (खंडित समयावधि, यदि कोई हो, को बताते हुये कार्यभार ग्रहण करने की तिथि से सेवानिवृत्त की तिथि तक) बतलाते हुये और सेवा के अन्तिम 12 माह के दौरान प्राप्त उपलब्धियाँ दर्शाते हुये एक साधारण विवरण पत्रक प्रस्तुत करने के लिये कहे । उक्त सेवानिवृत्त शासकीय सेवक को यह भी कहा जायेगा कि वह यह प्रमाणित करे कि उसके द्वारा बतलाये गये तथ्य उसके ज्ञान और विश्वास से सही हैं । यदि अन्तिम 12 माह के दौरान आहरित उपलब्धियों की पूर्ण जानकारी उपलब्ध नहीं है तो अन्तिम आहरित उपलब्धियों को अन्तरिम रूप से औसत उपलब्धियाँ मान लिया जायेगा । इस प्रकार प्राप्त जानकारी के आधार पर संगणित पेंशन का 100 प्रतिशत पूर्वानूमानित/अन्तरिम पेंशन के रूप में कार्यालय प्रमुख स्वीकृत करेगा । इस प्रकार मृत्यु सह-सेवानिवृत्ति उपदान भी अवधारित किया जावे, परन्तु पूर्वानुमानित/अन्तरिम मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति उपदान संवितरित करने के पूर्व सभी बकाया जो मालूम हों, जैसे- अभी तक बकाया दीर्घावधि ऋण, वेतन और भत्तों का आधिक्य भुगतान इत्यादि और अन्य वसूली योग्य बकाया, का समायोजन किया जायेगा ।   GO TO TOP

 

नियम 75. मुद्रा जिसमें पेंशन भुगतान योग्य है – (1) इन नियमों में अन्यथा उपबंधित के सिवाय, सभी पेंशनें भारत में रूपयेां में भुगतान योग्य होंगी ।

(2) अभारतीय शासकीय सेवक के प्रकरणों में जो कि सेवानिवृत्ति के पश्चात् भारत के बाहर निवास करने लग जाता है तो पेश्ंन का भुगतान और दर जिस पर वह भुगतान किया जायेगा । भारत-शासन के द्वारा इस सम्बंध में उनके पेंशनरों के लिये समय-समय पर बनाये गये नियमों से शासित होंगे।

 

नियम 76. उपदान और पेन्शन भुगतान की विधि – (1) इन नियमों में अन्यथा उपबन्धित के सिवाय, उपदान का भुगतान एकमुश्त किया जायेगा ।

(2) मासिक दरों पर निश्चित की गई पेन्शन का भुगतान आगामी माह के प्रथम दिवस अथवां उसके पश्चात् किया जावेगा ।

 

नियम 77. कोषालय नियमों का लागू होना – इन नियमों में जैसा कि अन्यथा उपबन्धित है, सिवाय भुगतान की प्रक्रिया के बारे में मध्यप्रदेश कोषालय नियम लागू होंगे -

(i) उपदान,

(ii) पेन्शन,

(iii) एक वर्ष अधिक समय से अनआहरित पेंशन, और

(iv) मृत पेंशनर की पेंशन के बारे में ।   GO TO TOP

 

अध्याय - 12
विविध

 

नियम 78. निर्वचन – जहाँ इन नियमों के निवर्चन के संबंध में कोई विवाद उत्पन्न हो तो, उसे विनिश्चित करने के लिए शासन के वित्त विभाग को संदर्भित किया जावेगा ।

 

नियम 79. शिथिल करने की शक्ति – जहाँ शासन के किसी विभाग का समाधान हो कि इन नियमों के किसी नियम के क्रियान्वयन से किसी विशेष प्रकरण में अनावश्यक अवरोध उत्पन्न होता है तो ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किये जावेंगे, राज्य शासन आदेश द्वारा न्याय संगत और साम्यपूर्ण रीति से किसी प्रकरण को निपटाने के लिये उस सीमा तक और उन अपवादों और शर्तों के अध्याधीन, जैसा भी आवश्यक समझा जाय, उस नियम की अपेक्षाओं को अभिमुक्त अथवा शिथिल कर सकता है :

परन्तु यह कि वित्त विभाग की सहमति के सिवाय ऐसा कोई आदेश नहीं दिया जावेगा ।   GO TO TOP

 

नियम 80. निरसन और व्यावृत्ति – इन नियमों के प्रारम्भ होने पर, ऐसे प्रारंभ के तत्काल पूर्व प्रभावशील प्रत्येक नियम, विनियम अथवा कार्यालयीन ज्ञापन को सम्मिलित करते हुये आदेश (इसमें इसके पश्चात् पुराना नियम के रूप में इस नियम में संदर्भित); जहाँ तक कि वह इन नियमों में अन्तर्विष्ट किसी भी विषय का उपबंध करता है, प्रवृत्त नहीं रह जाते हैं ।

(2) ऐसे प्रवृत्तमान नहीं रह जाने पर भी--

(क) (i) मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति उपदान अथवा गैर-अंशदायी परिवार पेंशन का प्रत्येक नामांकन,

(ii) अशंदायी परिवार पेंशन के उद्देश्यों के लिये शासकीय सेवक के परिवार के विवरणों के सम्बंध में प्रत्येक फार्म जिसे पुराने नियमों के अधीन शासकीय सेवक ने दिया था,

इन नियमों में प्रतिस्थायी उपबन्धों के अधीन किया गया अथवा दिया गया माना जावेगा –

(ख) मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति उपदान अथवा गैर-अंशदायी परिवार पेंशन भुगतान के लिये कोई नामांकन, अशंदायी परिवार पेंशन के उद्देश्य के लिये शासकीय सेवक के परिवार के विवरण से सम्बंधित कोई फार्म, जो कि पुराने नियमों के अधीन शासकीय सेवक के द्वारा किया जाना अथवा दिया जाना अपेक्षित था, परन्तु इन नियमों के प्रारंभ होने के पूर्व नहीं किया गया अथवा नहीं दिया गया हो, तो, ऐसे प्रारंभ होने के पश्चात् इन नियमों के प्रावधानों के अनुसार किया जावेगा अथवा दिया जावेगा;

(ग) पेंशन स्वीकृति से सम्बंधित किसी शासकीय सेवक का कोई मामला, जो इन नियमों के लागू होने के पूर्व सेवानिवृत्त हो चुका है; पूर्व से लम्बित है तो उसका निराकरण पुराने नियमों के प्रावधानों के अनुसार किया जायगा जैसे कि ये नियम नहीं बनाये गये हैं;

(घ) कोई प्रकरण जो किसी मृतक शासकीय सेवक के अथवा मृतक पेंशनर के परिवार को मृत्यु-सह-सेवानिवृत्ति उपदान और परिवार पेंशन स्वीकृत करने से सम्बंधित है और इन नियमों के प्रारंभ होने के पूर्व से लम्बित है तो वह पुराने नियमों के प्रावधानों के अनुसार निपटाया जावेगा, जैसे कि ये नियम नहीं बनाये गये हैं;

(ड़) खण्ड (ग) और (घ) के प्रावधानों के अध्यधीन रहते हुये पुराने नियमों के अधीन कोई किया गया कार्य अथवा कोई की गई कार्यवाही इन नियमों के तत्स्थायी उपबन्धों के अधीन किया गया अथवा की गई मानी जावेगी ।   GO TO TOP

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