No: क्रमांक 23 सन् 1973 Dated: Apr, 26 1973

मध्यप्रदेश अधिनियम

(क्रमांक 23 सन् 1973)

मध्यप्रदेश नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम , 1973

{दिनांक 16 अप्रैल 1973 को राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त हुई अनुमति ‘‘मध्यप्रदेश’’ राजपत्र (असाधारण), में दिनांक 26 अप्रैल 1973 को प्रथमबार प्रकाशित की गई}

भूमि के निवेश तथा विकास एवं उपयोग के लिये उपबंध करने, नगर निवेश स्कीमों का उचित रीति में बनाया जाना तथा उनके निष्पादन का प्रभावी बनाया जाना सुनिश्चित करने की दृष्टि से विकास योजनाएं तथा परिक्षेत्रीक योजनाएं तैयार करने के लिये अधिक उपबंध करने, नगर तथा ग्राम विकास योजना के उचित कार्यान्वयन के लिये नगर तथा ग्राम निवेश प्राधिकारी का गठन करने, विशेष क्षेत्रों का विकास तथा प्रशासन विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी के माध्यम से करने के लिये उपबंध करने विकास योजनाओं के प्रयोजनार्थ भूमि के अनिवार्य अर्जन के लिये तथा पूर्वोक्त विषयों से संबंधित प्रयोजनों के लिये उपबंध करने हेतु अधिनियम । भारत गणराज्य के चौबीसवें वर्ष में मध्यप्रदेश विधान मंडल द्वारा निम्नलिखित रूप से अधिनियमित होः-

पहला अध्याय 1.प्रारंभिक

(1) यह अधिनियम, मध्यप्रदेश नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम, 1973 कहा जा सकेगा।

(2) इसका विस्तार संपूर्ण मध्यप्रदेश पर है।

(3) यह तत्काल प्रवृत्त होगा।

(i) किसी न्यायालय के किसी निर्णय डिक्री या आदेश में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी नगरपालिका निगम, इन्दौर की सीमाओं से परे स्थित क्षेत्रों को मध्यप्रदेश शासन, नगर तथा ग्राम निवेश विभाग की अधिसूचना क्रमांक 515-एफ-एक-20-33-73, दिनांक 13 फरवरी 1974 द्वारा मूल अधिनियम की धारा 13 की उपधारा (1) के अधीन गठित इन्दौर निवेश क्षेत्र में सम्मिलित किये जाने के संबंध में यह समझा जायेगा कि वह विधिमान्य है और सदैव ही विधिमान्य था और तदनुसार उन समस्त कार्येां या बातों का कार्यवाहियों के संबंध में, जो सरकार द्वारा या सरकार के किसी अधिकारी द्वारा या किसी अन्य प्राधिकारी द्वारा मूल अधिनियम के या उक्त निवेश क्षेत्र में तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबंधों के प्रवर्तन के संबंध में की गयी हो, समस्त प्रयोजनों के लिए यह समझा जायेगा कि वे विधि के अनुसार की गयी है, और सदैव ही विधि के अनुसार की गयी थी ।

(4) इस अधिनियम में की कोई भी बात -

(क) केन्टोनमेन्ट एक्ट, 1924 (क्रमांक 2 सन् 1924) के अधीन किसी छावनी के भीतर समाविष्ट भूमियों को,

(ख) नौ सेना, सेना तथा वायु सेना के संकर्मों के प्रयोजन के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा अपने स्वामित्व में

रखी गयी, भाड़े पर ली गयी या अधिग्रहण की गयी भूमियो को,

(ग) इण्डियन रेल्वेज एक्ट 1890 (क्रमांक 9 सन् 1890) के अध्याय 3 के अधीन, संकर्मों के सन्निर्माण तथा अनुरक्षण के प्रयोजन के लिए रेल प्रशासन के नियंत्रणाधीन भूमियों को, लागू नहीं होगी।

2.परिभाषाएं :-

इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो -

(क) ‘‘कृषि’’ के अंतर्गत आता है उद्यान कृषि, कृषि फर्म (फार्मिंग), वार्षिक या नियतकालिक फसलें, फल सब्जियां, फूल घास, चारा वृक्ष उगाना या किसी भी प्रकार की मृदा कृषि चारे चराई या छप्पर छाने की घास के लिए भूमि आरक्षित करना, जीव धन, जिसके अंतर्गत मवेशी, घोड़े, गधे, खच्चर, सुअर आते हैं, का अभिजनन तथा पालन मछली का अभिजनन तथा मधुमक्खियों का पालन तथा भूमि का ऐसा उपयोग जो भूमि पर कृषि कर्म करने के लिए सहायक हो, किन्तु उसके अंतर्गत निम्नलिखित नहीं आते हैं:-

(एक) केवल दूध निकालने तथा दूध और दूध के उत्पाद बेचने के प्रयोजनार्थ मवेशियों का पालन,

(दो) कोई उद्यान जो किसी भवन का उपांग हो, और अभिव्यक्ति ‘‘कृषक’’ का तदनुसार अर्थ लगाया जायेगा।

(ख) ‘‘सुख सुविधा’’ के अंतर्गत मार्ग तथा सड़के, जल तथा विद्युत प्रदाय, खुले स्थान, उपवन, आमोद-प्रमोद क्षेत्र, प्राकृतिक विशिष्टताएं (नेचुरल फीचर्स), खेल के मैदान, सड़कों पर प्रकाश की व्यवस्था जल-निकास, मल-प्रवाह की व्यवस्था तथा अन्य उपयोगी सेवा कार्य, सेवाएं तथा सुविधाएं आती है ;

(ग) ‘‘भवन’’ से अभिप्रेत है गृह, झोपड़ी, शेड या अन्य संरचना जो किन्हीं प्रयोजनों के लिए तथा किसी भी प्रकार की सामग्री से सन्निर्मित हो और उसका प्रत्येक भाग, चाहे वह अस्थायी हो या स्थाीय तथा चाहे उसका उपयोग मानव निवास के रूप में किया जाता हो अथवा नहीं, और उसके अंतर्गत कुंआ, शौचालय, जलनिकास कार्य, स्थिर चबूतर, बरामदा, दीवार की कुर्सियां, द्वारा की सीढि़या, अहाते की दीवार, बाड़ एवं इसी प्रकार की अन्य वस्तुएं तथा उससे संबंधित कोई भी निर्माण कार्य आते हैं किन्तु उसके अंतर्गत भवन में समाविष्ट प्लान्ट या मशीनरी नहीं आती।

(घ) ‘‘निर्माण संक्रिया’’ के अंतर्गत आता है:-

(एक) भवन या उसके किसी भाग का बनाना या पुनः बनाना या तोड़ना ;

(एक-क) ‘‘प्राकृतिक परिसंकट’’ से अभिप्रेत है किसी विनिर्दिष्ट कालावधि के भीतर किसी क्षेत्र में

प्राकृतिक घटना की अभिसंभाव्यता से होने वाले नुकसान की संभाव्यता ;

(एक-ख) ‘‘प्राकृतिक परिसंकट उन्मुख क्षेत्रों’’ से अभिप्रेत है ऐसे संभवित क्षेत्र जो -

(एक) भूकंपों के अति उच्च जोखिम परिक्षेत्र का अनुसीमक है ; या

(दो) बाढ़ प्रवाह या जलप्लावन के संकेतन हैं ; या

(तीन) संभाव्य भूमि फिसलन में या झुकाव में है ;

(चार) इनमें से एक से अधिक परिसंकट वाले हैं ;’’.

(दो) भवन के किसी भाग पर या खुले स्थान पर छत डालना या पुनः छत डालना ;

(तीन) किसी भवन में कोई भी सारवान् परिवर्तन या परिवर्द्धन करना,

(चार) किसी भवन में कोई भी ऐसा परिवर्तन करना जिससे कि उसके (भवन के) जल निकास में या स्वच्छता संबंधी व्यवस्था में परिवर्तन होना संभाव्य हो या जो उसकी (भवन की) सुरक्षा पर सारवान् रूप से प्रभाव डालता हो,

(पांच) किसी भी सड़क पर या ऐसी भूमि पर, जो स्वामी की न हो, खुलने वाले किसी द्वारा का सन्निर्माण करना,

(ड़) ‘‘वाणिज्यिक उपयोग’’ से अभिप्रेत है कोई व्यापार, कारबार या वृत्ति करने या किसी भी प्रकार के माल का विक्रय या विनिमय करने के प्रयोजन के लिए किसी भूमि या भवन या उसके भाग का उपयोग और उसके अंतर्गत लाभ उपार्जित करने की दृष्टि से, अस्पतालों, रूग्णालयों, शैक्षिक संस्थाओं, होटलों, उपहार गृहों तथा बोर्डिंग हाउसों (जो कि किसी शैक्षिक संस्था से संलग्न न हो) सरायों का चलाना आता

है और उसके अंतर्गत किसी भूमि या भवन का चाहे वह किसी उद्योग से संलग्न हो या न हो, माल के भंडारकरण के लिए या कार्यालय के रूप में उपयोग भी आता है,

(च) ‘‘विकास’’ तथा उसके व्याकरणिक रूप भेदों से अभिप्रेत है, भूमि में भूमि पर, भूमि के ऊपर या भूमि के नीचे निर्माण संबंधी इंजीनियरिंग संबंधी, खनन संबंधी संक्रिया या अन्य प्रक्रिया करना या किसी भवन या भूमि मेंया दोनों में से किसी के भी उपयोग में कोई सारवान तब्दीली करना, और उसके अंतर्गत किसी भूमि का उप-विभाजन आता है।

(छ) ‘‘विकास योजना’’ के अंतर्गत परिक्षेत्रिक योजना आती है।

(ज) ‘‘संचालक’’ से अभिप्रेत है इस अधिनियम के अधीन नियुक्त किया गया नगर तथा ग्राम निवेश संचालक।

(झ) ‘‘भूमि के वर्तमान उपयोग संबंधी मानचित्र’’ से अभिप्रेत है विनिर्दिष्ट क्षेत्र में की भूमियों के उस उपयोग की, जो कि मानचित्र तैयार किये जाने के समय उन भूमियों का किया जाता हो, उपदर्शित करने वाला मानचित्र और उसके अंतर्गत भूमि के उपयोग संबंधी ब्यौरे देने वाले मानचित्र सहित, तैयार किया गया रजिस्टर आता है।

(ञ) ‘‘भूमि’’ के अंतर्गत भूमि से उदभूत होने वाले फायदे और वे चीजें जो भू-बद्ध किसी चीज से स्थायी रूप

से जकड़ी हुई है, आती है।

* (ट) ‘‘स्थानीय प्राधिकारी’’ से अभिप्रेत हैं -

(एक) मध्यप्रदेश म्युनिसिपल कारपोरेशन एक्ट, 1956 (क्रमांक 23 सन् 1956) द्वारा या उसके अधीन गठित किया या कोई नगरपालिका निगम,

(दो) मध्यप्रदेश नगरपालिका अधिनियम, 1961 (क्रमांक 37 सन् 1961) द्वारा या उसके अधीन गठित की गयी कोई नगरपालिका परिषद या नगर पंचायत,

(तीन) मध्यप्रदेश पंचायत राज अधिनियम 1993 (क्रमांक 1 सन् 1994) के अधीन गठित की गयी कोई ग्राम पंचायत,

(ठ) ‘‘सदस्य’’ से अभिप्रेत है यथास्थिति किसी नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी का या किसी विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी का सदस्य और उसके अंतर्गत उसका अध्यक्ष आता है।

(ड) ‘‘अधिभोगी’’ के अंतर्गत निम्नलिखित आते हैं -

(एक) अभिधारी,

(दो) अपनी भूमि का अधिभोग करने वाला स्वामी या अन्यथा उसका उपयोग करने वाला स्वामी,

(तीन) भाटक-मुक्त अभिधारी,

(चार) अनुज्ञप्तिधारी,

(पांच) कोई भी व्यक्ति जो स्वामी की भूमि के उपयोग तथा अधिभाग के लिए नुकसानी चुकाने के

दायित्व के अधीन हो,

(ढ) ‘‘स्वामी’’ से अभिप्रेत है भूमि या भवन का स्वामी और उसके अंतर्गत आता है सकब्जा बंधकदार ताकि कोई ऐसा व्यक्ति जो चाहे अपने स्वयं के लिए या किसी अन्य व्यक्ति की ओर से या किसी अन्य व्यक्ति के और अधिक फायदे के लिए या किसी अन्य व्यक्ति के अभिकर्ता, न्यासी, संरक्षक या प्रापक के रूप में या धार्मिक या खैराती संस्थाओं के लिए किसी भूमि का भाटक या प्रीमियम तत्समय पर प्राप्त कर रहा हो या प्राप्त करने का हकदार हो या प्राप्त कर चुका हो, या जो इस दशा में जबकि वह भूमि पट्टे पर दी जानी हो , भाटक प्रापत करेगा या भाटक या प्रीमियम प्राप्त करने का हकदार होगा तथा किसी सरकारी विभाग का अध्यक्ष किसी रेलवे का महाप्रबंधक तथा किसी स्थानीय प्राधिकारी, कानूनी प्राधिकारी, कम्पनी निगम या उपक्रम का मुख्य कार्यपालिक अधिकारी, चाहे वह किसी भी नाम से पदाभिहित हो, जहां तक कि उसके नियंत्रणाधीन संपत्तियों का संबंध है उसके (स्वामी के) अंतर्गत आते हैं।

(ण) ‘‘निवेश क्षेत्र’’ से अभिप्रेत है कोई ऐसा क्षेत्र जो इस अधिनियम के अधीन निवेश क्षेत्र घोषित किया गया हो (और अभिव्यक्ति निवेशत्तर क्षेत्रों का तदनुसार अर्थ लगाया जायेगा)।

(ण-ण) ‘‘पुनर्गठित प्लाट’’ से अभिप्रेत है कोई ऐसा प्लाट जो नगर विकास स्कीम के तैयार किये जाने के परिणामस्वरूप परिवर्तित किया गया है,

(त) ‘‘प्रदेश’’ से अभिप्रेत है कोई ऐसा क्षेत्र जो इस अधिनियम के अधीन प्रदेश के रूप में स्थापित किया गया है।

(थ) ‘‘प्रादेशिक योजना’’ से अभिप्रेत है प्रदेश के लिए कोई योजना जो इस अधिनियम के अधीन तैयार की गयी है ओर राज्य सरकार द्वारा अनुमोदित की गयी हो।

(द) ‘‘गन्दी बस्ती’’ से अभिप्रेत है कोई ऐसा क्षेत्र जो मध्यप्रदेश गंदी बस्ती क्षेत्र (सुधार तथा निर्मूलन) अधिनियम, 1976 (क्रमांक 39 सन् 1976) की धारा 3 के अधीन गंदी बस्ती क्षेत्र घोषित किया गया हो,

(ध) ‘‘विशेष क्षेत्र’’ से अभिप्रेत है कोई ऐसा विशेष क्षेत्र जो धारा 64 के अधीन उस रूप में अभिहित किया गया हो,

(न) ‘‘विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी’’ से अभिप्रेत है धारा 65 के अधीन गठित किया गया कोई प्राधिकारी,

(प) ‘‘नगर विकास स्कीम’’ से अभिप्रेत है कोई ऐसी स्कीम जो किसी विकास योजना के उपबंधों के कार्यान्वयन के लिए नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी द्वारा तैयार की गयी हो और उसके अंतर्गत ‘‘स्कीम आती है’’,

(फ) ‘‘नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी’’ से अभिप्रेत है धारा 38 के अधीन स्थागित किया गया कोई प्राधिकारी,

(ब) ‘‘परिक्षेत्र’’ से अभिप्रेत है किसी निवेश क्षेत्र का कोई अनुभाग जिसके कि लिए विकास योजना के अधीन व्यौरेवार परिक्षेत्रिक योजना तैयार की गयी हो,

(भ) लोप किया गया ।

दूसरा अध्याय नगर तथा ग्राम निवेश संचालक

3. संचालक तथा अन्य अधिकारी

(1) राज्य सरकार किसी व्यक्ति को राज्य के लिए नगर तथा ग्राम निवेश संचालक, नियुक्ति करेगी और उसकी सहायता करने के लिए निम्नलिखित प्रवर्गों के एक या अधिक अधिकारियों को नियुक्ति कर सकेगी, अर्थात -

(क) नगर तथा ग्राम निवेश का अपर संचालक

(ख) नगर तथा ग्राम निवेश का संयुक्त संचालक

(ग) नगर तथा ग्राम निवेश का उप संचालक

(घ) नगर तथा ग्राम निवेश का सहायक संचालक

(ड़) अधिकारियों के ऐसे अन्य प्रवर्ग जो कि विहित किये जायें।

(2) संचालक, ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा तथा ऐसे कर्तव्यों का पालन करेगा जो कि इस अधिनियम के अधीन उसको प्रदत्त की गयी हो या उस पर अधिरोपित किये गये हों और संचालक की सहायता करने के लिए नियुक्त किये गये अधिकारी ऐसे क्षेत्रों के भीतर, जिन्हें कि राज्य सरकार विनिर्दिष्ट करें, इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन संचालक को प्रदत्त की गयी ऐसी शक्तियों का प्रयेाग करेंगे तथा इस अधिनियम के अधीन संचालक पर अधिरोपित किये गये ऐसे कर्तव्यों का पालन करेंगे जिनके कि संबंध में राज्य सरकार विशेष या साधारण आदेश द्वारा निर्देश दें।

(3) संचालक की सहायता के लिए नियुक्त किया गया अधिकारी उसके (संचालक के ) अधीनस्थ होगा और उसके मार्गदर्शन, पर्यवेक्षण तथा नियंत्रण के अधीन कार्य करेगा।

तीसरा अध्याय प्रादेशिक निवेश

4. प्रदेशो की स्थापना -

(1) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा -

(क) राज्य में किसी क्षेत्र को इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए प्रदेश घोषित कर सकेगी,

(ख) ऐसे क्षेत्र की सीमाएं परिनिश्चित कर सकेगी, और

(ग) वह नाम विनिर्दिष्ट कर सकेगी जिस नाम से कि ऐसा प्रदेश जाना जायेगा।

(2) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा किसी भी ऐसे क्षेत्र का नाम परिवर्तित कर सकेगी और ऐसा परिवर्तन हो जाने पर किसी विधि या लिखित या अन्य दस्तावेज में उस प्रदेश के प्रति किये गये कोई भी निर्देश पुनर्नामित किये गये प्रदेश के प्रति निर्देश समझे जायेंगे जब तक कि अभिव्यक्ति रूप से अन्यथा उपबंधित न हो या संदर्भ से वैसा अपेक्षित न हो।

(3) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा

(क) किसी प्रदेश की सीमाओं में इस प्रकार परिवर्तन कर सकेगी कि जिससे ऐसा क्षेत्र जो कि अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाय, उस प्रदेश में सम्मिलित किया जा सके या उसमें से अपवर्जित किया जा सके,

(ख) दो या अधिक प्रदेशों को इस प्रकार समामेलित कर सकेगी कि जिससे एक प्रदेश बनाया जा सके,

(ग) किसी भी प्रदेश को दो या अधिक प्रदेशों में विभाजित कर सकेगी, या

(घ) यह घोषित कर सकेगी कि वह संपूर्ण क्षेत्र या उसका कोई भाग, जिससे कि कोई प्रदेश बनता हो, प्रदेश या उसका (प्रदेश का) भाग नहीं रहा जायेगा।

(5)संचालक प्रादेशिक योजनाएं तैयार करेगा

इस अधिनियम के तथा उसके अधीन बनाये गये नियमों के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए, संचालक का यह कर्तव्य होगा कि वह -

(एक) प्रदेशों का सर्वेक्षण करें,

(दो) भूमि के वर्तमान उपयोग संबंधी मानचित्र तैयार करें और

(तीन) प्रादेशिक योजना तैयार करे।

 

(6).सर्वेक्षण

(1) संचालक भूमि के वर्तमान उपयोग संबंधी मानचित्र तथा ऐसे अन्य मानचित्र जो कि प्रादेशिक योजना

के प्रयोजन के लिए आवश्यक हो, तैयार करने की दृष्टि से -

(क) ऐसे सर्वेक्षण करेगा जो कि आवश्यक हो,

(ख) शासन के किसी विभाग से तथा किसी प्राधिकारी से ऐसे मानचित्र, ऐसी सर्वेक्षण रिपोर्ट तथा ऐसी भू-अभिलेख, जो कि उस प्रयोजन के लिए आवश्यक हो, अभिप्राप्त करेगा।

(2) उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट किये गये स्थानीय प्राधिकारी तथा अन्य प्राधिकारियेां का यह कर्तव्य होगा कि वे ऐसे मानचित्र रिपोर्ट तथा अभिलेख जो कि संचालक द्वारा अपेक्षित किये जाये, यथा संभव शीघ्रता से दें।

7. प्रादेशिक योजना की विषय वस्तु

प्रादेशिक योजना में वह रीति, जिसमे कि प्रदेश में की भूमि का उपयोग किया जाय, विकास की क्रमावस्था, संचार तथा परिवहन के तंत्र (नेटवर्क) प्राकृतिक साधनों के संरक्षण तथा विकास के लिए प्रस्थापनाएं उपदर्शित की जायेगी और विशिष्टितया या निम्नलिखित उपदर्शित किये जावेंगेः-

(क) भूमि का निवास संबंधी, औद्योगिक, कृषिक जैसे प्रयेाजनों के लिए या वनों के रूप में या खनिज दोजन के लिए आवंटन

(ख) आमोद-प्रमोद के प्रयोजनों, उद्यानों, वृक्ष क्षेत्रों (ट्री वेल्टस) तथा पशुओं के हेतु अभय-स्थानों (एनीमल सेक्च्यूरीज) के हेतु खुले स्थानों का आरक्षण,

(ग) परिवहन तथा सुचार सुविधाओं, जैसे सड़कों, रेलमार्गों, जलमार्गों के विकास के अक्ष (एक्सेज) तथा विमान पतनों (एयर पोर्टस) की अवस्थिति तथा उनका विकास,

(घ) लोकोपयोगी सेवाकार्यों, जैसे जल प्रदाय, जल निकास तथा विद्युत के विकास के लिए आवश्यकताएं तथा सुझाव,

(ड़) उन क्षेत्रों का आवंटन जो कि ऐसे ‘‘विशेष क्षेत्रों’’ के रूप में विकसित किये जायेंगे कि नये नगर,नगरियों, वृहत औद्योगिक अधिष्ठान (इंडस्ट्रियल एस्टेटस) या किसी अन्य प्रकार की वृहत परियोजनाएं स्थापित की जा सके,

(च) क्षेत्रों का भूदृश्यीकरण (लैण्डस्केपिंग) तथा उनकी प्राकृतिक अवस्था में उनका परिरक्षण,

(छ) अपक्षरण की रोकथाम संबंधी उपाय जिनके अंतर्गत वन क्षेत्रों का कायाकल्प आता है,

(ज) सिंचाई, जल प्रदाय या बाढ़ नियंत्रण संबंधी संकर्मों से संबंधित प्रस्थापनाएं

(8). प्रादेशिक योजना का तैयार किया जाना

(1) भूमि के वर्तमान उपयोग संबंधी मानचित्र के तैयार हो जाने के पश्चात संचालक एक प्रारूप प्रादेशिक योजना तैयार करवायेगा और उसे, उसकी एक प्रतिलिपि निरीक्षण के हेतु उपलब्ध कराकर और ऐसे प्रारूप तथा रीति में, जो कि विहित की / किया जाय, एक ऐसी सूचना प्रकाशित करके जिसमें कि किसी भी व्यक्ति से उस सूचना के प्रकाशन से साठ दिन से पूर्व की न होने वाली ऐसी तारीख के पूर्व जो कि सूचना में विनिर्दिष्ट की जाय, उस प्रारूप योजना के संबंध में आपत्तियों तथा सुझाव आमंत्रित किये जायेंगे, प्रकाशित करेगा। ऐसी सूचना में प्रारूप योजना के संबंध में निम्नलिखित विशिष्टियां विनिर्दिष्ट होंगी, अर्थात:-

(क) भूमि के वर्तमान उपयोग संबंधी मानचित्र और उस पर वृत्तात्मक रिपोर्ट,

(ख) प्रारूप योजना के उपबंधों को स्पष्ट करने वले आवश्यक मानचित्रों तथा चार्टों द्वारा प्रमाणित की गई वृत्तात्मक रिपोर्ट,

(ग) प्रारूप येाजना में सम्मिलित किये गये कार्यों के लिए दी गई पूर्विकताओं को तथा उस रूप में विकास के कार्यक्रम की क्रमावस्था को उपदर्शित करने वाला टिप्पणी ,

(घ) प्रारूप योजना के प्रवर्तन तथा कार्यान्वयन के संबंध में शासन के विभिन्न विभागों, नगर तथा ग्राम निवेश अधिनियम प्राधिकारियों विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारियों तथा स्थानीय प्राधिकारियों को समनुदेशित किये जा रहे कार्य पर टिप्पण,

(2) संचालक उन समस्त आपत्तियों तथा सुझावों पर, जो कि उपधारा (1) के अधीन की सूचना में विनिर्दिष्ट की गयी कालावधि के भीतर उसे प्राप्त हुए हों, विचार करेगा और उससे प्रभावित हुए समस्त व्यक्तियों को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात प्रादेशिक योजना तैयार करेगा जिसमें ऐसे उपान्तरण आदि कोई हो, जिन्हे कि वह आवश्यक समझें, अंतर्विष्ट होंगे और समस्त संसक्त दस्तावेजों, योजनाओं, मानचित्रों एवं चार्टों सहित उसे (प्रादेशिक योजना को) अनुमोदन के हेतु राज्य सरकार को प्रस्तुत करेगा ।

9. प्रादेशिक योजना को अंतिम रूप दिया जाना

(1) राज्य सरकार, धारा 8 के अधीन प्रस्तुत की गयी प्रारूप प्रादेशिक योजना को उपान्तरणों के साथ या उपान्तरणों के बिना अनुमोदित कर सकेगी या उसे अगृहित कर सकेगी या पुनर्विचार किये जाने के लिए उसे संचालक को वापस कर सकेगी

(2) उपधारा (1) के अधीन प्रारूप प्रादेशिक योजना के अनुमोदित हो जाने के अव्यवहित पश्चात राज्य सरकार ऐसी रीति में जैसी कि विहित की जाय, एक सूचना प्रकाशित करेगी जिसे कि यह कथित होगा कि प्रादेशिक योजना अनुमोदित कर दी गयी है और वह स्थान वर्णित होगा जहां कि उस योजना की प्रति का निरीक्षण समस्त युक्तियुक्त समयों पर किया जा सकेगा और उसमें (सूचना में) वह तारीख विनिर्दिष्ट करेगी जिसको कि वह प्रादेशिक योजना प्रवर्तित होगी,

परन्तु जहां राज्य सरकार प्रादेशिक योजना को उपान्तरणों के साथ अनुमोदित करें, वहां उसे तब तक प्रकाशित नहीं किया जायेगा जब तक कि राज्य सरकार ने ऐसे उपान्तरणों को ऐसी सूचना के साथ राजपत्र में प्रकाशित न कर दिया हो जिसमे कि उनके (उपान्तरणों) के संबंध में ऐसी कालावधि के भीतर, जो ऐसी सूचना के प्रकाशन की तारीख से तीस दिन से कम की नहीं होगी, आपत्तियों तथा सुझाव आमंत्रित किये गये हो, और जब तक कि उन आपत्तियों तथा सुझावों पर उनसे प्रभावित हुए व्यक्तियों को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात विचार न कर लिया हो।

10. भूमि के उपयोग या उसके विकास पर निर्बन्धन

 

(1) तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, प्रारूप प्रादेशिक योजना के प्रकाशन की तारीख को या उसके पश्चात कोई भी व्यक्ति, प्राधिकारी, शासन का विभाग या कोई भी अन्य व्यक्ति संचालक के या संचालक द्वारा प्राधिकृत किये गये किसी ऐसे अधिकारी के जो कि उप संचालक के पद से निम्न पद का न हो, पूर्व अनुमोदन क बिना भूमि के उपयोग में कृषि से भिन्न किसी भी प्रयोजन के लिए कोई तब्दीली नहीं करेगा या किसी भी भूमि के संबंध में कोई ऐसा विकास, जो प्रारूप योजना के उपबंधों के प्रतिकूल हो, कार्यान्वित नहीं करेगा ।

(2) तत्समय प्रवृत्त किसी विधि में अंतर्विष्ट किसी बात के होते भी उपधारा (1) में निर्दिष्ट की गयी अनुमति प्रारूप योजना या अंतिम योजना के उपबंधों के अनुरूपता ही दी जायेगी अन्यथा नहीं और किसी भी अनुमति का यदि वह दे दी गयी हो, यह अर्थ नहीं लगाया जायेगा कि वह उस व्यक्ति को, जिसने कि अनुमति चाही हो, कोई भी विधिक अधिकार प्रदत्त करती है।

(3) इस धारा के उपबंधों के उल्लंघन में कोई संकर्म कार्यान्वित किया हो, तो नगरपालिक निगम या नगरपालिका परिषद अपने स्थानीय क्षेत्र के भीतर तथा कलेक्टर ऐसे स्थानीय क्षेत्रों के बाहर के क्षेत्रों में ऐसे संकर्मों को व्यतिकर्मी के खर्चे पर हटवा सकेगा या तुड़वा सकेगा जो खर्च कि उससे उसी रीति में वसूल किया जायेगा जिसमे कि भू-राजस्व का बकाया वसूल किया जाता:

परन्तु इस उपधारा क अधीन कोई भी कार्यवाही तब तक नहीं की जायेगी जब तक कि संबंधित व्यक्ति को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर न दिया गया हो, और सूचना द्वारा उसमें (सूचना) में विनिर्दिष्ट किये गये समय के भीतर उस संकर्म को हटाने या उसे तोड़ डालने के लिए अपेक्षित न किया गया हो ।

(4) कोई भी व्यक्ति, जो यथास्थिति नगरपालिका निगम, नगरपालिका परिषद या कलेक्टर के उस आदेश से व्यथित हो जिसके द्वारा कि संकर्म को हटाने या तोड़ देने की अपेक्षा की गयी हो, उपधारा (3) के अधीन सूचना की प्राप्ती से 15 दिन के भीतर संचालक को अपील कर सकेगा और ऐसी अपील में संचालक का आदेश अंतिम होगा।

 

11. कतिमय मामलों में प्रतिकर के दावों से अपतर्जन

जहां अंतिम प्रादेशिक योजना मे किसी क्षेत्र के लिए भूमि का कोई विशिष्ट उपयोग समनुदेशित किया जाये, और उसमें (उस क्षेत्र में) स्थित कोई भूमि किसी भी ऐसी अन्य विधि के, जो उस तारीख को प्रवृत्त थी जिसको कि इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन निर्बन्धन अधिरोपित किये गये थे, अधीन प्रवृत्त ऐसे निर्बन्धनों के, जो सारतः वेसे ही हों, अध्यधीन रहते हुए पहले से ही ऐसे उपयोग में लाई जाती हो और यदि ऐसी निर्बन्धनों के बारे में प्रतिकर किसी भी ऐसी अन्य विधि के, जो उस सम्पत्ति के या उसमें के किसी अधिकार या हित के बारे में तत्समय प्रवृत्त थी, अधीन दावेदार को या दावेदार के किसी हित पूर्वाधिकारी पर पहले ही चुकाया जा चुका हो तो स्वामी इस अधिनियम के उपबंधों के के अधीन भूमि के

उपयोग पर लगाये गये निर्बन्धनों के कारण उसके अधिकारों को कोई क्षति या नुकसान के मुद्दे किसी और प्रतिकार का हकदार नहीं होगा ।

12. प्रादेशिक योजना का पुनर्विलोकन

(1) संचालक, स्वप्रेरणा से प्रादेशिक योजना के प्रवर्तित होने के पश्चात किसी भी समय प्रादेशिक येाजना पुनर्विलोकन तथा मूल्यांकन का कार्य हाथ में ले सकेगा तथा उसमें ऐसे उपान्तरण कर सकेगा जैसे कि परिस्थितियों में न्यायोचित हेा या राज्य सरकार द्वारा वैसी अपेक्षा की जाये तो प्रादेशिक योजना के प्रवर्तित होने के पश्चात किसी भी समय प्रादेशिक-योजना के पुनर्विलोकन तथा मूल्यांकन का कार्य हाथ में लेगा तथा उसमें ऐसे उपान्तरण करेगा जैसे कि परिस्थितियों में न्यायोजित हो ।

(2) इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंध, जहां तक कि वे लागू किये जा सकते हो उपधारा (1) के अधीन उपान्तरणों को उसी प्रकार लागू होंगे जैसे वे उपबंध प्रादेशिक योजना के तैयार किये जाने, प्रकाशित किये जाने तथा अनुमोदित किये जाने को लागू होते हैं ।

चौथा अध्याय

निवेश क्षेत्र तथा विकास योजनाएं

13. निवेश क्षेत्र

(1) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिए निवेश क्षेत्रों का गठन कर सकेगी और उनकी सीमाएं परिनिश्चित कर सकेगी।

(2) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा -

(क) निवेश क्षेत्र की सीमाओं को इस प्रकार परिवर्तित कर सकेगी जिससे कि ऐसे क्षेत्र को, जो कि अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाय, उसमें (निवेश क्षेत्र में) सम्मिलित किया जा सके या उसे उसमें से अपवर्जित किया जा सके,

(ख) दो या अधिक निवेश क्षेत्रों को इस प्रकार समामेलित कर सकेगी कि जिससे कि एक निवेश क्षेत्र गठित किया जा सके,

(ग) किसी भी निवेश क्षेत्र को दो या अधिक निवेश क्षेत्र में विभाजित कर सकेगी, या

(घ) यह घोषित कर सकेगी कि निवेश क्षेत्र का गठन करने वाला संपूर्ण क्षेत्र या उसका कोई भाग निवेश क्षेत्र या उसका भाग नहीं रहेगा।

(3) मध्यप्रदेश नगरपालिक निगम अधिनियम 1956 (क्रमांक 23 सन् 1956), मध्यप्रदेश नगरपालिका अधिनियम, 1961 (क्रमांक 31 सन् 1961) या मध्यप्रदेश पंचायत राज अधिनियम, 1993 (क्रमांक 1 सन् 1994) में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, यथास्थिति नगरपालिक निगम, नगरपालिका परिषद या नगर पंचायत या कोई पंचायत उपधारा (1) के अधीन जारी की गयी अधिसूचना की तारीख से निवेश क्षेत्रों के संबंध में ऐसी शक्तियों का प्रयोग, ऐसे कृत्यों का पालन तथा ऐसे कर्तव्यों का निर्वहन करना बंद कर देगी जिनका इस अधिनियम के अधीन प्रयोग करने, पालन करने तथा निर्वहन करने के लिए राज्य सरकार या संचालक सक्षम है।

14. संचालक विकास योजनाएं तैयार करेगा

इस अधिनियम के तथा उसके अधीन बनाये गये नियमों के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए संचालक-

(क) भूमि के वर्तमान उपयोग संबंधी मानचित्र तैयार करेगा,

(ख) विकास योजना तैयार करेगा,

(ग) लोप किया गया

(घ) ऐसे सर्वेक्षण तथा निरीक्षण करेगा और शासकीय विभागों, स्थानीय प्राधिकारियों तथा लोक संस्थाओं से ऐसी संगत रिपोर्ट अभिप्रापत करेगा जो कि योजनाओं को तैयार करने के लिए आवश्यक हो,

(ड़) ऐसे कर्तव्यों तथा कृत्यों का पालन करेगा जो पूर्ववर्ती किन्हीं भी कर्तव्यों तथा कृत्यों के अनुपूरक आनुषंगिक तथा परिणामिक हो या जो इस अधिनियम के उपबंधों को कार्यान्वित करने के प्रयोजनों के लिए राज्य सरकार द्वारा समनुदेशित किये जायें।

15. भमि के वर्तमान उपयोग संबंधी मानचित्र

(1) संचालक सर्वेक्षण करेगा और भूमि के वर्तमान उपयोग संबंधी प्राकृतिक परिसंकट उन्मुख क्षेत्रों को उपदर्शित करते हुए मानचित्र तैयार करेगा और उन्हें मानचित्र के तैयार हो जाने बाबत तथा उस स्थान या उन स्थानों की, जहां कि प्रतियों का निरीक्षण किया जा सकेगा, बाबत लोक सूचना, जिसमें कि किसी भी व्यक्ति से ऐसी सूचना के प्रकाशन की तारीख से तीस दिन के भीतर उसके (मानचित्र के) संबंध में लिखित आपत्तियों तथा सुझाव आमंत्रित किये जायेंगे, के साथ ऐसी रीति में जैसी कि विहित की जाय, तुरंत प्रकाशित करेगा।

(2) उपधारा (1) के अधीन प्रकाशित की गयी सूचना में विनिर्दिष्ट की गयी कालावधि का अवसान हो जाने के पश्चात संचालक, ऐसे समस्त व्यक्तियों को, जिन्होंने कि आपत्तियां या सुझाव फाइल किये हो, सुनवाई की युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात उसमें ऐसे उपान्तरण कर सकेगा जैसे कि वांछनीय समझे जाये।

(3) मानचित्र के उपान्तरणों सहित या उपान्तरणों के बिना अंगीकृत कर लिये जाने के पश्चात यथाशक्य शीघ्र संचालक मानचित्र के अंगीकृत कर लिये जाने बाबत तथा उस स्थान या उन स्थानों की, जहां तक कि उसकी प्रतियों का निरीक्षण किया जा सकेगा, बाबत लोक सूचना प्रकाशित करेगा।

(4) उस सूचना की एक प्रति राजपत्र में भी प्रकाशित की जायेगी और वह इस बात का निश्चायक साक्ष्य होगा कि मानचित्र सम्यक, रूप से तैयार तथा अंगीकृत कर लिया गया है।

16. भूमि के उपयोग का स्थिरीकरण

(1) भूमि के वर्तमान उपयोग संबंधी मानचित्र के धारा 15 के अधीन प्रकाशित हो जाने पर

(क) कोई भी व्यक्ति, संचालक की लिखित अनुज्ञा के बिना, किसी भी ऐसे प्रयोजन के लिए जो भूमि के वर्तमान उपयोग संबंधी मानचित्र में उपदर्शित किये गये प्रयोजन से भिन्न हों, किसी भी भूमि के उपयोग को संस्थित नहीं करेगा या उसके (उस भूमि के) उपयोग में कोई तब्दीली नहीं करेगा या भूमि के किसी भी विकास को कार्यान्वित नहीं करेगा परन्तु संचालक अनुमति देने से इंकार नहीं करेगा यदि तब्दीली कृषि के प्रयोजन के लिए हो।

(ख) कोई स्थानीय प्राधिकारी या कोई अधिकारी या अन्य प्राधिकारी तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी भूमि के उपयोग में, भूमि के वर्तमान उपयोग संबंधी मानचित्र में उपदर्शित की गयी तब्दीली से भिन्न किसी तब्दीली के लिए अनुज्ञा संचालक की लिखित अनुज्ञा के बिना नहीं देगा।

17. विकास योजना की विषय वस्तु

विकास योजना में उस जिले के लिए, जिसमें की निवेश क्षेत्र स्थित है मध्यप्रदेश जिला योजना समिति अधिनियम 1995 (क्रमांक 19 सन् 1995) के अधीन तैयार की गयी कोई पंचवर्षीय और वार्षिक विकास योजना के प्रारूप पर विचार किया जायेगा और उसमें –

(क) निवेश क्षेत्र में भूमि के प्रस्थापित उपयोग को मोटे तौर पर उपदर्शित किया जायेगा,

(ख) ‘‘प्राकृतिक परिसंकट उन्मुख क्षेत्रों के लिए विनियमों को दृष्टि में रखते हुए निम्नलिखित के लिए भूमि के क्षेत्र या परिक्षेत्र मोटे तैार पर आवंटित किए जाएंगे ।

(एक) निवास संबंधी, औद्योगिक, वाणिज्यिक या कृषि प्रयोजन

(दो) खुले स्थान, उपवन तथा उद्यान, हरित क्षेत्र (ग्रीन बेल्ट्स) प्राणि उद्यान तथा खेल के मैदान,

(तीन) लोक संस्थाएं तथा कार्यालय

(चार) ऐसे विशेष प्रयोजन, जिन्हें कि संचालक उचित समझें,

(ग) निवेश क्षेत्र को शेष प्रदेश से जोड़ने वाले राष्ट्रीय एवं राज्य के राजमार्गों के तथा निवेश क्षेत्र के भीतर के परिधि मार्गों (रिंग रोड्स) मुख्य मार्गांे (ओरटेरियल रोड्स) के और बड़े मार्गों (मेजर रोड्स) के पेटर्न अधिकथित किये जायेगें:

(घ) विमान पत्तनों, रेल्वे स्टेशनों बस टर्मिनसों की अवस्थिति के लिए उपबंध किया जायेगा और रेलों तथा नहरेां का प्रस्थापित विस्तार एवं विकास उपदर्शित किया जायेगा,

(ड़) सामान्य भूदृश्यकरण तथा प्राकृतिक क्षेत्रों के परिरक्षण के लिए प्रस्थापनाएं की जायेगी,

(च) निवेश क्षेत्र के संबंध में ऐसी सुख सुविधाओं तथा उपयोगी सेवाकार्यों जैसे पानी, जल निकास तथा विद्युत संबंधी अपेक्षाओं का निरूपण किया जायेगा और उन्हें पूरा करने के संबंध में सुझाव दिये जायेंगे,

(छ) परिक्षेत्र बनाने संबंधी स्थूल (ब्राड बेस्ट) विनियम प्रस्थापित किये जायेंगे जो प्रत्येक परिक्षेत्र या सेक्टर के भीतर भवन तथा संरचनाओं की अवस्थिति, उनकी ऊंचाई, उनके आकार, खुले स्थानों, प्रांगणों (कोर्टयार्डस) तथा उस उपयोग जिसमे कि ऐसे भवनों तथा संरचनाओं एवं भूमि को लाया जा सकेगा से संबंधित रूप से रेखाओं के रूप में होंगे,

(ज) किसी शहर में के यातायात परिचालन के संबंध में स्थूल प्रतिरूप (पेटर्न) अधिकथित किये जायेंगे,

(झ) वास्तु विद्या संबंधी आकृतियों, भवनों तथा संरचनाओं की ऊंचाई तथा अग्रभाग के नियंत्रण के संबंध में सुझाव दिये जायेगे,

(ञ) बाढ़ नियंत्रण, वायु तथा जल प्रदूषण के निवारण, उच्छेष (गारवेज) के व्ययन तथा सामान्य परिवेश संबंधी नियंत्रण के उपाय उपदर्शित किये जायेंगे।

 

17-  समिति का गठन

(1) राज्य सरकार एक समिति का गठन करेगी जिसमें निम्नलिखित होंगे अर्थात:-

(क) निवेश क्षेत्र के भीतर पूर्णतः या भागतः आने वले नगरपालिक निगम या नगरपालिका परिषद् या नगर पंचायत यथास्थिति, महापौर या अध्यक्ष

(ख) निवेश क्षेत्र के भीतर पूर्णतः या भागतः आने वाले जिला पंचायत का अध्यक्ष,

(ग) निवेश क्षेत्र के भीतर पूर्णतः या भागतः आने वाले निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वलो संसद सदस्य,

(घ) निवेश क्षेत्र के भीतर पूर्णतः या भागतः आने वाले निर्वाचन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले राज्य विधान सभा के समस्त सदस्य,

(ड़) निवेश क्षेत्र के भीतर पूर्णतः या भागतः आने वाले नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी या विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी, यदि कोई हो, का अध्यक्ष

(च) निवेश क्षेत्र के भीतर पूर्णतः या भागतः आने वाली जनपद पंचायत का अध्यक्ष,

(छ) निवेश क्षेत्र के भीतर पूर्णतः या भागतः आने वाली ग्राम पंचायतों के सरपंच,

(ज) विनिर्दिष्ट हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले सात से अनधिक अन्य व्यक्ति जो, राज्य सरकार

द्वारा नाम निर्देशित किये जायेंगे,

(झ) उप संचालक, नगर तथा ग्राम निवेश से अनिम्न पद श्रेणी का एक अधिकारी जो संचालक द्वारा

नाम निर्देशित किया जायेगा जो समिति का संयोजक होगा।

(2) उपधारा (1) के अधीन गठित समिति प्रारूप विकास योजना की धारा 18 के अधीन प्रकाशन के पश्चात्, आपत्तियों की सुनवाई करेगी तथा संचालक को उसमें उपांतरण या परिवर्तनों का, यदि कोई हो, सुझाव देगी ।

(3) समिति का संयोजन उन समस्त सुझावों, उपान्तरणों तथा परिवर्तनों को जिनके संबंध में समिति द्वारा उपधारा (2) के अधीन सिफारिश की गयी है लेखबद्ध करेगा और तत्पश्चात अपनी रिपोर्ट संचालक को अग्रेषित करेगा।

18 (1) ‘‘संचालक, धारा 14 के अधीन तैयार की गई प्रारूप विकास योजना को और उसके साथ प्रारूप विकास योजना के तैयार हो जाने बाबत् तथा उस स्थान या उन स्थानों की जहां कि उनकी प्रतियों का निरीक्षण किया जा सकेगा, बाबत् एक सूचना को जिसमें किसी भी व्यक्ति से ऐसी सूचना के प्रकाशन की तारीख से तीस दिन के भीतर प्रारूप विकास योजना के संबंध में लिखित आपत्तियां तथा सुझाव आमंत्रित किए जाएंगे, ऐसी रीति में जैसी कि विहित की जाए, प्रकाशित करेगा, ऐसी सूचना में प्रारूप विकास योजना के संबंध में निम्नलिखित विशिष्टियां की जाएंगी, अर्थात’’:-

(एक) भूमि के वर्तमान उपयोग संबंधी मानचित्र,

(एक-क) प्राकृतिक परिसंकटों के विवरण सहित प्राकृतिक परिसंकट उन्मुख क्षेत्र ’’

(दो) प्रारूप विकास योजना के उपबंधों का स्पष्टीकरण करने वाली वृत्तात्मक रिपोर्ट जो मानचित्रों तथा चार्टों द्वारा समर्थित हो,

(तीन) प्रारूप विकास योजना के कार्यान्वयन की क्रमावस्था जिसका कि संचालक द्वारा सुझाव दिया गया है,

(चार) प्रारूप विकास येाजना केा प्रवर्तित कराने के लिए उपबंध तथा वह रीति, जिसमें विकास के लिए अनुज्ञा अभिप्राप्त की जा सकेगी, कथित की जायेगी,

(पांच) लोक प्रयोजनों के लिए भूमि अर्जन का अनुमानित खर्च तथा योजना के कार्यान्वयन मे अंतर्वलित कार्यों का अनुमानित खर्च।

(2) धारा 17-क की उपधारा (1) के अधीन गठित की गयी समिति, उपधारा (1) के अधीन सूचना के प्रकाशन के पश्चात अधिक से अधिक नब्बे दिन के भीतर उन समस्त आपत्तियों तथा सुझावों पर, जो कि उपधारा (1) के अधीन सूचना मे विनिर्दिष्ट की गयी कालावधि के भीतर उसे प्राप्त हो, विचार करेगी और उससे प्रभावित हुए समस्त व्यक्तियों को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात, प्रारूप विकास येाजना में ऐसे उपान्तरणों का सुझाव देगी जैसे कि वह आवश्यक समझे और प्रारूप विकास योजना के प्रकाशन के पश्चात अधिक से अधिक छह मास के भीतर इस प्रकार उपान्तरित की गयी योजना, समस्त संबंधित दस्तावेजों, योजनाओं, मानचित्रों तथा चार्टों के साथ संचालक को प्रस्तुत करेगी।

(3) संचालक, समिति से योजना तथा अन्य दस्तावेजों की प्राप्ति के तीस दिन के भीतर इस प्रकार प्राप्त समस्त दस्तावेजों तथा योजनाओं को, अपीन समीक्षा के साथ, राज्य सरकार को प्रस्तुत करेगा।

19. विकास योजना की मंजूरी

(1) धारा 18 के अधीन विकास योजना के प्रस्तुत किये जाने के पश्चात यथाशक्य शीघ्र राज्य सरकार या तो विकास योजना को अनुमोदित कर सकेगी या उसे ऐसे उपान्तरणों के साथ, जिन्हें कि वह आवश्यक समझे अनुमोदित कर सकेगी या उसे, ऐसे निर्देशों के अनुसार जिन्हें कि राज्य सरकार समुचित समझे, उसमें उपान्तरण करने के लिए या नई योजना तैयार करने के लिए संचालक को वापस कर सकेगी।

(2) जहां राज्य सरकार विकास योजना को उपान्तरणों के साथ अनुमोदित करें, वहां राज्य सरकार, राजपत्र में प्रकाशित की गयी सूचना द्वारा ऐसे उपान्तरणों, के संबंध में उस सूचना के राजपत्र में प्रकाशित होने की तारीख से कम से कम तीस तीन की कालावधि के भीतर आपत्तियां तथा सुझाव आमंत्रित करेगी।

(3) आपत्तियों सुझावों पर विचार करने के पश्चात और ऐसे व्यक्तियों की, जो यह चाहते हों कि उन्हें सुना जाय, सुनवाई करने के पश्चात, राज्य सरकार विकास येाजना मे के उपान्तरण की पुष्टि कर सकेगी।

(4) राज्य सरकार, पूर्ववर्ती उपबंधों के अधीन अनुमोदित विकास योजना के अनुमोदन के बाबत तथा उस स्थान या उन स्थानों की, जहां कि अनुमोदित विकास योजना की प्रतियों का निरीक्षण किया जा सकेगा, बाबत लोक सूचना राजपत्र में तथा ऐसी अन्य रीति में जैसी कि विहित की जाय, प्रकाशित करेगी।

(5) विकास योजना उपधारा (4) के अधीन राजपत्र में उक्त सूचना के प्रकाशन की तारीख से प्रवर्तित होगी और ऐसी तारीख से उन समस्त विकास प्राधिकारियों को, जो इस अधिनियम के अधीन गठित किये गये हो तथा उन समस्त स्थानीय प्राधिकारियों को जो निवेश क्षेत्र के भीतर कार्य कर रहे हो, आबद्ध कर होगी।

पांचवा अध्याय

परिक्षेत्रिक योजना

(20) परिक्षेत्रिक योजनाओं का तैयार किया जाना

स्थानीय प्राधिकारी, विकास योजना के प्रकाशन के पश्चात स्वप्रेरणा से किसी भी समय, या यदि राज्य सरकार द्वारा वैसी अपेक्षा की जाये तो ऐसी अध्यपेक्षा किये जाने के छह मास के भीतर, एक परिक्षेत्रिक योजना तैयार करेगा।

 

21. परिक्षेत्रिक योजना की विषय वस्तु

(1) परिक्षेत्रिक योजना में भूमि के उपयोग संबंधी उन ब्यौरों को, जो विकास योजना में उपदर्शित किये गये हों, विस्तारपूर्वक दर्शाया जायेगा और उसमें

(क) वह भूमि उपदर्शित की जायेगी जो संघ सरकार, राज्य सरकार, नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी, विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी, स्थानीय प्राधिकारी, लोकोपयोगी सेवा के या तत्समय प्रवृत्त किसी अधिनियमिती द्वारा या उसके अधीन स्थापित किये गये किसी अन्य प्राधिकारी के प्रयोजनार्थ लोक प्रयोजन के लिए अर्जन के दायित्वाधिन हो:

परन्तु कोई भी भूमि इस रूप में तब तक अभिहित नहीं की जायेगी जब तक कि अर्जन की कार्यवाहियों का योजना तैयार किये जाने के दस वर्ष के भीतर पूर्ण हो जाना सम्भाव्य न हो।

(ख) कृषि, सार्वजनिक या अर्द्ध सार्वजनिक खुले स्थानों, उपवनों, खेल के मैदानों, उद्यानों, आमोद-प्रमोद के क्षेत्रों, हरित क्षेत्रों (ग्रीन वेल्ट्स) तथा प्रकृति के आरक्षित स्थानों (नेचर रिजर्वस) के लिए आरक्षित किये गये क्षेत्रों को विस्तार पूर्वक परिभाषित किया जायेगा तथा उनके लिए उपबंध किया जायेगा,

(ग) निवास संबंधी, वाणिज्यिक औद्योगिक कृषिक तथा अन्य प्रयोजनों के लिए क्षेत्रों या परिक्षेत्रों का विस्तारपूर्वक आवंटन किया जायेगा।

(घ) वर्तमान एवं भविष्य के लिए पूर्ण मार्ग तथा सड़क का प्रतिरूप (पैटर्न) परिभाषित किया जायेगा तथा उनके लिए उपंबध किया जायेगा और यातायात परिचालन उपदर्शित किया जायेगा।

(ड़) निर्गत (प्रोजेक्टड) मार्ग तथा सड़क के सुधार विस्तार पूर्वक अधिकथित किये जायेगे,

(च) सार्वजनिक भवनों, संस्थाओं तथा नागरिक विकास के लिए आरक्षित किये गये क्षेत्रों को उपदर्शित किया जायेगा तथा उनके लिए उपबंध किया जायेगा।

(छ) नगरपालिक, परिवहन, विद्युत, जल तथा जल निकास जैसी सुख-सुविधाओं, सेवाओं तथा उपयोगी सेवा कार्यों संबंधी भविष्य की आवश्यकताओं का निर्धारण किया जायेगा, उनके लिए खाके (प्रोजेक्शस) बनाये जायेंगे तथा उनके लिए उपबंध किया जायेगा,

(ज) एकल अभिन्यास को सुकर बनाने और भवनों तथा अन्य संरचनाओं की अवस्थिति ऊंचाई, मंजिलों की संख्या तथा आकार का, उनके प्रांगणों, बीथ्यंगनों (कोर्टस्) तथा अन्य खुले स्थानों के आकार का और भवनों, संरचनाओं तथा भूमि का उपयोग का विनियमन करने की दृष्टि से प्रत्येक परिक्षेत्र के लिए परिक्षेत्र बनाने संबंधी विनियम विस्तारपूर्वक विहित किये जायेंगे।

(झ) ऐसे क्षेत्रों को, जिनका दोषपूर्ण ढंग से अभिन्यास किया गया हो या ऐसे क्षेत्रों को, जो इस प्रकार विकसित हुए हों कि जिससे गंदी बस्तियां बन गई हों, परिभाषित किया जायेगा तथा उनके उचित विकास तथा या उनके पुनः स्थान निर्धारण के लिए उपबंध किया जायेगा।

(ञ) भविष्य में किये जाने वाले विकास तथा विस्तार के लिए क्षेत्र अभिहित किये जायेंगे।

(ट) विकास कार्यक्रम की क्रमावस्था उपदर्शित की जायेगी।

(2) परिक्षेत्रिक योजना में:-

(क) वास्तु विद्या संबंधी आकृतियों, भवनों तथा संरचनाओं की ऊंचाई तथा अग्रभाग पर नियंत्रण और

(ख) गृह निर्माण , बाजार केन्द्रों, औद्योगिक क्षेत्रों, शैक्षणिक तथा सांस्कृतिक संस्थाओं एवं नागरिक केन्द्रों

के लिए विनिर्दिष्ट क्षेत्रों के विकास ब्यौरे,

22. धारा 18 तथा 19 के उपबंध परिक्षेत्रिक योजना को लागू होंगे

धारा 18 तथा 19 के उपबंध परिक्षेत्रिक योजना के तैयार किये जाने उसके प्रकाशन, अनुमोदन तथा प्रवर्तन के संबंध में उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार कि वे विकास योजना के संबंध में लागू होते हैं।

23 विकास योजना या परिक्षेत्रिक योजना का पुनर्विलोकन तथा उपानतरण

(1) संचालक, स्वपे्ररणा से विकास योजना के पुनर्विलोकन तथा मूल्यांकन का कार्य हाथ में ले सकेगा या यदि राज्य सरकार द्वारा वैसी अपेक्षा की जाये तो, विकास योजना के पुनर्विलोकन तथा मूल्यांकन का कार्य हाथ में ले लेगा।

(2) संचालक, यदि आवश्यक हो तो उपधारा (1) के अधीन योजना के उपान्तरण का प्रस्ताव कर सकेगा।

(3) संचालक, यदि राज्य सरकार द्वारा वैसी अपेक्षा की जाये तो किसी विकास योजना की किसी निवेश इकाई का पुनर्विलोकन करने की कार्यवाही करेगा और उपान्तरण प्रस्तावित करेगा।

(4) स्थानीय प्राधिकारी स्वप्रेरणा से या यदि राज्य सरकार या संचालक द्वारा वैसी अपेक्षा की जाए तो परिक्षेत्रिक योजना के पुनर्विलोकन तथा मूल्यांकन का कार्य हाथ में लेगा।

(5) धारा 18 और 19 के उपबंध, जहां तक हो सके, उपधारा (2) के अधीन उपान्तरण को, उपधारा (3) के अधीन पुनर्विलोकन तथा उपान्तरण को तथा उपधारा (4) के अधीन पुनर्विलोकन तथा मूल्यांकन को उसी प्रकार लागू होंगे जिस प्रकार वे उपबन्ध किसी विकास योजना के तैयार किए जाने, प्रकाशित किये जाने और अनुमोदित किये जाने के संबंध में लागू होते हैं।

स्पष्टीकरण - इस धारा के प्रयोजनों के लिए ”निवेश इकाई“ से अभिपे्रत है वह क्षेत्र जो विकास योजना में निवेश इकाई के रुप में दर्शित किया गया है ।

23-  कतिपय परिस्थितियों में राज्य सरकार द्वारा विकास योजना या परिक्षेत्रक योजना का उपान्‍तरण

(1-क) राज्य सरकार, स्वप्रेरणा से या नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकरण के निवेदन पर भारत सरकार या राज्य सरकार और उसके उद्यमों के लिए या राज्य में विकास से संबंधित प्रस्तावित किसी परियोजना के लिए या नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकरण की किसी स्कीम के कार्यान्वित किए जाने के लिए विकास योजना या परिक्षेत्रिक योजना में उपांतरण कर सकेगी और विकास योजना या परिक्षेत्रिक योजना में इस प्रकार किया गया उपांतरण पुनरीक्षित विकास योजना या परिक्षेत्रिक योजना का एकीकृत भाग होगा ।

(ख) राज्य सरकार किसी व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के किसी ऐसे आवेदन पर जो विकास योजना या क्षेत्रीय योजना के उपांतरण के लिए किसी ऐसे क्रियाकलाप या स्कीम को हाथ में लेने के प्रयोजन के लिए किया गया हो, जो इस प्रयोजन के लिए राज्य सरकार द्वारा गठित की गई समिति की सलाह पर राज्य सरकार या संचालक द्वारा सोसायटी के लिए लाभप्रद समझा गया/समझी गई है, विकास योजना या क्षेत्रीय योजना में ऐसे उपांतरण कर सकेगी जो मामले की परिस्थितियों में आवश्यक समझे जाएं तथ विकास योजना या क्षेत्रीय योजना में इस प्रकार किया गया उपांतरण, पुनरीक्षित विकास योजना या क्षेत्रीय योजना का समाकलित भाग होगा.’’

(2) राज्य सरकार, उपान्तरित योजना के प्रारूप को, उपान्तरित योजना प्रारूप के तैयार किये जाने तथा उस स्थान या उन स्थानों की, जहां उसकी प्रतियों का निरीक्षण किया जा सकेगा, सूचना उस क्षेत्र में जिसमें वह योजना संबंधित है, परिचालित ऐसे दो दैनिक समाचार पत्रों में जो कि विज्ञापन के प्रयोजन के लिए राज्य सरकार की अनुमोदित सूची में हो लगातार दो दिन तक प्रकाशित कराएगी और उसकी एक प्रति, कलेक्टर के कार्यालय के सूचना पट्ट पर किसी सहज दृश्य स्थान पर चिपकाई जायेगी जिसमें किसी भी व्यक्ति से ऐसी सूचना के प्रकाशन की तारीख से पंद्रह दिन के भीतर उसके संबंध में लिखित आपत्तियां तथा सुझाव आमंत्रित किये जायेंगे।

सूचना में विनिर्दिष्ट कालावधि के भीतर प्राप्त समस्त आपत्तियों तथा सुझावों पर विचार करने के पश्चात और उससे प्रभावित समस्त व्यक्तियों को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात राज्य सरकार उपान्तरित योजना की पुष्टि करेगी।

छठवां अध्याय

भूमि के विकास तथा उपयोग पर नियंत्रण

(24) राज्य सरकार द्वारा भूमि के विकास तथा उपयोग का नियंत्रण किया जाना

(1) राज्य में की भूमि विकास तथा उसके उपयोग का संपूर्ण नियंत्रण राज्य सरकार में निहित होगा।

(2) उपधारा (1) के उपबंधों के तथा इस अधिनियम के अधीन बनाए गये नियमों के अध्यधीन रहते हुए निवेश क्षेत्र में की भूमि के विकास तथा उसके उपयोग का सम्पूर्ण नियंत्रण।

ऐसी तारीख से, जिसे राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, इस निमित्त नियत करे, संचालक में निहित हो जायेगा।

(3) राज्य सरकार, राज्य में के निवेश क्षेत्र तथा निवेशेत्तर-क्षेत्र में की भूमि विकास तथा उसके उपयोग के नियंत्रण का विनियमन करने के लिए नियम बना सकेगी और उकत नियमों को, अधिसूचना द्वारा किसी भी निवेश-क्षेत्र या निवेशेत्तर-क्षेत्र को ऐसी तारीख से लागू कर सकेगी जो कि उसमें विनिर्दिष्ट की जाए, जहां ऐसे नियम किसी निवेशेत्तर क्षेत्र को लागू किये जाते हैं, वहां ऐसी अधिसूचना में उस निवेशेत्तर क्षेत्र की सीमाओं को परिनिश्चित किया जायेगा।

(4) किसी निवेश क्षेत्र को ऐसी नियमों के लागू हो जाने पर, इस अध्याय के उपबंध उस निवेश क्षेत्र को लागू होने के संबंध में, ऐसे नियमों के उपबंधों के अध्यधीन होंगे।

(5) किसी निवेशेत्तर क्षेत्र को ऐसी नियमों के लागू हो जाने पर निम्नलिखित परिणाम होंगे, अर्थात:-

(एक) स्थानीय प्राधिकारी से संबंधित विधि का वह सुसंगत उपबंध जिसके द्वारा स्थानीय प्राधिकारी को भूमि के विकास तथा उसके उपयोग का नियंत्रण करने के लिए सशक्त किया गया है, या कोई अन्य ऐसी अधिनियमिति, जिसके अधीन उस प्राधिकारी का गठन किया गया है तथा उसके अधीन बनाये गये नियम या उपविधियां यदि कोई हो, यथास्थिति उस स्थानीय प्राधिकारी या किसी अन्य प्राधिकारी की सीमाओं के भीतर समाविष्ट क्षेत्र को लागू नहीं रहेगी।

(दो) वह स्थानीय प्राधिकारी या कोई अन्य प्राधिकारी, जिसका स्थानीय प्राधिकारी से संबंधित किसी विधि के अधीन या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य अधिनियमिति के अधीन यह कृत्य है कि वह भूमि के विकास तथा उसके उपयोग का नियंत्रण करें, किसी ऐसी विधि या अधिनियमिति में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के अधीन बनाए गये नियमों के उपबंधों को प्रभावशील करने के लिए आबद्ध होगा।

24-  आवासीय भवन में अतिरिक्त तल का सन्निर्माण

जहां इस अधिनियम या उसके अधीन बनाये गये नियमों के या अतिरिक्त तल का सन्निर्माण आवासिक भवन के सन्निर्माण का विनियमन करने वाली तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के, जो भारतके संविधान की सातवीं अनुसूची की राज्य सूची की प्रविष्टि 5 के अधीन अधिनियमित की गयी हो, या उसके अधीन बनाये गये किन्हीं नियमों या विनियमों या उपविधियों के उपबंधों के अधीन तीन से कम तलों का सन्निर्माण करना अनुज्ञेय है, वहां पूर्वोवत अधिनियम या विधि या नियमों या विनियमों या उपविधियों में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, ऐसे आवासिक भवन में एक अतिरिक्त तल का सन्निर्माण की योजना की यथास्थिति पूर्वोवत अधिनियम या विधि के अधीन मंजूरी के अध्यधीन रहते हुए करना अनुज्ञेय होगा।

25. विकास योजना से अनुरूपता

(1) विकास योजना के प्रवर्तित होने के पश्चात भूमि का उपयोग तथा विकास, विकास योजना के उपबंधों के अनुरूप होगा:

परन्तु संचालक, अपने स्वविवेकानुसार किसी भूमि के उपयोग को एसे प्रयोजन के लिए जिसके लिए कि उसका उपयोग विकास योजना के प्रवर्तित होने के समय किया जा रहा था, चालू रखने की अनुज्ञा दे सकेगी।

परन्तु यह और भी ऐसी अनुज्ञा विकास योजना के प्रवर्तित होने की तारीख से सात वर्ष से अधिक कालावधि के लिए नहीं दी जायेगी।

(2) मध्यप्रदेश लैण्ड रेवेन्यू कोड, 1959 (क्रमांक 20 सन् 1959) की धारा 172 में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी भूमि को व्यपवर्तित करने संबंधी प्रत्येक अनुज्ञा, जो उस धारा के अधीन दी गयी हो, इस अधिनियम के उपबंधों के अध्यधीन होगी।

26. अनुज्ञा के बिना विकास का प्रतिषेध

विकास योजन के प्रवर्तित होने के पश्चात कोई भी व्यक्ति संचालक की लिखित अनुज्ञा के बिना किसी भूमि के उपयोग में को तब्दीली नहीं करेगा या भूमि के किसी भी विकास का कार्य कार्यान्वित नहीं करेगा।

परन्तु कोई भी अनुज्ञा निम्नलिखित के लिए आवश्यक नहीं होगी:-

(क) किसी भवन के अनुरक्षण, मरम्मत या परिवर्तन संबंधी संकर्म को जो भवन के बाह्य रूप में सारवान परिर्तन न करता हो, कार्यान्वित करने के लिए

(ख) किसी राजमार्ग, मार्ग या लोक सड़क के सुधार या अनुरक्षण संबंधी संकर्म के, संघ या राज्य सरकार द्वारा किसी ऐसे प्राधिकारी द्वारा, जो इस अधिनियम के अधीन स्थापित किया गया हो, या अधिकारिता रखने वाले किसी स्थानीय प्राधिकारी द्वारा कार्यान्वित किये जाने के लिए, परन्तु यह तब जब कि ऐसे अनुरक्षण या सुधार के मार्ग रेखा में विकास योजना के उपबंधों के प्रतिकूल कोई तब्दीली नहीं होती हो,

(ग) किन्ही नालियों, मल नालों, प्रणालों, नलों, केबिलों, टेलीफोन या अन्य साधित्रों के निरीक्षण, मरम्मत या नवीनीकरण के प्रयोजन के लिए जिसके अंतर्गत किसी सड़क या अन्य भूमि का उस प्रयोजन के हेतु तोड़ा जाना आता है।

(घ) कृषि के हित में उत्खनन या मृदा संरूपण (साइल-शेपिंग) के लिए,

(ड़) जहां भूमि किन्ही अन्य प्रयेाजनों के लिए अस्थायी रूप से उपयोग में लाई गयी हो, वहां भूमि को उसके प्रसामान्य उपयोग के हेतु प्रत्यावर्तित करने के लिए,

(च) मानव निवासार्थ किसी भवन के या एसे भवन से संलग्न किसी अन्य भवन या भूमि के उपयोग से अनुषंगिक किसी प्रयोजन के हेतु उपयोग में लाने के लिए,

(छ) किसी ऐसे मार्ग के, जो केवल कृषिक प्रयेाजनो के हेतु भूमि तक पहुंचने के लिए आशयित हो, सन्निर्माण के लिए,

’’परन्तु यह और भी किसी ऐसे निवेश क्षेत्र में जिसको धारा 24 की उपधारा (3) के अधीन बनाए गये नियम लागू किये जाते हैं, ऐसी अनुज्ञा उस प्राधिकारी द्वारा दी जा सकेगी जो उक्त नियमों में उपबंधित किया जाये।

27. संघ या राज्य सरकार की ओर से हाथ में लिया गया विकास कार्य

(1) जब संघ सरकार या राज्य सरकार, अपने-अपने विभागों या कार्यालयों या प्राधिकारियों के प्रयोजन के लिए किसी भूमि का विकास करने का आशय रखती हो, तो उसका भारसाधक अधिकारी संचालक को सरकार के ऐसा करने के आशय की जानकारी, ऐसे विकास कार्य को हाथ में लेने के कम से कम तीस दिन पूर्व लिखित में देगा, जिसमें उसकी पूर्ण विशिष्टियां दी जायेंगी और जिसके साथ ऐसे दस्तावेज तथा रेखांक ऐसे प्राकृतिक परिसंकट उन्मुख क्षेत्र जो विहित किया जाए, के विकास नियंत्रण से संबंधित उपविधियों , नियमों तथा अधिनियमों के उपबंधों का अनुपालन करते हुए भेजे जाएंगे ।

(2) जहां संचालक ने प्रस्थापित विकास के संबंध में आधार पर कोई आपत्ति उठाई हो कि विकास कार्य विकास योजना के उपबंधों के अनुरूप नहीं है, वहां वह अधिकारी:-

(एक) संचालक द्वारा उठाई गई आपत्तियों का निराकरण करने के लिए विकास संबंधी प्रस्थापनाओं में आवश्यक उपान्तरण करेगा या

(दो) राज्य सरकार को विकास संबंधी प्रस्थापना, संचालक द्वारा उठाई गयी आपत्तियों सहित विनिश्चय के लिए प्रस्तुत करेगा:

परन्तु यदि प्रस्तावित विकास संबंधी योजना की प्राप्ति से तीस दिन के भीतर संचालक द्वारा कोई उपान्तरण प्रस्तावित नहीं किया जाता है तो ऐसे योजना उस सीमा तक अनुमोदित मानी जायेगी जहां तक कि विकास योजना, परिक्षेत्रिक योजना, नगर विकास स्कीम के उपबंधों या इस अधिनियम या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों का अतिक्रमण नहीं होता हो।

(3) राज्य सरकार विकास संबंधी प्रस्थापनाओं के संचालक द्वारा उठाई गई आपत्तियों सहित प्राप्त होने पर, या तो प्रस्थापनाओं को उपान्तरणों सहित या उपान्तरणों के बिना अनुमोदित करेगी या तो अधिकारी को यह निर्देश देगी कि वह प्रस्थापनाओं में ऐसे उपान्तरण करें जैसे कि वह परिस्थितियों के अनुसार आवश्यक समझे।

(4) उपधारा (3) के अधीन राज्य सरकार का विनिश्चय अंतिम तथा आबद्धकर होगा।

(5) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, किसी भी भूमि के विकास कार्य को जो कि उसमें विनिर्दिष्ट किसी परियोजना का कार्य चालन संबंधी सन्निर्माण के प्रयोजन के लिए संघ या राज्य सरकार की ओर से हाथ में लिया हो, इस धारा के प्रवर्तन से छूट दे सकेगी।

28. स्थानीय प्राधिकारी द्वारा या इस अधिनियम के अधीन गठित किये गये किसी प्राधिकारी द्वारा विकास

जहां कोई प्राधिकारी या इस अधिनियम के अधीन विशेष रूप से गठित किया गया कोई प्राधिकारी किसी भूमि का, उस प्राधिकारी के प्रयोजन के लिए विकास करने का आशय रखता हो, वहां संघ या राज्य सरकार को धारा 27 के अधीन लागू होने वाली प्रक्रिया, यथा आवश्यक परिवर्तनों सहित, ऐसे प्राधिकारी के बारे में लागू होगी।

29. अन्य व्यक्तियों द्वारा विकास के लिए अनुज्ञा के हेतु आवेदन

(1) संघ सरकार, राज्य सरकार, किसी स्थानीय प्राधिकारी या इस अधिनियम के अधीन गठित किये गये किसी विशेष प्राधिकारी से भिन्न कोई व्यक्ति जो किसी भूमि पर कोई विकास कार्य करने का आशय रखता हो, अनुज्ञा के लिए संचालक को लिखित आवेदन करेगा जो ऐसे प्रारूप में होगा तथा जिसमें ऐसी विशिष्टियां अंतर्विष्ट होंगी और जिसमें साथ ऐसी दस्तावेज भेजें ऐसे प्राकृति परिसंकट उन्मुख क्षेत्र जो, विहित किया जाए, के विकास, नियंत्रण संबंधी अधिनियमों, नियमों तथा उपविधियों के उपबंधों का अनुपालन करते हुए भेजी जायेंगी।

(2) ऐसे आवेदन के साथ ऐसी फीस भी होगी जो विहित की जाये।

30. अनुज्ञा का दिया जाना या अनुज्ञा देना से इंकार

(1) धारा 29 के अधीन आवेदन प्राप्त होने पर, संचालक इस अधिनियम के उपबंधों के अध्याधीन रखते हुए लिखित आदेश द्वारा -

(क) बिना शर्त के अनुज्ञा दे सकेगा,

(ख) ऐसी शर्तों के, जैसी कि परिस्थितियों में आवश्यक समझी जाये अध्यधीन रहते हुए अनुज्ञा दे सकेगा,

(ग) अनुज्ञा देने से इंकार कर सकेगा।

(2) शर्तों के अध्यधीन रहते हुए अनुज्ञा देने वाले प्रत्येक आदेश में या अनुज्ञा देने से इंकार करने वाले प्रत्येक आदेश में ऐसी शर्तें अधिरोपित करने के या ऐसे इंकार करने के आधार कथित किये जायेंगे,

(3) कोई भी अनुज्ञा, जो उपधारा (2) के अधीन, शर्तों के साथ या शर्तों के बिना दी गयी हो, ऐसे प्रारूप में होगी, जैसा कि विहित किया जाये,

(4) उपधारा (2) के अधीन प्रत्येक आदेश आवेदक को ऐसी रीति में संसूचित किया जायेगा, जैसी कि विहित

की जाये,

(5) यदि संचालक, अनुज्ञा देने या अनुज्ञा देने से इंकार करने के संबंध में अपना विनिश्चय आवेदक को उस तारीख से, जिसको कि उसका आवेदन प्राप्त हुआ हो, साठ दिन के भीतर संसूचित न करें, तो समझा जायेगा कि ऐसी अनुज्ञा आवेदक को साठ दिन का अवसान होने की तारीख के ठीक पश्चात आने वाली तारीख को दे दी गयी है:

परन्तु साठ दिन की कालावधि की संगणना करने में आवेदक से कोई अतिरिक्त जानकारी या दस्तावेजों के लिए अध्यपेक्षा करने की तारीख के तथा आवेदक से ऐसी जानकारी या दस्तावेजें प्राप्त होने की तारीख को दे दी गयी है।

31. अपील

(1) कोई भी आवेदक, जो धारा 30 के अधीन सशर्त अनुज्ञा देने वाले या अनुज्ञा देने से इंकार करने वाले किसी आदेश से व्यथित हो, उस आदेश के उसे संसूचित किये जाने की तारीख से तीस दिन के भीतर, अपील ऐसे प्राधिकारी को, ऐसी रीति में तथा उसके साथ ऐसी फीस देकर कर सकेगा जैसा कि विहित किया जाएं।

(2) उपधारा (1) के अधीन अपील प्राधिकारी, तथा अपीलार्थी तथा संचालक को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात आदेश द्वारा, अपील खरिज कर सकेगा या बिना शर्त के या यथा उपान्तरित शर्तों के अध्यधीन अनुज्ञा प्रदान करते हुए अपील मंजूर कर सकेगा।

(3) धारा 32 के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए, अपील प्राधिकारी का आदेश अंतिम होगा।

32. पुनरीक्षण

राज्य सरकार किसी भी समय, किन्तु आदेश के पारित होने के अधिक से अधिक बारह मास के भीतर, स्वप्रेरणा से या धारा 31 के अधीन अपील प्राधिकारी के किसी आदेश से व्यथित व्यक्ति द्वारा आदेश के उसे संसूचित किये जाने की तारीख के तीस दिन के भीतर, फाइल किये गये आवेदन पर, भी ऐसे मामले के जो धारा 30 के अधीन संचालक द्वारा या धारा 31 के अधीन अपील प्राधिकारी द्वारा निपटाया गया हो, अभिलेख को आदेश की शुद्धता के संबंध में तथा ऐसे संचालक की या अपील प्राधिकारी की किसी कार्यवाही की नियमितता के संबंध में स्वयं का समाधान करने के प्रयोजन के लिए मंगा सकेगी तथा उसकी परीक्षा कर सकेगी और ऐसा अभिलेख मंगाते समय यह निर्देश दे सकेगी कि आदेश का निष्पादन निलम्बित कर दिया जाय। राज्य सरकार अभिलेख की परीक्षा करने के पश्चात ऐसा आदेश पारित कर सकेगी जैसी की वह उचित समझे और उसका आदेश अंतिम होगा तथा उसके पुनरीक्षण या पुनर्विलोकन के लिए कोई आवेदन नहीं होगा:

परन्तु कोई भी आदेश तब तक पारित नहीं किया जायेगा जब तक कि उससे प्रभावित हुए व्यक्ति को तथा संचालक को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर न दे दिया गया हो।

33. अनुज्ञा का व्यपगत होना

ऐसी प्रत्येक अनुज्ञा जो धारा 30 या 31 या धारा 32 के अधीन दी गयी हो, उसके ऐसे दिये जाने की तारीख से तीन वर्ष की कालावधि तक प्रवृत्त रहेगी और उसके पश्चात वह व्यपगत हो जायेगी:

परन्तु संचालक, आवेदन किया जाने पर, ऐसी कालावधि को वर्षानुवर्ष बढ़ा सकेगा किन्तु कुल कालावधि,

उस तारीख से जिसको कि अनुज्ञा प्रारम्भ में दी गयी थी, किसी भी दशा में पांच वर्ष से अधिक नहीं होगी।

परन्तु यह और भी किसी ऐसा व्यपगत होना इस अधिनियम के अधीन अनुज्ञा के लिए किसी पश्चातवर्ती आवेदन का वर्जन नहीं करेगा।

34. भूमि अर्जित करने के लिए बाध्यता

(1) जहां किसी भूमि को किसी योजना द्वारा -

(क) नगर विस्तार या नगर सुधार के प्रयोजन के हेतु विकास के लिए या

(ख) संघ या राज्य सरकार या किसी स्थानीय प्राधिकारी या इस अधिनियम के अधीन गठित किये गये किसी विशेष प्राधिकारी के प्रयोजन के हेतु विकास के लिए, या

(ग) राजमार्ग या लोकोपयोगी सेवा के रूप मे विकास के लिए अनिवार्य अर्जन के अध्यधीन होना अभिहित किया गया हो और उस भूमि का स्वामी -

(एक) यह दावा करता हो कि वह भूमि अपनी वर्तमान स्थिति में युक्तियुक्त रूप से फायदाप्रद उपयोग के लिए अयोग्य हो गयी है, या

(दो) जहां भूमि का विकास करने की अनुज्ञा शर्तों के अध्यधीन रहते हुए दी गयी हो वहां वह दावा करता हो कि अनुज्ञात विकास को उन शर्त के अनुसार कार्यान्वित करके भूमि को युक्तियुक्त रूप से फायदाप्रद उपयोग के योग्य नहीं बनाया जा सकता,

(तीन) यह दावा करता हो कि उस भूमि को अर्जन या विकास के लिए अभिहित किये जाने के कारण उस भूमि का विक्रय मूल्य कम हो गया है, तो स्वामी, सरकार पर ऐसे समय की भीतर, ऐसी रीति में तथा ऐसी दस्तावेजों के साथ, जैसी कि विहित किया जाय, एक सूचना तामील कर सकेगा जिसमें समुचित प्राधिकारी से यह अपेक्षा की जायेगी कि वह भूमि में के हित का इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार क्रय कर लें।

(2) उपधारा (1) के अधीन सूचना प्राप्त होने पर,राज्य सरकार, संचालक तथा समुचित प्राधिकारी से ऐसी रिपोर्ट या ऐसे अभिलेख या दोनों, जैसा आवश्यक हो, तत्काल मंगायेगी, जिसे / जिन्हें कि वे प्राधिकारी यथासंभव शीघ्र किन्तु उनकी अध्यापेक्षा की तारीख से अधिक तीस दिन के भीतर राज्य सरकार को भेजेंगे।

(3) ऐसे अभिलेख या ऐसी रिपोर्ट प्राप्त होने पर राज्य सरकार -

(क) यदि उसका यह समाधान हो जाय कि उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट की गयी शर्तें पूरी हो गयी है, और यह कि अनुज्ञा के लिए सम्यक् रूप से आदेश या विनिश्चय, इस आधार पर नहीं किया गया था कि आवेदक ने इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाये गये नियमों के उपबंधों में सके किसी उपबंध का अनुपालन नहीं किया गया, तो वह सूचना की पुष्टि कर सकेगी या यह निर्देश दे सकेगी कि अनुज्ञा शर्तों के बिना या ऐसी शर्तों कें, जो कि भूमि को युक्तियुक्त रूप से फायदाप्रद उपयोग के योग्य बना देगी, अध्यधीन रहते हुए दी जाय,

(ख) किसी अन्य मामले में, सूचना की पुष्टि करने से इंकार कर सकेगी, किन्तु उस दशा में आवेदक को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिया जायेगा।

(4) यदि उस तारीख से, जिसको कि सूचना की तामील की गयी हो, एक वर्ष की कालावधि के भीतर, राज्य सरकार उस पर कोई अंतिम आदेश पारित न करें तो यह समझा जायेगा कि उस कालावधि का अवसान हो जाने पर सूचना की पुष्टि कर दी गई है।

(5) सूचना की पुष्टि हो जाने पर, राज्य सरकार, ऐसी पुष्टि के एक वर्ष की कालावधि के भीतर उस भूमि का या किसी भूमि के उस भाग को, जिसके कि संबंध में सूचना की पुष्टि कर दी गयी हो, इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार अर्जित करने के लिए अग्रसर होगी।

35. आरक्षण का प्रारूप या अंतिम विकास योजना में से निकाल दिया जाना

(1) समुचित प्राधिकारी, यदि उसका यह समाधान हो जाय, कि भूमि की ऐसे लोक प्रयोजन के लिए जिसके लिए वह प्रारूप विकास योजना या परिक्षेत्रिक योजना में या अंतिम विकास योजना या परिक्षेत्रिक योजना में अभिहित या आरक्षित या आवंटित की गयी हो, और अधिक आवश्यकता नहीं है, तो वह

(क) ऐसे अभिधान या आरक्षण या आवंटन को प्रारूप विकास योजना या परिक्षेत्रिक योजना में से निकाल दिये जाने की मंजूरी देने के लिए संचालक से निवेदन कर सकेगा, या अभिहित भूमि के

(ख) ऐसे अभिधान या आरक्षण या आवंटन को अंतिम विकास योजना या परिक्षेत्रिक योजना में से निकाल दिये जाने की मंजूरी देने के लिए राज्य सरकार से निवेदन कर सकेगा।

(2) समुचित प्राधिकारी से ऐसा निवेदन प्राप्त होने पर संचालक या जैसी भी कि दशा हो, राज्य सरकार सुसंगत योजनाओं में से ऐसे अभिधान या आरक्षण या आवंटन को निकाल दिये जाने की मंजूरी देते हुए आदेश दे सकेगा / दे सकेगी:

परन्तु संचालक, या जैसी कि दशा हो, राज्य सरकार, कोई आदेश देने के पूर्व ऐसी जांच कर सकेगा /कर सकेगी, जैसी कि वह आवश्यक समझे और अपना यह समाधान कर सकेगा / कर सकेगी कि ऐसे आरक्षण या अभिधान या आवंटन की लोकहित में और अधिक आवश्यकता नही है।

(3) उपधारा (2) के अधीन आदेश दिया जाने पर भूमि ऐसे अभिधान, आरक्षण या जैसी भी कि दशा हो, आवंटन से निर्मुक्त हुई समझी जायेगी और वह पाश्र्वस्थ भूमि के मामले में सुसंगत योजना के अधीन अन्यथा अनुज्ञेय विकास प्रयोजन के लिए स्वामी को उपलब्ध हो जायेगी। के लिए स्वामी को उपलब्ध हो जायेगी।

36 . अप्राधिकृत विकास को हटाने की अपेक्षा करने की शक्ति

कोई भी व्यक्ति जो चाहे अपनी स्वयं की प्रेरणा पर या किसी अन्य व्यक्ति की प्रेरणा पर -

(क) इस अधिनियम के अधीन अपेक्षित अनुज्ञा के बिना,

(ख) दी गयी अनुज्ञा के या किसी ऐसी शर्त के जिसके कि अध्यधीन ऐसी अनुज्ञा दी गयी हो, उल्लंघन में,

(ग) विकास संबंधी अनुज्ञा के सम्यकरूप से प्रतिसंह्त कर दिये जाने के पश्चात, या

(घ) ऐसी अनुज्ञा के जो सम्यकरूप से उपांतरित कर दी गयी हो, के उल्लंघन में, किसी भी भूमि के विकास का कोई कार्य प्रारम्भ करेगा, हाथ में लेगा या उसे कार्यान्वित करेगा या उसके किसी उपयोग में तब्दीली करेगा, किसी भी ऐसी कार्यवाही पर, जो कि धारा 37 के अधीन की जा सकती हो, प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, सादा कारावास से जिसकी अवधि छः मास तक की हो सकेगी, जुर्माने से जो दो हजार रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से, और चालू रहने वाले अपराध की दशा में, अतिरिक्त जुर्माने से, जो अपराध के प्रथम बार किया जाने के लिए दोषसिद्धि के पश्चात प्रत्येक ऐसे दिन के लिए जिसके दौरान अपराध चालू रहे, दो सौ पचास रूपये तक का हो सकेगा, दण्डित किया जायेगा।

37. अप्राधिककृत विकास के लिए या विकास योजना के अनुरूप उपयोग से अन्यथा उपयोग करने के लिए शास्ति

(1) जहां धारा 36 में यथा उपदर्शित कोई विकास कार्यान्वित किया गया हो, वहां संचालक, ऐसे विकास के पांच वर्ष के भीतर, स्वामी पर एक सूचना तामील कर सकेगा जिसमे ंउससे यह अपेक्षा की जायेगी कि वह ऐसी कालावधि के भीतर जो सूचना की तामील की तारीख से एक मास से कम तथा तीन मास से अधिक न हो, जैसी कि उसमें विनिर्दिष्ट की जाय –

(क) उन मामलों में, जो कि धारा 36 के खण्ड (क) या (ग) विनिर्दिष्ट किये गये हैं, भूमि को उसकी उस अवस्था में प्रत्यावर्तित करें जो कि उक्त विकास के किये जाने के पूर्व थी,

(ख) उन मामलों में जो कि धारा 36 के खण्ड (ख) या (घ) में विनिर्दिष्ट किये गये हैं, शर्तों का या यथा उपान्तरित अनुज्ञा का अनुपालन सुनिश्चित करें, परन्तु जहां सूचना में भूमि के किसी उपयोग को बंद कर दिये जाने की अपेक्षा की जाय, वहां सूचना की तामील अधिभोगी पर भी की जायेगी।

(2) विशिष्टतया, ऐसी सूचना में उपधारा (1) के प्रयोजन के लिए,

(क) किसी भवन या किन्हीं संकर्मों को तोड़ दिये जाने या परिवर्तित किये जाने,

(ख) भूमि पर कोई निर्माण संबंधी या अन्य संक्रियाएं कार्यान्वित किये जाने, या

(ग) भूमि के किसी उपयोग को बंद कर दिये जाने की अपेक्षा की जा सकेगी।

(3) ऐसी सूचना से व्यथित कोई भी व्यक्ति सूचना की प्राप्ति से पन्द्रह दिन के भीतर तथा विहित रीति में संचालन को इस बात की अनुज्ञा के लिए आवेदन कर सकेगा कि उस भूमि पर किसी ऐसे भवन या संकर्मों को, जिनसे कि सूचना संबंधित है, बना रहने दिया जाय या उस भूमि के किसी ऐसे उपयोग को, जिससे कि सूचना संबंधित है, चालू रहने दिया जाय या उस भूमि के किसी ऐसे उपयोग को, जिससे कि सूचना संबंधित है, चालू रहने दिया जाय और जब तक कि आवेदन का निपटारा न हो जाय तब तक सूचना प्रत्याहृत रहेगी।

(4) इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंध जहां तक कि वे लागू हो सकते हों, उपधारा (3) के अधीन किये गये आवेदन को लागू होंगे।

(5) यदि वह अनुज्ञा, जिसके कि लिए आवेदन किया गया है, दे दी जाती है तो सूचना प्रत्याह्त हो जायेगी, किन्तु यदि वह अनुज्ञा जिसके लिए आवेदन किया गया है, नहीं दी जाती, तो सूचना प्रवृत्त रहेगी, या यदि ऐसा अनुज्ञा केवल कुछ भवनों या संकर्मों के बनाये रख जाने के लिए या भूमि के केवल किसी भाग का उपयोग चालू रखने के लिए दी जाती है, तो सूचना, ऐसे भवनों या संकर्मों के बारे में या भूमि के ऐसी भाग के बारे में या भूमि के अन्य भागों के बारे में प्रवृत्त रहेगी, और तदुपरि स्वामी इस बात के लिए अपेक्षित किया जायेगा कि वह ऐसे अन्य भवनों, संकर्मों या भूमि के भाग के बारे में उपधारा (1) के अधीन सूचना मे विनिर्दिष्ट की गई कार्यवाही करें।

(6) यदि सूचना में विनिर्दिष्ट की गई कालावधि के भीतर या आवेदन के निपटारे के पश्चात् उतनी ही कालावधि के भीतर, सूचना का या उसके उतने भाग का, जो कि प्रवृत हो, अनुपालन किया जाय, तो संचालक-

(क) सूचना का अनुपालन न करने के लिये स्वामी को अभियोजित कर सकेगा, और जहां सूचना में भूमि के किसी उपयोग को बन्द कर दिये जाने की अपेक्षा की गई हो, वहां किसी ऐसे अन्य व्यक्ति को भी, जो सूचना के उल्लंघन में भूमि का उपयोग करता हो, या जो सूचना के उल्लंघन में भूमि का उपयोग करवाता हो या किया जाने देता हो, अभियोजित कर सकेगा, और

(ख) जहां सूचना में किसी भवन या संकर्मों के तोड़ दिये जाने या परिवर्तित किये जाने या किन्हीं निर्माण संबंधी या अन्य संक्रियाओं के कार्यान्वित किये जाने की अपेक्षा की गयी हो, वहां वह स्वयं, उस भूमि को उस अवस्था में प्रत्यावर्तित करवा सकेगा जिसमे कि वह विकास किये जाने के पूर्व थी और ऐसी कार्यवाही जैसी कि संचालक आवश्यक समझे, जिसके कि अंतर्गत किसी भवन या संकर्मों का तोड़ा जाना या परिवर्तित किया जाना या कोई निर्माण संबंधी या अन्य संक्रियाओं का कार्यान्वित किया जाना आता है, करके अनुज्ञा की शर्तों का या यथा उपान्तरित अनुज्ञा का अनुपालन सुनिश्चित कर सकेगा और उसके द्वारा इस संबंध में उपगत किये गये व्ययों की रकम स्वामी से भू-राजस्व के बकाया की भांति वसूल कर सकेगा।

(7) कोई भी व्यक्ति, जो उपधारा (6) के खण्ड (क) के अधीन अभियोजित किया गया हो, दोषसिद्ध पर सादा कारावास से जिसकी अवधि छः मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से दो हजार रूपये तक का हो सकेगा या दोनों से और चालू रहने वाले अपराध की दशा में अतिरिक्त जुर्माने से, जो अपराध के प्रथम बार किये जाने के लिए दोषसिद्ध के पश्चात प्रत्येक ऐसे दिन के लिए जिसके दौरान अपराध चालू रहे, दो सौ पचास रूपये तक का हो सकेगा, दण्डित किया जायेगा।

सातवां अध्याय

नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी

38. नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी की स्थापना

(1) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा ऐसे नाम से तथा ऐसे क्षेत्र के लिए जो कि अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाय, एक नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी की स्थापना कर सकेगी।

(2) विकास योजना में की प्रस्थापना को कार्यान्वित करने, एक या अधिक नगर विकास स्कीमें तैयार करने और उस क्षेत्र के जो उपधारा (1) के अधीन अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया गया हो, विस्तार या सुधार के लिए प्रयेाजन के लिए भूमि अर्जित करने तथा उसका विकास करने का कर्तव्य, इस अधिनियम के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए, उक्त क्षेत्र के लिए स्थापित किये गये नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी में निहित होगा:

परन्तु नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी पर अधिरोपित कर्तव्य का पालन उपधारा (1) के अधीन किसी क्षेत्र के लिए उस प्राधिकारी की स्थापना हो जाने तक उस स्थानीय प्राधिकारी द्वारा जो कि ऐसे क्षेत्र पर अधिकारिता रखता हो, इस प्रकार किया जायेगा मानों कि वह इस अधिनियम के अधीन स्थापित किया गया नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी हो।

(3) उस क्षेत्र के लिए जिसको कि उपधारा (2) का परन्तुक लागू होता है, नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी की स्थापना हो जाने पर, उस क्षेत्र के संबंध में निम्नलिखित परिणाम होंगे, अर्थातः-

(एक) उपधारा (2) के परन्तुक के अधीन कर्तव्य का निर्वहन करने में स्थानीय प्राधिकारी द्वारा अर्जित की गयी समस्त आस्तियां तथा उपगत किये गये समस्त दायित्व ऐसे स्थानीय प्राधिकारी के स्थान पर स्थापित किये गये नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी की आस्तियां तथा दायित्व होंगे एवं समझे जायेंगे।

(दो) खण्ड (एक) मे निर्दिष्ट किये गये स्थानीय प्राधिकारी के समस्त अभिलेख तथा कागज पत्र उसके स्थान पर स्थापित किये गये नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी मे निहित होंगे तथा उसे अंतरित कर दिये जायेंगे।

39. नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी का निगमन

प्रत्येक नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी धारा 38 के अधीन अधिसूचना मे विनिर्दिष्ट किये गये नाम से एक निगमित निकाय होगा और उसका शाश्वत उत्तराधिकार होगा तथा उसकी एक सामान्य मुद्रा होगी और जंगम तथा स्थावर दोनों प्रकार की सम्पत्ति अर्जित करने तथा धारण करने और उस अधिनियम के या उसके अधीन बनाये गये किन्हीं नियमों के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए उसके द्वारा धारित किसी सम्पत्ति को अंतरित करने, संविदा करने तथा ऐसी समस्त अन्य बातें, जो इस अधिनियम का प्रयोजनों के लिए आवश्यक हों, करने की शक्ति होगी और वह अपने निगमित नाम से बाद चला सकेगा तथा उक्त नाम से उसके विरूद्ध वाद चलाया जा सकेगा।

40. नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी का गठन

प्रत्येक नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी मे निम्नलिखित होंगे, अर्थात:-

(क) अध्यक्ष, जो राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जायेगा,

(ख) जिले का कलेक्टर या उसका नाम निर्देशिती,

(ग) क्रमशः निम्नलिखित का प्रतिनिधित्व करने के लिए राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किये जाने वाले पांच सदस्य:

(एक) नगर तथा ग्राम निवेश विभाग, मध्यप्रदेश,

(दो) वन विभाग, मध्यप्रदेश,

(तीन) लोक स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग, मध्यप्रदेश

(चार) लोक निर्माण विभाग, मध्यप्रदेश,

(पांच) मध्यप्रदेश विद्युत मंडल

(घ) यथास्थिति क्षेत्र के नगरपालिक निगम का या नगरपालिका परिषद का प्रशासन, आयुक्त या मुख्य नगरपालिक अधिकारी,

(ड़) राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया जाने वाला राज्य सरकार का एक अन्य अधिकारी,

(च) नगर निवेश या वास्तुकला के क्षेत्र में विशेष ज्ञान रखने वाला एक व्यक्ति जो राज्य सरकार द्वारा नियुक्त यिका जायेगा,

(छ) राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किये जाने वाले पांच अशासकीय सदस्य जिनमें कम से कम दो महिलाएं होंगी,

(ज) मुख्य कार्यपालक अधिकारी सदस्य सचिव होगा, ’’परन्तु राज्य सरकार एक या अधिक उपाध्यक्ष नियुक्त कर सकेगी यदि वह ऐसा करना आवश्यक समझेः

परन्तु यह और कि राज्य सरकार एक सदस्यीय नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी का गठन कर सकेगी, यदि वह ऐसा करना आवश्यक समझे।

41. अध्यक्ष उपाध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों की पदावधि

(1) अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों के नाम राजपत्र में अधिसूचित किये जायेंगे।

(2) अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों की पदावधि ऐसी होगी जैसे कि विहित की जाय।

(3) वह व्यक्ति, जो अपनी पदावधि का अवसान हो जाने के कारण अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या सदस्य न रहें, यदि वह अन्यथा अर्हित हो, पुनर्नियुक्ति के लिए पात्र होगा।

42. सदस्यों के त्याग पत्र तथा आकस्मिक रिक्ती का भरा जाना

(1) ऐसा व्यक्ति जो धारा 40 के खण्ड (घ) (च) (छ) के अधीन सदस्य बना हो, किसी भी समय अध्यक्ष को संबोधित किये गये स्वहस्ताक्षरित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा तथा अध्यक्ष को त्यागपत्र प्राप्त हो जाने पर उस सदस्य का पद रिक्त हो जायेगा।

(2) यदि राज्य सरकार यह समझती हो कि किसी सदस्य का पद पर बना रहना लोकहित में नहीं है, तो राज्य सरकार उसकी नियुक्ति का पर्यवसान करते हुए आदेश कर सकेगी और तदुपरि वह नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी का सदस्य नहीं रहेगा, भले ही उस अवधि का, जिसके लिए वह नियुक्त किया गया था, अवसान न हुआ हो।

(3) अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या किसी सदस्य के पद में रिक्त होने के दशा में वह रिक्त, धारा 40 के उपबंधों के अनुसार राज्य सरकार द्वारा भरी जायेगी और इस प्रकार नियुक्ति किया गया व्यक्ति अपने पूर्वाधिकारी की अवधि के शेष भाग के लिए पद धारण करेगा।

43. अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का पारिश्रमिक

(1) अध्यक्ष से भिन्न कोई भी सदस्य, उन भत्तों के सिवाय, जो कि विहित किये जाय, कोई उपलब्धियां प्राप्त नहीं करेगा।

(2) अध्यक्ष और उपाध्यक्ष ऐसा तेतन तथा भत्ते प्राप्त करेगा और सेवा के ऐसे निबंधनों तथा शर्तों के अध्यधीन होगा, जैसा कि विहित किये जाय।

44. अनुपस्थिति छुट्टी और कार्यकारी अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष की नियुक्ति

(1) राज्य सरकार, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को अनुपस्थिति, छुट्टी ऐसे निर्बनधनों तथा शर्तों के अध्यधीन मंजूर कर सकेगी जैसा कि विहित किया जाये,

(2) जब कभी अध्यक्ष को अनुपस्थिति छुट्टी मंजूर की जाती है, तब अध्यक्ष द्वारा नाम निर्देशित किया गया उपाध्यक्ष और जहां अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को छुट्टी मंजूर की जाती है तब राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किया गया कोई अन्य सदस्य अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा।

45 . नगर तथा ग्राम विकास प्राकिारी के सम्मिलन

(1) नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी के सम्मिलित ऐसे समय पर तथा ऐसे समय पर तथा ऐसे स्थान पर किये जायेंगे जैसा कि विनियमों द्वारा अधिकथिक किया जाय, परन्तु जब तक कि इस संबंध में विनियम न बनाये जाय, ऐसा सम्मिलन अध्यक्ष द्वारा बुलाया जायेगा।

(2) सम्मिलन की गणपूर्ति, जब तक की विनियमों द्वारा अन्यथा उपबंधित न हो, नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी के सदस्यों की कुल संख्या के एक-तिहाई सदस्यों से होगी।

(3) नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी, अपने कामकाज के संचालन के लिए उपबंध करने के हेतु विनियम बनायेगा।

46. नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी के सम्मिलन

(1) प्रत्येक नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी में एक मुख्य कार्यपालिक अधिकारी होगा जो प्राधिकारी के सचिव के रूप में कार्य करेगा।

(2) मुख्य कार्यपालिक अधिकारी, राज्य सरकार द्वारा विकास प्राधिकरण सेवा के राज्य संवर्ग के सदस्यों में से या यदि आवश्यक हो तो राज्य तकनीकी / प्रशासनिक सेवाओं के सदस्यों में से नियुक्ति किया जायेगा।

47. अन्‍य अधिकारी

प्रत्येक नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी में, ऐसे अन्य अधिकारी और सेवक हो सकेंगे जो उसके कर्तव्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन के लिए आवश्यक और उचित हों, धारा 76 (ख) में वर्णित विकास प्राधिकरण सेवाओं के राज्य संवर्ग में सम्मिलित अधिकारियों और सेवकों के पदों पर नियुक्तियां राज्य सरकार द्वारा की जायेगी और उक्त सेवाओं के स्थानीय संवर्ग में सम्मिलित अधिकारियों और सेवकों के पदों पर नियुक्तियां संबंधित नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी द्वारा की जायेगी।

परन्तु किसी प्राधिकारी में कोई भी पद राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी से ही सृजित किया जायेगा अन्यथा नहीं।

 

48. मुख्य कार्यपालिक अधिकारी अन्य अधिकारी और सेवक

 

धारा 46 के अधीन नियुक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी और धारा 47 के अधीन नियुक्त किये गये अन्य अधिकारी और सेवक इस अधिनियम तथा नियमों के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए प्राधिकारी के अधीक्षण और नियंत्रण के अधीन कार्य करेंगे।

49. कार्यपालिक अधिकारी और अन्य अधिकारियों और सेवकों की सेवा शर्तें नगर विकास स्कीमें

नगर विकास स्कीम में निम्नलिखित विषयों में से किसी भी विषय के लिए उपबंध किया जा सकेगाः-

(एक) नगर विस्तार के प्रयोजन के लिए भूमि का अर्जन उसका विकास तथा विक्रय या उसका पट्टे पर दिया जाना,

(दो) ऐसे क्षेत्रों का जिनका दोषपूर्ण ढंग से अभिन्यास किया गया हो या जो इस प्रकार विकसित या विहृसित हुए हो कि जिससे गंदी बस्ती बश्न गयी हो, अर्जन, पुनः अभिन्यास पुनर्निर्माण या पुनः स्थाननिर्धारण,

(तीन) गृह निर्माण के विकास, बाजार केन्द्रों, सांस्कृतिक केन्द्रों, प्रशासनिक केन्द्रों के विकास जैसे लोक प्रयोजन के लिए भूमि का अर्जन तथा विकास,

(चार) वाणिज्यिक तथा औद्योगिक प्रयोजनों के लिए क्षेत्रों का अर्जन तथा विकास,

(पांच) ऐसा निर्माण या सन्निर्माण कार्य हाथ में लेना जो गृह निर्माण संबंधी, बाजार संबंधी, वाणिज्यिक या अन्य सुविधाओं का उपबंध करने के लिए आवश्यक हो,

(छः) मार्ग तथा सड़क के प्रतिरूपों का अभिन्यास करने या उनका पुनः प्रतिरूपण करने (रिमॉडलिंग) के प्रयोजन के लिए भूमि का अर्जन तथा उसका विकास,

(सात) खेल के मैदानों, उपवनों, आमोद-प्रमोद के केन्द्रों तथा क्रीड़ागनों के लिए भूमि का अर्जन तथा विकास,

(आठ) भवनों, मार्गों, नालियों, मल-वहन लाइनों तथा अन्य वैसी ही सुख-सुविधाओं के प्रयेाजन के लिए प्लांटों का पुनर्गठन,

(नौ) इस प्रकार का कोई अन्य कार्य जिसमें परिवेश संबंधी सुधार हो सकते हों, जो कि प्राधिकारी द्वारा राज्य सरकार के पूर्व अनुमोदन से आरम्भ किया जा सकेगा।

50. नगर विकास स्किमों का तैयार किया जाना

(1) नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी, किसी भी समय नगर विकास स्कीम तैयार करने के अपने आशय की

घोषणा कर सकेगा।

(2) स्कीम बनाने संबंधी आशय की ऐसी घोषणा की तारीख से अधिक से अधिक तीस दिन के भीतर, नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी वह घोषणा राजपत्र में तथा ऐसी रीति में, जैसी कि विहित की जायें, प्रकाशित करेगा।

(3) उपधारा (2) के अधीन घोषणा के प्रकाशन की तारीख से अधिक से अधिक दो वर्ष के भीतर नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी एक नगर विकास स्कीम प्रारूप के रूप में तैयार करेगा और उसे ऐसे प्रारूप में तथा ऐसी रीति में, जैसा कि विहित किया जाय। एक ऐसी सूचना के साथ प्रकाशित करेगा जिसमें कि किसी भी व्यक्ति से ऐसी तारीख के पूर्व, जैसी कि विहित की जाय तथा जो कि ऐसी सूचना के प्रकाशन की तारीख से तीस दिन के पूर्व की नहीं होगी, उक्त प्रारूप विकास स्कीम के संबंध में आपत्तियों तथा सुझाव आमंत्रित किये जायेंगे।

(4) नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी उन समस्त आपत्तियों तथा सुझावों पर, जो कि उपधारा (3) के अधीन सूचना में विनिर्दिष्ट की गयी कालावधि के भीतर प्राप्त हो, विचार करेगा और उससे प्रभावित हुए ऐसे व्यक्तियों, को जो यह चाहते हो, कि उनकी सुनवाई की जाय, युक्तियुक्त अवसर देने के पश्चात या उपधारा (5) के अधीन गठित की गयी समिति की रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात प्रारूप स्कीम को, जैसी कि वह प्रकाशित करेगा या उसमें ऐसे उपान्तरण करेगा जैसे कि वह उचित समझे।

परन्तु ऐसी प्रारूप स्कीम का अंतिम प्रकाशन, प्रारूप स्कीम के प्रकाशन की तारीख से अधिक एक वर्ष के भीतर अधिसूचित किया जाएगा जिसमें सफल होने पर यह समझा जाएगा कि प्रारूप स्कीम व्यपगत हो गयी है ।

(5) जहां नगर विकास स्कीम प्लाटों के पुनर्गठन से संबंधित हो, वहां नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी, उपधारा (4) मे किसी बात के अंतर्विष्ट होते हुए भी, उपधारा (3) के अधीन प्राप्त हुई आपत्तियों तथा सुझावों की सुनवाई करने के प्रयोजन के लिए एक समिति गठित करेगा जिसमें उक्त प्राधिकारी का मुख्य कार्यपालिक अधिकारी तथा दो अन्य सदस्य जिनमें से एक सदस्य मध्यप्रदेश गृह निर्माण मंडल का प्रतिनिधि तथा दूसरा सदस्य मुख्य इंजीनियर, लोक निर्माण विभाग द्वारा नाम निर्दिष्ट किया गया लोक निर्माण विभाग का एक ऐसा अधिकारी होगा जो कार्यपालिक इंजीनियर के पद से निम्न पद का न हो, होंगे।

(6) उपधारा (5) के अधीन गठित की गयी समिति आपत्तियों तथा सुझावों पर विचार करेगी और ऐसे व्यक्तियों की, जो यह चाहते हो कि उन्हें सुना जाय, सुनवाई करेगी और अपनी रिपोर्ट नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी को ऐसे समय के भीतर जैसा कि वह नियत करें, निम्नलिखित प्रस्थापनाओं के साथ प्रस्तुत करेगी:-

(एक) उन क्षेत्रों को, जो लोक प्रयेाजन के लिए आवंटित या आरक्षित किये गये हो, परिनिश्चित करने तथा उनकी सीमांकन करने के लिए,

(दो) पुनर्गठित प्लाटों का सीमांकन करने के लिए,

(तीन) मूल तथा पुनर्गठित प्लांटों के मूल्य का मूल्यांकन करने के लिए,

(चार) यह अवधारित करने के लिए कि क्या लोक प्रयोजन के लिए आरक्षित किये गये क्षेत्र स्कीम के क्षेत्र के भीतर के निवासियों के लिए पूर्णतः याअंशत फायदाप्रद हैं,

(पांच) लोक प्रयोजन के लिए प्लाट के पुनर्गठन तथा प्रभागों के आरक्षण के मद्दे स्कीम के हिताधिकारियों को दिये जाने वाले रतिकर का तथा उनसे लिये जाने वाले अभिदाय का प्राक्कलन या प्रभाजन करने के लिए,

(छः) प्रत्येक पुनर्गठित प्लाट के मूल्य में हुई वृद्धि का मूल्यांकन करने तथा प्लाट के धारक पर उद्ग्रहणीय विकास अभिदाय निर्धारित करने के लिए, परन्तु अभिदाय मूल्य में प्रोदभूत हुई वृद्धि के आधे से अधिक नहीं होगा।

(सात) किसी पुनर्गठित प्लाट के मूल्य में हुई कमी का मूल्यांकन करने और उसके लिए देय प्रतिकर निर्धारति करने के लिए,

(7) उपधारा (4) के अधीन नगर विकास स्कीम के उपान्तरणों के साथ या उपान्तरणों के बिना अनुमोदित हो जाने के अव्यवहित पश्चात, नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी राजपत्र में तथा ऐसी अन्य रीति में, जैसी कि विहित की जाये, अंतिम नगर विकास स्कीम प्रकाशित करेगा और वह तारीख विनिर्दिष्ट करेगा जिसको कि वह (स्कीम) प्रवर्तित होगी।

51. पुनरीक्षण

संचालक किसी भी समय, किन्तु धारा 50 के अधीन अंतिम नगर विकास योजना के प्रकाशित होने की तारीख से अधिक से अधिक दो वर्ष के भीतर, स्वप्रेरणा से या अंतिम स्कीम के इस प्रकार प्रकाशित किये जाने के तीस दिन के भीतर किसी भी ऐसे व्यक्ति द्वारा, जो अंतिम स्कीम से व्यथित हो, फाईल किये गये आवेदन पर, नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी द्वारा पारित किये गये आदेश की शुद्धता के बारे में या ऐसे प्राधिकारी की किन्हीं भी कार्यवाहियों को नियमितता के बारे में स्वयं का समाधान करने के प्रयोजन के लिए किसी भी स्कीम का अभिलेख मंगा सकेगा और उसकी परीक्षा कर सकेगा और ऐसा अभिलेख मंगवाते समय वह निर्देश दे सकेगा कि उस स्कीम का निष्पादन निलम्बित कर दिया जाय। संचालक, अभिलेख की परीक्षा करने के पश्चात ऐसा आदेश पारित कर सकेगा जैसा कि वह उचित समझे और उसका आदेश अंतिम होगा:

परन्तु कोई भी आदेश तब तक पारित नहीं किया जायेगा जब तक कि उससे प्रभावित व्यक्ति को तथा नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर न दे दिया गया हो।

52. निर्देश देने की राज्य सरकार की शक्ति

(1) राज्य सरकार नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी को -

(क) कोई नगर विकास स्कीम विरचित करने,

(ख) किसी नगर विकास स्कीम को निष्पादन के दौरान उपान्तरति करने,

(ग) किसी नगर विकास स्कीम को प्रतिसंहरण करने के लिए निदेश, ऐसे निदेश में विनिर्दिष्ट किये जाने वाले कारणों से, दे सकेगी, यदि वह लोकहित में ऐसा करना आवश्यक समझे:

परन्तु किसी नगर स्कीम को उपान्तरित करने या उसका प्रतिसंहरण करने का कोई भी निदेश तब तक नहीं दिया जायेगा, जब तक कि नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी को अपना मामला उपस्थापित करने का अवसर न दे दिया गया हो।

(2) इस धारा के अधीन राज्य सरकार द्वारा दिये गये निदेश नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी को आबद्धकर होंगे।

53. भूमि के उपयोग तथा भूमि के विकास पर निर्बन्धन

नगर विकास स्कीम तैयार करने संबंधी घोषणा के प्रकाशन की तारीख से कोई व्यक्ति, स्कीम में सम्मिलित क्षेत्र के भीतर, ऐसी घोषणा के प्रकाशन के पूर्व उस विकास के अनुसार के सिवाय जो कि संचालक द्वारा इस अधिनियम के उपबंधों के अनुसार प्राधिकृत किया गया हो, किसी भूमि या भवन के किसी उपयोग को संस्थित नहीं करेगा या उसके उपयोग में कोई तब्दीली नहीं करेगा या किसी विकास को कार्यान्वित नहीं करेगा।

54. स्कीम का व्यपगत होना

यदि नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी धारा 50 के अधीन अंतिम स्कीम की अधिसूचना की तारीख से दो वर्ष की कालावधि के भीतर नगर विकास स्कीम का कार्यान्वयन प्रारम्भ करने या उसका कार्यान्वयन पांच वर्ष की कालावधि के भीतर पूर्ण करने में असफल रहता है तो वह यथास्थिति, उपरोक्त दो वर्ष की या पांच वर्ष की कालावधि का अवसान होने पर व्यपगत हो जायेगी:

परन्तु यदि ऐसे प्राधिकारी और ऐसी स्कीम से व्यथित पक्षकारों, यदि कोई हो, के मध्य किसी विवाद को सक्षम अधिकारिता वाले किसी न्यायालय या अधिकरण के समक्ष विचार के लिए लाया जाता है तो उस कालावधि की संगणना जिसमें ऐसा विवाद ऐसे न्यायालय या अधिकरण के समक्ष लंबित रहता है, स्कीम के व्यपगत होने संबंधी अवधारण में नहीं की जायेगी।

55. नगर विकास स्कीम लोक प्रयेाजन होगी

नगर विकास स्कीम के प्रयेाजन के लिए चाही गयी भूमि के संबंध में यह समझा जायेगा कि वह लैण्ड एक्विजीशन एक्ट, 1894 (क्रमांक 1 सन् 1894) के अर्थ के अंतर्गत किसी लोक प्रयेाजन के लिए चाही गयी भूमि है।

56. नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी के लिए भूमि का अर्जन

नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी, धारा 50 के अंतिम नगर विकास स्कीम के प्रकाशन की तारीख के पश्चात किसी भी समय किन्तु उससे (उक्त तारीख से) अधिक से अधिक तीन वर्ष के भीतर उस भूमि को, जो कि स्कीम के कार्यान्वयन के लिए अपेक्षित हो, करार द्धारा अर्जित करने के लिए कार्यवाही कर सकेगा और इस प्रकार अर्जित करने में उसके चूक करने पर, राज्य सरकार, नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी की प्रार्थना पर, ऐसी भूमि को लैण्ड एक्विजीशन एक्ट, 1894 (क्रमांक 1 सन् 1894) के उपबंधों के अधीन अर्जित करने के लिए कार्यवाही कर सकेगी और इस अधिनियम के अधीन अधिनिर्णित किये गये प्रतिकर का तथा अर्जन के संबंध में राज्य सरकार द्वारा उपगत किये गये किन्ही अन्य प्रभारों का भुगतान करने पर वह भूमि, ऐसे निर्बन्धनों तथा शर्तोंं के अध्यधीन रहते हुए, जैसी कि विहित की जाय, नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी में निहित हो जायेगी।

57. विकास कार्य

(1) नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी, धारा 56 के अधीन उसमें निहित भूमि का, नगर विकास स्कीम के उपबंधों के अनुसार विकास करने के लिए आवश्यक कार्यवाही करेगा:

परन्तु यदि राज्य सरकार या संचालक के पास, ऐसी जांच के पश्चात जैसी कि आवश्यक हो, यह विश्वास करने का कारण हो कि नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी भूमि का विकास के लिए यथा योग्य कार्यवाही नहीं कर रहा हो या कि उसने अंतिम स्कीम से हट कर कार्य किया है, तो वह उस प्राधिकारी को ऐसे निर्देश दे सकेगी / सकेगा जैसे कि उन परिस्थितियों में आवश्यक समझे जायें।

(2) इस धारा के अधीन दिये गये निर्देश नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी को आबद्धकर होंगे और वह प्राधिकारी उन निर्देशों को तुरन्त प्रभावशील करेगा।

58. भूमि भवनों तथा अन्य विकास कार्य का व्ययन

ऐसे नियमों के अध्यधीन रहते हुए, जैसे कि राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में बनाये जाय, नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी विकसित भूमियों, गृहों, भवनों तथा अन्य संरचनाओं के व्ययन के लिए प्रक्रिया का अवधारण, विनियम द्वारा करेगा।

59. विकास प्रभार

(1) जहां किसी नगर विकास स्कीम के कार्यान्वयन के परिणाम स्वरूप, नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी की राय में किसी स्कीम की पाश्र्वस्थ तथा उससे प्रभावित भूमियों के बाजार भाव में कोई अधिमूल्यन हुआ है, वहां नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी ऐसे भूमि के अर्जन के लिए उपबंध करने के बजाय, ऐसी भूमियों के स्वामियों पर विकास प्रभार उद्ग्रहीत कर सकेगा।

(2) विकास प्रभार वह रकम होगी जो भूमि के नगर विकास योजना तैयार करने के आशय के प्रकाशन क तारीख को होने वाले मूल्य तथा भूमि के योजना के पूर्ण होने की तारीख हो होने वाले मूल्य के बीच होने वाले अंतर के कम से कम एक चैथाई के तथा अधिक से अधिक एक तिहाई के बराबर हो।

60. उद्ग्रहण का ढंग

(1) नगर विकास स्कीम के पूर्ण हो जाने पर, नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी, सूचना द्वारा जो कि ऐसे प्रारूप में हो तथा जो कि ऐसी रीति में प्रकाशित की गयी हो, जैसा कि विहित किया जाए नगर विकास स्कीम के पूर्ण हो जाने संबंधी तथ्य की तथा स्कीम के अंतर्गत के आने वाले क्षेत्र में विकास प्रभार उद्ग्रहत करने के अपने आशय की घोषणा करेगा, उस सूचना में भूमियों के ऐसे स्वामियों से, जो विकास प्रभारों का भुगतान करने के लिए दायी हो, ऐसी कालावधि के भीतर जो सूचना के प्रकाशन की तारीख से तीस दिन से कम की नहीं होगी, तथा ऐसे प्राधिकारी को, जैसा कि सूचना में विनिर्दिष्ट किया जाय, आपत्ति, यदि कोई हो, प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जायेगी।

(2) सूचना में विनिर्दिष्ट किया गया प्राधिकारी आपत्तिकर्ताओं को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी को एक रिपोर्ट भेजेगा।

(3) उपधारा (2) के अधीन रिपोर्ट प्राप्त होने पर, नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी उस पर ऐसे आदेश पारित करेगा जैसे कि वह उचित समझे।

(4) नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी, विकास प्रभार उद्ग्रहीत करने के अपने आशय की घोषणा करने वाली सूचना के प्रकाशित होने के पश्चात अधिक से अधिक तीन मास के भीतर विहित प्रारूप में एक सूचना जारी करेगा जिसमें उन प्रभारों का निर्धारण किया जायेगा जो प्रभारों के उद्ग्रहण से प्रभावित प्रत्येक व्यक्ति द्वारा शोध्य हो।

(5) जहां निर्धारण प्रतिग्रहीत कर लिया गया हो, वहां वह अंतिम होगा तथापि निर्धारण के प्रतिग्रहीत न किये जाने की दशा में व्यथित व्यक्ति सूचना के प्रकाशन के तीस दिन के भीतर उपखण्ड अधिकारी (सब डिवीजनल ऑफीसर) पद से अनिम्न पद के राज्य अधिकारी के जो कि राज्य सरकार द्वारा इस संबंध में प्राधिकृत किया जाय, समक्ष लिखित में आवेदन फाइल कर सकेगा।

(6) राजस्व अधिकारी, आवेदक तथा नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी को सुनवाई का अवसर देने के पश्चात आवेदन पर ऐसे आदेश पारित कर सकेगा जैसे कि वह परिस्थितियों के अनुसार उचित समझे ओर इस प्रकार पारित किया गया आदेश अंतिम होगा।

(7) निर्धारण के अंतिम रूप से अवधारित कर दिये जाने पर, नगर तथा विकास प्राधिकारी प्रत्येक निर्धारित पर एक सूचना तामील करवायेगा, जिसमें उससे (निर्धारिती से), उसके द्वारा सूचना प्राप्त होने की तारीख से साठ दिन की कालावधि के भीतर विकास प्रभारों का भुगतान करने के लिए कहां जायेगा।

(8) किसी भी ऐसे भुगतान पर, जो उपधारा (7) के अधीन सूचना में विनिर्दिष्ट की गयी कालावधि का अवसान होने के पश्चात किया गया हो, उस तारीख से, जिसकी कि निर्धारिती को सूचना द्वारा प्राप्त हुई हो, पांच प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से सादा ब्याज लगेगा।

(9) नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी, उसको उस संबंध में आवेदन किया जाने पर, विकास प्रभारों का भुगतान पांच से अनाधिक वार्षिक किश्तों में करने के लिए निर्धारिती को अनुज्ञा दे सकेगा और ऐसी तारीख नियत कर सकेगा जिस तक कि प्रत्येक किश्त देय होगी।

(10) जहां भुगतान किश्तों में किया जाने की अनुज्ञा दी गयी हो, वहां विकास प्रभारों की रकम पर, उपधारा (7) के अधीन सूचना प्राप्त होने की तारीख से सात प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से ब्याज लगेगा और शोध्य ब्याज प्रत्येक किश्त के साथ देय होगा।

61. नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी की निधि

नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी की अपनी स्वयं की निधि होगी ओर उस प्राधिकारी की समस्त प्राप्तियां उसमें जमा की जायेगी और उस प्राधिकारी द्वारा किये जाने वाले समस्त समस्त भुगतान उसमें से (निध में से) किये जायेंगे।

61- 

(1) प्रत्येक नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी राज्य सरकार तथा स्थानीय प्राधिकारी से सहायता अनुदान उस दर पर प्राप्त करने का हकदार होगा जो कि उपधारा (2) में विनिर्दिष्ट की गयी है।

(2) सहायता अनुदान की संगणना निम्नानुसार होगी:-

प्रथम 50,000 तक की जनसंख्या की प्रत्येक 10,000 इकाइयों के लिए 2,000 रूपये और

50,000 से अधिक जनसंख्या की प्रत्येक 20,000 इकाइयों के लिए 2,000 रूपये,

परन्तु आधी या आधी से अधिक इकाई वार्षिक अभिदाय की रकम की संगणना करने के प्रयोजनों के लिए पूरी इकाई के रूप में गिनी जायेगी।

(3) यदि स्थानीय प्राधिकारी इस धारा के अधीन किसी राशि का संदाय करने में व्यक्तिक्रम करता है तो राज्य सरकार उस व्यक्ति को, जिसकी कि अभिरक्षा में स्थानीय प्राधिकारी की निधि का अतिशेष हो, आदेश द्वारा यह निर्देश दे सकेगी कि वह ऐसा संदाय या तो पूरा कर दे या ऐसे भागों में कर दे जैसे कि ऐसे अतिशेष से संभव हो।

परन्तु किसी राशि का संदाय करने का निर्देश देते हुए कोई आदेश राज्य सरकार द्वारा तब तक नहीं किया जायेगा जब तक कि यह कारण कि ऐसा आदेश क्यों न किया जाय दर्शाने का स्थानीय प्राधिकारी को अवसर उस दशा के अतिरिक्त न दे दिया गया हो जबकि राज्य सरकार यह समझती है कि स्थानीय प्राधिकारी ने अपना मामला पहले ही कथित कर दिया है या कि स्थानीय प्राधिकारी को अपना मामला कथित करने का पहले ही पर्याप्त असवर था।

62. वार्षिक आय व्यय का विवरण

(1) मुख्य कार्यपालिक अधिकारी, प्रत्येक वर्ष अधिक से अधिक 10 मार्च तक, वार्षिक आय तथा व्यय का विवरण तैयार करवायेगा जिसमें पिछले वर्ष के प्राक्कलन तथा वास्तविक आंकड़े और अगले वित्तीय वर्ष के लिए प्राक्कलन दिये जायेंगे।

(2) इस प्रकार तैयार किया गया वार्षिक विवरण (जिसे इसमें के पश्चात ‘‘बजट’’ कहा गया है) मुख्य नगरपालिक अधिकारी द्वारा, अध्यक्ष के पूर्व अनुमोदन से नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी के समक्ष रखा जायेगा।

(3) नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी, उसे इस प्रकार प्रस्तुत किये गये प्राक्कलन पर विचार करेगा और उसे या तो अपरिवर्तित रूप से या एसे परिवर्तनों के जैसे कि वह उचित समझे, अध्यधीन रहते हुए मंजूर करेगा।

(4) उपधारा (3) के अधीन मंजूर किये गये बजट की एक प्रति राज्य सरकार को तथा संचालक को भेजी जायेगी।

(5) राज्य सरकार नगर तथा विकास प्राधिकारी को बजट में ऐसा उपान्तरण करने का निर्देश दे सकेगी

जैसा कि आवश्यक समझा जाय।

(6) नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी, ऐसे निर्देशों के प्राप्त होने की तारीख से तीस दिन के भीतर या तो

उपान्तरण को प्रतिगृहीत कर लेगा या राज्य सरकार को और निवेदन करेगा।

(7) राज्य सरकार नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी के निवेदन पर विचार करने के पश्चात, उस पर ऐसे आदेश पारित करेगी जैसे कि उचित समझे जायें, और आदेशों की तारीख से बजट सरकार द्वारा आदेशित उपान्तरणों के साथ प्रवृत हुआ समझा जायेगा।

63. बकाया की भू - राजस्व के बकाया के तौर पर वसूली

ऐसे निर्बन्धनों तथा ऐसी शर्तों के, जैसा कि विहित किया जाय, अध्यधीन रहते हुए, नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी, राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी से, इस अधिनियम के समस्त प्रयेाजनों या उनमें से किसी भी प्रयोजन के लिए डिबेन्चर जारी कर सकेगा या सरकार से या खुले बाजार से धन उधार ले सकेगा।

63. धन उधार लेने की शक्ति

(क) इस अधिनियम के अधीन नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी को शोध्य कोई राशि उसी रीति में वसूली योग्य होगी जिसमे कि भू-राजस्व का बकाया वसूली योग्य होता है।

आठवां अध्याय

विशेष क्षेत्र

64. विशेष क्षेत्रों का गठन

(1) यदि किसी क्षेत्र, नगर या नगरी को प्रादेशिक योजना में विशेष क्षेत्र के रूप में अभिहित किया गया हो, या यदि राज्य सरकार का किसी अन्य प्रकार से यह समाधान हो जाये कि लोकहित में यह समीचीन है कि किसी क्षेत्र, नगर या नगरी को विशेष क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाये तो वह, अधिसूचना द्वारा उस क्षेत्र के रूप में अभिहित कर सकेगी जो ऐसे नाम से जाना जैसा कि उसमें (अधिसूचना में) विनिर्दिष्ट किया जाय।

(2) ऐसी अधिसूचना में विशेष क्षेत्र की सीमाएं परिनिश्चित की जायेगी।

(3) राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा:-

(क) विशेष क्षेत्र की सीमाओं में इस प्रकार परिवर्तन कर सकेगी कि ऐसा क्षेत्र, जैसा कि अधिसूचना में विनिर्दिष्ट किया जाय, उसमें सम्मिलित किया जा सके या उसमें से अपवर्जित किया जा सके,

(ख) यह घोषणा कर सकेगी कि विशेष क्षेत्र उस रूप में नहीं रहेगा।

(4) लोप किया गया।

65. विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी

(1) प्रत्येक विशेष क्षेत्र में एक विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी होगा, जिसमें:-

(क) अध्यक्ष,

(ख) एक या अधिक उपाध्यक्ष और

(ग) सदस्यों की ऐसी संख्या जो कि राज्य सरकार समय-समय पर अवधारित करे जिसमें से कम से कम दो महिलाएं होगी जो राज्य सरकार द्वारा नियुक्त की जायेगी।

(2) अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों के नाम राजपत्र में अधिसूचित किये जायेंगे।

(3) अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों की पदावधि ऐसी होगी जैसी कि विहित की जाए।

(4) अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को देय वेतन तथा भत्ते और सेवा के अन्य निर्बन्धन तथा शर्तें ऐसी होगी जैसी कि विहित की जाय।

(5) सदस्य किसी भी वेतन के हकदार नहीं होंगे किन्तु वे ऐसे भत्ते प्राप्त करेंगे जैसे की विहित किए जाएं।

66. विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी का निगमन

प्रत्येक विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी एक निगमित निकाय होगा, जिसका शाश्वत, उत्तराधिकार होगा तथा जिसकी सामान्य मुद्रा होगी और जिसे स्थावर तथा जंगम दोनों प्रकार की सम्पत्ति अर्जित करने, धारण करने तथा उसका व्ययन करने और संविदा करने की शक्ति होगी और वह धारा 64 की उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट किये गये नाम से वाद चला सकेगा तथा उक्त नाम से उसके विरूद्ध वाद चलाया जा सकेगा।

67. कर्मचारी वृन्द

प्रत्येक विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी में ऐसे अधिकारी और सेवक होंगे जो उसके कर्तव्यों के दक्षतापूर्ण निर्वहन के लिए आवश्यक और उचित हो, विकास प्राधिकारी सेवा के सुसंगत संवर्ग के राज्य संवर्ग में सम्मिलित अधिकारियों और सेवकों के पदों पर नियुक्तियां संबंधित नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी द्वारा नवां-क अध्याय और उसके अधीन बनाये गये नियमों के उपबंधों के अनुसार की जायेगी ।

परन्तु किसी प्राधिकारी में कोई भी पद राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी से ही सृजित किया जायेगा अन्यथा नहीं।

68. कृत्य

विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी के निम्नलिखित कृत्य होंगे:-

(एक) विशेष क्षेत्र के लिए विकास योजना, तैयार करना यदि ऐसा करने की उससे अपेक्षा की जाये,

(दो) विकास योजना को, राज्य सरकार द्वारा उसके अनुमोदित कर दिये जाने के पश्चात कार्यान्वित करना,

(तीन) योजना के कार्यान्वयन के प्रयोजन के लिए, भूमि तथा अन्य, सम्पत्ति अर्जित करना, धारण करना, उसे विकसित करना, उसका प्रबंध तथा व्ययन करना,

खण्ड (चार) (पांच) और (छः) का लोप किया गया।

(सात) अन्य अर्थों में, विशेष क्षेत्र के बारे में समस्त ऐसे कृत्यों का, जिनके कि संबंध में राज्य सरकार, समय-समय पर निर्देश दें, पालन करना।

69. शक्तियां

विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी -

(क) भूमि के अर्जन के प्रयोजन के लिए, ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा, तथा ऐसी प्रक्रिया का अनुसरण करेगा जो इस अधिनियम के अधीन किसी नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी को प्राप्त है या जिसका कि वह अनुसरण करता है।

(ख) निवेश के प्रयोजन के लिए, ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा जो कि इस अधिनियम के अधीन संचालक को प्राप्त है,

(ग) लोप किया गया

(घ) लोप किया गया

70. क्षेत्र विकास प्राधिकारी की निधि विशेष

(1) प्रत्येक विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी की अपनी स्वयं की निधि होगी ओर उस प्राधिकारी की समस्त प्राप्तियां उसमें जमा की जायेगी तथा उस प्राधिकारी के समस्त भुगतान उसमें से (निधि में से) किये जायेंगे।

(2) विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी, इस अधिनियम के समस्त प्रयोजनों या उसमें किसी भी प्रयेाजन के लिए-

(क) राज्य सरकार से या किसी स्थानीय प्राधिकारी से अनुदान प्रतिगृहीत कर सकेगा,

(ख) ऐसे निबन्धनों तथा ऐसी शर्तों के, जैसा कि विहित किया जाये, अध्यधीन रहते हुए उधार ले सकेगा।

71. वार्षिक प्राक्कलन

(1) अध्यक्ष, प्रत्येक वर्ष अधिक से अधिक 10 मार्च तक विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण के समक्ष, आगामी अपै्रल मास के प्रथम दिन प्रारम्भ होने वाले वर्ष के लिए उस प्राधिकारी की आय तथा व्यय का एक प्राक्कलन ऐसे ब्यौरेवार तथा ऐसे प्रारूप में, जैसा कि वह प्राधिकारी समय-समय पर निर्देश दे रखेगा।

(2) ऐसे प्राक्कलन में विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी के समस्त दायित्वों की सम्यक पूर्ति के लिए तथा इस अधिनियम के दक्षतापूर्ण कार्यान्वयन के लिए उपबंध किया जायेगा ओर ऐसा प्राक्कलन पूर्ण होगा तथा उसकी एक एक प्रति उस प्राधिकारी के प्रत्येक सदस्यों को उस सम्मिलन के, जिसके कि समक्ष प्राक्कलन रखा जाना है कम से कम पूरे दस दिन पूर्व भेजी जायेगी।

(3) विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी, इस प्रकार प्रस्तुत किये गये प्राक्कलन पर विचार करेगा और उसे या तो अपरिवर्तित रूप में ऐसे परिवर्तनों के जैसे कि वह उचित समझे, अध्यधीन रहते हुए मंजूर करेगा।

(4) इस प्रकार मंजूर किये गये प्राक्कलन राज्य सरकार को भेजे जायेंगे जो कि उन्हें उपान्तरणों के साथ या उपान्तरणों के बिना अनुमोदित कर सकेगी।

(5) यदि राज्य सरकार प्राक्कलनों को उपान्तरणों के साथ अनुमोदित करती है, तो विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी उन्हें संशोधित करने की कार्यवाही करेगा और इस प्रकार उपान्तरित तथा संशोधित किये गये प्राक्कलन उस वर्ष के दौरान प्रवृत्त होंगे।

नवां अध्याय

नियन्त्रण

72. पर्यवेक्षण तथा नियंत्रण की राज्य सरकार की शक्ति

राज्य सरकार को धारा 3 के अधीन नियुक्त किये गये अधिकारियों या इस अधिनियम के अधीन गठित किये गये प्राधिकारियों के कार्यों तथा कार्यवाहियों पर अधीक्षण तथा नियंत्रण की शक्ति प्राप्त होगी।

73. अनुरूपता सुनिश्चित करने के लिए

(1) धारा 3 के अधीन नियुक्त किये गये अधिकारी तथा इस अधिनियम के अधीन गठित किये गये प्राधिकारी, अपने कर्तव्यों के निर्वहन में, नीति विषयक मामलों की बाबत ऐसे निदे्रशों द्वारा, जैसे कि राज्य सरकार द्वारा दिये जायें, आबद्ध होंगे।

(2) यदि राज्य सरकार तथा किसी प्राधिकारी के बीच इस बात पर कोई विवाद उद्भूत हो कि कोई प्रश्न नीति विषयक प्रश्न है या नहीं तो राज्य सरकार का विनिश्चय अंतिम होगा।

74. योजनाओं आदि का पुनर्विलोकन करने की सरकार की शक्ति

तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य अधिनियमित में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी राज्य सरकार नगर सुधार स्कीमों का, भवन योजनाओं का या सन्निर्माण के लिए किसी अनुज्ञा का, जो तत्समय प्रवृत्त किसी अधिनियमिति के अधीन किसी प्राधिकारी द्वारा मंजूर की गयी विकास योजनाओं के अधीन किसी प्राधिकारी द्वारा मंजूर की गयी हो या दी गयी हो, पुनर्विलोकन यह अभिनिश्चित करने की दृष्टि से कर सकेगी कि इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाये गये नियमों के उपबंधों के दृष्टिगत रखते हुए उनमें कोई प्रतिकूलता तो नहीं है या कोई प्रतिकूलता उत्पन्न तो नहीं होती और किसी भी स्कीम, योजना, अनुज्ञा या मंजूरी को प्रतिसंह्त कर सकेगी, उसमें फेरफार कर सकेगी या उसे उपान्तरित कर सकेगी जिससे कि ऐसी स्कीम, योजना, अनुज्ञा या मंजूरी को इस अधिनियम के उपबंधों के अनुरूप बनाया जा सके।

परन्तु इस धारा के अधीन कोई भी आदेश, उससे प्रभावित होने वाले व्यक्यिों को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दिये बिना नहीं किया जायेगा।

75. शक्तियों का प्रत्यायोजन प्राधिकारियों का विघटन

(1) राज्य सरकार इस अधिनियम द्वारा या उसके अधीन उसे प्रदत्त की गयी समस्त या कोई भी शक्तियां, जो नियम बनाने के शक्ति से भिन्न हों, अपने अधीनस्थ किसी भी अधिकारी या प्राधिकारी को अधिसूचना द्वारा प्रत्यायोजित कर सकेगी।

(2) ऐसे निर्बन्धनों के अध्यधीन रहते हुए जैसे कि राज्य सरकार द्वारा साधारण या विशेष आदेश द्वारा अधिरोपित किये जायें, संचालक इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाये गये नियमों के अधीन उसके द्वारा प्रयोक्तव्य समस्त या कोई भी शक्तियां, जो अपील तथा पुनरीक्षण को सुनने की शक्ति से भिन्न हों, अपने अधीनस्थ किसी भी अधिकारी को, लिखित आदेश द्वारा प्रत्यायोजित कर सकेगा।

76. निर्देश देने की राज्य सरकार की शक्ति

(1) जब कभी राज्य सरकार की राय में इस अधिनियम के अधीन गठित किये गये किसी प्राधिकारी का अस्तित्व में बना रहना अनावश्यक या अवांछनीय हो, तब राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, यह घोषित कर सकेगी कि ऐसा प्राधिकारी, ऐसी तारीख से जो कि उसमें (अधिसूचना में) विनिर्दिष्ट की जाये, विघटित कर दिया जायेगा और ऐसा प्राधिकारी तदनुसार विघटित हो जायेगा।

(2) उक्त तारीख से -

(क) प्राधिकारी की समस्त आस्तियां तथा दायित्व उस क्षेत्र की नगरपालिका में निहित हो जायेंगे तथा ऐसी नगरपालिका को ऐसी समस्त शक्तियां होंगी जो ऐसी अस्तियों का कब्जा लेने, उन्हें वसूल करने तथा उनके संबंध में संव्यवहार करने के लिए और ऐसे दायित्वों का निर्वहन करने के लिए आवश्यक हो:

परन्तु ऐसे मामलों में जहां ऐसे प्राधिकारी का क्षेत्र भिन्न-भिन्न नगरपालिकों के अंतर्गत आता है, तो ऐसे प्राधिकारी की आस्तियां और दायित्व ऐसी नगरपालिकाओं के बीच ऐसी रीति में, जैसी कि राज्य सरकार, आदेश द्वारा अवधारित करें, वितरित किये जायेंगे।

(ख) ऐसी समस्त लंबित कार्यवाहियां, जिनमें प्राधिकारी एक पक्षकार था, उसी प्रकार जारी रहेंगी मानों कि प्राधिकारी के स्थान पर वह नगरपालिका उसका एक पक्षकार थी।

स्पष्टीकरण - इस उपधारा के प्रयोजनों के लिए ‘‘नगरपालिका’’ से अभिप्रेत यथास्थिति, मध्यप्रदेश नगरपालिक निगम अधिनियम, 1956 (क्रमांक 23 सन् 1956) की धारा 7 के अधीन गठित कोई नगरपालिका निगम या मध्यप्रदेश नगरपालिका अधिनियम, 1961 (क्रमांक 37 सन् 1961) की धारा 5 के अधीन गठित नगरपालिका परिषद या नगर पंचायत है।

नवां  अध्याय

विकास प्राधिकरण सेवाएं

76-  परिभाषाएं

इस अध्याय में ‘‘विकास प्राधिकरण’’ से अभिप्रेत है:-

(एक) नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी

(दो) विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी और

(तीन) मध्यप्रदेश टाउन इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट एक्ट, 1960 (क्रमांक 14 सन् 1961) की धारा 4 के अधीन गठित किया गया इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट,

76-  विकास प्राधिकरण सेवा का गठन आदि

(1) ऐसी तारीख से जिसे राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा इस निमित्त नियत करें, विकास प्राधिकरण सेवा का गठन राज्य में के समस्त विकास प्राधिकरणों के लिए अधिकारी और सेवक उपलब्ध कराने के प्रयोजन के लिए किया जाएगा। विकास प्राधिकारी सेवा में निम्नलिखित होंगे:-

(क) विकास प्रशासनिक अधिकारियों का संवर्ग,

(ख) विकास अभियंताओं का संवर्ग,

(ग) विकास निवेश अधिकारियों का संवर्ग,

(घ) इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए संवर्ग में सम्मिलित अधिकारियों को सौंपे गये कृत्यों के अनुसार अवधारित किये जाने वाले एसे अन्य संवर्ग जो राज्य सरकार, अधिसूचना द्वारा, विनिर्दिष्ट करें, प्रत्येक संवर्ग में निम्नलिखित होंगे:-

(एक) राज्य संवर्ग

(दो) स्थानीय संवर्ग

प्रत्येक राज्य संवर्ग और प्रत्येक स्थानीय संवर्ग में ऐसी श्रेणियां तथा ऐसे पदनामों के उतने पद होंगे जो राज्यसरकार, समय-समय पर, अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे।ं राज्य संवर्ग में सम्मिलित श्रेणियों के पदों पर नियुक्तियां राज्य सरकार द्वारा की जायेगी और स्थानीय संवर्ग में सम्मिलित श्रेणियों के पदों पर नियुक्तियां संबंधित विकास प्राधिकारी द्वारा की जायेगी।

(2) राज्य सरकार, विकास प्राधिकरण सेवा में नियुक्त किये जाने वाले व्यक्तियों की भर्ती तथा सेवा शर्तों का विनियमन करने के लिए नियम बनाएगी और ऐसे नियमों में इस बात के लिए उपबंध हो सकेगा कि शक्तियों का प्रयोग, विकास प्राधिकारियों को सम्मिलित करते हुए ऐसे प्राधिकरियों द्वारा जो उनमें विनिर्दिष्ट किये जायें, किया जा सकेगा।

(2-क) विकास प्राधिकरण सेवा में किसी पद पर नियुक्त व्यक्तियों को उनकी सेवा की शर्तों के अनुसार दिये जाने के लिए अपेक्षित वेतन, भत्ते, उपदान, वार्षिक पेन्शन तथा अन्य भुगतान संबंधित विकास प्राधिकारी की निधि पर प्रभार होंगे, परन्तु किसी व्यक्ति के एक विकास प्राधिकरण से दूसरे विकास प्राधिकरण में स्थानांतरण की दशा में, संबंधित विकास प्राधिकरण पूर्वोक्त भुगतानों के मद्दे ऐसे अनुपात में अभिदाय करने का दायी होगा, जो राज्य सरकार विहित करें।

(2-ख) विकास प्राधिकरण सेवा के किसी संवर्ग की किसी श्रेणी के किसी पद पर नियुक्त व्यक्ति को एक विकास प्राधिकरण में उसी संवर्ग की उसी श्रेणी के उसी पद पर या उसी श्रेणी के उसी पद पर या उसी श्रेणी के उसी पद पर या उसी श्रेणी या किसी उच्चतर संवर्ग के किसी उच्चतर पद पर पदोन्नति देकर स्थानान्तरति किया जा सकेगा।

(2-ग) राज्य सरकार, विकास प्राधिकरण सेवा में या तो राज्य संवर्ग में या स्थानीय संवर्ग के किसी पद पर नियुक्त किसी व्यक्ति को एक विकास प्राधिकरण से दूसरे विकास प्राधिकरण में स्थानान्तरित कर सकेगी और राज्य सरकार के लिए यह आवश्यक नहीं होगा कि वह स्थानान्तरण आदेश पारित करने के पूर्व संबंधित विकास प्राधिकरण से या अधिकारी या सेवक से परामर्श करें।

(2-घ) जहां उपधारा (2-ग) के अधीन स्थानान्तरित अधिकारी या सेवक स्थानीय संवर्ग का हो वहां,

(एक) उसका धारित पद पर अर्थात मूल विकास प्राधिकरण में धारणाधिकार रहेगा,

(दो) उसे उन भत्तों के संबंध में, जिन्हें वह अपने मूल विकास प्राधिकरण में बने रहने की दशा में प्राप्त करने का हकदार होता, अहितकर स्थिति में नहीं रखा जायेगा,

(तीन) वह ऐसी दर पर प्रतिनियुक्ति भत्ता प्राप्त करने का हकदार होगा जो राज्य सरकार साधारण आदेश द्वारा अवधारित करें।

(चार) वह ऐसे अन्य निबन्धनों तथा शर्तों जिनके अंतर्गत अनुशासनिक नियंत्रण भी है द्वारा शासित होगा जो राज्य सरकार, साधारण या विशेष आदेश द्वारा अवधारित करें।

(3) उपधारा (2) द्वारा प्रदत्त नियम बनाने की शक्ति के अंतर्गत नियमों का या उनमें से किसी नियम को ऐसी तारीख, से जो उपधारा (1) के अधीन नियत की गयी तारीख के पूर्व की न हो, भूतलक्षी प्रभाव देने की शक्ति आती है, किन्तु किसी भी नियम को भूतलक्षी प्रभाव इस प्रकार नहीं दिया जायेगा कि जिससे किसी ऐसा व्यक्ति के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े जिसे ऐसे नियम लागू हो सकता है।

(4) इस धारा के अधीन बनाए गये समस्त नियम विधान सभा के पटल रखे जायेंगे।

(5) उपधारा (1) के अधीन नियत की गयी तारीख को मुख्य कार्यालिक अधिकारी का पद धारण करने वाले व्यक्ति को या उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट अन्य अधिकारियों तथा सेवकों के पदधारण करने वाले व्यक्तियों को उस दशा में जबकि वे 19 नवम्बर 1982 के पूर्व उक्त पदों पर स्थायी किये जा चुके हों, विकास प्राधिकरण सेवा में स्थायी रूप से आमेलित और सम्मिलित कर लिया जायेगा। उक्त तारीख को पूर्वोक्त पद धारण करने वाले शेष व्यक्तियों को, यदि उन्हें ऐसी प्रक्रिया का, जैसी कि विहित की जाए अनुसरण करने के पश्चात उपयुक्त पाया जाता है, ऐसी सेवा में या तो अंतिम रूप से या अंतिम रूप से आमेजित किया जा सकेगा। यदि किसी व्यक्ति को उक्त सेवा में अंतिम रूप से आमेलित नहीं किया जाता तो उसकी सेवाएं उसके द्वारा अंतिम आहरित एक मास के वेतन का भुगतान करके किसी भी समय समाप्त की जा सकेगी।

(6) जहां पूर्वोक्त उपधारा में निर्दिष्ट किसी व्यक्ति को उस उपधारा में उपबंधित किये गये अनुसार उक्त सेवा में अंतिम रूप से आमेलित कर लिया जाता है, वहां उन सेवा शर्तों को, जो उसे उसके आमेलित के तत्काल पूर्व लागू है, उन्हें उसके लिए उसे अनुकूल बनाकर उसके लिए अहितकर रूप में परिवर्तित नहीं किया जायेगा, सिवाय इसके कि उसे एक विकास प्राधिकरण से दूसरे विकास प्राधिकरण को स्थानांतरित किया जा सकेगा।

 

76-   राज्य सरकार द्वारा जांच

(1) राज्य सरकार, स्वपे्ररणा से, किसी व्यक्ति को, लिखित आदेश द्वारा, किसी विकास प्राधिकरण के गठन कार्यकरण और वित्तीय स्थिति की जांच करने के लिए प्राधिकृत कर सकेगी।

(2) उपधारा (1) के अधीन प्राधिकृत व्यक्ति की इस धारा के अधीन जांच करने के प्रयोजन के लिए निम्नलिखित शक्तियां होंगी, अर्थात,

(क) उसकी सभी समयों पर विकास प्राधिकरण की बहियों, लेखाओं और दस्तावेजों तक अबाध पहुंच होगी और वह ऐसे किसी व्यक्ति को, जिसके कब्जे में ऐसी बहिये, लेखे और दस्तावेज हैं और जो उनकी अभिरक्षा के लिए उत्तरदायी हैं, इस बात के लिए समन कर सकेगा कि वह उन्हें पेश करें।

(ख) वह किसी व्यक्ति को, जिसके बारे में उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि उसे विकास प्राधिकरण के किन्हीं भी कार्यकलापों की जानकारी है, अपने समक्ष उपसंजात होने के लिए समन कर सकेगा ओर ऐसे व्यक्ति की शपथ पर परीक्षण कर सकेगा।

(3) उपधारा (1) के अधीन प्राधिकृत व्यक्ति अपने निष्कर्षों को दर्शाते हुए अपनी रिपोर्ट उपधारा (1) के अधीन आदेश में विनिर्दिष्ट समय के भीतर राज्य सरकार को प्रस्तुत करेगा।

 

76-    अधिभार

यदि संपरीक्षा, जांच या निरीक्षण के अनुक्रम में यह पाया जाता है कि कोई व्यक्ति, जिसे विकास प्राधिकरण का संगठन या प्रबंध सौंपा गया है अथवा सौंपा गया था, जिसके अंतर्गत ऐसे प्राधिकरण का अध्यक्ष और ऐसे अन्य अधिकारी और सेवक भी होंगे, विकास प्राधिकरण को धनीय हानि पहुंचाने वाले किसी कार्य या कार्यलोप के लिए उत्तरदायी है, तो राज्य सरकार, सम्यक् जांच के पश्चात ऐसे व्यक्ति को उतनी हानि की पूर्ति करने का आदेश दे सकेगी जो राज्य सरकार न्याय संगत और साम्यापूर्ण समझे:

परन्तु इस धारा के अधीन कोई आदेश तब तक नहीं किया जायेगा जब तक संबंधित व्यक्ति को उस मामले में सुने जाने का युक्तियुक्त अवसर न दे दिया जाता:

परन्तु यह और भी कि ऐसे मामलों में वसूली के अतिरिक्त, राज्य सरकार ऐसे व्यक्ति या व्यक्तियों के विरूद्ध

ऐसी अन्य कार्रवाही भी शुरू कर सकेगी जो वह ठीक समझे।

स्पष्टीकरण - इस धारा के प्रयोजन के लिए विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष या किसी अधिकारी या सेवक द्वारा

इस अधिनियम या उसके अधीन बनाये गये नियमों के उल्लंघन में की गयी नियुक्ति को धनीय हानि समझा

जायेगा।

 

76-  अधिनियम क्रमांक 14 सन् 1961 का आंशिक निरसन

धारा 76-ख की उपधारा (1) के अधीन नियम की गयी तारीख से मध्यप्रदेश टाऊन इम्प्रूव्हमेंट ट्रस्ट एक्ट, 1960 (क्रमांक 14 सन् 1961) उस सीमा तक जहां तक कि उसमें उन विषयों से, जिनके लिए इस अध्याय में उपबंध अंतर्विष्ट है, संबंधित उपबंध अंतर्विष्ट है तथा उन अधिकारियों और सेवकों, के जो उसके अंतर्गत आते हैं, संबंध में निरस्त हो जायेगा।

दसवां अध्याय

प्रकीर्ण

77. प्रवेश का अधिकार

(1) इस अधिनियम के किन्हीं भी अन्य उपबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, संचालक या इस अधिनियम के अधीन स्थापित किया गया कोई प्राधिकारी, इस अधिनियम के अधीन कोई योजना या स्कीम तैयार करने के प्रयोजन के लिए किसी भी भूमि या भवन में या उस पर –

(क) ऐसी भूमि या भवन की कोई माप करने के लिए या उसका सर्वेक्षण करने के लिए या उसका तल मापने के लिए,

(ख) विकास की सीमाओं तथा उसकी आशयित रेखाओं का उपक्रमण करने के लिए तथा उन्हें चिन्हित करने के लिए,

(ग) ऐसे तलों, सीमाओं तथा रेखाओं को, चिन्ह लगाकर तथा खाईयां खोदकर चिन्हित करने के लिए,

(घ) सन्निर्माण संकर्मों का परीक्षण करने के लिए तथा मलनालों एवं नालियों के मार्ग अभिनिश्चित करने के लिए,

(ड़) यह अभिनिश्चित करने के लिए कि क्या किसी भूमि का विकास इस अधिनियम के या उसके अधीन के किन्हीं नियमों या विनियमों के उपबंधों के उल्लंघन मे किया जा रहा है या किया गया है, प्रवेश कर सकेगा या प्रवेश करवा सकेगा।

परन्तु:-

(एक) आवास गृह के रूप में उपयोग में लाये जाने वाले किसी भवन में या ऐसे किसी भवन से संलग्न किसी उद्यान के घिरे हुए भाग पर सूर्योदय तथा सूर्यास्त के बीच के समय के सिवाय या उसके अधिभोगियों को प्रवेश करने के आशय की कम से कम चैबीस घण्टे की लिखित सूचना दिये बिना इस प्रकार प्रवेश नहीं किया जायेगा,

(दो) प्रत्येक दशा में, स्त्रियों को (यदि कोई हो) ऐसी भूमि या भवन से बाहर निकलने के लिए पर्याप्त अवसर दिया जायेगा,

(तीन) जहां तक कि प्रवेश के प्रयोजन की आवश्यकताओं से संगत हो, उस भूमि या भवन के, जिसमे कि प्रवेश किया जाये, अधिभोगियों की सामाजिक तथा धार्मिक प्रथाओं का सदैव सम्यक ध्यान रखा जायेगा।

(2) कोई भी व्यक्ति, जो इस धारा के अधीन किसी भूमि या भवन में या उस पर प्रवेश करने के लिए सशक्त किये गये या सम्यक् रूपेण प्राधिकृत किये गये किसी अधिकारी को प्रवेश करने में बाधा पहुंचायेगा या ऐसे अधिकारी को ऐसे प्रवेश के पश्चात छेड़ेगा, दोषसिद्धि पर, सादा कारावास से, जिसकी अवधि तीन मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, जो पांच सौ रूपये तक का हो सकेगा, या दोनों से दण्डित किया जायेगा।

78 न्यायालयों की अधिकारिता

प्रथम वर्ग के मजिस्ट्रेट के न्यायालय से निम्न वर्ग का कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का विचारण नहीं करेगा।

79 अपराधों का संज्ञान

कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का संज्ञान यथास्थिति संचालक, या नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी या किसी विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी द्वारा सम्यक् रूपेण प्राधिकृत किये गये किसी अधिकारी के हस्ताक्षर से किये गये लिखित परिवाद पर ही करेगा अन्यथा नहीं।

80. सदस्य तथा अधिकारी लोक सेवक होंगे

 

इस अधिनियम के अधीन स्थापित किये गये किसी प्राधिकारी का प्रत्येक सदस्य तथा प्रत्येक अधिकारी भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (क्रमांक 45 सन् 1860) की धारा 21 के अर्थ के अंतर्गत लोक सेवक समझा जायेगा ।

81 वाद तथा अन्य कार्यवाहियां

किसी भी व्यक्ति के विरूद्ध किसी भी ऐसी बात के संबंध में, जो इस अधिनियम के या उसके अधीन बनाये किन्हीं नियमों के अधीन सद्भावनापूर्वक की गयी हो या जिसका सदभावनापूर्वक किया जाना आशयित रहा हो, कोई वाद अभियोजना या अन्य विधिक कार्यवाही नहीं होगी।

82 कार्यवाहियां रिक्त के कारण अविधिमान्य नहीं होगी

नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी या विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी या उसकी किसी भी समिति का कोई भी कार्य केवल इस कारण से अविधिमान्य नहीं होगा कि-

(क) उसमें कोई रिक्त है या उसके गठन में त्रुटि है,

(ख) उसके अध्यक्ष या सदस्य के रूप में कार्य करने वाले किसी व्यक्ति की नियुक्ति में कोई त्रुटि है, या

(ग) उसकी प्रक्रिया में कोई ऐसी अनियमितता है, जो मामले में गुणागुण पर प्रभाव नहीं डालती है।

83 सदस्य उत्तराधिकारी के पद ग्रहण करने तक पद पर बना रहेगा

नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी या विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी का अध्यक्ष या सदस्य, अपनी पदावधि का अवसान हो जाने पर भी, तब तक पदधारण किये रहेगा जब तक कि उसका उत्तराधिकारी पद ग्रहण न कर लें।

84 प्रादेशिक योजन आदि का निर्वचन

(1) यदि किसी प्रादेशिक योजना के निर्वचन के संबंध में कोई प्रश्न उद्भूत हो, तो वह मामला संचालक को निर्दिष्ट किया जायेगा जो कि उस पर ऐसा आदेश पारित करेगा जैसा कि वह उचित समझे।

(2) संचालक के विनिश्चिय से व्यथित कोई भी व्यक्ति ऐसे समय के भीतर तथा ऐसी रीति में, जैसा कि विहित किया जाय, राज्य सरकार को अपील कर सकेगा।

(3) राज्य संचालक का विनिश्चिय तथा राज्य सरकार के विनिश्चिय के अध्यधीन रहते हुए, संचालक का विनिश्चय अंतिम होगा।

ग्यारहवां अध्याय

नियम तथा विनियम

85 नियम बनाने की शक्ति

(1) राज्य सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए पूर्व प्रकाशन के पश्चात, नियम

बना सकेगी:

परन्तु पूर्व प्रकाशन की शर्त उपधारा (2) के खण्ड (सत्रह-क) के अधीन बनाये गये नियमों के बारे में लागू नहीं होगा।

(2) विशिष्टतया तथा पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना ऐसे नियमों में निम्नलिखित

के लिए उपबंध हो सकेंगे:-

(एक) अधिकारियों के अन्य प्रवर्ग जो कि धारा 3 (1) (ड़) के अधीन नियुक्त किये जा सकेगे,

(दो) धारा 8 (1) के अधीन आपत्तियां तथा सुझाव आमंत्रित करने वाली सूचना के प्रकाशन का प्रारूप

तथा रीति,

(तीन) धारा 9 (2) के अधीन प्रादेशिक योजना के प्रकाशन की रीति,

(चार) आपत्तियां तथा सुझाव आमंत्रित करने के लिए धारा 15 (1) के अधीन भूमि के वर्तमान उपयोग संबंधी मानचित्र के प्रकाशन की रीति,

(पांच) धारा 18 (1) के अधीन प्रारूप विकास योजना के प्रकाशन की रीति,

(छः) धारा 19 (4) के अधीन लोक सूचना के प्रकाशन की रीति,

(सात) दस्तावेजों तथा रेखांक जो धारा 27 (1) के अधीन जानकारी के साथ भेजे जायेंगे,

(आठ) (क) धारा 29 (1) के अधीन आवेदन का प्रारूप, वे विशिष्टियां जो कि उस आवेदन में अंतर्विष्ट होंगी तथा वे
दस्तावेजों जो ऐसे आवेदन के साथ भेजी जायेगी,

(ख) फीस जो धारा 29 (2) के अधीन आवेदन के साथ दी जावेगी।

(नौ) (क) वह प्रारूप जिसमें कि धारा 30 (3) के अधीन अनुज्ञा दी जायेगी,

(ख) धारा 30 (4) के अधीन आदेश की संसूचना की रीति,

(दस) धारा 31 की उपधारा (1) के अधीन वह प्राधिकारी जिसको तथा वह रीति जिसमें अपील की जायेगी और वह फीस जो अपील के ज्ञापन पर देय होगी,

(ग्यारह) वह समय जिसके भीतर, वह रीति जिसमें तथा वे दस्तावेज जिनके साथ धारा 34 (1) के अधीन सूचना की तामील की जायेगी।

(बारह) वह रीति जिसमें धारा 37 (3) के अधीन आवेदन किया जायेगा,

(बारह-क) धारा 41 की उपधारा (2) के अधीन अध्यक्ष, उपाध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों की पदावधि,

(बारह-क-क) धारा 44 की उपधारा (1) के अधीन वे निर्बन्धन तथा शर्त जिनमें अध्यधीन अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को यथास्थिति छुट्टी मंजूर की जा सकेगी।

(तेरह) (क) धारा 50 (2) के अधीन घोषणा के प्रकाशन की रीति,

(ख) वह प्रारूप जिसमें तथा वह रीति जिसमें धारा 50 (3) के अधीन नगर विकास स्कीम प्रारूप के रूप में प्रकाशित की जायेगी,

(ग) वह रीति जिसमें धारा 50 (7) के अधीन अंतिम नगर विकास स्कीम प्रकाशित की जायेगी,

(चौदह) वे निर्बन्धन तथा शर्तें जिनके अध्यधीन रहते हुए भूमि धारा 56 के अधीन नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी में निहित होगी,

(पन्द्रह) (क) वह प्रारूप जिसमें तथा वह रीति जिसमें धारा 60 (1) के अधीन सूचना प्रकाशित की जायेगी,

(ख) वह प्रारूप जिसमें धारा 60 (4) के अधीन सूचना जारी की जायेगी,

(सोलह) वे निबन्धन तथा शर्तें जिनके अध्यधीन रहते हुए नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी धारा 63 के अधीन डिबेंचर जारी कर सकेगा या धन उधार ले सकेगा।

(सोलह-क) धारा 65 की उपधारा (2) के अधीन अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों की पदावधि,

(सत्रह) वे निबन्धन तथा शर्तें जिनके अध्यधीन रहते हुए धारा 70 (2) के अधीन उधार लिये जा सकेंगे,

(सत्रह-क) धारा 76 ख की उपधारा (2) के अधीन विकास प्राधिकरण सेवा में नियुक्ति किये जाने वाले अधिकारियों की भर्ती तथा सेवा शर्तें,

(अठारह) कोई भी अन्य विषय जिसके लिए नियम बनाये जाये।

(3) इस अधिनियम के अधीन बनाये गये समस्त नियम विधान सभा के पटल पर रखे जायेंगे।

86 विनियम

(1) यथास्थिति नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी या विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी साधारणतया इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए विनियम, इस अधिनियम के तथा उसके अधीन बनाये गये नियमों के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए, बना सकेगा।

(2) विशिष्टतया तथा पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे विनियमों में निम्नलिखित के लिए उपबंध हो सकेगे -

(क) सम्मिलनों का आहूत किया जाना तथा सम्मिलनों का किया जाना, वह समय तथा स्थान जहां कि ऐसे सम्मिलन किये जायेंगे, उनमें सम्मिलनों में कामकाज का संचालन,

(ख) धारा 58 के अधीन विकसित भूमियों, गृहों, भवनों तथा अन्य संरचनाओं के व्ययन के लिए प्रक्रिया,

(ग) सम्पत्ति का प्रबंध और लेखाओं का रखा जाना तथा उनकी संपरीक्षा,

(घ) समितियों की नियुक्ति का ढंग, सम्मिलनों का आहूत किया जाना तथा आयोजन और ऐसी समितियों के कामकाज का संचालन,

(ड़) ऐसे अन्य विषय जो इस अधिनियम के अधीन यथास्थिति नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी या विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकारी द्वारा शक्तियों का प्रयोग किया जाने तथा कर्तव्यों तथा कृत्यों का पालन किया जाने के लिए आवश्यक हो।

बारहवां अध्याय

निरसन

87 निरसन व्यावृति तथा निर्देशों का अर्थान्वयन

(1)(क) दूसरे अध्याय के उपबंधों के प्रवृत्त होने की तारीख से, तत्समय प्रवृत्त किसी भी अधिनियमिति में मुख्य नगर निवेशक के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जायेगा कि वह संचालक के प्रति निर्देश है,

(ख) किसी निवेश क्षेत्र का गठन होने की तारीख से निम्नलिखित परिणाम होंगे, अर्थात:-

(एक) मध्यप्रदेश टाऊन प्लानिंग एक्ट, 1948 (क्रमांक 67 सन् 1948) ऐसे क्षेत्र में निरस्त हो जायेगा।

(दो) उक्त अधिनियम के अधीन तैयार किया गया कोई भी भूमि का उपयोग संबंधी मानचित्र, प्रारूप विकास योजना या विकास योजना इस अधिनियम के अधीन तैयार की गयी समझी जायेगी / तैयार किया गया समझा जायेगा और उससे संबंधित समस्त कागज पत्र संचालक को अंतरित हो जायेंगे,

(ग) किसी भी क्षेत्र के लिए नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी की स्थापना होने की तारीख से उस क्षेत्र के संबंध में निम्नलिखित परिणाम होंगे, अर्थात:-

(एक) मध्यप्रदेश टाऊन इम्प्रूव्हमेंट ट्रस्ट एक्ट, 1960 (क्रमांक 14 सन् 1961) उक्त क्षेत्र को उसके लागू होने के संबंध में निरस्त हो जायेगा,

(दो) इस प्रकार स्थापित किये गये नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी की अधिकारिता के भीतर कृत्य कर रहा नगर सुधार न्यास विघटित हो जायेगा और उक्त अधिनियम के अधीन तैयार की गयी कोई भी नगर सुधार स्कीम, जहां तक कि वह इस अधिनियम के उपबंधों से असंगत न हो, इस अधिनियम के अधीन तैयार की गयी समझी जायेगी,

(तीन) नगर सुधार न्यासों की समस्त आस्तियां तथा दायित्व, ऐसे नगर सुधार न्यास के स्थान पर धारा 38 के अधीन गठित किये गये नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी की आस्तियां तथा दायित्व होंगे तथा समझे जायेंगे,

(तीन-क) नगर सुधार न्यास को देय समस्त अनुदान तथा अभिदाय ऐसे नगर सुधार न्यास के स्थान पर धारा 38 के अधीन स्थापित किये गये नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी को देय होते रहेंगे,

(चार) वे समस्त कर्मचारी, जो पूर्वोक्त तारीख के अव्यवहित पूर्व उस नगर सुधार न्यास के, जो कि उपखण्ड (दो) में निर्दिष्ट हैं, थे या उसके नियंत्रणाधीन थे, ऐसे क्षेत्र के लिए धारा 38 के अधीन स्थापित किये गये नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी के कर्मचारी समझे जायेंगे,

परन्तु ऐसे कर्मचारियों की सेवा के निबन्धन तथा शर्तें, जब तक कि वे राज्य सरकार की पूर्व मंजूरी से नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी द्वारा परिवर्तित न कर दी जाये, वही होगीः

परन्तु यह और भी कि पूर्वगामी उपबंध के अधीन कोई भी मंजूरी राज्य सरकार द्वारा तब तक नहीं दी जायेगी जब तक कि उससे (मंजूरी से) प्रभावित व्यक्ति को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर न दे दिया गया हो,

(पांच) उपखंड (दो) में निर्दिष्ट किये गये नगर सुधार न्यास के समस्त अभिलेख तथा कागज पत्र उसके स्थान पर धारा 38 के अधीन स्थापित किये गये नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी में निहित होंगे तथा उसे अंतरित कर दिये जायेंगे।

(2) मध्यप्रदेश टाउन इम्प्रूव्हमेंट ट्रस्ट एक्ट, 1960 (क्रमांक 14 सन् 1961) जो इसमें इसके पश्चातनिरसित अधिनियम के नाम से निर्दिष्ट है कि उपधारा (1) के खण्ड (ग) के उपखण्ड (एक) के अधीन निरसन हो जाने पर भी:-

(क) ऐसे समस्त मामलों में, जो कि निरसित अधिनियम की धारा 71 के अधीन भूमि के अर्जन तथा नगर सुधार न्यास में उस भूमि के निहित होने के बारे में प्रतिकर से संबंधित हो तथा एसे निरसन की तारीख के अव्यवहित पूर्व नगर सुधार न्यास या अधिकरण या जिला न्यायाधीश के न्यायालय या उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित हो, कार्यवाही तथा उनका निपटारा यथास्थिति:-

(एक) धारा 38 के अधीन ऐसे नगर सुधार न्यास के स्थान पर स्थापित किये नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी द्वारा,

(दो) मध्यप्रदेश नगर तथा ग्राम निवेश संशोधन अधिनियम 1979 के प्रारम्भ होने के पश्चात निरसित अधिनियम की धारा 73 के अधीन गठित किये जाने वाले अधिकरण द्वारा,

(तीन) जिला न्यायाधीश के न्यायालय द्वारा,

(चार) उच्च न्यायालय द्वारा, निरसित अधिनियम के उपबंधों के अनुसार इस प्रकार किया जायेगा मानों कि यह अधिनियम पारित ही नहीं हुआ हो,

(ख) यथास्थिति नगर तथा ग्राम विकास प्राधिकारी, अधिकरण जिला न्यायाधीश का न्यायालय या उच्च न्यायालय मामलों में उस प्रक्रम से, जिस पर कि ऐसे मामले निरसन के समय छोड़ दिये गये थे, कार्यवाही करने के लिए तथा उनका निपटारा करने के लिए अग्रसर हो सकेगा।

88 निरसन

मध्यप्रदेश नगर तथा ग्राम निवेश अध्यादेश, 1973 (क्रमांक 2, सन् 1973) एतद्द्वारा निरस्त किया जाता है।

साभार - एम.पी.कोड - म.प्र सासन