No: -- Dated: Mar, 18 1960

मध्यप्रदेश शासकीय सेवक (अस्थायी तथा अर्धस्थायी सेवा) नियम, 1960 

M.P. Government Servants (Temporary and Quasi-Permanent Service) Rules, 1960 

 

1. (1) ये नियम मध्यप्रदेश शासकीय सेवक (अस्थायी तथा अर्धस्थायी सेवा) नियम, 1960 कहलायेंगे। 

(2) उपनियम (3) के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए, ये नियम उन सभी व्यक्तियों को लागू होंगे जो राज्य सरकार के अधीन कोई भी सिविल पद धारित करते हैं; परन्तु वे इस राज्य की सरकार, भारत सरकार या अन्य किसी राज्य सरकार के अधीन किसी पद पर धारणाधिकार नहीं रखते हैं।

(3) इन नियमों की कोई भी बात लागू नहीं होगी :- 

(ए) ठेके पर कार्यरत शासकीय सेवकों;

(बी) वे शासकीय सेवक जो पूर्णकालिक सेवा नियोजित में नहीं हैं;

(सी) आकस्मिकता से भुगतान पाने वाले शासकीय सेवकों; 

(डी) कार्यभारित स्थापना में नियुक्त व्यक्ति; और 

(ई) ऐसे अन्य वर्ग के शासकीय सेवक जैसा कि राज्य सरकार द्वारा शासकीय राजपत्र में 

अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट किया जाये, को। 

2. इन नियमों की कोई बात जब तक, विषय या प्रसंग से अन्यथा अपेक्षित न हो -

(ए) "आवंटित शासकीय सेवक" से तात्पर्यित है राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 की धारा 115 के प्रावधानों के अधीन मध्यप्रदेश राज्य में सेवा के लिये आवंटित किया गया अथवा आवंटित हुआ समझा गया व्यक्ति; पर 

(बी) "अर्धस्थायी सेवा" (क्वासी-परमानेन्ट सर्विस) से तात्पर्यित है वह अस्थायी सेवा जो ऐसी तारीख से प्रारम्भ हुई हो जो नियम 3 के अन्तर्गत जारी की गई उद्घोषणा में इस निमित्त विनिर्दिष्ट की जाए अथवा वह तारीख जिससे नियम 3-ए के अन्तर्गत सम्बन्धित शासकीय सेवक अर्धस्थायी सेवा में होना माना जाये और उस तारीख के पश्चात् (असाधारण अवकाश को छोड़कर) कर्तव्य तथा अवकाश की अवधि युक्त हो; 

(सी) "विनिर्दिष्ट पद" से तात्पर्यित है कोई विशिष्ट पद, अथवा किसी केडर के अन्तर्गत कोई विशिष्ट श्रेणी या पद जिसके सम्बन्ध में कोई शासकीय सेवक नियम 3 के अन्तर्गत अर्धस्थायी सेवा में घोषित किया जाए अथवा नियम 3-ए के अन्तर्गत अर्धस्थायी सेवा में माना जाए; 

(डी) "अस्थायी सेवा" से तात्पर्यित है राज्य सरकार के अधीन अस्थायी पद पर मौलिक या स्थानापन्न सेवा, तथा स्थायी पद पर स्थानापन्न सेवा, तथा इसमें अस्थायी सेवा में रहते हुए सवैतनिक अवकाश जो लिया गया हो तथा अनुमोदित युद्ध-सेवा के पूर्ण वर्ष जो वेतन निर्धारण और ज्येष्ठता के लिये गणना में लिये गये हों, वह भी सम्मिलित हैं।

3. कोई भी शासकीय सेवक अर्धस्थायी सेवा में माना जायेगा, यदि - 

(i) यदि वह लगातार तीन वर्ष से अधिक उसी एक ही सेवा अथवा पद की अस्थायी सेवा में रहा है; और

(ii) यदि अर्धस्थायी हैसियत में नियुक्ति के लिये आयु, योग्यता, कार्य तथा चरित्र से सम्बन्धित उपयुक्तता के सम्बन्ध में राज्यपाल के ऐसे समय-समय पर जारी निर्देश के अनुसरण में नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी द्वारा संतुष्ट होकर वैसी घोषणा की गई हो। 

स्पष्टीकरण- इस नियम के प्रयोजन के लिये निरन्तर सेवा की संगणना करने के लिये किसी दीर्घावकाश (वेकेशन) के दौरान सेवा में विघ्न (ब्रेक-इन-सर्विस) की अवधि की गणना वास्तविक सेवा की अवधि के रूप में की जायेगी जहां पर ऐसी अवधि के सम्बन्ध में दीर्घावकाश के ठीक पश्चात् पुनः नियुक्ति पर शासकीय सेवक को अपना वेतन और भत्ते प्राप्त करने की अनुमति दी गई है। 

3-ए. किसी शासकीय सेवक के सम्बन्ध में जिसके बारे में नियम 3 के खंड (दो) के अधीन कोई घोषणा जारी नहीं की गई हो, परन्तु जो ऐसी किसी सेवा या पद पर जिसके बारे में ऐसी घोषणा की जा सकती थी अस्थायी सेवा में निरन्तर पांच वर्ष तक रहा है, अर्धस्थायी सेवा में माना जायेगा जब तक कि नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी, अभिलिखित किये जाने वाले कारणों से अन्यथा आदेश न दे। 

3-ए ए. नियम 3 और 3-ए के प्रयोजन के लिये, किसी नियुक्ति के प्रकरण में -

(ए) जहाँ लोक सेवा आयोग से परामर्श करना अपेक्षित नहीं है, वहां किसी शासकीय सेवक द्वारा भरती नियमों के उपबन्धों या राज्यपाल द्वारा समय-समय पर जारी किये गये किन्हीं निर्देशों के अनुसरण में अस्थायी नियुक्ति के पूर्व जो सेवा की गई है उसे, सेवा के पूर्ण तीन वर्ष या पाँच वर्ष, जैसा भी प्रकरण हो, मानने हेतु गणना में नहीं ली जायेगी; 

(बी) जहाँ लोक सेवा आयोग से परामर्श करना अपेक्षित है, वहाँ किसी शासकीय सेवक द्वारा की गई वह सेवा जो, लोक सेवा आयोग द्वारा उसका चयन किये जाने के पूर्व की गई है उस सेवा के पूर्ण तीन वर्ष या पाँच वर्ष, जैसा भी प्रकरण हो, मानने हेतु गणना में नहीं ली जायेगी। 

4. (1) नियम 3 में जारी की जाने वाली घोषणा में कोई विशिष्ट पद अथवा संवर्ग के अन्तर्गत कोई पदों की विशिष्ट श्रेणी जिसके संबंध में वह घोषणा जारी की गई है और वह तारीख जिससे वह प्रभावकारी है, विनिर्दिष्ट होवेंगे। 

(2) जहां विनिर्दिष्ट पद पर भरती मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग के परामर्श से की जाना अपेक्षित है वहां लोक सेवा आयोग के परामर्श के सिवाय ऐसी कोई घोषणा जारी नहीं की जायेगी : 

  परन्तु यह कि, जहां किन्हीं नियमों के अनुसरण में कमीशन से परामर्श करके नियुक्तियाँ अथवा पदोन्नति करना विहित था और जहाँ ऐसा परामर्श लिया गया है तब शासकीय सेवक को अर्धस्थायी घोषित करने के समय कमीशन से पुनः परामर्श किया जाना आवश्यक नहीं होगा : 

  परन्तु यह भी कि, कोई ऐसी नियुक्ति जिसके लिये लोक सेवा आयोग से परामर्श लिया जाना अपेक्षित था परन्तु बगैर परामर्श की गई थी ऐसे प्रकरण में शासकीय सेवक को अर्धस्थायी सेवा में घोषित करने के पूर्व लोक सेवा आयोग से परामर्श लेना आवश्यक होगा।

5. नियम 3 और 4 में कुछ भी प्रावधानित होते हुए भी - 

(i) भूतपूर्व मध्यप्रदेश राज्य के आवंटित शासकीय सेवक जिसने तीन वर्ष से अधिक परन्तु मिली 1 नवम्बर, 1956 से पूर्व तारीख से चार वर्ष से अधिक नहीं होने वाली इस तारीख तक लगातार सेवा की है; 

(ii) भूतपूर्व मध्यप्रदेश राज्य के आवंटित शासकीय सेवक जिसने 1 नवम्बर, 1956 के पूर्व चार वर्ष से कम नहीं होने वाली तारीख से इस तारीख तक चार वर्ष की लगातार सेवा की है; - 

(iii) 1 नवम्बर, 1956 के पूर्व तारीख से भूतपूर्व मध्यभारत के आवंटित शासकीय सेवक; के सम्बन्ध में नियम 3 के अन्तर्गत की गई घोषणा लागू नहीं होगी। 

6. (1) अर्धस्थायी सेवा के शासकीय सेवक की सेवाएँ समाप्त की जाने योग्य होंगी, -

(i) वैसी ही परिस्थितियों में तथा उसी प्रकार से जैसा कि स्थायी सेवा के शासकीय सेवक के प्रकरण में; अथवा 

(ii) जबकि सम्बन्धित नियक्तिकर्ता प्राधिकारी ने प्रमाणित कर दिया है कि शासकीय सेवकों के स्थायी नहीं होने वाले पदों की संख्या में कमी हुई है : 

परन्तु यह कि, खण्ड (ii) के अधीन किसी अर्धस्थायी सेवा के साथ किसी शासकीय सेवक की सेवाएँ तब तक समाप्त करने योग्य नहीं होंगी जब तक कि नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी के अधीन वह जो विनिर्दिष्ट पद धारित कर रहा है उसी श्रेणी के किसी पद को स्थायी नहीं होने वाली सेवा का अथवा अर्धस्थायी नहीं होने वाली सेवा का कोई शासकीय सेवक धारित कर रखता है : 

परन्तु यह भी कि, अर्धस्थायी सेवा के शासकीय सेवकों, जिनके विनिर्दिष्ट पद उसी श्रेणी के तथा उस नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी के अधीन हैं, पदों में कमी के कारण उनकी सेवा की समाप्ति साधारणतया नियम 7 में बताई गई सूची के कनिष्ठता (जुनियारिटी) के क्रम में होगी। 

(2) इस नियम की कोई बात, अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति से सम्बद्ध किसी स्थायी शासकीय सेवक को सेवामुक्त करने के तरीके तथा क्रम के सम्बन्ध में शासन द्वारा जारी किये गये किन्हीं विशेष निर्देशों को प्रभावित नहीं करेगी। 

7. (1) इस नियम के प्रावधानों के अध्यधीन रहते हुए कोई शासकीय सेवक, जिसके सम्बन्ध में नियम 3 के अधीन घोषणा जारी की गई है, जब भी अर्धस्थायी सेवा के व्यक्तियों में से समय-समय पर इस निमित्त राज्यपाल द्वारा जारी किये गये ऐसे निर्देशों के अनुसार विनिर्दिष्ट हुए रिक्त पदों की पूर्ति करना आरक्षित किया जाए, स्थायी नियुक्ति का पात्र होगा। 

स्पष्टीकरण :- ऐसी कोई घोषणा किसी व्यक्ति को किसी पद पर स्थायी नियुक्ति का अधिकार प्रदान नहीं करेगी। 

(2) प्रत्येक नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी समय-समय पर प्रथम क्रमानुसार अर्धस्थायी सेवा के व्यक्तियों की सूची तैयार करेगा जो कि स्थायी नियुक्ति के पात्र हैं। ऐसी सूची तैयार करने में नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी संबंधित सेवक की प्रथमतः योग्यता (मेरिट) को तथा द्वितीयतः ज्येष्ठता (सीनियरिटी) को विचार करेगा। सभी स्थायी नियुक्तियाँ, जो उपनियम (1) के अधीन किसी भी नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी के अधीन आरक्षित है, ऐसी ही सूची के अनुसार की जावेंगी।

8. अर्धस्थायी सेवा का तथा किसी विनिर्दिष्ट पदं को धारित कोई शासकीय सेवक, उसी तारीख से जिससे उसकी सेवा अर्धस्थायी होना घोषित की जाती है, स्थायी सेवा में विनिर्दिष्ट पद धारण करने वाले शासकीय सेवक की तरह अवकाश, भत्ते तथा अनुशासनिक विषय में सेवा की शर्तों का पात्र होगा। 

9. नियम 7 में किसी भी बात के होते हुए भी, शासकीय सेवक, जिस पर ये नियम लागू होते हैं, किसी प्राधिकारी जो उसे स्थायी रूप से सेवा करने के लिये अयोग्य घोषित करने के लिये सक्षम हो द्वारा उसके सेवा में बने रहने से शारीरिक दृष्टि से अयोग्य घोषित किया जाने पर, उसकी सेवा किसी भी समय बगैर सूचना पत्र दिये समाप्त की जा सकती है, चाहे उसकी नियुक्ति स्थायी हो। 

10. अर्धस्थायी सेवा का कोई शासकीय सेवक, यदि उसकी सेवाएँ अनुशासनात्मक तरीके या त्यागपत्र के अतिरिक्त अन्य कारण से समाप्त की जाती हैं, तब -

(ए) अर्धस्थायी सेवा के प्रत्येक वर्ष के लिये आधे-माह के वेतन की दर से ऐसी ग्रेच्युटी, जो कि ऐसे शासकीय सेवक की सेवा के अंतिम दिन विनिर्दिष्ट पद के सम्बन्ध में पात्रता के वेतन के आधार पर देय होगी; और 

(बी) अर्धस्थायी सेवा में उसकी नियुक्ति के पूर्व की उसकी सेवा के सम्बन्ध में जिस ग्रेच्युटी की उसे पात्रता है;  के लिये पात्र होगा : 

परन्तु यह कि, यह नियम उन व्यक्तियों को लागू नहीं होगा जो उस स्थापना के हैं जिसमें अंशदायी भविष्य निधि के लाभ सम्बद्ध हैं। 

टिप्पणी- किसी अर्धस्थायी सेवा के शासकीय सेवक के प्रकरण में जिसकी सेवाएँ अनशासनात्मक तरीके या त्यागपत्र के अतिरिक्त अन्य कारण से समाप्त की जाती हैं और ऐसी सेवा-समाप्ति के पूर्व जो उसके निर्दिष्ट पद के वेतन से अधिक उच्च वेतन वाला उच्च पद या पदों को स्थानापन्न रूप से धारित करता है या करता था, परन्तु जहाँ विनिर्दिष्ट पद के उसके वेतन की अधिकता इस नियम के अन्तर्गत ग्रेच्युटी के लिये गणना में नहीं आती है तब,ग्रेच्युटी की धनराशि में वृद्धि की जावेगी: 

या तो - 

(i) विनिर्दिष्ट पद के उसके वेतन के आधार पर भुगतान योग्य ग्रेच्युटी; तथा यदि स्थानापन्न उच्च पद या पदों पर उसे अर्धस्थायी घोषित किया जाता तब जो धनराशि गणना में आती; (इन दोनों) के अन्तर का आधा; 

या

(ii) उसके विनिर्दिष्ट पद के वेतन के आधार पर भुगतान योग्य ग्रेच्युटी का 33-1/3 (तैंतीस तथा एक-तिहाई) प्रतिशत; 

इनमें से जो भी कम हो : परन्तु यह कि - 

(ए) उपरोक्त सन्दर्भित वृद्धि केवल उन्हीं अर्धस्थायी शासकीय सेवकों को देय होगी जिनकी सेवाओं की ऐसी समाप्ति के तत्काल पूर्व जिन्होंने उच्च पद या पदों को लगातार तीन 

पूर्ण वर्षों से कम नहीं होने वाली अवधि तक धारित किया है; 

(बी) इस आशय के लिये तीन वर्षों की अवधि, में सेवा के अन्तिम तीन वर्षों के दौरान लिये गये सभी प्रकार के अवकाश,शामिल किये जावेंगे, यदि यह प्रमाणित किया जाता है कि शासकीय सेवक यदि अवकाश पर नहीं जाता तो उच्च पद या पदों को लगातार धारित रखता। 

11. (1) जहाँ कोई अर्धस्थायी सेवा का शासकीय सेवक किसी स्थायी पद पर मौलिक रूप से नियुक्त किया जाता है तब उसकी अर्धस्थायी सेवा की सम्पूर्ण अवधि तथा उसके पूर्व की लगातार अस्थायी सेवा जो विहित की गई न्यूनतम आयु जिसके पश्चात् पेंशन के लिये सेवा अर्हतादायी हो जाती है, के पश्चात् की गई है, उसकी आधी अवधि (असाधारण अवकाश) की अवधि को छोड़कर पेंशन अथवा ग्रेच्युटी, जैसा भी प्रकरण हो, स्वीकृत करने के लिये अर्हतादायी सेवा मानी जावेगी। 

(2) जहाँ कोई अर्धस्थायी सेवक ऐसे किसी पद पर मौलिक रूप से नियुक्त होता है जिसके सम्बन्ध में नियमों में तदर्थ अवधि विहित है तब राज्य सरकार ऐसे सेवक को तदर्थ होने की अपेक्षित स्थिति से आंशिक या पूर्ण रूप से मुक्त कर सकेगी यदि उसकी राय में, वह पद या वे पद जिस पर उसके द्वारा अर्धस्थायी तथा लगातार अस्थायी सेवा की गई थी उस पद के समकक्ष है जिस पर वह मौलिक रूप से नियुक्त है 

12. (ए). नियुक्ति आदेश में अथवा शासन तथा अस्थायी शासकीय सेवक के मध्य किसी अनुबन्ध में कुछ भी प्रावधान होने के अध्यधीन रहते हुए, अस्थायी शासकीय सेवक, जो अर्धस्थायी सेवा में नहीं है, की सेवाएँ, किसी भी समय, या तो शासकीय सेवक द्वारा नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी को या नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी द्वारा शासकीय सेवक को लिखित सूचना-पत्र देकर, समाप्त करने योग्य होंगी। 

 परन्तु यह कि, ऐसे किसी शासकीय सेवक की सेवाएँ तत्काल प्रभाव से समाप्त की जा सकेंगी और इस प्रकार सेवा समाप्त किये जाने पर शासकीय सेवक, यथास्थिति सूचनापत्र की कालावधि के लिये अथवा सूचनापत्र की उस कालावधि के लिये जितनी से कि ऐसा सूचनापत्र एक मास से कम होता हो, उसके उसी दर से वेतन और भत्ते की धनराशि, जो वह ऐसी सेवा समाप्ति के तत्काल पूर्व प्राप्त कर रहा था, के बराबर धनराशि क्लेम करने का हकदार होगा : 

परन्तु यह भी कि, भत्तों का भुगतान, उन्हीं शर्तों के जिनके अध्यधीन ऐसे भत्ते देय होते हैं, होगा। 

(बी) ऐसे सूचनापत्र की अवधि एक मास होगी जब तक कि शासन और शासकीय सेवक के मध्य अन्यथा अनुबन्ध न हो। 

13. मध्यप्रदेश शासकीय सेवक (अस्थायी तथा अर्धस्थायी सेवा) नियम, 1954, जो कि भूतपूर्व मध्यप्रदेश राज्य के आवंटित शासकीय सेवकों को लाग होते हैं.तथा सेन्टल सिविल सर्विसेस (टेम्पररी सर्विस) नियम, 1949, जो कि विन्ध्यप्रदेश और भोपाल के पार्ट-सी राज्य के आवंटित शासकीय सेवकों को लागू होते हैं, एतद्द्वारा, निरस्त किये जाते हैं : 

  परन्तु यह कि, इस प्रकार निरस्त किये गये नियमों के अधीन सभी जारी की गई घोषणाएँ, किये गये कार्य, पारित आदेश, उत्पन्न हुए उत्तरदायित्व तथा हुए अन्य कार्य,उनके निरस्त होते हुए भी, इन नियमों के अधीन जारी किये गये, पारित किये गये, उत्पन्न, अभिप्राप्य और हुए माने जावेंगे।