No: 21 Dated: Apr, 30 1954

ओषधि और चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954

(1954 का अधिनियम संख्यांक 21)

[30 अप्रैल, 1954]

कुछ दशाओं में ओषधियों के विज्ञापन का नियंत्रण करने के लिए, ऐसे उपचारों के, जिनके बारे में यह अभिकथित है कि उनमें चमत्कारिक गुण हैं, कुछ प्रयोजनों के लिए विज्ञापन का प्रतिषेध करने के लिए, और

उससे सम्बन्धित विषयों का उपबंध करने के लिए अधिनियम

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ - (1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम ओषधि और चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954 है ।

(2) इसका विस्तार, जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय सम्पूर्ण भारत पर है और यह ऐसे राज्यक्षेत्रों के, जिन पर इस अधिनियम का विस्तार है, अधिवासी उन व्यक्तियों को भी लागू होता है, जो उक्त राज्यक्षेत्रों के बाहर हैं ।

(3) यह ऐसी तारीख  को प्रवृत्त होगा, जिसे केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियत करे । 

2. परिभाषाएं - इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो -

(क) “विज्ञापन" के अन्तर्गत कोई सूचना, परिपत्र, लेबल, लपेटन, या अन्य दस्तावेज, और मौखिक रूप से या प्रकाश, ध्वनि या धुआं उत्पन्न या पारेषित करके, की गई घोषणा भी है;

(ख) “ओषधि" के अन्तर्गत निम्नलिखित है,-

(i) मनुष्यों या पशुओं के आन्तरिक या बाह्य उपयोग के लिए कोई औषध;

(ii) ऐसा कोई पदार्थ, जो मनुष्यों या पशुओं में रोग के निदान, रोगमुक्ति, रोग का शमन, रोग की चिकित्सा या निवारण के लिए, या उसमें, उपयोग के लिए आशयित है;

(iii) खाद्य से भिन्न कोई वस्तु, जो मनुष्यों अथवा पशुओं के शरीर की संरचना या किसी आंगिक क्रिया को किसी भी प्रकार से प्रभावित करने, या उस पर असर डालने के लिए आशयित है;

(iv) कोई वस्तु, जो उपखण्ड (i), (ii), और (iii) में निर्दिष्ट किसी औषध, पदार्थ या वस्तु के घटक के रूप में प्रयोग के लिए आशयित है;

(ग) “चमत्कारिक उपचार" के अंतर्गत है - ऐसा तलिस्मा, मन्त्र, कवच और किसी भी प्रकार का अन्य जादू-टोना, जिसमें मनुष्यों अथवा पशुओं के रोग के निदान, रोगमुक्ति, रोग में कमी करने या रोग की चिकित्सा या निवारण के लिए, या में, या मनुष्यों अथवा पशुओं के शरीर की संरचना या किसी आंगिक क्रिया को किसी भी प्रकार से प्रभावित करने या उस पर असर डालने के लिए अद्भूत शक्तियां होना अभिकथित है;

 (गग) “रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी" से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है,-

(i) जिसके पास भारतीय चिकित्सा उपाधि अधिनियम, 1916 (1916 का 7) की धारा 3 में विनिर्दिष्ट, या उसके अधीन अधिसूचित, या भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद् अधिनियम, 1956 (1956 का 102) की अनुसूचियों में विनिर्दिष्ट, किसी प्राधिकारी द्वारा अनुदत्त कोई अर्हता हो; अथवा

(ii) जो किसी राज्य में, जिस पर इस अधिनियम का विस्तार है, चिकित्सा व्यवसायियों के रजिस्ट्रीकरण के सम्बन्ध में प्रवृत्त किसी विधि के अधीन, चिकित्सा व्यवसायी के रूप में रजिस्ट्रीकरण होने का हकदार है;

(घ) “किसी विज्ञान के प्रकाशन में भाग लेना" के अन्तर्गत निम्नलिखित भी है,-

(i) विज्ञापन का मुद्रण;

(ii) ऐसे राज्यक्षेत्रों के भीतर, जिन पर इस अधिनियम का विस्तार है, निवास करने वाले किसी व्यक्ति द्वारा या उसकी प्रेरणा से, उन राज्यक्षेत्रों के बाहर किसी विज्ञापन का प्रकाशन ।

3. कुछ रोगों और विकारों की चिकित्सा के लिए कुछ ओषधियों के विज्ञापन का प्रतिषेध - इस अधिनियम के उपबंधों के अधीन रहते हुए, कोई व्यक्ति, किसी ऐसे विज्ञापन के प्रकाशन में भाग नहीं लेगा जिसमें किसी ओषधि के प्रति निर्देश ऐसे शब्दों में किया गया है जिनसे यह धारणा बनती है या यह प्रकल्पित है कि वह ओषधि निम्नलिखित के लिए प्रयोग में लाई जा सकती है,-

(क) स्त्रियों का गर्भपात कराना अथवा स्त्रियों में गर्भधारण का निवारण; अथवा

(ख) लैंगिक आनन्द के लिए मनुष्यों की क्षमता बनाए रखना या उसे बढ़ाना; अथवा

(ग) स्त्रियों के ऋतुस्त्राव विकारों को ठीक करना; अथवा

(घ) अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी रोग, विकार या दशा का, अथवा किसी ऐसे अन्य रोग, विकार या दशा (उसे चाहे जो कहा जाए) का, जो इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों में विनिर्दिष्ट किए जाएं, निदान, रोगमुक्ति, उसमें कमी करना या उसकी चिकित्सा या निवारण :

परन्तु ऐसा कोई नियम,-

(i) किसी ऐसे रोग, विकार या दशा के सम्बन्ध में ही बनाया जाएगा, जिसके लिए, किसी रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी के परामर्श से, समय पर चिकित्सा अपेक्षित है या जिसके लिए सामान्यतया कोई मान्य उपचार नहीं हैं,

(ii) ओषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 (1940 का 23) के अधीन गठित ओषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड से, और यदि केन्द्रीय सरकार आवश्यक समझे तो, आयुर्वेदिक या यूनानी चिकित्सा पद्धतियों का विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले ऐसे अन्य व्यक्तियों से, जिन्हें सरकार ठीक समझे, परामर्श करने के पश्चात् ही बनाया जाएगा ।

4. ओषधियों के सम्बन्ध में भ्रामक विज्ञापनों का प्रतिषेध - इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, कोई व्यक्ति किसी ओषधि के सम्बन्ध में किसी विज्ञापन के प्रकाशन में भाग नहीं लेगा यदि उस विज्ञापन में कोई ऐसी बात है,-

(क) जिससे उस ओषधि की वास्तविक प्रकृति के बारे में कोई मिथ्या धारणा प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः बनती है; अथवा

(ख) जिसमें उस ओषधि के लिए कोई मिथ्या दावा किया गया है; अथवा

(ग) जो अन्यथा किसी तात्त्विक विशिष्ट में मिथ्या या भ्रामक है ।

5. कुछ रोगों और विकारों की चिकित्सा के लिए चमत्कारिक उपचारों के विज्ञापन का प्रतिषेध - कोई व्यक्ति जो चमत्कारिक उपचार करने की वृत्ति करता है या जिसका ऐसी वृत्ति करना तात्पर्यित है, किसी ऐसे चमत्कारिक उपचार के, जिसमें प्रत्यक्षतः या अप्रत्यक्षतः यह दावा किया गया है कि वह धारा 3 में विनिर्दिष्ट प्रयोजनों में से किसी के लिए प्रभावकारी है, किसी विज्ञापन के प्रकाशन में भाग नहीं लेगा ।

6. कुछ विज्ञापनों के भारत में आयात या भारत से निर्यात का प्रतिषेध - कोई व्यक्ति, ऐसे राज्यक्षेत्रों में, जिनमें इस अधिनियम का विस्तार है, किसी ऐसी दस्तावेज का आयात, या उन राज्यक्षेत्रों से निर्यात नहीं करेगा, जिसमें धारा 3, या धारा 4, या धारा 5 में निर्दिष्ट प्रकार का कोई विज्ञापन हो और ऐसे विज्ञापनों वाली दस्तावेज ऐसा माल समझी जाएंगी जिसका आयात या निर्यात सी कस्टम ऐक्ट, 1878 (1878 का 8) की धारा 19 के अधीन प्रतिषिद्ध है और उस अधिनियम के सभी उपबन्ध तदनुसार प्रभावी होंगे, सिवाय इसके कि उसकी धारा 183 का प्रभाव इस प्रकार होगा मानो उसके अंग्रेजी पाठ में, “देगा" शब्द के स्थान पर “दे सकेगा" शब्द रखे गए हों ।

7. शास्ति - जो कोई इस अधिनियम  या तद्धीन बनाए गए नियमों के उपबन्धों का उल्लंघन करेगा, वह, सिद्धदोष ठहराए जाने पर,-

(क) प्रथम दोषसिद्धि की दशा में, कारावास से, जिसकी अवधि छह मास तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से;

(ख) किसी पश्चात्वर्ती दोषसिद्धि की दशा में, कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डनीय होगा ।

 8. प्रवेश, तलाशी आदि की शक्तियां - (1) इस निमित्त बनाए गए किन्हीं नियमों के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, राज्य सरकार द्वारा प्राधिकृत कोई राजपत्रित अधिकारी, उस क्षेत्र की स्थानीय सीमाओं के भीतर, जिसके लिए वह इस प्रकार प्राधिकृत है,-

(क) किसी ऐसे स्थान में, जिसमें उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि इस अधिनियम के अधीन वहां कोई अपराध किया गया है या किया जा रहा है, ऐसे सहायकों के साथ, यदि कोई हों, जिन्हें वह आवश्यक समझे, किसी भी उचित समय पर, प्रवेश कर सकेगा और उसकी तलाशी ले सकेगा;

(ख) ऐसा कोई विज्ञापन अभिगृहीत कर सकेगा, जिसके बारे में उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि वह इस अधिनियम के किन्हीं उपबन्धों का उल्लंघन करता है :

परन्तु इस खण्ड के अधीन अभिग्रहण की शक्ति का प्रयोग, किसी ऐसी दस्तावेज, वस्तु या चीज के लिए, जिसमें ऐसा कोई विज्ञापन अन्तर्विष्ट है, उस दस्तावेज, वस्तु, या चीज की अन्तर्वस्तु सहित, यदि कोई हो, किया जा सकेगा, यदि वह विज्ञापन इस कारण कि वह उत्कीर्णित है या अन्यथा, उस दस्तावेज, वस्तु, या चीज से उसकी समग्रता, उपयोगिता या विक्रय मूल्य पर प्रभाव डाले बिना, अलग न किया जा सकता है;

(ग) खण्ड (क) में उल्लिखित किसी स्थान में पाए गए किसी अभिलेख, रजिस्टर, दस्तावेज या अन्य किसी भौतिक पदार्थ की परीक्षा कर सकेगा, और, यदि उसके पास यह विश्वास करने का कारण है कि उससे इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध के किए जाने का साक्ष्य प्राप्त हो सकता है तो, उसे अभिगृहीत कर सकेगा ।

(2) दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) के उपबन्ध इस अधिनियम के अधीन किसी तलाशी या अभिग्रहण को, यथाशक्य, वैसे ही लागू होंगे जैसे वे उक्त संहिता की धारा 98 के अधीन जारी किए गए वारण्ट के प्राधिकारी के अधीन ली गई किसी तलाशी या किए गए किसी अभिग्रहण को लागू होते हैं ।

(3) जहां कोई व्यक्ति उपधारा (1) के खण्ड (ख) या खण्ड (ग) के अधीन किसी वस्तु का अभिग्रहण करता है वहां वह, यथाशक्य शीघ्र, किसी मजिस्ट्रेट को उसकी इत्तिला देगा और उस वस्तु की अभिरक्षा के सम्बन्ध में उससे आदेश प्राप्त करेगा ।

9. कम्पनियों द्वारा अपराध - (1) यदि इस अधिनियम के किन्हीं उपबन्धों का उल्लंघन करने वाला कोई व्यक्ति कम्पनी है तो, प्रत्येक व्यक्ति, जो उस अपराध के किए जाने के समय उस कम्पनी के कारबार के संचालन के लिए उस कम्पनी का भारसाधक और उसके प्रति उत्तरदायी था, और साथ ही वह कम्पनी भी, ऐसे उल्लंघन के दोषी समझे जाएंगे और तदनुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दंडित किए जाने के भागी होंगे :

परन्तु इस उपधारा की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को इस अधिनियम में उपबंधित किसी दण्ड का भागी नहीं बनाएगी यदि वह यह साबित कर दे कि अपराध उसकी जानकारी के बिना किया गया था अथवा उसने ऐसे अपराध का निवारण करने के लिए सब सम्यक् तत्परता बरती थी ।  

(2) उपधारा (1) में किसी बात के होते हुए भी, जहां इस अधिनियम के अधीन कोई अपराध किसी कम्पनी द्वारा किया गया है तथा यह साबित होता है कि अपराध कम्पनी के किसी निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी की सहमति या मौनानुकूलता से किया गया है, या उस अपराध का किया जाना उसकी किसी उपेक्षा के कारण माना जा सकता है, वहां ऐसा निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अन्य अधिकारी भी उस अपराध का दोषी समझा जाएगा । और तदनुसार अपने विरुद्ध कार्यवाही किए जाने और दण्डित किए जाने का भागी होगा ।

स्पष्टीकरण - इस धारा के प्रयोजन के लिए,-

(क) “कम्पनी" से कोई निगमित निकाय अभिप्रेत है और इसके अन्तर्गत फर्म या व्यष्टियों का अन्य संगम भी है; तथा

(ख) फर्म के सम्बन्ध में "निदेशक" से उस फर्म का भागीदार अभिप्रेत है ।

 9क. अपराधों का संज्ञेय होना - दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 (1898 का 5) में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के अधीन दंडनीय कोई भी अपराध संज्ञेय होगा ।

10. अपराधों का विचारण करने की अधिकारिता - प्रेसिडेन्सी मजिस्ट्रेट या प्रथम वर्ग मजिस्ट्रेट से अवर कोई भी न्यायालय इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी भी अपराध का विचारण नहीं करेगा ।

 10क. समपहरण - जहां कोई व्यक्ति इस अधिनियम या तद्धीन बनाए गए किसी नियम का उल्लंघन करने के लिए किसी न्यायालय द्वारा सिद्धदोष ठहराया गया है वहां वह न्यायालय यह निदेश दे सकेगा कि कोई भी दस्तावेज (कोई समस्त प्रतियों सहित) वस्तु या चीज, जिसकी बाबत उल्लंघन किया गया है, उसकी अन्तर्वस्तु सहित, जहां ऐसी अन्तर्वस्तु धारा 8 की उपधारा (1) के खण्ड (ख) के अधीन अभिगृहीत की जाती है वहां, सरकार को समपहृत हो जाएगी ।

11. अधिकारियों का लोक सेवक समझा जाना - धारा 8 के अधीन प्राधिकृत प्रत्येक व्यक्ति भारतीय दण्ड संहिता (1860 का 45) की धारा 21 के अर्थ में लोक सेवक समझा जाएगा ।

12. संरक्षण - कोई वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही किसी भी ऐसी बात के बारे में, जो इस अधिनियम के अधीन सद्भावपूर्वक की गई है या की जाने के लिए आशयित है, किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध न होगी ।

13. अन्य विषयों का प्रभावित न होना - इस अधिनियम के उपबन्ध तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबन्धों के अतिरिक्त हैं न कि उनके अल्पीकरण में ।

14. व्यावृत्ति - इस अधिनियम की कोई भी बात निम्नलिखित को लागू नहीं होगी,-

(क) किसी रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा व्यवसायी द्वारा अपने परिसरों में प्रदर्शित कोई सूचना-पट या सूचना, जिसमें वह उपदर्शित हो कि धारा 3, अनुसूची या इस अधिनियम के अधीन बनाए गए नियमों में विनिर्दिष्ट कोई रोग, विकार या दशा की चिकित्सा उन परिसरों में की जाती है; अथवा

(ख) धारा 3 में विनिर्दिष्ट किसी विषय पर सद्भावपूर्वक वैज्ञानिक अथवा सामाजिक दृष्टिकोण से लिखी गई कृति या पुस्तक; अथवा

(ग) किसी ओषधि के सम्बन्ध में ऐसा कोई विज्ञापन, जो केवल किसी रजिस्ट्रीकृत चिकित्सा वयवसायी को, धारा 16 के अधीन विहित रीति से, गुप्त रूप से भेजा गया हो; अथवा

(घ) किसी ओषधि के सम्बन्ध में सरकार द्वारा मुद्रित या प्रकाशित कोई विज्ञापन; अथवा

(ङ) किसी ओषधि के सम्बन्ध में ओषधि और चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) संशोधन अधिनियम, 1963 (1963 का 42) के प्रारम्भ से पूर्व, दी गई सरकार की पूर्व मंजूरी से, किसी व्यक्ति द्वारा मुद्रित या प्रकाशित विज्ञापन :

परन्तु सरकार ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किए जाएंगे, उस मंजूरी को उस व्यक्ति को कारण बताने का अवसर देने के पश्चात् वापस ले सकेगी ।

15. अधिनियम को लागू होने से छूट देने की शक्ति - यदि केन्द्रीय सरकार की राय में लोकहित इस बात की अपेक्षा करता है कि किसी विनिर्दिष्ट ओषधि या ओषधि-वर्ग के विज्ञापन का  या ओषधि सम्बन्धी विज्ञापनों के किसी विनिर्दिष्ट वर्ग को, अनुज्ञात किया जाना चाहिए तो वह, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, यह निदेश दे सकेगी कि धारा 3, 4, 5 और 6 के उपबंध, अथवा इनमें से कोई उपबन्ध, ऐसी किसी ओषधि या ओषधि-वर्ग के विज्ञापन या ओषधि सम्बन्धी विज्ञापनों के ऐसे किसी वर्ग को, या उसके सम्बन्ध में, नहीं लागू होंगे या ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए लागू होंगे जो अधिसूचना में विनिर्दिष्ट की जाएं ।

16. नियम बनाने की शक्ति - (1) केन्द्रीय सरकार, इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करने के लिए नियम, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा, बना सकेगी ।

(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी शक्ति की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, इन नियमों में,-

(क) ऐसे किसी  [रोग, विकार या दशा] को विनिर्दिष्ट किया जा सकता है जिसे धारा 3 के उपबन्ध लागू होंगे;

(ख) ऐसी रीति विहित की जा सकती है, जिससे धारा 14, के खण्ड (ग) में निर्दिष्ट वस्तुओं या चीजों के विज्ञापन गुप्त रूप से भेजे जा सकते हैं ।

(3) इस अधिनियम के अधीन बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के पश्चात् यथाशीघ्र, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष, जब वह सत्र में हो, कुल तीस दिन की अवधि के लिए रखा जाएगा । यह अवधि एक सत्र में अथवा दो या अधिक आनुक्रमिक सत्रों में पूरी हो सकेगी । यदि उस सत्र के, जिसमें वह इस प्रकार रखा गया है, या पूर्वोक्त आनुक्रमिक सत्रों के, अवसान के पूर्व दोनों सदन उस नियम में कोई परिवर्तन करने के लिए सहमत हो जाएं तो तत्पश्चात् वह ऐसे परिवर्तित रूप में ही प्रभावी होगा । यदि उक्त अवसान के पूर्व दोनों सदन सहमत हो जाएं कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए तो तत्पश्चात् वह निष्प्रभाव हो जाएगा। किन्तु नियम के ऐसे परिवर्तित या निष्प्रभाव होने से उसके अधीन पहले की गई किसी बात की विधिमान्यता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

अनुसूची

धारा 3(घ) और धारा 14 देखिए

क्रम सं०  रोग, विकार या दशा का नाम

1.            एपेन्डिसाइटिस

2.            धमनी-काठिन्य

3.            अंधापन

4.            रक्त विषाक्तता

5.            ब्राइट रोग

6.            कैन्सर

7.            मोतियाबिन्द

8.            बधिरता

9.            मधुमेह

10.          मस्तिष्क के रोग और विकार

11.          दृष्टि तंत्र के रोग और विकार

12.          गर्भाशय के रोग और विकार

13.          ऋतुस्त्राव के विकार

14.          तंत्रिका तंत्र के विकार

15.          पुरःस्थ ग्रंथीय विकार

16.          ड्राप्सी

17.          अपस्मार

18.          स्त्री रोग (सामान्य)

19.          ज्वर (सामान्य)

20.          दौरे

21.          स्त्री वक्ष का रूप और उसकी संरचना

22.          पित्ताश्मरी, वृक्क अश्मरी और मूत्राशय अश्मरी

23.          कोढ़

24.          सबलबाय

25.          घेंघा

26.          हृदय रोग

27.          ऊंचा या नीचा रक्तचाप

28.          हाइड्रोसील

29.          हिस्टीरिया

30.          शिशु लकवा

31.          उन्मत्तता

32.          कुष्ठ

33.          ल्यूकोडर्मा

34.          हनुस्तम्भ

35.          चलन अनन्वय (लोकोमोटर) अटैक्सिया

36.          ल्यूपस

37.          तंत्रिकीय दौर्बल्य

38.          स्थूलता

39.          लकवा

40.          प्लेग

41.          प्लूरिसी

42.          न्युमोनिया

43.          आमवात

44.          विदार

45.          यौन नपुंसकता

46.          चेचक

47.          व्यक्तियों का कद

48.          स्त्रियों में बांझपन

49.          रोहे

50.          यक्ष्मा

51.          अर्बुद

52.          आयफाइड ज्वर

53.          गैस्ट्रो इंटेस्टाइनल ट्रैक्ट के व्रण

54.          रतिज रोग, जिसके अन्तर्गत सिफलिस, सूजाक, मृदु शेंकर, रतिज काणीकागुल्म और लसीका काणीकागुल्म है ।]