बिहार राज्य विश्वविद्यालय (संशोधन एवं विधिमान्यकरण) अधिनियम, 2012
No: 22 Dated: Dec, 27 2012
[बिहार अधिनियम 22, 2012]
बिहार राज्य विश्वविद्यालय (संशोधन एवं विधिमान्यकरण) अधिनियम, 2012
बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 (बिहार अधिनियम 23, 1976) का संशोधन करने के लिए अधिनियम।
प्रस्तावना :-चूँकि, बिहार राज्य के विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू०जी०सी०) द्वारा निर्धारित मानदंडों के अनुरूप बनाया जाना अत्यंत आवश्यक है,
और, चूँकि, बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1976 के कतिपय प्रावधान में विसंगतियाँ हैं जिस कारण विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा निर्गत विभिन्न विनियम/ निदेश/अनुदेश के अनुरूप किया जाना आवश्यक है। भारत सरकार एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा समय-समय पर निर्गत आदेश/रेगुलेशन के अनुरूप इस अधिनियम में शिक्षक की परिभाषा को भी परिभाषित करना आवश्यक है।
राज्य सरकार के पत्रांक 1216, दिनांक 18.09.75 के द्वारा राज्य के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपति को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यू०जी०सी०) की अनुशंसा के आलोक में प्रयोग-प्रदर्शक का पद समाप्त होने की सूचना देते हुए राज्य सरकार के निम्नलिखित निर्णय को राज्य के विश्वविद्यालयों को संसूचित किया गया है कि दिनांक 01,01,1973 के पूर्व स्वीकृत पदों पर नियुक्त प्रयोग प्रदर्शक पूर्ववत् बने रहेंगे, परन्तु इन प्रयोग-प्रदर्शकों के पद की सेवा-निवृत्ति या अन्य किसी कारण से रिक्ति होने की स्थिति में, भरा नहीं जायगा। दिनांक 01,01,1973 के पूर्व सृजित पदों पर तिथि 18,09,1975 के पूर्व अस्थायी रूप में नियुक्त प्रयोग प्रदर्शकों की योग्यता आदि की जाँचकर उन्हें स्थायी नियुक्ति के योग्य पाये जाने पर उनके स्थायीकरण में बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग द्वारा सहमति प्राप्त किये जाने की आवश्यकता थी।
और, चूँकि, विभागीय पत्रांक 1789, दिनांक 26.08.1977 में राज्य सरकार के द्वारा मगध विश्वविद्यालय सहित राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों को सूचित किया गया था कि भारत सरकार की अनुशंसा पर प्रयोग प्रदर्शक का पद समाप्त कर दिया गया है, और उन पदों पर अब नियुक्ति नहीं करनी है। इस पत्र में भारत सरकार के निर्णय को निम्नरूप से उद्धरित किया गया था "The revised scale of Rs, 500-900 is for the existing demonstrator/Tutors only, In future demonstrator/Tutors shall not be appointed in the Universities and Colleges,"
और, चूँकि, यू०जी०सी० रेगुलेशन 1991 शैक्षिक पद के लिए अर्हता निर्धारित करता है।
और, चूँकि, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग सिर्फ त्रि-स्तरीय शैक्षिक पद, नामतः व्याख्याता, रीडर एवं प्राचार्य को मान्यता प्रदान करता है।
बिहार विश्वविद्यालय अधिनियम 1976 में 'शिक्षक' की परिभाषा में स्पष्टता का अभाव है जिस कारण शिक्षक की योग्यता धारण नहीं करने वाले शिक्षकेत्तर कर्मियों को नियुक्ति की तिथि से 'शिक्षक' के रूप में परिभाषित किया जाने लगा है एवं अस्वीकृत पदों तथा स्टाफिंग पैटर्न के आधार पर नियुक्त/ कार्यरत शिक्षकेत्तर कर्मियों की सेवा सामंजन का प्रश्न भी उठ खड़ा हुआ है, अतएव बिहार के विश्वविद्यालयों एवं महाविद्यालयों के शैक्षणिक वातावरण के संवर्धन तथा शैक्षणिक क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करने तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अपेक्षाओं के अनुरूप बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1976 के कतिपय विद्यमान संगत प्रावधानों को संशोधित किया जाना अनिवार्य है,
और, चूँकि, माननीय पटना उच्च न्यायालय के राँची खण्डपीठ के द्वारा एल०पी०ए० संख्या-274/1997 (आर) में एकलपीठ के न्यायादेश सी०डब्ल्यूजे०सी० संख्या-2176/1996(आर) दिनांक 03.04.1997 को प्रयोगशाला सहायक को शिक्षक के रूप में स्वीकार्य किये गये दावा को खारिज कर दिया है।
और, चूँकि, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने सिविल अपील संख्या-4215-16/2002 दिनांक 22.07.2002 को खारिज करते हुए निर्णय दिया कि खण्डपीठ के आदेश में कोई गलती नहीं है। पीठ ने बिल्कुल ठीक ही अवलोकन किया है कि प्रयोगशाला कर्मियों को शिक्षक माने जाने के लिए सामान्य निदेश नहीं दिया जा सकता क्योंकि अर्हता एवं अन्य महत्वपूर्ण सूचनाओं को प्रत्येक वादी के मामले पर विचार करने के समय उनके द्वारा धारित योग्यता एवं तथ्यों की अलग से राज्य सरकार के द्वारा जाँचा जाना है। अतः खण्डपीठ के इस निर्णय के विरूद्ध माननीय सर्वोच्च न्यायालय को कोई त्रुटि नहीं मिलता है। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय किया कि प्रयोगशाला कर्मी को शिक्षक घोषित नहीं किया जा सकता।
और, चूँकि राज्य मंत्रिमंडल के निर्णयोपरांत पत्रांक-1115 दिनांक 14,06,2006 निर्गत किया गया;
और, चूँकि, पत्रांक-1115 दिनांक 14.06.2006 में ज्ञापांक-1456 दिनांक 01.08.2006 के द्वारा परिवर्तन किया गया;
और, चूँकि, दिनांक 18.12.2008 को राज्य सरकार ने स्पष्ट किया कि इन कर्मियों को प्रयोग प्रदर्शक के रूप में पदनामित सिर्फ वेतनमान और भत्ते के लिए किया गया है न कि उन्हें शिक्षक के रूप में मान्य किये जाने हेतुः
और, चूँकि, माननीय पटना उच्च न्यायालय ने सी०डब्ल्यू जे०सी० संख्या-1377/2010 दिनांक 21.09.2010 में कहा कि बिहार राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम 1976 के अन्तर्गत दिए गए शिक्षक के परिभाषा के अधीन पदनामित प्रयोग प्रदर्शक को शिक्षक माना गया है अतः वे सभी लाभ पाने के हकदार हैं;
और, चूँकि, एल०पी०ए० संख्या-981/2011 दिनांक 11,07,2011 के न्याय निर्णय में माननीय अपीलीय न्यायालय द्वारा तत्कालीन राँची खण्डपीठ के निर्णय के आलोक में राज्य सरकार के द्वारा दिनांक 14,06,2006 को निर्णय लिया गया कि स्नातक प्रयोगशाला सहायक/ कनीय प्रयोगशाला सहायक/ प्रयोगशाला प्रभारी/ प्रयोगशाला तकनीशियन/ तकनीकी सहायक इत्यादि जो अंगीभूत महाविद्यालय/ विश्वविद्यालय के प्रयोगशाला में नियुक्त हों को पुर्ननामित प्रयोग प्रदर्शक माना जाय। उक्त निर्णय में यह विशेष रूप से निर्णय किया गया था कि पुनर्नामित प्रयोग प्रदर्शक भी प्रयोग प्रदर्शक के पद पर दी जानेवाली सभी लाभ के हकदार होंगे।
और, चूँकि, माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने उक्त LPA के आदेश के विरूद्ध दायर SLP(C) No, CC- 1324/2012 को शुरू में ही निरस्त कर दिया।
और, चूँकि, "शिक्षक" की परिभाषा में अस्पष्टता एवं त्रुटि के कारण ही शिक्षकेतर पद का पुर्नपदनाम का प्रश्न उत्पन्न हुआ।
राज्य मंत्रिपरिषद ने विधिक परामर्श और एल०पी०ए० न्यायालय के आदेश के आलोक में भूल सुधारने का निर्णय लिया और दिनांक 14.06.2006 को निर्गत पत्र तथा दिनांक 01.08.2006 को निर्गत उसके शुद्धि पत्र जिसके द्वारा प्रयोगशाला कर्मियों को प्रयोग प्रदर्शक के रूप में पदनामित करने के निर्णय को राजकीय संकल्प संख्या-608 दिनांक 10.04.2012 के द्वारा वापस लेने का निर्णय लिया गया।
और, चूँकि, शिक्षक को परिभाषित करने में संशोधन करने की आवश्यकता है ताकि शिक्षकेतर प्रयोगशाला कर्मी जो प्रयोग प्रदर्शक के रूप में पदनामित हैं को पुर्नपदनामित करने की तिथि से शिक्षक की श्रेणी से एल०पी०ए० संख्या-981/2011 और विधि परामर्श के आलोक में अलग रखा जा सके क्योंकि यू०जी०सी० और भारत सरकार प्रयोग प्रदर्शक को शिक्षक के रूप में मान्यता प्रदान नहीं करते हैं।
भारत गणराज्य के तिरसठवें वर्ष में बिहार राज्य विधान-मंडल द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो : -
1, संक्षिप्त नाम एवं प्रारंभ :-(1) यह अधिनियम बिहार राज्य विश्वविद्यालय (संशोधन एवं विधिमान्यकरण) अधिनियम, 2012 कहा जा सकेगा।
(2) यह अधिनियम विश्वविद्यालय अनुदान आयोग विनियम 1991 के निर्गमन की तिथि यथा 5 अक्तूबर, 1991 के प्रभाव से प्रवृत समझा जायगा।
2, बिहार अधिनियम 23,1976 की धारा-2 में संशोधन :- धारा-2 के खण्ड (ब) को निम्नलिखित द्वारा प्रतिस्थापित किया जायेगा :
“(ब) इस अधिनियम या किसी अन्य अधिनियम, अध्यादेश, नियम या न्यायालय के किसी निर्णय या डिक्री में किसी बात के प्रतिकूल होते हुए भी "शिक्षक" से अभिप्रेत है केवल विश्वविद्यालय प्राचार्य/ प्राचार्य, रीडर तथा व्याख्याता के पद एवं यू०जी०सी० के द्वारा समय-समय पर निर्गत विनियमों में शिक्षक की श्रेणी में स्वीकार किये गये पदः
परन्तु, अधिनियम की धारा-2(ब) में उक्त प्रतिस्थापन के होते हुए भी तिथि 01.01.1973 के पूर्व स्वीकृत पदों पर तिथि 18.09.1975 तक बिहार लोक सेवा आयोग या बिहार विश्वविद्यालय सेवा आयोग की अनुशंसा/सहमति से कार्यरत 'प्रयोग प्रदर्शक' इस प्रतिस्थापन से प्रभावित नहीं होंगे।
3, अधिनियम का अध्यारोही प्रभाव :- अन्य अधिनियम, अध्यादेश, विनिश्च नियम, किसी न्यायालय के निर्णय में किसी प्रतिकूल बात के अंतर्विष्ट होने पर भी, इस अधिनियम के प्रावधानों का अध्यारोही प्रभाव होगा।
बिहार-राज्यपाल के आदेश से,
विनोद कुमार सिन्हा,
सरकार के सचिव।