No: 6 Dated: May, 22 2013

[बिहार अधिनियम 6, 2013]

बिहार सहकारी सोसाइटी (संशोधन) अधिनियम, 2013 

बिहार सहकारी सोसाइटी अधिनियम, 1935 में संशोधन हेतु अधिनियम।

प्रस्तावना:- चूँकि, स्वैच्छिक संस्था के रूप में गठित सहकारी समितियाँ सदस्यों के सामाजिक एवं आर्थिक बेहतरी के लिए सदस्यों की आर्थिक सहभागिता, सदस्यों के जनतांत्रिक नियंत्रण एवं स्वायत्त कार्यकलाप से अपने सदस्यों के हित में और अधिक सार्थक रुप में कार्य कर सकें; 

      और, चूंकि, राज्य में सहकारी समितियों के स्वैच्छिक गठन, स्वायत्त कार्यकलाप, जनतांत्रिक नियंत्रण एवं व्यावसायिक प्रबन्धन को प्रोत्साहित करना एवं उसका उन्नयन करना और इस प्रयोजनार्थ ऐसे अध्युपाय करना, जो आवश्यक हो, राज्य सरकार का दायित्व है; 

      और, चूंकि, संविधान (संतानवें संशोधन) अधिनियम, 2011 के अनुशरण में बिहार सहकारी सोसाइटी अधिनियम, 1935 में उपयुक्त संशोधन के अनुकूल रखने हेतु कई संशोधन अनिवार्य है; 

      भारत गणराज्य के चौसठवें वर्ष में बिहार राज्य विधान-मंडल द्वारा निम्नलिखित रूप में यह अधिनियमित हो: 

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारम्भ। - (1) यह अधिनियम "बिहार सहकारी सोसाइटी (संशोधन) अधिनियम, 2013" कहा जा सकेगा। 

    (2) इसका विस्तार सम्पूर्ण बिहार राज्य में होगा। 

    (3) यह तुरन्त प्रवृत्त होगा। 

2. बिहार सहकारी सोसाइटी अधिनियम, 1935 (अधिनियम VI, 1935) की धारा-2 का संशोधन। - बिहार सहकारी सोसाइटी अधिनियम, 1935 (अधिनियम VI, 1935) (इसके आगे उक्त अधिनियम के रूप में निर्दिष्ट) की धारा-2 में निम्नवत संशोधन किया जायेगा, यथा: 

    (1) उप-धारा (ङ) निम्नलिखित द्वारा प्रतिस्थापित की जायेगी: 

     "(ङ) "बोर्ड" से अभिप्रेत है निदेशक बोर्ड अथवा शासी निकाय अथवा प्रबन्ध समिति, चाहे जो भी इसका नाम हो, जिसे सहकारी समिति के कामकाज का प्रबन्धन सौंपा गया हो।"

   (2) उप-धारा (छछ) निम्नलिखित द्वारा प्रतिस्थापित की जायेगी: 

    “(छछ) “पदधारी" से अभिप्रेत है सहकारी समिति के सभापति, उपसभापति, अध्यक्ष, उपाध्यक्ष,  सचिव अथवा कोषाध्यक्ष तथा किसी सहकारी समिति के बोर्ड द्वारा निर्वाचित कोई अन्य व्यक्ति।"

  (3) उप-धारा (त) के बाद निम्नलिखित नई उप-धारा (थ), (द), (ध) एवं (न) जोड़ी जायेगी, यथा: 

     "(थ)“सामान्य निकाय" से अभिप्रेत है उस सहकारी समिति के सम्मिलित रुप से सभी सदस्य अथवा सभी सदस्यों के प्रतिनिधि।"

     “(द) "कृत्यकारी निदेशक" से अभिप्रेत है नियमावली अथवा सहकारी समिति के उपविधियों में विर्निदिष्ट समिति के कृत्यकारी कार्यपालक निदेशक।" 

     “(ध) "पिछड़े वर्गों" से अभिप्रेत है तथा इसमें सम्मिलित है "बिहार पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जन जातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के लिए) अधिनियम- 1991" (बिहार अधिनियम सं0-3, 1992) की अनुसूची-2 में विनिर्दिष्ट पिछड़े वर्गों के नागरिकों की सूची, समय-समय पर यथासंशोधित ;

     "(न) "अति पिछड़े वर्गों' से अभिप्रेत है तथा इसमें सम्मिलित है "बिहार पदों एवं सेवाओं की रिक्तियों में आरक्षण (अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जन जातियों एवं अन्य पिछड़े वर्गों के लिए) अधिनियम- 1991" (बिहार अधिनियम सं0-3, 1992) की अनुसूची-1 में विनिर्दिष्ट पिछड़े वर्गों के नागरिकों की सूची, समय-समय पर यथासंशोधित |

3. अधिनियम VI, 1935 की धारा-13क. में संशोधन। - उक्त अधिनियम की धारा-13क. की उप-धारा (1) एवं (2) निम्नलिखित द्वारा प्रतिस्थापित की जायेगी, यथा: 

    “(1) राज्य में सहकारी समितियों के स्वैच्छिक गठन, स्वायत्त कार्यकलाप, जनतांत्रिक नियंत्रण एवं व्यावसायिक प्रबन्धन को प्रोत्साहित एवं उन्नत करना और इस ओर ऐसे कदम उठाना, जिसकी आवश्यकता हो, राज्य सरकार का दायित्व होगा। (2) उप-धारा (1) के प्रावधानों के अधीन सहकारी समिति के प्रोत्साहन एवं उन्नयन हेतु राज्य सरकार, यदि आवश्यक समझे तो 

      (क) किसी सामान्य या निबंधित सहकारी समिति के किसी वर्ग के विकास में सहायता के विचार से सहकारी समिति की हिस्सा-पूँजी में सीधे अंशदान दे सकेगी;

      (ख) किसी सहकारी समिति की हिस्सा-पूँजी के निर्माण एवं सम्बर्द्धन के लिए सहायता कर सकेगी।

      (ग) सहकारी समिति को ऋण या अग्रिम दे सकेगी या सहकारी समिति के द्वारा निर्गत डिबेंचर पर मूलधन के पुनर्भुगतान और सूद के भुगतान की गारंटी दे सकेगी या 

             किसी सहकारी समिति को दिये गये ऋण या अग्रिम के मूलधन के पुनर्भुगतान और सूद के भुगतान की गारंटी दे सकेगी।

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