No: 7 Dated: Mar, 06 2019
1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और आरम्भ-(1) यह नियमावली "बिहार सिविल सेवा (न्यायिक शाखा) (प्रशिक्षण और विभागीय परीक्षा नियमावली, 2019" कहीं जा सकेगी।
(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण राज्य में होगा।
(3) यह तुरंत प्रवृत्त होगी।
2. परिभाषाएँ:- जब तक कोई बात विषय अथवा संदर्भ के विरूद्ध न हो, इस नियमावली में
(क) “सरकार से अभिप्रेत है बिहार सरकार: (
(ख) “परिवीक्षाधीन व्यक्ति" से अभिप्रेत है परिवीक्षा पर सिविल न्यायाधीश (कनीय श्रेणी) [तथा बिहार सेवा संहिता में आन्तर्विष्ट किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी] इस नियमावली के प्रयोजनार्थ इसमें स्थायी अथवा अस्थायी आधार पर नियुक्त सिविल न्यायाधीश (कनीय श्रेणी) शामिल होंगे:
(ग) “विभागीय परीक्षा से अभिप्रेत है नियम 26 के अधीन विहित विभागीय परीक्षा;
(घ) “न्यायिक परीक्षा समिति से अभिप्रेत है नियम 3 (1) के अनुसार पटना उच्च न्यायालय द्वारा गठित समितिः
(ड.) "उच्च न्यायालय" से अभिप्रेत है पटना उच्च न्यायालय
3. न्यायिक परीक्षा समिति का गठन, कृत्य और शक्तियाँ:(1) एक न्यायिक परीक्षा समिति होगी जिसके अध्यक्ष पटना उच्च न्यायालय के महानिबंधक तथा सदस्य बिहार न्यायिक अकादमी के निदेशक और पटना उच्च न्यायालय के निबंधक (नियुक्ति) होंगे।
(2) न्यायिक परीक्षा समिति विभागीय परीक्षा संचालित करने के लिए उत्तरदायी होगी। विभागीय परीक्षा पटना और. उच्च न्यायालय के पूर्व अनुमोदन से. ऐसे अन्य स्थानों पर आयोजित होगी जिसे समिति समय-समय पर विनिश्चित करे।
(3) न्यायिक परीक्षा समिति, उच्च न्यायालय के पूर्व अनुमोदन से, विभागीय परीक्षा की तिथि नियत करेगी। सामान्यतया परीक्षा मई अथवा जून में आयोजित की जाएगी।
(4) न्यायिक परीक्षा समिति, उच्च न्यायालय के परामर्श से. तिथियों को अधिसूचित करेगी तथा इस प्रकार अधिसूचित तिथियाँ नियत तिथि से कम से कम दो माह पहले होगी जबतक कि उच्च न्यायालय में प्रतिवेदित आपवादिक कारणों से वे ऐसा करने में असमर्थ न हों।
(5) न्यायिक परीक्षा समिति का यह कर्तव्य होगा कि वह हरेक परीक्षा से पूर्व, परीक्षार्थियों से पूछे जाने वाले प्रश्नों को सेट करे, हरेक पत्र और विषय की परीक्षा का क्रम निर्धारित करे तथा परीक्षा संचालन के अन्य ब्यौरे को व्यवस्थित करे और परीक्षा की समाप्ति तक प्रश्न पत्रों की गोपनीयता को बनाए रखे।
(6) न्यायिक परीक्षा समिति आयोजित परीक्षाओं में पालन की जानेवाली प्रक्रिया को शासित करने के लिए नियमावली बना सकेगी और हरेक विषय में परीक्षार्थियों की निपुणता को अभिनिश्चित करने का उचित और एकसमान तरीका सुनिश्चित करेगी।
(7) न्यायिक परीक्षा समिति का यह कर्तव्य होगा कि वह ऐसे पदाधिकारी का नाम जो उसकी राय में, विभागीय परीक्षा में एक अथवा दो विषयों में उत्तीर्ण हो चुके हों, उच्च न्यायालय को प्रतिवेदित करे।
(8) न्यायिक परीक्षा समिति हरेक केन्द्र पर संचालित की जानेवाली विभागीय परीक्षा के लिए, उच्च न्यायालय के अनुमोदन से. न्यायिक पदाधिकारियों को केन्द्राधीक्षक के रूप में नियुक्त करेगी जो समिति के पर्यवेक्षण में कार्य करेंगे और अपने महानिबंधक द्वारा निर्गत निर्देशों का अनुपालन करेंगे।
(9) परिवीक्षाधीन व्यक्ति को, जहाँ तक संभव हो. न्यायिक (सिविल और आपराधिक) और राजस्व कार्य तथा कार्यालय प्रबंधन और नियंत्रण का भी अधिक से अधिक अनुभव देना चाहिए। उसे परीक्षा के लिए नियत पुस्तकों में भी प्रवीण होना चाहिए तथा प्रमुख विधिक कार्यो. मामलों और प्राधिकृत विधि प्रतिवेदनों का गंभीरतापूर्वक अध्ययन करना चाहिए।"
(10) जिला न्यायाधीश का यह कर्तव्य होगा कि वह अपने अधीन कार्यरत परिवीक्षाधीन व्यक्ति के व्यावहारिक प्रशिक्षण में भाग ले। परिवीक्षाधीन व्यक्ति के प्रशिक्षण की न्यूनतम अवधि सामान्यतया निम्नलिखित विभिन्न शाखाओं में विभाजित की जाएगी:
(i) मुंसिफ (सिविल न्यायाधीश, कनीय खंड) और अधीनस्थ न्यायाधीश (सिविल न्यायाधीश, वरीय खंड) के साथ प्रशिक्षण-2 माह
(ii) राजस्व कार्य का प्रशिक्षण - 1 माह
(iii) मजिस्ट्रेट के कार्य का प्रशिक्षण-3 माह
(iv) जिला और सत्र न्यायाधीश के साथ प्रशिक्षण-2 माह
(V) सर्वेक्षण और बंदोबस्त- 1 माह
(vi) बिहार न्यायिक अकादमी में प्रशिक्षण-3 माह